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'हिंडन' नदी अब नाला है, इस दर्द को मिटाने की कोशिश का नाम है 'विक्रांत शर्मा'

नदी के किनारे पदयात्राओं के माध्यम से ग्रामीणों को नदी के संरक्षण के लिये कर रहे हैं जागरुक...महात्मा गांधी को अपना आदर्श मानने वाले विक्रांत पदयात्रा को लोगों के साथ जुड़ाव का मानते हैं सबसे अच्छा साधन...बच्चों को भी नदी की महत्ता से रूबरू करवाने के लिये गांवों में करते हैं विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन...मैगसेसे पुरस्कार विजेता राजेंद्र सिंह के साथ मिलकर हिंडन जल बिरादरी के माध्यम से जगा रहे हैं अलख...

'हिंडन' नदी अब नाला है, इस दर्द को मिटाने की कोशिश का नाम है 'विक्रांत शर्मा'

Tuesday October 06, 2015 , 7 min Read

पिछले कुछ समय से गंगा नदी को बचाने, प्रदूषण मुक्त करने और इसके लिए खर्च किए जा रहे सैंकड़ों करोड़ रुपए के बारे में हम सब परिचित हैं। ऐसे में अकसर आम लोगों के ज़ेहन में एक सवाल कौंधता है कि उन छोटी नदियों का क्या होगा, जिन पर नज़र चंद लोगों की जाती है? उनको कैसे बचाया जाए? उनके बारे में कौन सोचेगा?

‘‘मेरे लिये नदी सिर्फ बहते हुए जल का एक स्रोत नहीं है। मेरी नजरों में किसी भी नदी की महत्ता इससे कहीं अधिक है। मेरा मानना है कि ये नदियां हमारी हजारों वर्षों की संस्कृतियों और सभ्यताओं का अभिन्न अंग हैं और अगर हम इनके पुनर्वास के लिये अब भी नहीं जागे तो हमसे अधिक अभागा शायद ही कोई होगा,’’ ये कहना है गाजियाबाद के रहने वाले विक्रांत शर्मा का। विक्रांत शर्मा पेशे से वकील हैं और आसपास के क्षेत्रों मे वे अपने नदी और प्रकृति के प्रति अपने प्रेम और लगन के लिये खासे विख्यात हैं। वे मैगसेसे पुरस्कार विजेता और दुनिया में जलपुरुष के नाम से मशहूर राजेंद्र सिंह की जल बिरादरी से सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं और जल, जंगल और प्रकृति के बीच रहना अधिक पसंद करते हैं।

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कृषि के लिहाज से देश के सबसे समृद्ध माने जाने वाले इलाकों में से एक पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जीवनदायिनी कही जाने वाली हिंडन या हरनंदी नदी को प्रदूषण से मुक्त करने की मुहिम चला रहे विक्रांत शर्मा ‘‘हिंडन जल बिरादरी’’ के माध्यम से अपनी लड़ाई एक अलग ही अंदाज में आगे बढ़ा रहे हैं। आज के इस हाईटेक युग मेें गांधी को अपना आदर्श मानने वाला यह युवा उनके पदचिन्हों पर चलकर आम जनता के बीच नदी के प्रति जागरुकता पैदा करने के लिये पदयात्राएं और यात्राएं आयोजित कर रहा है और उनके बीच नदी को बचाए रखने का अलख जगा रहा है।

