रोजाना सैकड़ों लोगों का पेट भरना अपनी जिंदगी का मकसद समझते हैं हैदराबाद के अजहर
अजहर के दाने-दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम...
दुनिया में हर घंटे साढ़े तीन हजार लोगों की भूख से मौत हो जाती है, जाने-माने अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन कहते हैं, भूख पर बहस होनी चाहिए, मशहूर ग़ज़लकार दुष्यंत कुमार लिखते हैं - 'भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ' लेकिन हैदराबाद के अजहर इस तरह की बातों और बहसों में पड़ने के बजाए बेबस लोगों की भूख मिटाना अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा मकसद और इंसानियत का पहला मजहब मानते हैं। वह रोजाना खाना पकाकर सैकड़ों लोगों की भूख मिटाने में जुटे हुए हैं।
अजहर हाल ही में अभिनेता सलमान खान के कार्यक्रम 'बीइंग ह्यूमन' में देश के उन चुनिंदा आधा दर्जन लोगों में शुमार हो चुके हैं, जो सचमुच के जन नायक हैं, साथ ही वह अमिताभ बच्चन के कार्यक्रम 'आज की रात है जिंदगी' में भी शामिल हो चुके हैं।
हैदराबाद में छत्तीस साल का एक शख्स मशहूर हिंदी ग़ज़लकार दुष्यंत कुमार की इन पंक्तियों को मुद्दत से झुठलाने में जुटा हुआ है, 'भूख है तो सब्र कर रोटी नहीं तो क्या हुआ, आजकल दिल्ली में है ज़ेर-ए-बहस ये मुदद्आ, गिड़गिड़ाने का यहां कोई असर होता नहीं, पेट भरकर गालियां दो, आह भरकर बददुआ।' अपनी बेमिसाल पहल से अब तक न जाने कितने भूखों की थालियां आबाद करते हुए वह लावारिस दुखियारों की जिंदगी का नया मुहावरा गढ़ रहा है। अजहर को भूख की बहस में शामिल होने के बजाए भूख मिटाने की दौड़ में शामिल होना अच्छा लगता है।
वह बेमिसाल दानिशमंद कहता है, 'लक्ष्मी भूख से छटपटा रही थी। बिलख-बिलख कर रो रही थी। मैंने उसे खाना खिलाया और तभी फैसला किया कि मेरे पास जो सीमित संसाधन है, उससे मैं भूखों की भूख मिटाऊंगा। शुरुआत में तीस-पैंतीस लोग यहां होते थे मगर आज वह डेढ़ सौ से ज्यादा हो चुके हैं, जिन्हें मैं रोज खाना खिलाता हूं। मुझे कोई दफ्तर या कर्मचारी की जरूरत नहीं है। मेरे लाइफस्टइाल में कोई बदलाव नहीं आया है। जो लोग चावल और दाल लेकर आते हैं, उनका दान मैं स्वीकार कर लेता हूं। मैं किसी से नकद में पैसे नहीं लेता बशर्ते कि दानदाता चावल या दाल देने की स्थिति में न हो। जब मैं महज चार साल का था, तभी मेरे पिता चल बसे। चार भाई-बहनों में मैं तीसरे नंबर पर हूं। पांचवीं कक्षा में ही अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी और मजदूरी करने लगा। हम अपने दादा के घर रहते थे। उनको बड़े परिवार की जिम्मेदारी संभालनी पड़ती थी। हमें दिन में एक बार खाना मिलता था। कभी-कभी वह भी नहीं मिलता था लेकिन परिस्थितियां जो भी हों, हमें अल्लाह का शुक्रगुजार बने रहना चाहिए। मैं यह नहीं देखता कि कौन खाने को आ रहा है। मैं बस यही जानता हूं कि सभी भूखे हैं। यही उनका ठिकाना है। दाने-दाने पे लिखा है खाने वाले का नाम।' ये हैदराबाद के दबीरपुरा फ्लाईओरवर के पास पिछले सात वर्षों से रोजाना चल रहा भूखो-दूखों के लिए सैयद उस्मान अजहर मकसुसी का अक्षय भंडारा।
