कैसे डिसेबिलिटी सेक्टर में अपने मामू जावेद आबिदी की विरासत को आगे बढ़ा रहा है ये 21 साल का युवा?
"JAF को मार्च 2019 में लॉन्च किया गया, जिसका उद्देश्य राइट ऑफ पर्सन विद डिसेबिलिटीज (RPWD) एक्ट 2016 को प्रभावी तरीके से लागू कराना है। यह जावेद आबिदी का अधूरा सपना था। इसके अलावा, फाउंडेशन युवाओं को एक साथ लाने, दोस्ती को बढ़ावा देने और एक ऐसा समुदाय बनाने का प्रयास करता है जहां शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्ति भी अपने अधिकारों को जानता हो।"
जावेद आबिदी उन शुरुआती लोगों में से एक हैं, जिन्होंने देश में क्रॉस-डिसेबिलिटी आंदोलन शुरू किया था। वह अलग अलग शारिरिक अक्षमताओं वाले लोगो को एक साझा समाधान विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करते थे। 2018 में उनका निधन हो गया। हालांकि उन्होंने जो अलख जगाई है और जिस जूनून के साथ काम किया है, उसे सिर्फ डिसेबिलिटी सेक्टर में ही नहीं बल्कि पूरे भारत में आज भी याद किया जाता है। अब उनकी विरासत को उनके 21 वर्षीय भांजे शमीर रिशाद ने संभाला है। शमीर ने 'जावेद आबिदी फाउनंडेशन (JAF)' लॉन्च किया, जो आबिदी के काम को आगे बढ़ाएगा।
JAF को मार्च 2019 में लॉन्च किया गया, जिसका उद्देश्य राइट ऑफ पर्सन विद डिसेबिलिटीज (RPWD) एक्ट 2016 को प्रभावी तरीके से लागू कराना है। यह जावेद आबिदी का अधूरा सपना था। इसके अलावा, फाउंडेशन युवाओं को एक साथ लाने, दोस्ती को बढ़ावा देने और एक ऐसा समुदाय बनाने का प्रयास करता है जहां शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्ति भी अपने अधिकारों को जानता हो। यह उन्हें डिसेबिलिटी सेक्टर में युवा नेता बनने और बदलाव को प्रभावी तरीके से अपनाने की ट्रेनिंग देता है।
आबिदी उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में पैदा हुए थे। उन्होंने अपनी पढ़ाई अमेरिका से पूरी की और 24 साल की उम्र में पत्रकारिकता का कोर्स करने भारत वापस आए थे। आबिदी को बचपन से ही स्पाइना बिफिडा (रीढ़ की हड्डी से जुड़ी एक बीमारी) की समस्या थी, जिसके चलते उन्हें 15 साल की उम्र से ही व्हीलचेयर का इस्तेमाल करना पड़ गया। इसकी वजह से जल्द ही उनका झुकाव शारीरिक अक्षमता से जुड़े जागरूकता कार्यक्रमों की ओर हो गया।
आबिदी अक्षम लोगों को समाज में अपनेपन की भावना देने में दृढ़ता से विश्वास करते थे। वह लोगों को विश्वास दिलाना चाहते थे कि असंभव को संभव बनाया जा सकता है और इस सबके लिए लोगों को बस एक शुरुआती कदम उठाने की जरूरत थी।
वह 'डिसेबिलिटी राइट्स ग्रुप' के संस्थापक सदस्यों में से एक थे, जिसे 1994 में शुरू किया गया था और द नेशनल सेंटर फॉर प्रमोशन ऑफ एंप्लॉयमेंट फॉर डिसेबल्ड पीपल (NCPEDP)' के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर थे। NCPEDP एक ट्रस्ट है जिसे 1996 में राजीव गांधी फाउंडेशन और एक्शन एड के साथ मिलकर संयुक्त रूप से शुरू किया गया था।