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सीआरपीएफ में उच्चाधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हुए पिता की संतान विक्रांत ने दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में आॅनर्स करने के बाद एलएलबी की शिक्षा प्राप्त की और वर्ष 2002 में गाजियाबाद अदालत में वकालत प्रारंभ कर दी। विक्रात कहते हैं, ‘‘मैं बचपन से ही प्रकृति का प्रेमी रहा हूँ और समय के साथ मेरा नदियों के प्रति लगाव बढ़ता गया। वर्ष 2004 में वकालत प्रारंभ करने के दौरान मैंने देखा कि गाजियाबाद से होकर गुजरने वाली हिंडन नदी दिन-प्रतिदिन अपना स्वरूप खोती जा रही है और धीरे-धीरे एक गंदे नाले में परिवर्तित होती जा रही है। बस इसके बाद मैंने इस नदी को बचाने का बीड़ा उठाया और कुछ समय अकेले प्रयास करने के बाद वर्ष 2004 में अपने जैसे कुछ और युवाओं और प्रकृति प्रेमियों के सहयोग से हिंडन जल बिरादरी की स्थापना की।’’

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प्रारंभिक दौर में ही इन्हें समझ में आ गया कि अगर नदी को प्रदूषण से मुक्त करना है या फिर बचाना है तो इन्हें इस नदी के किनारे रहने वाले ग्रामीणों को इसकी महत्ता के बारे में समझाना होगा और उन्हें इसके संरक्षण के लिये जागरुक करना होगा। विक्रांत कहते हैं कि उन्हें महसूस हुआ के नदी में लगातार बढ़ रहे प्रदूषण का सर्वाधिक असर इसके किनारे रहने वाले ग्रामीणों के जीवन पर पड़ रहा है और उन्हें जागरुक करने के लिये उनके पास जाने और उन्हें समझाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है।

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विक्रांत कहते हैं, ‘‘हिंडन नदी की दुर्दश देखकर मेरा मन व्यथित हो उठता था। ऐसे में मैंने नदी को करीब से जानने के लिये पदयात्राओं पर निकलना प्रारंभ किया। मुझे लगता है कि नदी को जानने और समझने के लिये पदयात्रा से बेहतर और कोई विकल्प नहीं है। पदयात्रा के दौरान मुझे नदी के साथ रहने, चलने और उसे नजदीक से जानने का मौका मिलता है। इसके अलावा पदयात्रा के दौरान नदी क आसपास की वनस्पतियों, वन्यजीवों को जानने के अलावा इससे जुड़ी संस्कृति और जीवन से रूबरू हेता हूँ और प्रकृति को नजदीक से देखने के साथ-साथ उससे संवाद स्थापित करने का इससे बेहतर और कोई माध्यम नहीं है।’’

विक्रांत अपने साथियों के साथ अबतक हिंडन नदी के उद्गम स्थल जिला सहारनपुर के पुरकाटांडा गांव से लेकर उसके अंतस्थल नोएडा के गांव मोमनाथनपुर तक करीब 201 किलोमीटर की पदयात्रा कई बार कर चुके हैं। इन पदयात्राओं के दौरान ये लोग इस नदी के किनारे स्थित करीब 400 गांवों में रहने वाले लोगों के साथ संवाद स्थापित करते हैं और उन्हें कई तरीकों से नदी को बचाए रखने और प्रदूषण से मुक्त रखने के लिये जागरुक करते हैं।

विक्रांत कहते हैं, ‘‘हमनें इस नदी और इसकी दो सहायक नदियों कृष्णी और काली के किनारे बसने वाले करीब 400 गांवों और इनमें गिरने वाले 100 से भी अधिक छोटे-बड़े नालों का एक मानचित्र तैयार किया है। हम फोटोग्राफी और दीवार लेखन के द्वारा ग्रामीणों को नदी को बचाए रखने के तरीकों के प्रति जागरुक किया। इसके अलावा हम समय-समय पर इन गांवों में रहने वाले बच्चों को जागरुक करने के लिये गांवों में ही विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन करते हैं। हम मुख्यतः चित्रकला और निबंध प्रतियोगिताओं का आयोजन करते हैं क्योंकि बच्चों की इनमें रुचि होती है और इस उम्र के बच्चे कच्ची मिट्टी के समान होते हैं। इस उम्र में अगर हम उन्हें नदी की महत्ता के बारे में समझाएंगे तो निश्चित ही वे आने वाले समय में नदियों के संरक्षण को समझेंगे और उन्हें साफ रखने में मदद करेंगे।’’ अपने इस अभियान के तहत विक्रांत अबतक नदी संरक्षण जैसे विषयों पर 15 से भी अधिक विचार गोष्ठियों और लघु चर्चाओं का सफलतापूर्वक आयोजन कर चुके हैं।

