आपका प्यार, उनका कारोबार: जानिये कैसे चलता है डेटिंग ऐप्स का बिजनेस?
2012 में टिंडर के लॉन्च के बाद से ऑनलाइन डेटिंग ऐप्स की बाढ़ सी आ गई है. एक स्पेशल वन की तलाश में लोग टिंडर जैसे तमाम कई ऐप्स पर नजरें गड़ाए बैठे हैं. लोग सोचते हैं कि किस्मत होगी तो कोई मिल ही जाएगा, मगर ऐसा नहीं. आपको बता दें कि डेटिंग ऐप्स पर आपको मैच मिलना, न मिलना सब एल्गॉरिदम्स के हाथ में है.
जैसे-जैसे इंसान का इवॉल्यूशन हुआ उसी तरह इंसान के अंदर के सबसे खूबसूरत एहसास प्यार का भी इवॉल्यूशन हुआ. समय बदलता गया और प्यार के मायने बदलते गए. लैला-मजनू, हीर-रांझे, जूलियस-सीजर के जमाने से चला आ रहा प्यार आज भी वैसा का वैसा जवां है.
‘कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी’ अगर प्यार कोई इंसान होता तो खुद के लिए ये लाइनें कह कर इतरा जरूर रहा होता. इंसान के अंदर ढेरों भावनाएं होती हैं मगर इस प्यार में ऐसा क्या खास है जो इसे इतना फेम मिलता रहा है. दरअसल हम इंसान एक सामाजिक प्राणी हैं और यही इस सवाल का जवाब है. प्यार प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हम इंसानों को उस बात का दिलासा देता है जो एक इंसान होने के नाते हम तलाश रहे होते हैं.
मानव सभ्यता पर हुई कई स्टडी बताती हैं कि प्यार इंसान के लिए उतना ही जरूरी है जितना खाने के लिए नमक और तेल. शायद यही वजह है कि सदियों बीत जाने के बाद भी प्यार बस बदलता आया है मगर खत्म नहीं हो सका. समय बीतता गया बदलाव होते गए, सभ्यताएं बदलीं, समाज बदला मगर इन सबके कुछ नया भी पनपा. वो था, पूंजीवाद, बाजारवाद; ये दोनों ही उस दीमक की तरह हैं जो मौका देखते ही अपनी धाक जमाने को तैयार हो जाते हैं.
प्यार और विश्वास की नींव पर जो कंपैनियनशिप का दौर शुरू हुआ वो आज एक बहुत बड़ा कारोबार बन चुका है. राल्फ लिंटन नाम के रिसर्चर 1960 अपने रिसर्च में लिखते हैं कि सभी तरह की सोसाइटी में विपरीत जेंडर के लोगों के प्रति एक खास तरह के अटैचमेंट का जिक्र आता है. मगर अमेरिका में इस अटैचमेंट को पहली बार पैसे का कारोबार बनाने का काम किया गया.
तब से लेकर आज छह दशक से ज्यादा का समय बीत चुका है. लोग तब भी उस एक स्पेशल वन की तलाश में थे और आज भी हैं. बस फर्क सिर्फ इतना हो गया है कि उसे ढूंढने के तरीके बदल गए हैं. इसके पीछे बहुत बड़ा हाथ है डेटिंग इंडस्ट्री का.
‘लेबर ऑफ लवः दी इनवेंशन ऑफ डेटिंग’ की ऑथर मोइरा वीगल याहू अपनी किताब में कहती हैं कि 1950 में वर्ल्ड वॉर II के दौर से लेकर 1960 के दौर के डेटिंग स्टाइल का जिक्र किया है. वीगल कहती हैं, हमें भले ये लग सकता है कि डेटिंग में कितना कुछ बदला है, मगर जो बदलाव हमें नजर आ रहे हैं वो नए नहीं हैं.
1960 अरेंज्ड मैरिज का दौर था. जब लोग सिर्फ शादी करने के मसकद से एक दूसरे से मिलते थे जान पहचान बढ़ाते थे. इंडस्ट्रियलाइजेशन बढ़ने होने के साथ वर्कफोर्स की डिमांड बढ़ने लगी. आदमियों के साथ-साथ औरतें भी बाहर काम करने को निकलने लगीं. इसी के साथ शुरू हुआ मिलने-जुलने का, रिश्ते बनाने का और डेटिंग का दौर.
