गैराज का काम करने वाले परिवार के बेटे ने जीती रेसिंग चैंपियनशिप
कोयंबटूर में आयोजित 20वें जेके टायर एलजीबी फॉर्म्युला-4 चैंपियनशिप के राउंड-3 में भी चित्तेश मंदोडी ने अपनी टॉप पोजिशन बरकरार रखा। इस प्रदर्शन के बाद चित्तेश इस सीजन ओवरऑल चैंपियन बनने के करीब पहुंच गए हैं।
काफी महंगा माने जाने वाले इस रेसिंग गेम में अपना जलवा कायम करने वाले चित्तेश किसी बड़े घर से नहीं आते हैं। वह एक कार मकैनिक परिवार से आते हैं।
उन्होंने बताया कि बाकी सभी खेलों की तरह सरकार रेसिंग स्पोर्ट्स को कोई सहायता नहीं करती है। वह बताते हैं प्राइवेट कंपनियां मदद तो करती हैं, लेकिन उसकी भी एक लिमिट होती है।
कोल्हापुर के 24 साल के चित्तेश मंदोडी उस वक्त चर्चा में आए थे जब उन्होंने पिछले महीने फार्म्यूला वन रेसिंग की LGB 4 कैटिगरी की तीनों रेस अपने नाम कर ली थीं। उन्होंने जेके टायर नेशनल चैंपियनशिप की ओपनिंग राउंड पर कब्जा कर लिया था। काफी महंगा माने जाने वाले इस रेसिंग गेम में अपना जलवा कायम करने वाले चित्तेश किसी बड़े घर से नहीं आते हैं। वह एक कार मकैनिक परिवार से आते हैं जो पिछले 85 सालों से कारों की मरम्मत करता चला आ रहा है। पूरे कोल्हापुर में उनका परिवार इतना फेमस है कि कोल्हापुर की रायल कारों की सर्विस उन्हीं के यहां होती है।
कोयंबटूर में आयोजित 20वें जेके टायर एलजीबी फॉर्म्युला-4 चैंपियनशिप के राउंड-3 में भी चित्तेश मंदोडी ने अपना टॉप पोजिशन बरकरार रखा। इस प्रदर्शन के बाद चित्तेश इस सीजन ओवरऑल चैंपियन बनने के करीब पहुंच गए हैं। दिल्ली में अगले महीने आयोजित होने वाले चौथे राउंड में अगर वह अपने इस प्रदर्शन को बरकरार रखते हैं तो उन्हें चैंपियन बनने से कोई नहीं रोक सकता। अन्य मुकाबलों में यूरो जेके 17 कैटिगरी में हैदराबाद के अनिंदिथ रेड्डी ने ओवरऑल बढ़त हासिल कर ली जबकि दिलजीत टीएस ने एलजीबी फॉर्म्युला-4 में ग्रैंड डबल हासिल कर राउंड-3 में चमक बिखेरी।
चैंपियनशिप लीडर जोसेफ मैथ्यू (जिक्सर कप) और लालरुएजेला (रोड टू रूकीज कप) को हालांकि तीन राउंड में पहली बार हार का सामना करना पड़ा। लेकिन इस हार के बाद भी ये दोनों लीडरबोर्ड पर अपनी स्थिति मजबूत रखने में सफल रहे हैं। रेस के बाद चित्तेश ने बताया कि उनके दादा का मोटर गैराज का बिजनेस था जिसे बाद में पापा ने संभाला। चित्तेश भी गैराज पर अपने पापा और दादा के साथ जाया करते थे। वहां हर तरह की गाड़ी आती थी। इसी दौरान उन्होंने कुछ अलग तरह की गाड़ी देखी और पिताजी से दिलाने की जिद की। उम्र कम होने की वजह से पापा ने गो-कार्टिंग के लिए उत्साहित किया। गो-कार्टिंग में लगन देख बाद में पापा और दादाजी ने उन्हें फॉर्म्युला कैटिगरी की गाड़ी चलाने की भी ट्रेनिंग दिलाई जो आज 24 साल की उम्र तक जारी है।
चित्तेश बताते हैं कि जब वह महज आठ साल के थे तभी से रेसिंग में रुचि रखना शुरू कर दिया था। वह अपने दादा के गैरेज में जाते थे जिसे उनके परदादा ने स्थापित किया था। वहां पर उन्हें लग्जरी कारें चलाने का मौका मिल जाता था। यहीं से उनकी शुरुआत हुई। उनका यह पैशन एक दिन उन्हें एफ1 रेसिंग तक ले आया। 2002-03 में वह जेके टायर कार्टिंग नेशनल चैंपियनशिप में पहुंचे थे। सब कुछ सही चल रहा था, लेकिन पैसों की कमी की वजह से उन्हें मुसीबतें भी उठानी पड़ीं। कोल्हापुर के एक बिजनेसमैन शिवाजी मोहिते की मदद के बाद उन्होंने 2007 में एक बार फिर से रेस शुरू की और रोटेक्स जूनियर चैंपियनशिप का खिताब अपने नाम किया। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
उन्होंने बताया कि बाकी सभी खेलों की तरह सरकार रेसिंग स्पोर्ट्स को कोई सहायता नहीं करती है। वह बताते हैं प्राइवेट कंपनियां मदद तो करती हैं, लेकिन उसकी भी एक लिमिट होती है। इसी वजह से अधिकतर खिलाड़ियों को अपने भविष्य के बारे में चितिंत होना पड़ता है। वह बताते हैं कि भारत में रेसिंग प्रतिभाओं की कमी नहीं है, लेकिन पैसों की कमी से कुछ संभव नहीं हो पाता। चित्तेश बताते हैं कि यह खेल काफी महंगा होता है। भारत में कम ही लोग होंगे जिनके पास अपनी गाड़ी है। गाड़ी एक सीजन के लिए छह लाख में किराए पर मिलती है। इसके अलावा पेट्रोल, इक्विपमेंट का खर्चा अलग होता है। घरवालों के सहयोग से मैं अब तक अच्छा कर रहा हूं।
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