जिस व्यक्ति को देश के सिस्टम ने नकारा, अमेरिका की नौकरी ठुकरा आज भारत में दे रहा नौकरी
नेत्रहीन व्यक्ति ने पेश की मिसाल...
27 वर्षीय श्रीकांत शुरू से ही जज्बे वाले इंसान रहे। बड़ी से बड़ी चुनौतियों के सामने जहां सामान्य व्यक्ति हार मान जाते हैं वहीं दृष्टिहीनता को लिए वह हर चुनौती का डटकर सामना करते रहे। जब आंध्र प्रदेश एजुकेशन बोर्ड ने उन्हें मैथ्स, केमिस्ट्री और फिजिक्स पढ़ने की अनुमित नहीं दी तो वे कोर्ट चले गए और जीत हासिल की।
बचपन से झेले जाने वाले भेदभाव से निराश होने के बजाय हर एक मुश्किल श्रीकांत को प्रेरित करती रही। उन्होंने बोल्लैंट इंडस्ट्री की स्थापना की जो कि बायोडिग्रेडेबल उत्पाद तैयार करती है।
उसे स्कूल में आखिरी बेंच पर बैठने को जगह मिलती थी, इसलिए नहीं कि वह सबसे लंबा था। टीचर उसे पसंद नहीं करते थे, इसलिए नहीं कि वह क्लास में ध्यान नहीं देता था। पीटी के समय उसे जबरन बाहर बैठा दिया जाता था, ऐसा नहीं है कि वह भाग-दौड़ नहीं कर सकता था। क्लास के सभी बच्चे उससे दूर रहते थे, ऐसा नहीं था कि वह अच्छा नहीं था। इस देश के सिस्टम ने कहा कि वह साइंस नहीं पढ़ सकता। आईआईटी ने कहा कि वह एडमिशन नहीं दे सकता। इन सब के पीछे सिर्फ एक वजह थी कि वह नेत्रहीन था। हम बात कर रहे हैं आंध्र प्रदेश के श्रीकांत बोला की, जिन्होंने दृष्टिहीन होने की वजह से मजाक उड़ाने वाली दुनिया को गलत साबित कर दिया।
27 वर्षीय श्रीकांत शुरू से ही जज्बे वाले इंसान रहे। बड़ी से बड़ी चुनौतियों के सामने जहां सामान्य व्यक्ति हार मान जाते हैं वहीं दृष्टिहीनता को लिए वह हर चुनौती का डटकर सामना करते रहे। जब आंध्र प्रदेश एजुकेशन बोर्ड ने उन्हें मैथ्स, केमिस्ट्री और फिजिक्स पढ़ने की अनुमित नहीं दी तो वे कोर्ट चले गए और जीत हासिल की। जब देश के शीर्ष तकनीकी संस्थान आईआईटी ने नि:शक्तता के आधार पर उनसे भेदभाव किया तो उन्होंने देश की 'अंधी नीति' पर सवाल खड़े कर दिए। हालांकि उन्होंने हार नहीं मानी और मेसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी ने उन्हें अपने यहां एडमिशन देकर सपने पूरे करने के मौके दिए।
जिस इंसान को कभी स्कूल की पीटी से बाहर कर दिया जाता था उस इंसान ने भारत के लिए राष्ट्रीय स्तर पर चेस और क्रिकेट खेला। श्रीकांत कहते हैं, 'जब मेरी नि:शक्तता के आधार पर इंडियन एजुकेशन सिस्टम ने मुझे अस्वीकृत कर दिया तो मैं निराश नहीं हुआ। मुझे एमआईटी जैसे विश्वस्तरीय संस्थान ने एडमिशन दिया।' आपको जानकर हैरानी होगी कि जिस भारतीय व्यवस्था ने श्रीकांत के साथ भेदभाव किया आज वही इंसान अमेरिका की मोटी तनख्वाह वाली नौकरी ठुकराकर भारत लौट आया और देश के विकास में योगदान दे रहा है।
