जब साइरस मिस्त्री ने टाटा के साथ 6 साल तक लड़ी कानूनी लड़ाई, आखिर क्यों Tata Sons से हुए थे बर्खास्त
टाटा संस के चेयरमैन के तौर पर साइरस मिस्त्री 4 साल तक पद पर रहे और अक्टूबर 2016 में उन्हें अचानक ही पद से हटा दिया गया.
महाराष्ट्र के पालघर जिले में रविवार को एक सड़क हादसे में टाटा संस के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री (Cyrus Mistry) की असामयिक मौत हो गई. यह वही साइरस मिस्त्री हैं, जो पहले टाटा संस (Tata Sons) के चेयरमैन बने और बाद में जिन्होंने टाटा समूह (Tata Group) के साथ एक लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी. शपूरजी पालोनजी ग्रुप (Shapoorji Pallonji Group), साइरस मिस्त्री के परिवार का ही समूह है, जो 70 सालों तक टाटा समूह का साथ देने के बाद अलग हो गया. सितंबर 2020 में शपूरजी पालोनजी समूह ने टाटा ग्रुप से अलग होने की घोषणा की थी. टाटा सन्स में शपूरजी पालोनजी समूह की दो इन्वेस्टमेंट फर्म्स के जरिए 18.37% हिस्सेदारी थी. टाटा सन्स एक कोर इन्वेस्टमेंट कंपनी और टाटा ग्रुप के लिए होल्डिंग कंपनी है.
टाटा और मिस्त्री परिवार के अच्छे संबंधों और साइरस मिस्त्री में टाटा समूह की कमान संभाल लेने की क्षमता को देखते हुए वर्ष 2012 में उन्हें टाटा संस का चेयरमैन बनाया गया. साथ ही उन्हें टाटा ग्रुप की बड़ी कंपनियों टाटा स्टील, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज, टाटा मोटर्स, इंडियन होटल्स और टाटा केमिकल्स का सीईओ भी बनाया गया. टाटा संस का चेयरमैन नियुक्त होने के पहले तक साइरस मिस्त्री अधिक जाना-पहचाना चेहरा नहीं थे. उस समय तक वह सिर्फ अपने पारिवारिक कारोबार तक ही सीमित थे. वर्ष 2012 में जब मिस्त्री सिर्फ 44 साल की उम्र में टाटा संस के चेयरमैन बनाए गए तो वह शापूरजी पलोनजी ग्रुप की कंपनियों की अगुवाई कर रहे थे. इतनी कम उम्र में उन्होंने 100 अरब डॉलर से अधिक कारोबार वाले टाटा समूह के मुखिया के तौर पर रतन टाटा जैसे दिग्गज की जगह ली थी. ऐसी चर्चा थी कि टाटा समूह की प्रतिनिधि कंपनी टाटा संस की बागडोर संभालने को लेकर मिस्त्री अनिच्छुक थे. लेकिन खुद रतन टाटा ने उन्हें इस चुनौती को स्वीकार करने के लिए मना लिया था.
4 साल बाद कहानी में आया ट्विस्ट
टाटा संस के चेयरमैन के तौर पर मिस्त्री चार साल तक पद पर रहे और अक्टूबर 2016 में उन्हें अचानक ही पद से हटा दिया गया. अंदरूनी मतभेदों के बाद न सिर्फ मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटाया गया बल्कि खुद रतन टाटा ने कुछ समय के लिए इसकी कमान संभाली. बाद में एन चंद्रशेखरन को टाटा संस का चेयरमैन बना दिया गया. बॉम्बे हाउस के फैंटम कहे जाने वाले पलोनजी शापूरजी मिस्त्री भी उस समय अपने बेटे साइरस की मदद नहीं कर पाए थे. साइरस ने टाटा संस के निदेशक मंडल पर गंभीर आरोप लगाए थे. टाटा समूह की कमान संभालने के दौरान मिस्त्री महत्वपूर्ण फैसलों के क्रियान्वयन के लिए काफी हद तक एक समूह कार्यकारी परिषद पर निर्भर थे. इस परिषद में टाटा समूह के भीतर से चुने हुए प्रतिनिधियों के अलावा अकादमिक जगत के भी लोग थे. उस समय मिस्त्री को एक ऐसा गंभीर बैकरूम कार्यकारी माना गया जो तीक्ष्ण बुद्धि रखता है.
कहां से शुरू हुआ विवाद
कहा जाता है कि महज 4 साल के कार्यकाल के दौरान उन्होंने टाटा सन्स में कई बड़े बदलाव कर दिए थे. वे घाटे में चलने वाली कंपनियों को चलाने के पक्ष में नहीं थे. यहीं से सारा विवाद शुरू हुआ. बाद के समय में उन्होंने पुराने कर्मचारियों की जगह युवाओं को तरजीह देनी शुरू की. यह भी कहा जाता है कि साइरस मिस्त्री ने गुजरात स्थित टाटा ग्रुप की कपड़ा कंपनी को बंद करने का प्रस्ताव दिया था. घाटा में चल रही कंपनियों को वे बंद करना चाहते थे. नैनो प्रोजेक्ट को लेकर भी उन्होंने इस प्रकार की बात कही थी. लेकिन, टाटा संस की पॉलिसी कर्मचारी फर्स्ट की रही है. इस कारण साइरस मिस्त्री की अप्रोच उन्हें पसंद नहीं आई. रतन टाटा तक लगातार शिकायत पहुंचने लगी. साइरस मिस्त्री ने टाटा ग्रुप की हॉस्टपिटैलिटी कंपनी इंडियन होटल्स कंपनी लिमिटेड के तहत चल रहे होटलों में हिस्सेदारी कम की या उन्हें बेच दिया. उन्होंने ग्रुप की कुछ कंपनियों के बिजनेस को ज्यादा फोकस्ड बनाने की कोशिशें भी कीं. जैसे टाटा केमिकल्स के कंज्यूमर फूड्स कंपनी बनने और टाटा स्टील को मैटीरियल्स के बजाय विशुद्ध रूप से स्टील कंपनी बनने पर उन्होंने जोर दिया. आखिरकार कंपनी के बोर्ड सदस्यों ने नाराज होकर उन्हें पद से हटा दिया.
