...तो आप भी बन सकते हैं ‘कोलंबस’, कर सकते हैं 'क्रेज़ी यात्रा'
सैर-सपाटा करने वालों के लिए ही है 'क्रेजी यात्रा'
तड़प बहुत तमीज की चीज है जनाब। तड़प ना होती, तो कोई अंबानी न होते, न होते बिड़ला या अडाणी... खाने-पीने-रहने से इतर एक और तड़प होती, घूमने की तड़प। दुनिया देखने की तड़प। देखने-घूमने में एडवेंचर का तड़का लग जाए, तो फिर बात ही क्या। घुमक्कड़ी के दीवानों की इसी तड़प को दूर करता है Crazy Yatra..
क्रेजी यात्रा एक शुरुआत है जो लोगों के एडवेंचर की जरुरतों को पूरा करती है। यात्रा क्षेत्र में शुरुआत करने वाली दूसरी कंपनियों की तरह क्रेजी यात्रा सामान्य पर्यटन स्थलों के लिए पैकेज ट्रिप का आयोजन नहीं करती है। इसके उलट ये उन जगहों के लिए पैकेज ट्रिप आयोजित करती है, जहां अब तक कोई गया ही नहीं है।
CISCO के दो कर्मचारियों, अजय पीवी और सनथ अडिगा ने क्रेज़ी यात्रा की स्थापना की थी। घूमने की चाहत दोनों को एकसाथ लेकर आई।
वो कहते हैं, ‘वैसे तो यात्रा उद्योग कई दशकों से चल रहा है, लेकिन इस क्षेत्र में नया कम ही हुआ है। लोग घूमने के उबाऊ कार्यक्रम और ट्रिप के दौरान स्कूली बच्चों की तरह निगरानी करते टूर गाइड से ऊब चुके हैं। इस क्षेत्र में कुछ रोचक, साहसी करने की जरूरत है, जिसमें प्रकृति और नई जगहों की खोज बराबर-बराबर शामिल हों। संस्कृति की महक, चाहे वो स्थानीय पकवान हो, भाषा हो, परिधान हो, उत्सव हो या फिर धार्मिक स्थल, सब अपना महत्व खोते जा रहे हैं।
ये वो मुद्दे हैं, जिन पर हम अपनी शुरुआती कोशिश में ध्यान केंद्रित करने जा रहे थे।’ अजय और सनथ का उद्यमी बनना शायद किस्मत में था। दोनों कॉलेज में उद्यमी प्रकोष्ठ के मुखिया रह चुके थे और दोनों कॉलेज में उद्यमी संस्कृति को लागू कराने के लिए काफी मेहनत भी कर चुके थे। कॉलेज में पढ़ाई के दौरान ही इवेंट्स ऑर्गनाइज करने और लोगों से बातचीत के दौरान दोनों को क्रेजी यात्रा का आइडिया आया। कॉलेज के बाद दोनों ने CISCO ज्वाइन किया और यहीं दोनों सूचना-तकनीकी क्षेत्र की जिंदगी की एकरुपता से रू-ब-रू हुए। तभी दोनों ने एडवेंचर-आधारित यात्रा पर काम करने की सोची और लोगों को सप्ताहांत में घूमने की सुविधा मुहैया कराने का तय किया। दोनों के देश के कोने-कोने में घूमने का अनुभव इस काम में काफी मददगार साबित हुआ।
अजय ने बताया, ‘हमने कई ट्रेवल एजेंसी/ट्रिप प्लानर्स को देखा, जो अपने उबाऊ और एक जैसे घूमने के कार्यक्रम से यात्रा के सुख को ही खत्म कर रहे थे। बैंगलोर जैसे शहर में रहने वाले युवा शानदार और दीवाना बनाने वाले सप्ताहांत से वंचित रहे हैं, जबकि पांच दिनों तक गधों की तरह मेहनत करने के बाद तो इनका मस्ती भरा दो दिन तो इनका हक बनता है। यात्रा कार्यक्रमों में एडवेंचर, रोचक एक्टिविटी, संस्कृति और पागलपन सब गायब थे और हम इन्हीं सब चीजों को यात्रा कार्यक्रमों में शामिल करना चाहते थे।’
ये क्रेज़ी यात्रा क्या है?
