नुक्कड़-नाटकों के जरिए समाज की कुरीतियां दूर करने में जुटे दो दोस्त
नुक्कड़-नाटकों के जरिए लोगों में कुपोषण को लेकर जागरूकता फैलाते हैं विनय-आशीष
भारत जैसे विकासशील देश में गरीबी और अशिक्षा के साथ-साथ कुपोषण भी एक बड़ी समस्या है। आज भी देश में लाखों ऐसे बच्चे हैं जिन्हें भरपेट भोजन नहीं मिल पा रहा है। देश का लगभग हर तीसरा बच्चा कुपोषण का शिकार है जिससे उसका शारीरिक और मानसिक विकास नहीं हो पाता। कुपोषण न हो उसके लिए अच्छा पोषण मिलने के साथ-साथ उसके बारे में सही जानकारी होना भी बहुत जरूरी है।
लोगों को पता ही नहीं होता कि कुपोषण क्यों होता है और उसकी वजह से उनके बच्चे मानसिक और शारीरिक रूप से समुचित विकास नहीं कर पाते। और किस तरह से साफ-सफाई और सही खान-पान एवं व्यवहार में बदलाव से ऐसे बचा जा सकता है।
ऐसे ही लोगों को जागरूक करने के लिए उत्तर प्रदेश के एटा जिले के गांव नगला राजा के विनय कुमार और इलाहाबाद के आशीष श्रीवास्तव नाटकों के जरिए जन आंदोलन कर रहे हैं। इसके लिए वे राज्य के अलग-अलग जिलों और गांवों में जा-जाकर नुक्कड़ नाटक के जरिए लोगों को जागरूक करते हैं। यानी वे गली-गली जाकर अपने नुक्कड़ नाटकों के जरिए लोगों में कुपोषण को लेकर जागरूकता पैदा करते हैं।
योरस्टोरी से बात करते हुए विनय कहते हैं,
'मेरा मानना है कि अगर गांव देहात के आम लोगों को कुपोषण को लेकर जागरूक किया जाए और बच्चों को पोषित करने के आसान तरीके बताए जाएं तो वे अपने बच्चों को कुपोषण से बचा सकते हैं। जागरूकता से महिलाओं के अनीमिया और किशोरियों में खून की कमी को सुधारा जा सकता है।'
विनय और आशीष उत्तर प्रदेश में आयोजित होने वाले सांस्कृतिक उत्सवों जैसे इलाहाबाद के कुंभ मेले और बलिया के ददरी मेले में नुक्कड़ नाटकों की मैराथन चला चुके हैं, जिनसे इन मेलों में आने वाले लाखों लोगों को जागरूक किया गया है। ऐसे आयोजनों में लाखों लोगों की भीड़ के बीच उनकी टीम दिन-रात नुक्कड़ नाटकों और नुक्कड़ सभाओं के जरिए पोषण का संदेश देती है।
बना चुके हैं लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड
हाल ही में उन्होंने महाकुंभ मेले में एक दिन में सबसे ज्यादा नुक्कड़ नाटक करने का लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है। उन्होंने स्वस्थ भारत प्रेरकों की टीम के साथ मिलकर 24 घंटे में 100 नुक्कड़ नाटक किए और इसके जरिए वे 1 लाख से अधिक लोगों तक सीधे अपना संदेश पहुंचाने में सफल रहे। इस नाटक को विनय ने आसान भाषा में लिखा और आशीष ने स्वस्थ भारत प्रेरकों की टीम को तैयार करवाया था। इसी कुंभ में उनकी टीम ने 30 हजार से अधिक लोगों को कुपोषण से लड़ने के लिए शपथ दिलाते हुए हस्ताक्षर अभियान भी चलाया।
आशीष कहते हैं,
'कुंभ में लाखों लोग दूर-दूर के गांवों से आए थे जिन्हें हमने गीत-संगीत और नाटक के जरिए आसान सी बातें बताईं, जिससे वे अपने बच्चों और महिलाओं को लाभान्वित कर सकते हैं।'