बचपन से झेले जाने वाले भेदभाव से निराश होने के बजाय हर एक मुश्किल श्रीकांत को प्रेरित करती रही। उन्होंने बोल्लैंट इंडस्ट्री की स्थापना की जो कि बायोडिग्रेडेबल उत्पाद तैयार करती है। वह कहते हैं, 'मैं किसी और के लिए काम नहीं कर सकता। यह मेरे खून में ही नहीं है। नि:शक्तता सिर्फ मन का वहम है, शरीर का नहीं। हमारा दिमाग ऐसा बना हुआ है कि जब उसके सामने मुश्किल परिस्थितियां आती हैं तभी वह बेहतर काम करता है। मैंने अपनी जिंदगी में काफी मुश्किलों और परेशानियों का सामना किया। अब यही परेशानियां मेरी आदत का हिस्सा बन चुकी हैं।'
श्रीकांत अपने लैपटॉप पर काम करते हुए हंसते हैं और इतनी गंभार बातें चुटकियों में कह जाते हैं। वह एक खास तरह के ऐपल लैपटॉप पर काम करते हैं जो कि सारी जानकारी आवाज में बदल देता है। उन्होंने बताया कि कंपनी का ऑपरेशन हेड छुट्टी पर चला गया जिसकी वजह से उन्हें ही सारा काम देखना पड़ रहा है। अपने फोन पर बात करते हुए वह किसी से कहते हैं कि सारा माल आज ही डिलिवर होना चाहिए और उन्हें इसकी जानकारी भी तुरंत चाहिए। श्रीकांत पूरी प्रतिबद्धता और लगन के साथ अपने काम में लगे रहते हैं।
इस कंपनी की शुरुआत के बारे में वह कहते हैं, 'भारत में बेरोजगारी की समस्या काफी ज्यादा है, खासतौर पर नि:शक्तजनों के लिए। देश में तकरीबन 10 करोड़ नि:शक्तजनों को रोजगार की जरूरत है। दूसरी चीज हमारे यहां के किसानों को उनकी मेहनत का पूरा पैसा नहीं मिल पाता। खेतों में जो व्यर्थ की चीजें बचती हैं उसे किसान इस्तेमाल नहीं कर पाता तीसरा देश में प्लास्टिक का चलन इतना ज्यादा बढ़ चुका है कि पर्यावरण के लिए एक गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई है। इन सारी बातों को ध्यान में रखते हुए मैंने इस इंडस्ट्री में उतरने का फैसला किया।'
श्रीकांत की कंपनी हर महीने 20 प्रतिशत की ग्रोथ के साथ आगे बढ़ रही है। इस वक्त उनकी मासिक सेल 10 करोड़ है। श्रीकांत को रवि मंका औप एसपी रेड्डी जैसे एंजेल इन्वेस्टर्स का साथ मिला। एक साल पहले सितंबर 2017 में उनकी कंपनी की कुल वैल्यू 413 करोड़ थी और आने वाले समय में वे इसे 1,200 करोड़ वैल्युएशन वाली कंपनी बनाना चाहते हैं। वित्तीय वर्ष 2019 में उनका सपना है कि वे इससे 150 करोड़ का टर्नओवर हासिल कर सकें। श्रीकांत का आईडिया इतना जबरदस्त था कि उनके पास इन्वेस्टर्स की लाइन लग गई। रेड्डी लैब के सतीश रेड्डी, वीएफडीसीएल के किरण और अनिल यहां तक कि टाटा ने भी उन्हें अपना सपोर्ट दिया।
श्रीकांत बताते हैं कि जब उनका जन्म हुआ था तो गांव के लोगों ने उनके पिता से उन्हें छोड़ देने को कहा था। वह कहते हैं, 'मैं नेत्रहीन नहीं था बल्कि मुझे यकीन कराया गया कि मैं नेत्रहीन हूं।' श्रीकांत का मानना है कि बिना किसी विजन के तो यह पूरी दुनिया नेत्रहीन है और जिसके पास विजन है वह नेत्रहीन होकर भी काफी कुछ देख सकता है। श्रीकांत की सफलता जितनी हैरत करती है उतनी ही प्रेरणा भी देती है। अगर लोग अपनी कमियों पर रोना छोड़कर मेहनत करें तो सफलता कोई बड़ी चीज नहीं रह जाएगी।
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