1970 के करीब से शुरू हुआ ये दौर करीबन 1990 तक मोटा मोटी ऐसा ही चला. 90 के दशक की शुरुआत से 2000 तक इंटरनेट ने पूरी दुनिया को ही बदलकर रख दिया फिर डेटिंग इंडस्ट्री इससे अछूटी कैसी रह जाती.
80 के दशक तक कंपनियां डेटिंग के ट्रेंड को समझ चुकी थीं और उन्हें इस बात का अंदाजा भी लग गया था कि ये सेक्टर कितना सक्सेसफुल होने वाला है. मगर इंटरनेट के बिना कोई भी कंपनी एक पूरी तरह कामयाब मॉडल नहीं बना पाई. इंटरनेट आने के साथ डेटिंग का तौर तरीका पूरी तरह बदल गया.
1995 में एक डेटिंग साइट आई मैचडॉटकॉम. मैच ने सब्सक्रिप्शन मॉडल की शुरुआत की, जो आज भी तमाम डेटिंग ऐप अपनाते हैं. यूजर्स का डेटाबेस तेजी से बढ़ाने के लिए शुरू के यूजर्स को 100 फीसदी फ्री मेंबरशिप दी गई. उसके बाद से मैच के कई अन्य वेंचर्स के साथ मर्जर हुए.
ऐसा नहीं था मैच पहली डेटिंग साइट थी. उसके पहले भी कई तरह के एक्सपेरिमेंट हुए मगर वो उतने सफल नहीं हुए जितनी सफलता मैच को मिली. 2004 तक वेबडेट और लावालाइफ जैसी और डेटिंग वेबसाइट भी मार्केट में आईं.
मगर मोबाइल डेटिंग के दौर में असली बदलाव आया 2012 में, जब टिंडर ऐप लॉन्च हुआ. यहीं से शुरू हुआ डेटिंग में लेफ्ट-राइट स्वाइप का खेल. टिंडर के आने के 2 साल बाद ही बंबल ने मार्केट में तहलका मचाया. बंबल की यूएसपी ये थी कि वहां महिलाओं को प्राथमिकता दी जाती थी. मतलब कि मैच होने के बाद बात तभी बढ़ेगी जब महिला की तरफ से कोई मैसेज आएगा.
खैर उसके बाद से इतने नाम आ चुके हैं शायद सबका जिक्र करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है. मगर कुछ बड़े ऐप्स जिन्होंने बीते सालों में अपनी पहचान बनाई है उनका नाम तो लेना बनता है…इनमें बंबल, टिंडर के अलावा हिंज, ओकेक्यूपिड, हिंज, प्लेंटी ऑफ फिश, हैपन जैसे कई नाम इस फेहरिस्त में शामिल हैं.
ऑनलाइन डेटिंग का क्रेज इतना बढ़ा है कि कई रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि 38 पर्सेंट रिलेशनशिप ऑनलाइन डेटिंग ऐप के जरिए ही बनते हैं. डेटिंग ऐप के बढ़ते चलन का ही नतीजा है ये कंपनियां प्रॉफिट से सराबोर हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक डेटिंग ऐप का मार्केट 2.1 अरब डॉलर होने का अनुमान है जिसमें से अकेले 75 करोड़ डॉलर का मार्केट शेयर टिंडर के पास रहने का आंदेशा जताया गया है.
बिजनेस मॉडल
ये ऐप्स सब्सक्रिप्शन मॉडल और फ्रीमियम मॉडल पर काम करते हैं. ज्यादातर डेटिंग ऐप्स में यूजर्स को एक सब्सक्रिप्शन मॉडल ऑफर करते हैं. इसके तहत यूजर्स पैसे देकर कुछ तय समय के लिए ऐप्स यूज कर सकते हैं. वहीं दूसरा मॉडल है फ्रीमियम, इसमें ऐप कुछ बेसिक फीचर यूजर्स को पहले मुफ्त में देते हैं. उसके बाद अगर कुछ खास फीचर्स के लिए आपको सब्सक्रिप्शन चार्ज देना पड़ता है.