स्वभाव से एकांत पसंद मिस्त्री अपने काम के जरिये ही बोलने में यकीन रखते थे. इस वजह से उनके बारे में बहुत कम जानकारी ही सामने आ पाती थी. उन्होंने बॉम्बे हाउस में पदासीन रहते समय मीडिया को एक भी साक्षात्कार नहीं दिया था लेकिन पद से हटते ही वह खुलकर बोलने लगे.
बर्खास्तगी को अदालत में दी चुनौती
इस मामले ने उस समय तीखा मोड़ ले लिया जब साइरस मिस्त्री ने चेयरमैन पद से अपनी बर्खास्तगी को अदालत में चुनौती दी. उनका कहना था कि टाटा संस का निदेशक मंडल कुछ महीने पहले तक उनके काम की तारीफ कर रहा था, लिहाजा उन्हें अचानक हटाए जाने के कारण बताए जाएं. साइरस मिस्त्री कई वर्षों तक टाटा समूह के मुखिया रतन टाटा और इसके प्रबंध ट्रस्टी एन वेंकटरामन एवं अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ लंबी कानूनी लड़ाई में उलझे रहे. दिसंबर 2016 में मिस्त्री और उनके परिवार की तरफ से संचालित दो फर्म्स- साइरस इन्वेस्टमेंट प्राइवेट लिमिटेड और स्टर्लिंग इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन प्राइवेट लिमिटेड ने राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (NCLT) में इस बर्खास्तगी को चुनौती दी थी. इन फर्म्स ने टाटा समूह पर अल्पांश हितधारकों के उत्पीड़न और कुप्रबंधन का आरोप लगाया था. 6 फरवरी 2017 को मिस्त्री को टाटा ग्रुप की होल्डिंग कंपनी टाटा सन्स के बोर्ड में डायरेक्टर के पद से हटा दिया गया.
हालांकि एनसीएलटी की एक विशेष पीठ ने 9 जुलाई 2018 को मिस्त्री और दो फर्म्स द्वारा दायर याचिकाओं को खारिज करने के साथ ही कहा था कि टाटा संस का निदेशक मंडल कंपनी के कार्यकारी चेयरमैन को हटाने के लिए सक्षम था. इसके बाद मिस्त्री ने इस आदेश के खिलाफ राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) के समक्ष अपील की, जहां से उन्हें राहत मिली. दिसंबर 2019 में अपीलीय पंचाट ने कहा कि चेयरमैन पद से मिस्त्री की बर्खास्तगी अवैध थी और उन्हें उस पद पर बहाल किया जाना चाहिए. इसके साथ ही एनसीएलएटी ने इस आदेश के खिलाफ अपील करने की टाटा समूह को छूट भी दी थी.
फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला
NCLAT के फैसले को टाटा संस व समूह की कंपनियों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. टाटा संस की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2020 में मिस्त्री को पद पर बहाल करने के एनसीएलएटी के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी थी. लेकिन फिर मार्च 2021 में शीर्ष अदालत ने अपने अंतिम निर्णय में एनसीएलएटी के आदेश को निरस्त भी कर दिया. इसके बाद मिस्त्री ने सुप्रीम कोर्ट में एक पुनर्विचार याचिका दायर की थी, जिसे इस साल मई में खारिज कर दिया गया. इसके साथ ही मिस्त्री और टाटा समूह के बीच छह साल लंबी कानूनी लड़ाई का पटाक्षेप हो गया था.
सितंबर 2006 को टाटा संस बोर्ड में शामिल
जन्म से आयरिश नागरिक मिस्त्री, पालोनजी शापूरजी मिस्त्री के सबसे छोटे बेटे थे. साइरस मिस्त्री ने मुंबई के कैथेड्रल एंड संस जॉन कॉनन स्कूल से पढ़ाई की. वर्ष 1990 में लंदन के इंपीरियल कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर 1991 में परिवार की कंस्ट्रक्शन कंपनी शापूरजी पालोनजी एंड कंपनी लिमिटेड के निदेशक के रूप में 1991 में ज्वाइन किया. वर्ष 1996 में लंदन यूनिवर्सिटी के लंदन बिजनेस स्कूल से मैनेजमेंट की पढ़ाई की. 1 सितंबर 2006 को टाटा संस बोर्ड में वे शामिल हुए. पिता पालोनजी मिस्त्री के टाटा संस से रिटायर होने के बाद उनकी एंट्री हुई थी.