कविता ही नहीं, अभिनय के भी धनी थे गुलशन बावरा
वह कविता ही नहीं, अभिनय के भी धनी थे। उन्होंने कई फिल्मों में कलाकार की भूमिका निभाई। जीवन के आखिरी सात वर्षों में वह बोर्ड ऑफ इंडियन परफार्मिंग राइट सोसायटी के निदेशक पद पर कार्यरत रहे। ‘मेरे देश की धरती, सोना उगले उगले हीरे मोती’ और ‘यारी है ईमान मेरा’ जैसी भावपूर्ण गीतों को कलमबद्ध करने वाले गुलशन बावरा को एक ऐसे गीतकार के तौर पर याद किया जाता है, जिनके लिखे गीत आज की मौजूदा पीढ़ी के लिए भी प्रासंगिक लगते हैं।
हिन्दी भाषा और साहित्य के करिश्मायी व्यक्तित्व गुलशन कुमार मेहता उर्फ गुलशन बावरा महज छह वर्ष की उम्र से ही कविताताएं लिखने लगे थे। हिन्दी फिल्म जगत में लगभग पांच दशक बिताने के दौरान उन्होंने लगभग ढाई सौ गीत लिखे।
शुरू के दौर में फिल्म इंडस्ट्री में गुलशन बावरा को तरह-तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उन्होंने अपना संघर्ष जारी रखा और कई छोटे बजट की फिल्में भी कीं, जिनसे उन्हें कुछ खास फायदा नहीं हुआ। उसी दौरान गुलशन की मुलाकात संगीतकार जोड़ी कल्याण जी, आनंद जी से हुई, जिनके संगीत निर्देशन में उन्होंने फिल्म सट्टा बाजार के लिये- 'तुम्हें याद होगा कभी हम मिले थे', गीत लिखा
गुलशन बावरा के नाम से मशहूर फिल्मी गीतकार गुलशन मेहता को वर्ष 2007 में आज के ही दिन मुंबई के पालीहिल स्थित निवास में लंबी बीमारी के बाद दिल का दौरा पड़ा और दुनिया छोड़ चले थे। वह कविता ही नहीं, अभिनय के भी धनी थे। उन्होंने कई फिल्मों में कलाकार की भूमिका निभाई। जीवन के आखिरी सात वर्षों में वह बोर्ड ऑफ इंडियन परफार्मिंग राइट सोसायटी के निदेशक पद पर कार्यरत रहे।
‘मेरे देश की धरती, सोना उगले उगले हीरे मोती’ और ‘यारी है ईमान मेरा’ जैसी भावपूर्ण गीतों को कलमबद्ध करने वाले गुलशन बावरा को एक ऐसे गीतकार के तौर पर याद किया जाता है, जिनके लिखे गीत आज की मौजूदा पीढ़ी के लिए भी प्रासंगिक लगते हैं। हिन्दी फिल्म जगत में लगभग पांच दशक बिताने के दौरान उन्होंने लगभग ढाई सौ गीत लिखे।
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गुलशन बावरा की मां विद्यावती धार्मिक कार्यकलापों के साथ साथ संगीत में भी काफी रूचि रखती थी। गुलशन बावरा अक्सर मां के साथ धार्मिक कार्यक्रमों में जाया करते थे।
देश के विभाजन के समय हुये सांप्रदायिक दंगों में गुलशन के माता-पिता की पिता की हत्या उनकी नजरों के सामने ही हो गयी। इसके बाद वह अपनी बड़ी बहन के पास दिल्ली आ गये। उन्होंने स्नातक की शिक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय में ली। अपने परिवार की घिसी पिटी परंपरा को निभाते हुए उन्होंने वर्ष 1955 में अपने कैरियर की शुरुआत मुंबई में रेलवे में लिपिक की नौकरी से की। उनका मानना था कि सरकारी नौकरी करने से उनका भविष्य सुरक्षित रहेगा। लिपिक की नौकरी उनके स्वभाव के अनुकूल नहीं थी। बाद में नौकरी छोड़ दी और नजरें फिल्म इंडस्ट्री की ओर मोड़ दीं।
शुरू के दौर में फिल्म इंडस्ट्री में गुलशन बावरा को तरह-तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उन्होंने अपना संघर्ष जारी रखा और कई छोटे बजट की फिल्में भी कीं, जिनसे उन्हें कुछ खास फायदा नहीं हुआ। उसी दौरान गुलशन की मुलाकात संगीतकार जोड़ी कल्याण जी, आनंद जी से हुई, जिनके संगीत निर्देशन में उन्होंने फिल्म सट्टा बाजार के लिये- 'तुम्हें याद होगा कभी हम मिले थे', गीत लिखा लेकिन इस फिल्म के जरिये वह कुछ खास पहचान नहीं बना पाये। लेकिन उस गीत को सुनकर फिल्म के वितरक शांतिभाई दबे काफी खुश हुए। उन्हें विश्वास नहीं हुआ कि इतनी छोटी सी उम्र में कोई व्यक्ति इतना डूबकर लिख सकता है। उसी दौरान पहली बार शांति भाई ने उनको 'बावरा' कहकर संबोधित किया। उसके बाद वह गुलशन मेहता से गुलशन बावरा हो गये।
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गुलशन ने कल्याणजी-आनंदजी के संगीत निर्देशन में 69 गीत लिखे। जबकि, आरडी बर्मन के साथ 150 गीत लिखे थे।
बावरा का हिट गीत फिल्म 'सट्टा बाजार' के लिए 'चांदी के चंद टुकड़े के लिए' था। उन्होंने कल्याणजी-आनंदजी के संगीत निर्देशन में 69 गीत लिखे। जबकि, आरडी बर्मन के साथ 150 गीत लिखे थे। उन्होंने फिल्म 'सनम तेरी कसम', 'अगर तुम न होते', 'सत्ते पे सत्ता', 'यह वादा रहा', 'हाथ की सफाई' और 'रफू चक्कर' को अपने गीतों से सजाया था।
बावरा को फिल्म 'उपकार' में 'मेरे देश की धरती' और फिल्म 'जंजीर' में 'यारी है ईमान मेरा' गीत के लिए फिल्म फेयर पुरस्कार मिला था। लगभग आठ वर्ष तक मायानगरी मुंबई में गुलशन बावरा ने अथक परिश्रम किया। आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई और उन्हें कल्याण जी-आनंद जी के संगीत निर्देशन में निर्माता-निर्देशक मनोज कुमार की फिल्म 'उपकार' में गीत लिखने का मौका मिला।