एल्गॉरिदम का है सब कमाल
इन डेटिंग ऐप्स के सफल होने की सबसे बड़ी वजहों में से एक है इनका एल्गॉरिदम. सारे ऐप के एल्गॉरिद्म पर तो फिर कभी बात करेंगे मगर टॉप प्लेयर के एल्गॉरिद्म का खेल समझना तो बनता है. 2019 में एक ब्लॉग में सामने आया कि टिंडर का एल्गॉरिद्म इलो रेटिंग सिस्टम पर काम करता था. ये वही सिस्टम है जिसे चेस प्लेयर्स की रैंकिंग तय करने के लिए डिजाइन किया गया था.
ये सिस्टम एलो स्कोर का इस्तेमाल करके यूजर्स की प्रोफाइल को रैंक करता था. रैंकिंग में देखा जाता था कि बाकी यूजर्स ने आपकी प्रोफाइल के साथ कितना इंटरैक्ट किया है, आपने कितने प्रोफाइल को राइट स्वाइप किया है और कितनों को लेफ्ट. हालांकि ब्लॉग के मुताबिक टिंडर पर अब इलो स्कोर का इस्तेमाल नहीं होता है.
अगर इसके पीछे का गणित समझना है तो आप बस इतना समझ लीजिए आप जितना ऐप यूज करेंगे उतना ही ऐप के पास आपका डेटा होगा. उसी आधार पर एल्गोरिदम आपकी पसंद की प्रोफाइल तैयार करेंगे और उनसे मिलते जुलते मैच आपको नजर आएंगे. ब्लॉग ये भी दावा करती है कि आप जितना अधिक समय टिंडर पर बिताएंगे आपकी प्रोफाइल आपके ही जैसे एक्टिव लोगों को उतनी ज्यादा नजर आएगी.
बंबल भी टिंडर की तरह ही है, जो स्वाइप मॉडल पर काम करता है. यहां फर्क सिर्फ इतना है कि बंबल पर पहला मैसेज सिर्फ महिला ही कर सकती है. मैच होने के बाद अगर 24 घंटे के अंदर आपके पास महिला का मैसेज नहीं आता है तो मैच खुद ब खुद गायब हो जाएंगे. बंबल अपने सर्च एल्गोरिदम के बारे में कोई जानकारी से बचती रही है. अगर आप इसकी वेबसाइट पर एल्गोरिदम सर्च भी करते हैं तो सिर्फ प्राइवेट डिटेक्टर के बारे में पोस्ट सामने आता है. जो बताता है कि प्रोफाइल ने कोई न्यूड तस्वीर तो नहीं भेजी है.
डेटिंग इंडस्ट्री का कारोबार
2021 तक डेटिंग ऐप मार्केट का रेवेन्यू 3.08 अरब डॉलर था. 2025 तक इसके 5.5 अरब डॉलर पर पहुंचने का अनुमान है. डेटिंग इंडस्ट्री न सिर्फ एक बड़ा सेक्टर भर रह गई है बल्कि दिनों दिन कई गुना तेजी से ग्रो कर रही है. ग्लोबल डेटिंग ऐप यूजर्स 2015 में 185 मिलियन थे जिनकी संख्या 2020 में बढ़कर 270 मिलियन हो चुकी है.
दुनिया में सबसे ज्यादा पॉपुलर डेटिंग ऐप टिंडर का वैल्यूएशन इस समय 10 अरब डॉलर के करीब है. यह हर मिनट करीबन 1469 डॉलर प्रति मिनट कमाई करता है या यूं कहें कि 88,143 डॉलर प्रति घंटा. वहीं बंबल 172 डॉलर प्रति मिनट कमाई करता है.
कुल मिलाकर कहें तो इंसान की वो स्पेशल वन ढूंढने की चाह, सस्ता इंटरनेट, हाथों हाथ मोबाइल और हर उम्र के लोगों के लिए साथी मिलने की संभावना इन डेटिंग ऐप्स को पॉपुलर बना रही है. आने वाले दिनों में इन ऐप्स के कारोबार में और ग्रोथ ही नजर आने वाली है अब देखना ये होगा कि क्या टिंडर इस मार्केट में खुद को नंबर वन कब तक बनाए रख पाती है.