विनय का जीवन भी एकदम अलग रहा है। अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए उन्होंने योरस्टोरी को बताया, 'साल 2011 में मैं 12वीं पास करते ही अपने चाचा के साथ नोएडा में आ गया। यहां आकर मैंने मजदूरी करना शुरू किया। रात में मैं पत्थर घिसाई का काम करता और दिन में सोता था। इससे मैं अपना खर्च भी चलाता और घर पर भी पैसे देता था।'
इस मजदूरी की ज़िंदगी से विनय को वापस पढ़ाई की दुनिया में लाए अमित यादव, जो दिव्यांग होते हुए भी अपने जीवन में संघर्ष के साथ साथ दूसरों की मदद भी कर रहे थे। अमित की मदद से विनय ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में लॉ में एडमिशन लिया लेकिन बाद में उनका झुकाव पत्रकारिता और रंगमंच की तरफ हो गया। इसलिए उन्होंने बीच में लॉ की पढ़ाई छोड़कर पत्रकारिता की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से मीडिया स्टडीज का में ग्रेजुएशन किया और फिर साल 2015-16 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC) के एडीपीआर कोर्स में दाखिला लिया।
कैंपस से ही उनका प्लेसमेंट उत्तर प्रदेश के पब्लिक रिलेशन विभाग में हो गया। यहां कुछ दिन उन्होंने काम किया लेकिन कुछ महीने बाद ही समाज सेवा की ओर मुड़कर गांधी फेलोशिप जॉइन कर लिया और दो साल तक मुंबई में स्लम बस्तियों के बच्चों की शिक्षा पर काम किया।
आशीष ने भी जीवन में संघर्ष से नाटक सीखा है। बचपन में ही पिता की मृत्यु के बाद आशीष ने घर संभालने के लिए पढ़ाई छोड़कर छोटी मोटी नौकरियां कीं और नाटक सीखते रहे। उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से एक्टिंग और डायरेक्शन की वर्कशॉप की हैं और बच्चों के साथ थिएटर से विभिन्न विषयों पर काम करते।
कला केवल एंटरटेन्मेंट का साधन ना रहे, बदलाव की राह भी बने
कॉलेज के दिनों से ही विनय का लगाव थिएटर की ओर था।
उनका कहना है,
'कला केवल एंटरटेन्मेंट का साधन ना रहे। कला को कैसे समाज के लिए काम में लिया जा सकता है, मैं इसी में लगा हुआ हूं। अगर कला का उपयोग समाजपयोगी कामों के लिए किया जाए तो यह ज्यादा प्रभावशाली हो सकती है। इसी सोच के साथ उन्होंने थिएटर को सामाजिक बदलावों के लिए प्रयोग करना शुरू कर दिया।'
विनय ने गांधी फेलोशिप में बच्चों के साथ थिएटर से समानता, शिक्षा और जीवन कौशल से लेकर ड्रग एडिक्ट युवाओं को सुधारने में थिएटर का खूब प्रयोग किया। इन दिनों विनय कुपोषण मिटाने के लिए थिएटर के जरिए जागरूकता जनांदोलन चलाते हैं।
हाल ही में उन्होंने पोषण रामलीला आयोजित की। इसमें रामायण के सारे किरदारों को पोषण और कुपोषण से जोड़कर आम लोगों को सांस्कृतिक प्रभाव से जागरूक किया गया।
आशीष कहते हैं,
'लोग संस्कृति और परंपराओं से ज्यादा सीखते हैं। इसलिए हम हमेशा बदलाव के लिए सांस्कृतिक आयोजनों और परंपराओं में पोषण का संदेश जोड़कर उन्हें जागरूक करते हैं। कुंभ या ददरी मेले में लाखों की भीड़ के साथ आप आसानी से स्थानीय भाषा और मुहावरों में पोषण का संदेश देते हैं। कला अगर किसी इंसान का भला नहीं करती तो वह कला किस काम की?