वह नई दिल्ली के ऐतिहासिक स्थलों और प्रमुख सार्वजनिक स्थानों पर दिव्यांग व्यक्तियों के लिए व्हीलचेयर रैंप बनवाने वाले भी पहले व्यक्ति थे। इसके अलावा जावेद आबिदी ने राइट ऑफ पर्सन विथ डिसेबिलिटीज (RPWD) एक्ट 2016 को तैयार करवाने में भी अहम भूमिका निभाई थी, जो उनके सबसे महत्वपूर्ण कार्यों में से एक है।
जावेद आबिदी के बारे में बात करते हुए शमीर ने बताया,
'वह एक बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी आदमी थे। मेरा यह पक्के तौर पर मानना है कि उन्हें धरती पर दूसरों की जिंदगी आसान बनाने के लिए भेजा गया था। आज सिर्फ उनकी वजह से कई अक्षम लोग गर्व की भावना के साथ अपनी जिंदगी जी रहे हैं। वे अपनी सही अधिकारों के लिए लड़ सकतें हैं और अपनी तकदीर बदलने की दिशा में काम कर सकते हैं। मुझे लगता है कि उन्होंने काफी कम उम्र में ही जिंदगी को करीब से देख लिया था। इसलिए उनके ऊपर दूसरों की कही गलत बातों का असर नहीं होता था। वह छोटी सी छोटी असुविधा को दूर करने के लिए योजना तैयार कर लेते थे, लेकिन वह जिंदगी के उतार-चढ़ाव में अपने व्हीलचेयर के साथ सफर करने में भी उतने ही सहज थे। कुल मिलाकर वह एक बदलाव लाने वाले इंसान थे, एक नेता थे।'
जावेद आबिदी फाउंडेशन की लॉन्चिंग
आबिदी की मौत के बाद शमीर अपने 'मामू' की विरासत को आगे बढ़ाना चाहते थे। उनसे प्यार के चलते ही उन्होंने इस फाउंडेशन को लॉन्च किया था। शमीर के लिए इस फाउंडेशन को लॉन्च करना पेशेवर लक्ष्य से ज्यादा निजी लक्ष्य था, जो इन सालों में उनके साथ साझा किए रिश्ते को समर्पित है।
शमीर ने बताया,
'यह उनका मेरा लिए प्यार है, जो मुझसे यह सब करवा रहा है। साथ ही उस समाज के निर्माण के लिए काफी जरूरी काम है, जिसका हम हिस्सा हैं।'
शमीर याद करते हैं कि कैसे वह अपने मामू को हमेशा देखा करते थे और वे उन्हें एक बच्चा कहकर बुलाते थे। शमीर ने तो कभी उनके नाम से आगे चलकर फाउंडेशन खोलने की कल्पना भी नहीं की थी और न ही कभी डिसेबिलिटी सेक्टर में आने की।
शमीर ने बताया,
'जब मैं स्कूल में था, तो मैं हमेशा अपनी मां से कहता था कि मैं अपने अंकल की पहल से पैसा नहीं कमाऊंगा। वे सभी हंसते हुए मुझे देखते थे और कहते थे कि हम देखेंगे।'
2017 में शमीर ने सेंट जोसेफ में इकोनॉमिक्स, मैथ और स्टैटिस्टिक विषयों में प्रवेश लिया था। इसके बावजूद वह अपनी मां के साथ मामू के पास रहने के लिए चले गए।
उन्होंने बताया,
'पीछे मुड़कर देखने पर लगता है कि मामू के साथ रहने का फैसला, मेरी जिंदगी का सबसे अच्छा फैसला था। हमने काफी समय साथ में बिताया और कॉलेज, जिंदगी, मूवी से लेकर राजनीति तक सभी विषयों पर बात की। एक समय मैं उन्हें गाड़ी से ऑफिस छोड़ने भी जाता था। जब उनका निधन हुआ तब मुझे पता नहीं था कि मुझे क्या करना है, लेकिन मुझे ये पता था कि मुझे कुछ करना है।'
