White Owl: क्राफ़्ट बियर का रखते हैं शौक़ तो मुंबई के इस ब्रैंड के पास है आपके लिए सस्ती और शानदार रेंज
यूनाइटेड ब्रेवरीज़ का 'किंगफ़िशर लेजर', भारत में सबसे लोकप्रिय ऐल्कॉहलिक बेवरेजेज़ में से एक बन चुका है। माइक्रो ब्रेवरीज़ द्वारा तैयार की जाने वालीं क्राफ़्ट बियर्स की मांग भी बढ़ती जा रही है। लोगों को इन बियर्स के ख़ास तरह के फ़्लेवर्स और क्वॉलिटी काफ़ी पसंद आ रहे हैं। गोल्डस्टेन रिसर्च की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, देश में क्राफ़्ट बियर सेगमेंट 2024 तक 900 मिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है।
ऐसा ही एक क्राफ़्ट बियर ब्रैंड है आउल ब्रेवरी, जिसकी शुरुआत जावेद मुराद ने 2013 में मुंबई से की थी। जावेद मुराद हार्वर्ड बिज़नेस स्कूल से ग्रैजुएट हैं। आउल ब्रेवरी क्राफ़्ट बियर मार्केट में तेज़ी के साथ अपनी अलग पहचान बना रहा है। आउल ब्रेवरी का दावा है कि कंपनी एक महीने में 20 हज़ार बियर केस सेल करती है यानी एक साल में 57 लाख पाइंट्स।
कैसे हुई शुरुआत
2007 में जावेद यूएस में पढ़ाई कर रहे थे और इस दौरान ही उन्हें बियर का शौक़ हुआ। जावेद मुंबई आए तो उन्हें लगा कि यहां पर उपलब्ध बियर्स की क्वॉलिटी विदेशों जैसी नहीं है। जिन बियर्स की क्वॉलिटी अच्छी थी, उन्हें आयात किया जा रहा था और इस वजह से उनकी क़ीमतें भी ज़्यादा थीं।
इस समय तक भारत में क्राफ़्ट बियर का कॉन्सेप्ट नहीं आया था। 2009 में पुणे के डूलली और गुड़गांव के हाउज़ैट ने भारत में इस कॉन्सेप्ट की शुरुआत की। जावेद जब यूएस में ही रहते थे, उसी दौरान भारत में क्राफ़्ट बियर का मार्केट बढ़ने लगा। जावेद ने इस संभावना को पहचाना और भारत वापस आने का फ़ैसला लिया। 2013 में, जावेद ने एक रेस्तरां के रूप में मुंबई से 'वाइट आउल' की शुरुआत की, जो लाइसेंस मिलने के बाद 2014 में ब्रेवरी बन गई।
जावेद ने योरस्टोरी को बताया,
"सालों की मेहनत के बाद मैं अपने आइडिया को फ़ंड करने के लिए इक्विटी कैपिटल के रूप में 30 करोड़ रुपए जुटाने में कामयाब हुआ।"
वाइट आउल की बोतलों और कैन्स में पैकेजिंग के लिए जावेद ने मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के नज़दीक रायसेन ज़िले में एक मैनुफ़ैक्चरिंग पार्टनर के साथ करार किया। जावेद पानी की व्यवस्था भी स्थानीय स्रोतों से करना चाहते थे। मुंबई में बियर्स की मैनुफ़ैक्चरिंग के लिए वह ग्रेटर मुंबई के म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन से पानी की सप्लाई लेते थे। रायसेन आने के बाद भी उन्होंने स्थानीय स्रोतों से ही पानी लेने का फ़ैसला लिया।
जावेद का मानना है कि पानी से बियर के स्वाद पर फ़र्क पड़ता है, इसलिए हमने विशेष प्रक्रिया के द्वारा पानी को स्वादहीन बनाने का फ़ैसला लिया। वाइट आउल 64 हज़ार लीटर के बैच साइज का दावा करता है। जावेद ने तय किया कि वह बेल्जियम और जर्मनी से बियर के लिए ग्रेन्स मंगवाएंगे क्योंकि स्थानीय तौर पर तैयार होने वाले ग्रेन्स की गुणवत्ता में सुधार तो हो रहा था, लेकिन अभी भी जावेद उनकी क्वॉलिटी से संतुष्ट नहीं थे। वाइट आउल यह भी दावा पेश करता है कि उनके प्रोडक्ट्स में कोई भी आर्टिफ़िशियल फ़्लेवर, सिन्थेटिक कलर्स और प्रेज़रवेटिव्स का इस्तेमाल नहीं होता।