यह जानकर किसी को भी हैरत हो सकती है कि जिस साल अजहर अपने बूते भर दुखियारों की भूख मिटाने का अपना मिशन शुरू करते हैं, उसी साल नोबेल पुरस्कार से सम्मानित जाने-माने अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन कहते हैं, 'कुपोषण से ग्रस्त लोगों के मामले में भारत का अनुपात दुनिया में सबसे ज्यादा है और यह आगे भी बना रहेगा। यही वजह है कि हमें इस संदर्भ में व्यापक नजरिया अपनाना पड़ेगा। औसत आयु, मृत्यु-दर, पोषण-दर और महिला साक्षरता के मामले में हम बांग्लादेश से भी पिछड़ चुके हैं। सरकारी नीतियां आज भी आर्थिक वृद्धि की दिशा में संचालित हो रही हैं। इसकी वजह यह है कि सरकार ऐसा चाहती है और एक लोकतंत्र में यह एक राजनीतिक मसला है।'
लाभान्वितों का वर्ग भारत में अमेरिका की तरह एक प्रतिशत नहीं है, जैसा कि 'वाल स्ट्रीट पर कब्जा करने' के आंदोलन में दिखाई पड़ा है, बल्कि यह वर्ग यहां की आबादी के कम से कम 20 प्रतिशत लोगों का है जो पर्याप्त संसाधनों का स्वामी है और खुलकर मौज उड़ा रहा है। निश्चित रूप से सरकारें केवल 20 प्रतिशत लोगों के हितों का ध्यान रखती हैं। यह एक लोकतंत्र है। 20 प्रतिशत लोगों का यह वर्ग पर्याप्त रूप से मुखर और भारतीय राजनीति में निर्णायक दखल रखने वाला है, क्योंकि यह वोट बटोरने के खेल में बड़ा खिलाड़ी है।
आप देखिए कि अखबारों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में, जो आज भारत में काफी ताकतवर बन चुके हैं - किस प्रकार की बहसें चलाई जाती हैं। ये बहसें मतदाताओं पर काफी असर डालती हैं। यदि आपने बार-बार इस तथ्य को विमर्श में नहीं बनाए रखा कि कुपोषण के मामले में भारत अफ्रीका से भी पिछड़ा हुआ है, या कि सामाजिक स्तर पर बांग्लादेश तक हमसे आगे निकल चुका है और यह भी कि आर्थिक वृद्धि-दर की चीख-पुकार के बावजूद दुनिया में हमारी स्थिति लगातार बदतर होती जा रही है तो आर्थिक वृद्धि को प्राथमिकता देने वाली हमारी खराब राजनीतिक-आर्थिक रणनीति जारी ही रहेगी और मानवीय क्षमताओं में विस्तार का मुद्दा पीछे छूटता चला जाएगा।
अजहर को नहीं मालूम है, अमर्त्य सेन कौन हैं और सरकारों की नीतियां क्या हैं! वह तो बस दबीरपुरा फ्लाईओरवर के पास रोजाना सौ-डेढ़ सौ भूखों की थाली में चावल-दाल परोसते रहना अपनी इंसानियत के मजहब समझते हैं। पहले वह घर पर अपनी बीवी के हाथों पकाया खाना लाकर यहां के भूखों को परोसा करते थे। जब रोज-ब-रोज उनकी तादाद बढ़ती गई तो अजहर ने सनी वेल्फेयर फाउंडेशन नाम की नवगठित संस्था की देखरेख में दो रसोइयों की मदद से फ्लाईओवर के पास ही खाना पकाने और परोसने का सिलसिला शुरू कर दिया। फाउंडेशन के पास अपनी वैन है। उससे गांधी अस्पताल (सिकंदराबाद) के पास भी सैकड़ों लोगों की भूख मिटाई जाने लगी। यह सिलसिला यही तक नहीं रहा। तांदुर शहर, गुवाहाटी, बेंगलुरु और रायचूर तक फाउंडेशन भूखों को रोजाना खाना खिलाने लगा। अब तो अजहर के कारवां में और भी तमाम लोग जुड़ते जा रहे हैं।