शमीर याद करते हुए बताते हैं जब उनके गुजरने से वह सभी सदमें में थे, तब एक अनजान शख्स ने उनके नाम से ट्र्स्ट बनाने की कोशिश की थी और वह उनके नाम से पैसे जुटाना चाहता था। समीर अपनी मामू की विरासत को सुरक्षित रखना चाहते थे। ऐसे में उनकी मां ने उन्हें कॉलेज के बाद एक फाउंडेशन बनाने का सुझाव दिया। हालांकि उनका मानना था कि वह उसे शुरू करने का सबसे सही समय था।
शमीर पहले फाउंडेशन पर एक इंटर्नशिप या प्रोजेक्ट की तरह काम करना चाहते थे। हालांकि बाद में उन्हें एहसास हुआ कि ऐसे बहुत से काम हैं, जिस पर उन्हें हमेशा ध्यान देने की जरूरत है। ऐसे में उन्होंने फाउंडेशन को पूर्णकालिक तौर पर शुरू करने का फैसला किया।
शमीर ने बताया,
'मुझे पूछा जाता है कि मैने इसे जावेद आबिदी फाउंडेशन नाम क्यों दिया। मैंने इसके बारे में काफी सोचा था। मुझे अपने मामू के नाम और उनकी विरासत को सुरक्षित रखना था। मुझे यह बात साफ हो गई थी कि ये दुनिया अवसरवादी लोगों से भरी हुई है, जो मेरी मामू की विरासत का गलत फायदा उठाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। इसके बाद मैने जावेद आबिदी फाउंडेशन का रजिस्ट्रेशन कराया।'
शमीर का मानना है कि वह जावेद आबिदी के भांजे हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि उनके पास खुद का करियर आगे बढ़ाने के लिए उनका नाम इस्तेमाल करने का अधिकार आ गया है। उन्होंने कहा कि फाउंडेशन के जरिए जमीनी हकीकत को समझने के लिए बहुत से काम किए जाएंगे और यह भी देखा जाएगा कि ये काम उनके मामू द्वारा तय किए मापदंडों पर खरा उतरता है या नहीं।
शमीर ने अपने मामू के काम की नैतिकता और उनसे प्रेरणा पाने के बारे में बताया,
'वह एक लीजेंड थे, जो नीतियों के बनाने के स्तर पर रात-दिन बिना थके हुआ काम करते थे।'
वह हमेशा मुझसे 2016 के RPWD एक्ट के बारे में बाते करते थे। यह उनके दिमाग की उपज थी। जिस कानून को लेकर वह अपनी पूरी जिंदगी प्रयास करते रहे, उसे पूरा होते हुए देखना मेरा निजी लक्ष्य था। उन्होंने मुझसे कहा था कि इसे लागू होने में 10-15 साल लग जाएंगे और मैं अपने मामू के इस अधूरे सपने पर काम करना चाहता हूं।
एक युवा क्रांति बनना
JAF, कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव (CHRI) और डिसएबिलिटी राइट्स इंडिया फाउंडेशन (DRIF) के सहयोग से 'नो योर राइट्स' नाम से वर्कशॉप का आयोजन करता है। ये वर्कशॉप मुख्य रूप से तथ्यों को इकठ्ठा करने पर केंद्रित हैं।
शमीर के मुताबिक ये वर्कशॉप युवाओं को RPWD एक्ट की वकालत करने के लिए आरटीआई का एक औजार के तौर पर इस्तेमाल करने की ट्रेनिंग देते हैं। इसके चलते प्रतिभागियों ने अब तक 35 आरटीआई दायर किया है, जो उन्होंने RPWD एक्ट से चुने थे।
वर्कशॉप के जरिए युवाओं को RPWD एक्ट 2016 के बारे में जागरूक और शिक्षित किया जा रहा है। शमीर को लगता है कि कॉलेजों में भी अक्षम युवाओं को पूरी तरह से पता नहीं है कि उनके क्या-क्या अधिकार हैं। ऐसे में जेएएफ अक्षम युवाओं तक पहुंचने और उन्हें एक मंच मुहैया करने के तरीके खोज रहा है।
शमीर ने बताया,
