सबसे पुरानी मार्शल आर्ट 'कलरीपायट्टू' के मास्टर बन रहे ये बच्चे, आज ये 3 हज़ार पुरानी कला सिखा रहे हैं हरीकृष्णन
हरिकृष्णन एस कलरीपायट्टू के मास्टर हैं और वे खुद एकावीरा कलरीपायट्टू अकादमी में बच्चों को इस मार्शल आर्ट में पारंगत होने की ट्रेनिंग देते हैं। कलरीपायट्टू केरल में जन्मी एक प्राचीन मार्शल आर्ट है और माना जाता है कि दुनिया भर में विख्यात कुंग-फू आदि मार्शल आर्ट का जन्म भी कलरीपायट्टू के जरिये ही हुआ।
हाल ही में एक वीडियो सोशल मीडिया पर बड़ी तेजी से वायरल हुआ जहां पर कुछ बच्चे दुनिया की सबसे प्राचीन मार्शल आर्ट कलरीपायट्टू में महारत हासिल करने की कोशिश करते हुए नज़र आ रहे हैं। वीडियो वायरल होने के बाद वे शख्स भी खूब चर्चा में हैं जो इन बच्चों को इस विधा का प्रशिक्षण दे रहे हैं।
हरिकृष्णन एस कलरीपायट्टू के मास्टर हैं और वे खुद एकावीरा कलरीपायट्टू अकादमी में बच्चों को इस मार्शल आर्ट में पारंगत होने की ट्रेनिंग देते हैं। कलरीपायट्टू केरल में जन्मी एक प्राचीन मार्शल आर्ट है और माना जाता है कि दुनिया भर में विख्यात कुंग-फू आदि मार्शल आर्ट का जन्म भी कलरीपायट्टू के जरिये ही हुआ है।
3 हज़ार साल पुरानी मार्शल आर्ट
हरिकृष्णन ने मीडिया से बात करते हुए बताया है कि कलरीपायट्टू करीब 3 हज़ार वर्षों से भी अधिक पुरानी युद्ध कला है। मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव ने खुद इस मार्शल आर्ट को तैयार किया था, हालांकि इसी के साथ कुछ लोगों का ऐसा भी मानना है कि इस विधा को पक्षियों और जानवरों पर गौर करते हुए सदियों तक सीखा गया है।
कलरीपायट्टू को चार चरणों में सीखा जाता है, जो मेयतारी, कोलतारी, अंगतारी और वेरुम काई हैं। कलरीपायट्टू को सीखने के लिए इस चरणों के क्रम के साथ ही आगे बढ़ना अनिवार्य है। ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन समय में राजाओं के लिए युद्ध लड़ने वाले योद्धा कलरीपायट्टू में पूरी तरह से पारंगत होते थे।
आज डिमांड में है ये मार्शल आर्ट
आज के समय में कलरीपायट्टू को लेकर युवाओं और खासकर बच्चों में दिलचस्पी देखी जा रही है, हालांकि इसे सिखाते समय ट्रेनर को काफी सावधानियाँ बरतनी पड़ती हैं, जिससे अभयस के दौरान बच्चों को चोट से बचाया जा सके। हरिकृष्णन के अनुसार अगर इस कला को युद्ध में इस्तेमाल किया जाए तो बड़ी आसानी से किसी को भी मौत के घाट उतारा जा सकता है।
हरिकृष्णन ने मीडिया को बताया है कि वे यह भी सुनिश्चित करते हैं कि वे इस कला को किसी गलत इंसान को नहीं सिखा रहे हैं, जिससे भविष्य में किसी अन्य व्यक्ति के लिए कोई मुश्किल खड़ी न हो जाए।
5 साल की उम्र में होती है शुरुआत
इसकी ट्रेनिंग के दौरान पहले छात्रों को उनके शरीर के बारे में पूरी तरह जानकारी दी जाती है कि वे अपने शरीर के जरिये क्या-क्या कर सकते हैं। इसी के साथ छात्रों की मानसिक फिटनेस को भी गौर से परखा जाता है। हरिकृष्णन के अनुसार कलरीपायट्टू सीखने वाले छात्रों को लेकर यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि वे मार्शल आर्ट में पारंगत होने के साथ ही अपनी मनोस्थिति में भी बेहतर प्रदर्शन करें।
इस मार्शल आर्ट में छात्र निहत्थे लड़ाई करने के साथ ही डंडे, तलवार और भाले के साथ भी युद्ध करने के कौशल में निपुणता हासिल करते हैं। आमतौर पर इस काला को सीखने की शुरुआत करने वाले छात्र की उम्र 5 साल होती है, जिसके पीछे का कारण है कि इस दौरान छात्र की मांसपेशियाँ और हड्डियाँ लचीली होती हैं, हालांकि इस कला को सीखने की इच्छा रखने वालों के लिए उम्र और लिंग जैसी कोई भी बाधा नहीं है।
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Edited by रविकांत पारीक