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दिल्ली विधानसभा में जनता के मुद्दों पर नहीं हो रही पर्याप्त चर्चा, अधिक बैठकें जरूरी, NGO ने रिपोर्ट में किया दावा

प्रजा फाउंडेशन एनजीओ ने अपनी रिपोर्ट में विधानसभा की बैठकों की संख्या को बढ़ाने का सुझाव दिया है. एनजीओ ने दो साल (24 फरवरी, 2020 – 4 जनवरी, 2022) में दिल्ली के 70 में से 61 विधायकों के प्रदर्शन पर रिपोर्ट तैयार की है. बाकी के 9 विधायक स्पीकर, डिप्टी स्पीकर और मंत्री हैं.

दिल्ली विधानसभा में जनता के मुद्दों पर नहीं हो रही पर्याप्त चर्चा, अधिक बैठकें जरूरी, NGO ने रिपोर्ट में किया दावा

Wednesday July 20, 2022 , 2 min Read

जनता के मुद्दों पर चर्चा करने के लिए दिल्ली विधानसभा पर्याप्त संख्या में बैठकें नहीं कर रही है. एक एनजीओ ने अपनी हालिया रिपोर्ट में इसका दावा किया है.

प्रजा फाउंडेशन एनजीओ ने अपनी रिपोर्ट में विधानसभा की बैठकों की संख्या को बढ़ाने का सुझाव दिया है. एनजीओ ने दो साल (24 फरवरी, 2020 – 4 जनवरी, 2022) में दिल्ली के 70 में से 61 विधायकों के प्रदर्शन पर रिपोर्ट तैयार की है. बाकी के 9 विधायक स्पीकर, डिप्टी स्पीकर और मंत्री हैं.

एनजीओ ने कहा कि उनके अधिकतर आंकड़े सूचना का अधिकार (RTI) आवेदनों के माध्यम से हासिल किए गए हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि विधानसभा में विधायकों की उपस्थित साल 2015 में 90 फीसदी से घटकर साल 2020 में 87 फीसदी रह गई है.

साल 2018 में विधानसभा की 32 बैठकें हुई थीं लेकिन उसमें केवल 82 फीसदी उपस्थिति दर्ज की गई थी. वहीं, महामारी के दौरान 2021 में केवल 10 बैठकें हुईं. सबसे कम 2020 में पांच बैठकें हुई थीं.

रिपोर्ट में कहा गया कि यह साफ तौर से दर्शाता है कि दिल्ली विधानसभा नागरिकों के मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के लिए पर्याप्त बैठक नहीं कर रही है और अन्य राज्यों से सीखकर, उन्हें संवैधानिक प्रक्रिया के माध्यम से नागरिकों के मुद्दों को संबोधित करने के लिए जितना संभव हो सके मिलने के अवसर को अधिकतम करना चाहिए.

2020 में केवल 55 मुद्दे उठाए गए थे, जबकि 2015 में विधानसभा में 963 मुद्दे उठाए गए थे। 2018 में जब 32 से अधिक बैठकें हुईं तब 2,336 मुद्दे उठाए गए. रिपोर्ट में कहा गया कि कि बैठकों की संख्या बढ़ाने से यह सुनिश्चित होगा कि अधिक मुद्दों को संबोधित किया जा सकेगा.

दिल्ली को हर साल बड़े पैमाने पर प्रदूषण की समस्या का सामना करना पड़ता है. लेकिन इस विषय पर उठाए गए मुद्दे छठी विधानसभा के पहले दो वर्षों में जहां 39 थे तो वहीं सातवीं विधानसभा के पहले दो वर्षों में 74 फीसदी घटकर 10 हो गए.

स्वास्थ्य के संबंध पर जहां साल 2015 में 66 मुद्दे उठाए गए थे तो वहीं 2020 में इसकी संख्या 83 फीसदी घटकर 11 रह गई. शिक्षा को लेकर 2015 में 84 मुद्दे उठाए गए थे तो 2020 में यह संख्या 99 फीसदी घटकर केवल 1 रह गई.