'इसमें मेरे लिए क्या है? कई बार मुझे इसे समझाना काफी मुश्किल हो जाता है। मेरा यह मजबूती से मानना है कि हमें सबसे पहले एक ऐसी दुनिया बनानी चाहिए, जहां सभी के पास आगे बढ़ने का समान अवसर हो। इसलिए मैं अक्षम युवाओं में इसी की तलाश करता हूं। उन्हें पेट में वही आग होनी चाहिए, जैसा मेरे मामू के अंदर थी। उन्होंने अपने जीवन मे जो कुछ भी हासिल किया वह सब उनकी काबिलियत के दम पर था। फिलहाल मैं ऐसे ही जुनूनी लोगों की तलाश कर रहा हूं।'
शमीर ने बताया कि जेएएफ फिलहाल एक क्रॉस डिसेबिलिटी यूथ नेटवर्क बनाने पर काम कर रहा है जो पूरे देश के दिव्यांग युवाओं को एक साथ जोड़ेगा साथ ही उन्हें अपने अधिकारों की मांग करने का एक सामूहिक मंच मुहैया कराएगा। जेएएफ एक मेंटरशिप मॉडल बनाने की प्रक्रिया में भी है। शमीर को उम्मीद है कि इस प्रक्रिया से युवाओं को यह समझ में आएगा कि आखिर व्यक्तिगत अधिकारों की वकालत करना इतना जरूरी क्यों है।
शमीर ने बताया,
'मैं खुले में परिचर्चा आयोजित कराने के लिए जेएनयू, जामिया मिलिया, रामानुजन कॉलेज, दिल्ली स्कूल ऑफ सोशल वर्क समेत बहुत से संगठनों और कॉलेजों में जाता रहता हूं। इन परिचर्चाओं में हम जेएएफ को बनाने के मकसद और 1995 के PWD एक्ट से लेकर 2016 के RPWD एक्ट तक आए कानूनी बदलावों के बारे में चर्चा करते हैं। अंत में हम कैंपस में शारीरिक रूप से जुड़े अक्षम छात्रों से जुड़े उन मुद्दों पर भी चर्चा करते हैं, जिन्हें हमें एक समुदाय के तौर पर संबोधित करने की जरूरत है।'
शमीर आगे कहते हैं,
'मैं अपनी समस्याओं को हल करने में विश्वास रखता हूं और मैं चाहता हूं कि बाकी लोग भी इसी तरह महसूस करें। हम चाहते हैं कि दिव्यांग युवाओं की मौजूदा स्थिति पर बात होनी चाहिए और बदलाव का मार्ग तैयार करना चाहिए।'
शारीरिक रूप से अक्षम लोगों की चुनौतियां
देश में अक्षम लोगों की मुख्य चुनौतियों के बारे में बात करते हुए शमीर इसे जुड़ी सामाजिक बुराइयों की ओर इशारा करते हैं। ऐसा लोगों को दूसरे नजरअंदाज या अनदेखा करते हैं। कई बार तो इन्हें नकार भी दिया जाता है।
उन्होंने बताया,
'असल मे सोसायटी जब किसी अक्षम को देखती है तो उसे पता ही नहीं होता कि उसे कैसी प्रतिक्रिया देनी है। अगर अक्षम व्यक्ति जान पहचान का होता है तो वे इसके लिए भगवान को दोषी ठहराते हैं और फिर अतार्किक बातें करने लगते हैं। जैसे ये कहेंगे कि दृष्टिबाधित लोगों की सुनने की क्षमता तेज होती है। साथ ही वे मौसम और भविष्य के बारे में बता सकते हैं।'
शमीर ने बताया,
'मैंने बहुत से अक्षम लोगों से बातें की हैं और उनके मुताबिक 'दिव्यांगजन' और 'डिफरेंटली-एब्लेड' जैसे शब्द अपमानजनक हैं।'
शारीरिक रूप से अक्षम युवा हमेशा पहचान के मुद्दे के साथ जूझते रहते है। उनका बहुत सा समय ये सोचने में बीत जाता है कि वे कौन हैं, इस दुनिया में क्यों आए हैं और उनका अंतिम लक्ष्य क्या है। उनका मानना है कि इसके पीछे बहुत सी वजहें हैं, लेकिन भेदभाव सबसे बड़ी वजह है।
