हिंदी सिनेमा में संजीव कुमार जैसा सर्वगुणसंपन्न अभिनेता दोबारा पैदा नहीं हुआ
संजीव कुमार का नाम जेहन में आते ही एक ऐसे अभिनेता की तस्वीर उभरकर आती है, जिसने सिनेमा में कई चरित्रों को अपने जीवंत अभिनय से ऐसे साकार किया की हर बार अभिनय की एक नयी मिसाल दिखने को मिलती है। एक दौर ऐसा था कि दिलीप कुमार, धर्मेन्द्र और अमिताभ बच्चन ये दुआएं करते थे कि उन्हें कोई शॉट संजीव के साथ देना न पड़ जाएं।
2013 में एक डाक टिकट भी संजीव कुमार की याद में जारी किया गया। सूरत, गुजरात में संजीव कुमार के नाम पर एक सड़क बनाई गई है। जिसका नाम है 'संजीव कुमार मार्ग'। इस मार्ग का उद्घाटन सुनील दत्त ने किया था।
फिल्मों में किसी अभिनेता का एक फिल्म में दोहरी या तिहरी भूमिका निभाना बड़ी बात समझी जाती है लेकिन संजीव कुमार ने फिल्म ‘नया दिन नई रात में एक या दो नहीं बल्कि नौ अलग-अलग भूमिकाएं निभाकर दर्शकों को रोमांचित कर दिया। फिल्म में संजीव कुमार ने लूले-लंगड़े, अंधे, बूढे, बीमार, कोढ़ी, हिजड़े, डाकू, जवान और प्रोफेसर के किरदार को निभाकर जीवन के नौ रसों को रुपहले पर्दे पर साकार किया।
संजीव कुमार का नाम जेहन में आते ही एक ऐसे अभिनेता की तस्वीर उभरकर आती है, जिसने सिनेमा में कई चरित्रों को अपने जीवंत अभिनय से ऐसे साकार किया की हर बार अभिनय की एक नयी मिसाल दिखने को मिलती है। एक दौर ऐसा था कि दिलीप कुमार, धर्मेन्द्र और अमिताभ बच्चन ये दुआएं करते थे कि उन्हें कोई शॉट संजीव के साथ देना न पड़ जाएं। अभिनय का शौक जागने पर संजीव कुमार ने इप्टा के लिए स्टेज पर अभिनय करना शुरू किया इसके बाद वे इंडियन नेशनल थिएटर से जुड़े। 1960 में आई हम हिंदुस्तानी संजीव कुमार की पहली फिल्म थी। उन्होंने कई फिल्मों में छोटे-मोटे रोल किए और धीरे-धीरे अपनी पहचान बनाई। संजीव कुमार कभी नायक तो कभी खलनायक तो कभी सहनायक की भूमिका में अभिनय के दम पर सबसे ज्यादा आकर्षित करते थे। इसलिए वह एक इंद्र धनुषी अभिनेता थे। उनके द्वारा निभाए किरदारों में अभिनय के सभी रंग देखने को मिलते हैं। संजीव कुमार फिल्मी दुनिया के श्रेष्ठ हरफनमौला किरदारों में से एक थे। पर उनके साथ समस्या यह रही कि हर दौर में कोई न कोई बड़ा सितारा उनके हिस्से की पब्लिसिटी लूटता रहा। जिन मल्टीस्टारर हिट फिल्मों का वह हिस्सा बनते उनके हिट होने की वजह इंडस्ट्री दूसरे कलाकारों को देती रहती। संजीव कुमार बॉलीवुड की दुनिया का वह नाम है जिसने बेहद कम समय में बडे़ पर्दे पर अमिट छाप छोड़ी।
इस हीरे की चमक ही अलहदा थी-
1960 के दशक में जब संजीव कुमार ने बॉलीवुड में इंट्री की तो उस समय देवानंद, राजकूपर, राजेंद्र कुमार जैसी कलाकारों के साथ दिलीप कुमार का भी आगमन हो चुका था। यह कलाकार ही उस दौर में छाए रहे। इसके आगे की डगर में संजीव कुमार के साथ धर्मेंद्र, राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन जैसे कलाकार इंडस्ट्री का चार्म लूटते रहे। बावजूद इसके संजीदा अभिनय करने वाले संजीव कुमार ने न सिर्फ खुद को स्थापित किया बल्कि फिल्मकारों को यह संदेश भी दिया कि कुछ भूमिकाएं सिर्फ वहीं कर सकते हैं। फिल्म कोशिश में एक गूंगे की भूमिका हो या फिर शोले में ठाकुर की भूमिका या सीता और गीता। अनामिका जैसी फिल्मों में प्रेमी युवक की भूमिका हो या 'नया दिन नई रात' में नौ अलग- अलग भूमिकाएं, सभी में उनका कोई जवाब नहीं था।