प्रत्येक यात्रा के लिए उनकी टीम विभिन्न पर्यटन स्थलों पर जाती है और उस जगह का अच्छे से सर्वेक्षण करती है। एक बार जब जगह का सर्वेक्षण हो जाता है और यात्रा की दूसरी बारीकियां पूरी कर ली जाती हैं, तो एक वैकल्पिक व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए यात्रा पैकेज का एलान किया जाता है। प्रत्येक यात्रा में सुविधा के मुताबिक 20-30 लोग शामिल होते हैं।
अजय का कहना है, ‘ट्रिप पर आपके लिए ऐसी कई रोचक चीजें होंगी, जिन्हें आप संजोकर लौटेंगे। यात्रा पर जाने से पहले यात्री अपना बटुआ घर पर ही रख सकते हैं क्योंकि टूर पैकेज के तहत सारे खर्च शामिल होते हैं और उन्हें किसी बात की चिंता करने की जरूरत नहीं होती है, उन्हें बस यात्रा का लुत्फ उठाने पर ध्यान लगाना होता है, क्योंकि बाकी सुविधाओं के लिए हम उनके साथ होते हैं।’
आय का बड़ा हिस्सा सहयोगियों के साथ बड़ी संख्या में की जाने वाली बुकिंग से आता है। यात्रा पर 800 रुपये से 8000 रुपये तक का खर्च आता है और यात्रा खर्च जगह और सुविधाओं पर आधारित होता है। सनथ का कहना है, ‘चूंकि हमारी ओर से दिया जाने वाला टूर पैकेज का खर्च किसी व्यक्तिगत तौर पर घूमने जाने पर होने वाले खर्च से काफी कम होता है, ऐसे में ये दोनों के लिए फायदे का सौदा होता है। इनके अलावा हम टी-शर्ट, कैप, कीड़ों-मकोड़ों से सुरक्षित रखने वाली जुराबें जैसी कारोबारी चीजें भी बेचते हैं।’
चुनौतियां
नया काम शुरू करने से पहले इनके सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने घरवालों को समझाना था। इन्होंने इस काम को शुरू करने के बाद भी अपनी नौकरी नहीं छोड़ी थी, और ये एक बड़ी वजह रही कि इनके घरवाले इनकी बात मान गए।
दूसरी मुश्किल इनके सामने तब आई, जब इन्होंने अपना पहला यात्रा कार्यक्रम तय किया। इसमें इन्हें बहुत बुरी तरह नाकामी मिली क्योंकि इनके ट्रिप पर जाने के लिए एक भी शख्स सामने नहीं आया। लेकिन जल्दी ही दोनों ने अपनी नाकामी से सीख लिया और अपनी मार्केटिंग क्षमता मजबूत की। उसके बाद से अच्छे नतीजे रहे हैं।
इनके लिए नियमित रूप से नौकरी करना और फिर इस नए काम को भी समानांतर रूप से करना एक बड़ा मुद्दा था। हालांकि दोनों काम को संभालना और बनाए रखना मुश्किल था, लेकिन दोनों ने समय के साथ दोनों काम को साथ-साथ करने में महारथ हासिल कर ली। बकौल अजय, ‘लाख व्यस्त रहने के बावजूद, आज हमारे पास अपने लिए काफी वक्त होता है।’
यह उद्यम पूरी तरह से अपने लिए मददगार है। फिलहाल, इनकी टीम में दो स्वयंसेवियों के साथ पांच सदस्य हैं।
ये बातें गांठ बांध लें
1) सिर्फ कुछ नया करने के लिए आप अपनी नौकरी मत छोड़ें। आप बाद में पछताएंगे। हां, दोनों काम को एक साथ करने में आपको मुश्किलें तो आएंगी और इसके लिए आपको कई त्याग भी करने होंगे। लेकिन ये फायदे का सौदा होगा।
2) अपनी किताबी ज्ञान पर अति-आत्मविश्वास न करें और न ही इसे व्यवहारिक रूप से दोहराने की कल्पना करें। आपको सच्चाई का पता तभी चलेगा जब आप उस काम को खुद करेंगे।
3) कारोबार का मतलब वो है कि ग्राहक क्या चाहते हैं, वो नहीं कि आप ग्राहक को क्या बेचना चाहते हैं। ग्राहकों के दिमाग से खेलें। उनकी जरूरत को समझें। बाजार की जरूरत के मुताबिक उन्हें बेचें – बाजार के खालीपन को परखें और उसे भरने की कोशिश करें।