शमीर कहते हैं, 'कुछ लोग अपनी विकलांगता की उसकी पूरी सीमा तक छिपाने की कोशिश करते हैं। मुझे लगता है कि मेरे मामू के पास इसका जवाब था, और वो था इसे स्वीकार करना। मेरे मामू ने स्वीकार किया कि वे अक्षम थे और ये इससे जुड़ा पहला कदम था। ऐसा इसलिए भी हो सका क्योंकि वह एक अच्छे माहौल में पले-बढ़े।'
शमीर का मानना है कि अक्षम लोगों के सामने सबसे बड़ी समस्या सुविधाओं तक पहुंच की है। यह सार्वजनिक स्थानों, शिक्षा, स्वास्थ्य, सेवाओं, रोजगार, न्याय समेत बहुत सी चीजों तक पहुंच से जुड़ी है।
शमीर ने बताया,
'डिसेबिलिटी को लेकर मेरे मामू ने महसूस किया कि बुनियादी चीजों तक पहुंच न होना भी एक बड़ी समस्या थी। ऐसे में 2016 का RPWD एक्ट एक सकारात्मक पहल है क्योंकि यह सरकार को बहुत ही बुनियादी चीजें बनाने के लिए बाध्य करता है, जो सक्षम लोगों के लिए अक्सर आसानी से उपलब्ध होती है।'
उन्होंने कहा कि बुनियादी चीजों तक पहुंच का एक पहलू ये भी है इसके जरिए आप अक्षम लोगों को मुख्यधारा में ला रहे हो। उन्होंने बताया कि अक्षमता कई तरह की होती है और सभी को अलग अलग चीजों की जरूरत होती है।
समीर कहते हैं,
'जो लोग देख नहीं सकते, उन्हें सुनाई ना देने वालों या मानसिक रूप से अक्षम लोगों की तुलना में बिल्कुल अलग चीजों की जरूरत होती है। हमें यह समझने की जरूरत है कि अक्षमता के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। खासतौर से अलग-अलग अक्षमताओं के लिए। हालांकि हमें इसके साथ शिक्षा और रोजगार जैसे कुछ कॉमन मुद्दों पर भी ध्यान देना होगा।'
भविष्य की योजना
शमीर दिल्ली एनसीआर के सभी कॉलेजों में 'नो योर राइट्स' परिचर्चा कराने की योजना बना रहे हैं जिससे वह कैंपस के मुद्दों को लेकर अच्छी समझ विकसित कर सकें। यह परिचर्चाएं क्रॉस-डिसेबिलिटी यूथ नेटवर्क को सीधे कॉलेजों से जोड़ने और विभिन्न गतिविधियों के लिए संशाधन जुटाने के तौर पर काम करेगी।
फाउंडेशन ने जिन गतिविधियों की तैयारी की है, उनमे अक्षमता पर वक्ताओं को आमंत्रित करना, अक्षमता पर संवाद करना, कैंपस से जुड़े मुद्दों की पहचान करना, शहर भर में जागरूकता अभियान चलाना जैसी गतिविधियां शामिल हैं।
वह विभिन्न राज्यों की यात्रा कर आरपीडब्ल्यूडी और आरटीआई पर सत्र आयोजित कराने की योजना बना रहे हैं। साथ ही वह संभावित पार्टनरशिप के लिए प्रमुख स्टेकहोल्डरों से भी मिलेंगे।
शमीर कहते हैं,
'थोड़ा सा लीक से हटकर, मैं उन लेखों पर काम कर रहा हूं जो हमारे ओर से दाखिल आरटीआई के जरिए हासिल किए गए सबूतों से निकले हैं। हम एक प्रेस विज्ञप्ति भी जारी करने जा रहे हैं और मीडिया को एक फैक्ट फाइल दे रहे हैं ताकि आरपीडब्ल्यूडी एक्ट के प्रभावी तरीके से लागू नहीं होने को कवर किया जा सके। हम कुछ सर्वेक्षणों पर काम कर रहे हैं जिन्हें रिसर्च पेपर में शामिल किया जाना है और हम इन्हें जारी करना चाहते हैं। असल में मैं अभी सब कुछ करने की कोशिश कर रहा हूं।'