पूरी दुनिया से भूख का नामोनिशान मिटा देने के जज्बे से लैस अजहर की दबीरपुरा फ्लाईओवर के पास ही प्लास्टर ऑफ पेरिस की दुकान है। दुकान से समय चुराकर वह अपने मिशन में जुटे रहते हैं। हाल ही में अभिनेता सलमान खान के कार्यक्रम 'बीइंग ह्यूमन' में देश के उन चुनिंदा आधा दर्जन लोगों में शुमार हो चुके हैं, जो सचमुच के जन नायक हैं। वह अमिताभ बच्चन के कार्यक्रम 'आज की रात है जिंदगी' में भी शामिल हो चुके हैं। जो लोग अजहर के मिशन में शामिल होना चाहते हैं, उनसे राशन तो वह स्वीकार लेते हैं लेकिन नकद पैसे लेने से साफ मना कर देते हैं।
अजहर के इस शानदार कारनामे से वाकिफ होने के साथ ही ये भी जान लेना जरूरी होगा कि हर सेकेंड भूख से एक व्यक्ति की मौत हो जाती है यानी हर घंटे 3600 लोगों की मौत भूख से हो जाती है। इस तरह हर साल 3,15,3600 लोगों की मौत भूख से होती है। एक सर्वे में पता चला है कि मरने वालों में 58 प्रतिशत ऐसे व्यक्ति होते हैं, जो भूख से दम तोड़ जाते हैं। आजादी मिलने के बाद से ही आज तक देश में प्रगति और विकास के लंबे-चौड़े दावे किए जाते हैं. लेकिन सच्चाई कुछ और ही है। विभिन्न वैश्विक संगठनों के समय-समय पर होने वाले अध्ययनों व रिपोर्टों से झूठे दावों की कलई खुलती रहती है। वॉशिंगटन स्थित इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईएफपीआरआई) की ओर से वैश्विक भूख सूचकांक पर जारी एक रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया के 119 विकासशील देशों में भूख के मामले में भारत 100वें स्थान पर है। इससे पहले 97वें स्थान पर था।
इस मामले में भारत उत्तर कोरिया, इराक और बांग्लादेश से भी बदतर हालत में है। रिपोर्ट में 31.4 के स्कोर के साथ भारत में भूख की हालत को गंभीर बताते हुए कहा गया है कि दक्षिण एशिया की कुल आबादी की तीन-चौथाई भारत में रहती है। ऐसे में देश की परिस्थिति का पूरे दक्षिण एशिया के हालात पर असर पड़ना स्वाभाविक है। इस रिपोर्ट में देश में कुपोषण के शिकार बच्चों की बढ़ती तादाद पर भी गहरी चिंता जताई गई है। आईएफपीआरआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में पांच साल तक की उम्र के बच्चों की कुल आबादी का पांचवां हिस्सा अपने कद के मुकाबले बहुत कमजोर है। इसके साथ ही एक-तिहाई से भी ज्यादा बच्चों की लंबाई अपेक्षित रूप से कम है।
रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में तस्वीर विरोधाभासी है। दुनिया का दूसरा सबसे खाद्यान्न उत्पादक होने के साथ ही उसके माथे पर दुनिया में कुपोषण के शिकार लोगों की आबादी के मामले में भी दूसरे नंबर पर होने का धब्बा लगा है। भूख पर केंद्रित इस रिपोर्ट से साफ है कि तमाम योजनाओं के एलान के बावजूद अगर देश में भूख व कुपोषण के शिकार लोगों की आबादी बढ़ रही है तो योजनाओं को लागू करने में कहीं न कहीं भारी गड़बड़ियां और अनियमितताएं हैं। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) और मिड डे मील जैसे कार्यक्रमों के बावजूद न तो भूख मिट रही है और न ही कुपोषण पर अंकुश लगाने में कामयाबी मिल सकी है। ऐसे में ले-देकर अजहर जैसे दानिशमंदों का ही भरोसा बाकी रह जाता है।
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