फिल्मों में किसी अभिनेता का एक फिल्म में दोहरी या तिहरी भूमिका निभाना बड़ी बात समझी जाती है लेकिन संजीव कुमार ने फिल्म ‘नया दिन नई रात में एक या दो नहीं बल्कि नौ अलग-अलग भूमिकाएं निभाकर दर्शकों को रोमांचित कर दिया। फिल्म में संजीव कुमार ने लूले-लंगड़े, अंधे, बूढे, बीमार, कोढ़ी, हिजड़े, डाकू, जवान और प्रोफेसर के किरदार को निभाकर जीवन के नौ रसों को रुपहले पर्दे पर साकार किया। यूं तो यह फिल्म उनके हर किरदार की अलग खासियत की वजह से जानी जाती है लेकिन इस फिल्म में उनके एक हिजड़े का किरदार आज भी दर्शकों के मस्तिष्क पर छाया हुआ है।
संजीव जैसा नहीं कोई दूजा-
संजीव कुमार का जन्म मुंबई में 9 जुलाई 1938 को एक मध्यम वर्गीय गुजराती परिवार में हुआ था। अपने जीवन के शुरूआती दौर मे रंगमंच से जुड़े और बाद में उन्होंने फिल्मालय के एक्टिंग स्कूल में दाखिला लिया। इसी दौरान वर्ष 1960 में उन्हें फिल्मालय बैनर की फिल्म हम हिन्दुस्तानी में एक छोटी सी भूमिका निभाने का मौका मिला। 1962 में राजश्री प्रोडक्शन की निर्मित फिल्म आरती के लिए उन्होंने स्क्रीन टेस्ट दिया जिसमें वह पास नही हो सके। सर्वप्रथम मुख्य अभिनेता के रूप में संजीव कुमार को 1965 में प्रदर्शित फिल्म निशान में काम करने का मौका मिला।1968 में प्रदर्शित फिल्म शिकार में वह पुलिस ऑफिसर की भूमिका में दिखाई दिए। यह फिल्म पूरी तरह अभिनेता धर्मेन्द्र पर केन्द्रित थी फिर भी सजीव कुमार धर्मेन्द्र जैसे अभिनेता की उपस्थिति में अपने अभिनय की छाप छोड़ने में कामयाब रहे। इस फिल्म में उनके दमदार अभिनय के लिए उन्हें सहायक अभिनेता का फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला। 1970 में प्रदर्शित फिल्म खिलौना की जबर्दस्त कामयाबी के बाद संजीव कुमार बतौर अभिनेता अपनी अलग पहचान बना ली। संजीव कुमार, गुलजार के प्रिय कलाकार रहे हैं। संजीव और गुलजार ने मिलकर एक साथ कई फिल्में कीं। संजीव कुमार ने गुलजार के निर्देशन में 'आंधी', 'मौसम', 'नमकीन' और 'अंगूर' जैसी कई फिल्मों में अपने अभिनय का जौहर दिखाया।
संजीव कुमार को दो बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला 1971 में आई फिल्म दस्तक और 1973 में आई फिल्म कोशिश के लिए। 14 बार फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए संजीव कुमार नॉमिनेट हुए। दो बार उन्होंने बेस्ट एक्टर का और एक बार बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का अवॉर्ड भी जीता। संजीव कुमार के परिवार में कोई भी पुरुष 50 वर्ष से ज्यादा नहीं जी पाया। संजीव को भी हमेशा महसूस होता था कि वे ज्यादा नहीं जी पाएंगे। उनके छोटे भाई नकुल की मृत्यु संजीव से पहले ही हो गई। ठीक 6 महीने बाद बड़ा भाई किशोर भी चल बसा। संजीव के परिवार के बारे में कहा जाता था कि बेटे के 10 साल का होने पर पिता की मौत हो जाती है। संजीव कुमार ने भी 47 वर्ष की आयु में ही 6 नवम्बर 1985 को इस दुनिया को अलविदा कहा। संजीव कुमार की मृत्यु के बाद उनकी दस से ज्यादा फिल्में प्रदर्शित हुईं। अधिकांश की शूटिंग बाकी रह गई थी। कहानी में फेरबदल कर इन्हें प्रदर्शित किया गया। 1993 में संजीव कुमार की अंतिम फिल्म प्रोफेसर की पड़ोसन प्रदर्शित हुई।
2013 में एक डाक टिकट भी संजीव कुमार की याद में जारी किया गया। सूरत, गुजरात में संजीव कुमार के नाम पर एक सड़क बनाई गई है। जिसका नाम है 'संजीव कुमार मार्ग'। इस मार्ग का उद्घाटन सुनील दत्त ने किया था।
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