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इसके अलावा हाल ही इन्होंने हिंडन जल बिरादरी के बैनर तले वर्षा जल संरक्षण को लेकर एक निबंध प्रतियोगिता भी आयोतित की जिसमें इन्हें 400 से भी अधिक निबंध प्राप्त हुए। विक्रांत का मानना है कि इस प्रकार के आयोजनों से लोगों के बीच प्रदूषण जैसे मुद्दे पर चेतना और जागरुकता के क्षेत्रफल में विस्तार होता है। विक्रांत कहते हैं, ‘‘इस निबंध प्रतियोगिता की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि हमें 60 से भी अधिक निबंध जिला जेल में निरुद्ध कैदियों द्वारा लिखे हुए मिले। हमारे पैनल द्वारा शीर्ष 10 में चुने गए निबंधों में से एक आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे एककैदी द्वारा लिखा गया था। यह देखकर काफी खुशी हुई कि जेल में बंद कैदी भी नदियों की महत्ता को लेकर जागरुक हैं।’’

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इसके अलावा इन्होंने हिंडन नदी को केंद्र में रखकर एक डाॅक्यूमेंट्री भी तैयार की है और उसे नदी के किनारे बसे 100 से भी अधिक गांवों में वितरित किया गया है। साथ ही ये ‘‘नदी का गीत’’ भी तैयार कर चुके हैं जो सेव हिंडन साँग के नाम से सुना जा सकता है। नदियों हमारी सभ्यता और संस्कृति की वाहक हैं और इस बात की पुष्टि करने के लिये विक्रांत हमें एक उदाहरण देते हैं। वे बताते हैं, ‘‘कुछ वर्ष पूर्व हिंडन नदी के किनारे बसे एक गांव सुठारी में इनकी पदयात्रा के दौरान हड़प्पा और महाभारताकलीन अवशेष प्राप्त हुए। हमनें इन अवशेषों के संरक्षण के लिये मुहिम चलाई जिसका नतीजा है कि बांद में इस गांव में ऐतिहासिक महत्व की कई चीजें मिली हैं।’’

नदी के संरक्षण के लिये लड़ाई लड़ने के दौरान इन्होंने विभिन्न विभागों में नदी से संबंधित 100 से भी अधिक आरटीआई भी दाखिल की हैं जिनके फलस्वरूप इन्हें नदियों से संबंधित कई महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त हुई हैं। इसके अलावा वे नेश्नल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में भी हिंडन नदी पर बढ़ रहे अतिक्रमण और प्रदूषण को लेकर 2 केस दाखिल कर चुके हैं जिनमे एनजीटी ने काफी सख्त आदेश पारित किये हैं।

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पेशे से वकील होने के चलते इनका काफी समय कचहरी में व्यतीत होता है लेकिन समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी पूरा करने का कोई मौका ये अपने हाथ से नहीं जाने देते हैं। कचहरी में आने वाले लोग इन्हें कई बार स्थानीय चाय की दुकान पर काम करने वाले बच्चों और भीख मांगने वालों और अन्य लावारिस बच्चों को पढाते हुए देखकर हैरान हो जाते हैं।

अंत में विक्रांत शर्मा अपनी हिंडन गीत की कुछ पंक्तियां हमें सुनाते हैं,

‘‘सदियों से बहती हूँ अब तो संभालो तुम,

एक बूँद जीवन की मुझमें तो डालो तुम

कहती है हरनंदी मुझको बचा लो तुम।’’



आप भी विक्रांत शर्मा से उनके फेसबुक पेज पर संपर्क कर सकते हैं।