रावण का पुतला बनाने वाले कारीगर परेशान क्यों हैं?
कोविड-19 की पाबंदियां हटने के बाद भले ही लोग जश्न मनाते हुए दशहरे पर रावण का पुतला दहन करने की तैयारी कर रहे हैं लेकिन पुतला बनाने वाले कारीगरों की आर्थिक हालत में अभी भी सुधार नहीं हुआ है.
कोरोना वायरस के कारण लगी पाबंदियां हटने के बाद इस बार दो साल बाद पूरे उल्लास के साथ दशहरा मनाया जा रहा है. आज दशहरे के दिन बुराई पर अच्छाई की जीत को दर्शाने के लिए देशभर में हर्षोल्लास के साथ रावण के पुतलों का दहन किया जाता है.
कोविड-19 की पाबंदियां हटने के बाद भले ही लोग जश्न मनाते हुए दशहरे पर रावण का पुतला दहन करने की तैयारी कर रहे हैं लेकिन पुतला बनाने वाले कारीगरों की आर्थिक हालत में अभी भी सुधार नहीं हुआ है.
रावण का पुतला बनाने वाले कारीगरों का कहना है कि अब रावण के पुतले बनाने में न तो पहले जैसा मुनाफा है और ना ही वैसी मांग है. उनका यह भी कहना है कि पुतलों की मांग अब तक कोविड पूर्व काल के स्तर पर नहीं पहुंची है.
दिल्ली के तितारपुर गांव से पूरे देश में जाते हैं पुतले
दिल्ली के तितारपुर गांव से पूरे देश में पुतले भेजे जाते हैं. यह बहुत पहले की बात नहीं है जब दशहरे से एक महीने पहले ही पश्चिम दिल्ली की सड़कों पर बांस से पुतले के लिए ढांचे बनाने वाले कारीगर दिख जाते थे. पुतले का धड़, सिर और हाथ पैर, बहुत ध्यान से बनाए जाते थे. इसके बाद लकड़ी के ढांचे में विस्फोटक भरकर उन्हें जोड़ा जाता था.
पुतलों की ऊंचाई तीन फुट से 50 फुट तक होती है और इसे पूरा करने में छह से सात घंटे लगते हैं और इसकी कीमत 500 से 700 रुपये प्रति फुट होती है. कारीगर कोविड से पहले हर विक्रेता को 60-100 पुतले बेचा करते थे, लेकिन अब सिर्फ 20-30 पुतले ही बिक रहे हैं.
100 की जगह बना रहे केवल 21 पुतले
करीब 45 साल से पुतले बनाने का व्यवसाय कर रहे 73 वर्षीय महेंद्र पाल ने कहा, “कुछ साल पहले, दशहरे के लिए 100 पुतले बनाता था. इस बार मैंने सिर्फ 21 पुतले बनाए हैं. पुतले बनाने में ना तो पहले जैसा मुनाफा है और न ही मांग है. लिहाजा मेरे पास कोई वजह नहीं है कि मैं ज्यादा पुतले बनाऊं.” हरियाणा के पानीपत में टैक्सी चलाने वाले पाल को इस बात का संतोष है कि वह कुछ पैसा कमा लेंगे जिससे वह अपने घर का रंग-रोगन करा पाएंगे .
उन्होंने कहा, “ महामारी के दौरान जो स्थिति थी, उससे हालात काफी बेहतर हैं. उस वक्त मैं अयोध्या भेजे जाने के लिए बनाए गए कुछ पुतलों के अलावा मुश्किल से कोई पुतला बेच सका था. लेकिन बिक्री और मांग उतनी नहीं है कि मैं खुश हो सकूं.”
पूछने के बाद नहीं करा रहे बुकिंग
वहीं, पुतला बनाने वाले एक अन्य कारीगर महिंद्र कुमार ने कहा, “ मार्केट का कुछ पता नहीं है इस साल . फिर उत्सव या पटाखों पर प्रतिबंध का भी डर है, इसलिए ज्यादातर लोगों ने सोचा कि कम पुतले तैयार करना बेहतर है, क्योंकि हम अब नुकसान सहन नहीं कर सकते हैं.”
दिल्ली में आयुर्वेदिक दवाएं बेचने वाली एक दुकान में काम करने वाले कुमार ने कहा कि कई लोगों ने उनसे पूछताछ तो की, लेकिन बुकिंग नहीं कराई. कई कारीगर राजस्थान, हरियाणा और बिहार के दिहाड़ी मजदूर हैं, जो राजधानी में पैसे कमाने के लिए आते हैं. कई का कहना है कि वे इस साल 8-10 हजार रुपये से ज्यादा नहीं कमा पाएंगे.
देश ही नहीं, विदेश से भी आते हैं ऑर्डर
तितारपुर के कारीगर नवीन ने बताया कि बड़ी संख्या में लोग रावण के पुतले बुक करने के लिए वापस आ रहे हैं. कोविड के कारण, पिछले कुछ वर्षों में व्यवसाय इतना अच्छा नहीं था, लेकिन अब चीजें बेहतर हो रही हैं और ग्राहक वापस आ गए हैं. हमें भारत के बाहर से भी ऑर्डर मिलते हैं. हम पहले ही ऑस्ट्रेलिया को रावण पहुंचा चुके हैं, इसकी भारी मांग थी. डिलीवरी के लिए ग्राहकों को सभी इंतजाम खुद करने होंगे. इन मूर्तियों को बनाने में हमें आमतौर पर दो महीने लगते हैं.
वहीं, एक अन्य मूर्तिकार सोनू ने बताया कि इस साल मैंने जून में एक खरीदार द्वारा ऑस्ट्रेलिया से विशेष मांग पर रावण की मूर्ति बनाई, जिसे मुंबई से जहाज के माध्यम से ले जाया गया. हमें आमतौर पर दशहरे के दौरान दुनिया भर से ऑर्डर मिलते हैं.
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