मर्दों को झूठे केस के दुष्चक्र से बचातीं हैं दीपिका नारायण
दीपिका नारायण पुरुषों के अधिकारों के लिए लंबे समय से आवाज उठा रही है। उनका कहना है कि औरतों के लिए लड़ने वाले तो बहुत हैं लेकिन कई पुरुष भी समाज में महिलाओं द्वारा शोषित हो रहे हैं, जिनके लिए कोई आवाज नहीं उठा रहा है। दीपिका नारायण दहेज प्रताड़ना कानून के तहत फंसाए गए पुरुषों को भी कानूनी मदद देती है।
दीपिका ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। वह इंफोसिस में सॉफ्टवेयर इंजीनियर भी रह चुकी हैं, फिर इंफोसिस छोड़ पत्रकारिता में आ गईं, जहां उन्होंने एक टीवी चैनल में एंकरिंग की और वहां से जॉब छोड कर मर्दों के अधिकारों के लिए लड़ने लगीं।
दीपिका के मुताबिक, 'मैंने व्यक्तिगत स्तर पर भयावह अनुभवों को झेलने के बाद ही इस दिशा में कदम उठाया है। एक मामला मेरे चचेरे भाई का ही है, जिसकी पत्नी ने अवैध संबंध के सबूत के बावजूद उल्टे कानूनी कार्रवाई की धमकी दी थी। कानूनी सलाह लेने पर हमें पता चला कि सभी कानून औरतों के लिए ही हैं।
दीपिका नारायण पुरुषों के अधिकारों के लिए लंबे समय से आवाज उठा रही है। उनका कहना है कि औरतों के लिए लड़ने वाले तो बहुत हैं लेकिन कई पुरुष भी समाज में महिलाओं द्वारा शोषित हो रहे हैं, जिनके लिए कोई आवाज नहीं उठा रहा है। दीपिका नारायण दहेज प्रताड़ना कानून के तहत फंसाए गए पुरुषों को भी कानूनी मदद देती है। उनका कहना है कि धारा 498ए (दहेज कानून) का कुछ महिलाओं द्वारा बेहद दुरुपयोग किया जाता है। इस काम के साथ-साथ दीपिका डाक्युमेंट्री फिल्म भी बनाती है। पत्रकार रह चुकी दीपिका ने 2012 में इस मुद्दे पर रिसर्च शुरू की थी।
दीपिका ने अपनी रिसर्च के दौरान पाया कि ज्यादातर दहेज प्रताड़ना के मामले झूठे हैं। झूठे आरोप में फंसाए जाने के कारण कुछ मामले में लड़के के मां बाप ने बदनामी के डर से आत्महत्या तक कर ली। उन्होंने इसी मुद्दे पर 'मर्टायर्स ऑफ मैरिज' नाम की डाक्युमेंट्री फिल्म बनाई है। आज जहां भी देखा जाए वहां सिर्फ महिलाओं के हक की बात की जाती है। इतना ही नहीं महिलाओं के हक में कई कानून भी बनाए गए हैं ताकि किसी भी महिला के साथ कोई नाइंसाफी ना हो सके। ऐसा बहुत कम ही देखने या सुनने को मिलता है कि कोई मर्दों के हक के लिए लड़ाई लड़ता है।
महिलाओं के खिलाफ बड़ी तादाद में होने वाले अपराध को देखते हुए देश में कई सामाजिक संस्थाएं, एनजीओ व कार्यकर्ता हैं, लेकिन यह भी देखा जाता है कि कानून का फायदा उठाकर कुछ महिलाएं पुरुषों को प्रताड़ित करती है। दीपिका ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है वह इंफोसिस में सॉफ्टवेयर इंजीनियर भी रह चुकी हैं। वह इंफोसिस छोड़ पत्रकारिता में आ गईं वहां उन्होंने एक टीवी चैनल में एंकरिंग की फिर वहां से जॉब छोड कर मर्दों के अधिकारों के लिए लड़ने लगी। दीपिका की मानें तो उन्होंने नौकरी के दौरान देखा कि महिलाएं तो दुखी होती ही हैं लेकिन पुरुष भी महिलाओं की तरह ही प्रताड़ना के शिकार होते हैं। महिलाओं के हक के लिए तो हर कोई लड़ता है लेकिन पुरुषों के न्याय के लिए कोई नहीं लड़ता।
दीपिका के मुताबिक, 'मैंने व्यक्तिगत स्तर पर भयावह अनुभवों को झेलने के बाद ही इस दिशा में कदम उठाया है। एक मामला मेरे चचेरे भाई का ही है, जिसकी पत्नी ने अवैध संबंध के सबूत के बावजूद उल्टे कानूनी कार्रवाई की धमकी दी थी। कानूनी सलाह लेने पर हमें पता चला कि सभी कानून औरतों के लिए ही हैं। मेरे खिलाफ ही भाई की पत्नी से मारपीट का झूठा आरोप लगाया गया। मैंने इस तरह के कई और केस भी देखे जिसमें महिलाओं द्वारा 498ए कानून के गलत दुरुपयोग का मामला सामने आया। मैंने परिवारों को बर्बाद होते देखा। ऐसा ही एक मामला 65 वर्षीय वृद्ध से जुड़ा है, जिन्होंने अपनी बहू के द्वारा कानून का गलत इस्तेमाल कर ब्लैकमेलिंग करने की वजह से आत्महत्या कर लिया था।'
हालांकि उनपर कई औरतों ने महिला-विरोधी होने जैसे आरोप भी लगाये लेकिन दीपिका का मानना है कि वो किसी एक जेंडर के लिए काम नहीं करना चाहतीं, अगर अन्याय पुरुषों के साथ हो रहा है, तब भी वो उतना ही गलत है। वो महिलाओं के खिलाफ नहीं वो उस अन्याय के खिलाफ लड रही है जो बेकसूर पुरुषों के साथ हो रहा है। दीपिका बताती हैं, 'नेशनल क्राइम रेकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक पश्चिम बंगाल के कोर्ट में दहेज अपराध से जुड़े 13409 मामले सामने आए, जिसमें से 56 यानि 0.4 प्रतिशत ही दोषी साबित हुए। बाकी लोगों की जिंदगी और सम्मान क्या जो गिरफ्तार तो हुए लेकिन दोषी नहीं करार दिए गए।' उन्होंने स्पष्ट करते हुए कहा, 'हां यह सच है कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा में लगातार बढ़ोत्तरी हुई है, लेकिन तस्वीर के दूसरे पहलू को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं।'
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