थिएटर सिखाकर बनाते हैं हर बार नई टीम
आशीष और विनय बताते हैं,
'हम जहां भी जाते हैं दोनों जाते हैं। हमारी कोई एक टीम नहीं है। हम जहां भी जाते हैं, वहां के स्थानीय लोगों को नाटक सिखाते हैं और फिर साथ मिलकर नाटक कर लोगों में जागरूकता पैदा करते हैं।'
आजकल वे कुपोषण के खिलाफ जनांदोलन में टाटा ट्रस्ट के स्वस्थ भारत प्रेरकों के साथ मिलकर हर जिले में वहां के स्थानीय अधिकारियों के साथ नाटक करते हैं।
आशीष बताते हैं,
'वहां के लोगों की टीम बनाने से फायदा ये है कि हर जिले में एक टीम तैयार हो जाती है जो हमारे जाने के बाद भी अगर वे लोग चाहें तो दोबारा से नुक्कड़ नाटक के जरिए आम जनता को जागरूक कर सकते हैं।'
फिलहाल विनय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के पोषण अभियान में जिला नेतृत्व के रूप में कौशांबी जिले में अभियान को जिला लीड कर रहे हैं। इन्हें स्वस्थ भारत प्रेरक कहा जाता है। इनका काम डीएम के साथ मिलकर जिले में पोषण अभियान को जिले में बेहतर इम्प्लीमेंटेशन करवाना है। आशीष आजकल थिएटर कलाकार के रूप में अपनी पहचान बना रहे हैं और स्कूलों में बच्चों के साथ स्टोरीटेलर के रूप में कार्य करते हैं।
पहले ड्रग के आदी युवाओं और दिव्यांग बच्चियों के लिए कर चुके हैं काम
इससे पहले विनय गांधी फेलोशिप के दौरान दिव्यांग लड़कियों और नशे के आदी लोगों के लिए भी काम कर चुके हैं। वे नाटक और ड्रामा के जरिए दिव्यांग लड़कियों को पीरियड्स के बारे में समझाते थे। वहीं नशे के आदी लोगों को थिएटर के जरिए सुधारने की ओर काम कर चुके हैं।
दिव्यांग बच्चियों को लेकर काम के बारे में वह बताते हैं,
'दिव्यांग बच्चियों के पीरियड्स को पैरंट्स को संभालना पड़ता है। इसे घरवाले एक बोझ की तरह लेते हैं और कई बार इससे छुटकारा पाने के लिए वह उनका यूटेरस निकलवा देते हैं। यह गुपचुप तरीके से होता है। जब मुझे पता चला तो मैंने इसी को लेकर मैंने दिव्यांग बच्चियों के लिए प्रोजेक्ट समर्थ शुरू किया जिसके जरिए दिव्यांग बच्चियां खुद से ही अपने पीरियड्स को संभाल सकें और ऐसा घिनौना कृत्य बंद हो जाए।'
गांव लौटकर लोगों की मदद करना है लक्ष्य
विनय कहते हैं कि 2-4 साल बाद गांव लौटकर मैं शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करूंगा।
वह कहते हैं,
'जब मैं सोचता हूं कि मेरी तरह मेरे दोस्तों को भी मौका मिला होता तो वो आज मुझसे कहीं आगे होते। अब जबकि मैं अपने दोस्तों की मदद तो नहीं कर पाया लेकिन उनके बच्चों की मदद जरूर करूंगा। मेरे गांव में कई बच्चे हैं जो विकल्प ना होने के कारण आगे नहीं पढ़ पाते हैं। मैं उन्हें आगे लेकर जाऊंगा।' साथ ही उन्होंने बताया कि यहां पर लड़कियों को मौके कम मिलते हैं और वे मनचाही पढ़ाई नहीं कर पातीं। मैं उन्हें भी स्वास्थ्य और शिक्षा में आगे बढ़ाना चाहता हूं।'