स्पार्क (बेल्जियन विट), डियाब्लो (आइरिश रेड ऐले) और एस (ऐपल सिडर ऐले), वाइट आउल के लोकप्रिय उत्पाद हैं। कंपनी कुछ नए प्रोडक्ट्स पर भी काम कर रही है, जो जल्द ही मार्केट में उपलब्ध होंगे। स्पार्क, डियाब्लो और एस की मुबंई, पुणे, गोवा और बेंगलुरु के 2500 बार्स और वाइन स्टोर्स से रीटेल बिक्री होती है। स्पार्क और डियाब्लो दिल्ली में भी उपलब्ध हैं।
वैसे तो क्राफ़्ट बियर प्रीमियम प्रोडक्ट रेंज है, लेकिन वाइट आउल ने इसकी क़ीमतें कम रखी हैं। जावेद बताते हैं, "स्पार्क का एक पाइंट किंगफ़िशर अल्ट्रा और हेनिकेन की क़ीमत के बराबर है,जबकि एस और डियाब्लो की क़ीमतें थोड़ी ज़्यादा हैं। हमारी बियर (पाइंट) की एमआरपी बेंगलुरु में 110 रुपए और 130 रुपए है।"
चुनौतियां
अपने पांच सालों के अभी तक के सफ़र में वाइट आउल ने कई चुनौतियों का सामना किया। मैनुफ़ैक्चरिंग के लिए मध्य प्रदेश में ऑटोमेटेड सेटअप जमाने में जावेद के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने प्रोडक्ट्स की क्वॉलिटी और टेस्ट को पहले जैसा बनाए रखने की थी।
अगली चुनौती थी, पैकेजिंग की। वाइट आउल ने अपने प्रोडक्ट्स की बोतलों पर ट्रांसपैरेंट लेबल्स लगाने से शुरुआत की थी, लेकिन जल्द ही उन्हें यह बात समझ में आई कि ब्रैंडिंग बिल्कुल भी प्रभावी नहीं हैं और रीटेल मार्केट में इसे पसंद नहीं किया जा रहा। जावेद कहते हैं, "हमें पेपर लेबल्स का इस्तेमाल शुरू करना पड़ा ताकि प्रोडक्ट की विज़िबिलिटी बढ़ सके। हमने क्लासिक और रॉ लुक को चुना।"
जावेद बताते हैं कि राज्य के नियामक और टैक्स आदि संबंधी पेचीदगी उनके लिए ख़ास मुद्दा नहीं रही क्योंकि उनका मानना है कि इस सेगमेंट में काम कर रहे अन्य ब्रैंड्स पर भी वही नियम लागू होते हैं। इस संबंध में बात करते हुए जावेद कहते हैं कि उन्हें तो यह बात परेशान नहीं करती थी, लेकिन निवेशकों को इसे समझाने में काफ़ी दिक़्क़त पेश आती थी।
ब्रैंडिंग से जुड़ीं रणनीतियों पर बात करते हुए जावेद ने एसएमबी स्टोरी को बताया कि ब्रैंड ने डिजिटल कैंपेन्स के अतिरिक्त 'नो मोर रबिश' नाम से एक मुहिम चलाई, जिसमें ग्राहकों को प्रोडक्ट्स के साथ ईको-फ़्रेंडली बैग्स दिया जाना शुरू किया गया। जावेद कहते हैं कि भारत में ऐल्कॉहल के विज्ञापन नहीं चलाए जा सकते, इसलिए वाइट आउल ने ख़ास तरह के कैंपेन डिज़ाइन किए और ग्राहकों को बताया कि वे किस तरह से बियर के एक पाइंट के साथ सेलिब्रेट कर सकते हैं।
ग्राहकों को रिझाने के इन तरीक़ों के अलावा वाइट आउल अपने प्रोडक्ट्स में स्ट्रॉन्ग बियर को भी शामिल करने की योजना बना रहा है। साथ ही, मैनुफ़ैक्चरिंग यूनिट बढ़ाने के बारे में कंपनी रणनीति तैयार कर रही है और ब्रैंड की योजना है कि जल्द ही कर्नाटक के हासन में एक मैनुफ़ैक्चरिंग यूनिट की शुरुआत की जाए।