औरत ने मर्डर किया तो सीबीआई उसकी वर्जिनिटी चेक करने लगी
एक 30 साल पुराने केस की सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट ने वर्जिनिटी टेस्ट को असंवैधानिक और पितृसत्तात्मक बताया.
दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को एक केस की सुनवाई के दौरान कहा कि किसी अपराध के लिए हिरासत में ली गई महिला आरोपी का वर्जिनिटी टेस्ट (कौमार्य परीक्षण) न सिर्फ असंवैधानिक है, बल्कि वह सेक्सिस्ट और उस महिला की मानवीय गरिमा के खिलाफ है. यह उसके अधिकारों का उल्लंघन है. समाज में एक महिला की वर्जिनिटी की जो गलत और झूठी अवधारणा बैठी हुई है, वह उसे एक महिला की पवित्रता से जोड़कर देखती है, जो कि सरासर गलत है.
हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की एकल-न्यायाधीश पीठ में एक पुराने केस की सुनवाई के दौरान जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा ने यह बात कही. इतना ही नहीं, उन्होंने केंद्रीय गृह सचिव, केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण सचिव, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के जरिए सभी संबंधित एजेंसियों को आगाह करने के लिए कहा, जो किसी महिला के आरोपी होने की स्थिति में उसकी बेगुनाही का सबूत उसकी वर्जिनिटी में ढूंढने लगते हैं.
हाईकोर्ट में केरल के कोट्टयम की रहने वाली एक नन सिस्टर सेफी की याचिका पर सुनवाई हो रही थी. यह केस 1992 का है, जब कोट्टयम के एक कैथलिक चर्च की नन सिस्टर अभया की लाश एक कुंए में मिली थी. लंबे चले उस केस में न्यायालय ने सिस्टर सेफी को सिस्टर अभया की हत्या का दोषी पाया और उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई.
उस केस की प्रॉसीडिंग्स के दौरान जब केस सीबीआई के पास गया तो उन्होंने सिस्टर सेफी का वर्जिनिटी टेस्ट किया था. 2009 में सिस्टर सेफी ने अदालत में इस वर्जिनिटी टेस्ट के खिलाफ याचिका दायर की और इसे असंवैधानिक बताए जाने की मांग की. सिस्टर सेफी ने उन लोगों के लिए भी सजा की मांग की थी, जिन्होंने उनकी मर्जी के खिलाफ उनका वर्जिनिटी टेस्ट किया और उसके परिणाम मीडिया में लीक किए.
उसी केस की सुनवाई में जस्टिस स्वर्णकांता ने मंगलवार को यह फैसला सुनाया. चूंकि इस प्रक्रिया में सरकारी एजेंसियां शामिल थीं, इसलिए सभी संबंधित सरकारी एजेंसियों और उनसे जुड़े लोगों को सूचित किए जाने की बात फैसले में कही गई.
जस्टिस स्वर्णकांता ने साफ शब्दों में कहा, “यह अदालत मानती है कि यह परीक्षण सेक्सिस्ट है और एक महिला अभियुक्त की गरिमा के खिलाफ है. यदि हिरासत में रहते हुए किसी महिला के साथ यह परीक्षण किया जाता है तो यह उसके मानवाधिकारों का उल्लंघन है. इस तरह के परीक्षण के दीर्घकालिक और अल्पकालिक नकारात्मक प्रभाव पहले भी कई रिपोर्टों में बताए जा चुके हैं.”
औरत के अपराधी होने-न होने से उसकी वर्जिनिटी का क्या रिश्ता
एक औरत की पवित्रता, उसकी मनुष्यता के साथ वर्जिनिटी तो ऐसे जुड़ी हुई है, जैसे चूहे से उसकी पूंछ. इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं. सिर्फ सदियों से पितृसत्ता ऐसा मानती और मनवाती आ रही है.
इस देश में तो जाने कितने मामलों में बलात्कार और हिंसा का शिकार होने पर भी महिलाओं का कौमार्य परीक्षण करके कोर्ट और पुलिस यह पता लगाने की कोशिश करती रही है कि महिला का चरित्र ठीक है या नहीं. इसके पहले भी कई मामलों में कोर्ट ने यह भी कहा है कि वर्जिनिटी टेस्ट असंवैधानिक और महिला की गरिमा के खिलाफ है और यह उसके मानवाधिकारों का उल्लंघन है.
वर्ष 2013 में लिलू बनाम स्टेट ऑफ हरियाणा के केस में सु्प्रीम कोर्ट ने कहा था कि वर्जिनिटी टेस्ट "यौन उत्पीड़न का शिकार महिला की गरिमा, अखंडता और गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन" है. वर्ष 2020 में गुजरात में भी एक ऐसा ही मामला हुआ था, जब स्टेट ऑफ गुजरात बनाम रमेशचंद्र रामभाई पंचाल केस में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि "टू-फिंगर टेस्ट या कौमार्य परीक्षण” असंवैधानिक है और इसे पूरी तरह प्रतिबंधित किया जाना चाहिए.
पिछले साल 31 अक्तूबर को भी सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस डी.वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने रेप के एक मामले में फैसला सुनाते हुए "टू-फिंगर टेस्ट" को जारी रखे जाने पर नाराजगी जाहिर की थी. इतना ही नहीं अपेक्स कोर्ट ने चेतावनी भी दी कि "टू-फिंगर टेस्ट" करने वाले व्यक्ति कदाचार के दोषी होंगे और सजा के हकदार.
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल कॉलेजों के सिलेबस से "टू-फिंगर टेस्ट" से जुड़े टेक्स्ट को तत्काल हटाने जाने का आदेश भी दिया. न्यायालय का कहना था कि यह प्रैक्टिस बर्बर है और इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. यह उस पितृसत्तात्मक सोच पर आधारित है कि एक यौन रूप से सक्रिय महिला के साथ रेप नहीं हो सकता.
अपना फैसला सुनाते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था, “इस अदालत ने बलात्कार और यौन उत्पीड़न के मामलों में बार-बार "टू-फिंगर टेस्ट" के उपयोग की भर्त्सना की है. यह परीक्षण पूरी तरह अवैज्ञानिक है और एक गलत धारणा पर आधारित है. सच्चाई से इसका कोई लेना-देना नहीं है.”
मौजूदा मामले की सुनवाई में जब सीबीआई अभियुक्त के कटघरे में खड़ी थी तो उसने अपनी सफाई में यह तर्क देने की कोशिश की कि वर्जिनिटी टेस्ट को सीआरपीसी की धारा 53 (पुलिस अधिकारी के अनुरोध पर चिकित्सक द्वारा अभियुक्त की जांच) के तहत मान्यता मिली हुई है.
न्यायमूर्ति शर्मा इस तर्क को पूरी तरह खारिज करते हुए कहा कि यह पूरी तरह अवैज्ञानिक है. उन्होंने कहा, “वर्जिनिटी टेस्ट न तो आधुनिक है और न ही वैज्ञानिक. यह पुरातन और तर्कहीन तरीका है.”
इतना ही नहीं, कोर्ट ने यह भी कहा कि वर्जिनिटी टेस्ट दरअसल "महिलाओं के शरीर और उनके यौन व्यवहार को नियंत्रित करने" के बराबर है.
Edited by Manisha Pandey