क्या है वेब और मोबाइल कंपनियों की कमाई का राज़, अमल करें अंजाम मिलेगा
धमाकेदार रेवेन्यू मॉडल...
इंटरनेट कंपनियों के बारे में सोचिए। अब इन कंपनियों की तादाद और उनकी सेवाओं के बारे में सोचिए जिन्हें आप रोजाना इस्तेमाल करते हैं। आम तौर पर गूगल, फेसबुक, ट्विटर, लिंकेडइन, क़ोरा, विकिपीडिया आपके दिमाग में आएंगे. हमारे पास इन दिनों करीब करीब तत्काल सूचनाओं का खजाना उपलब्ध है। इन सूचनाओं तक पहुंच के अलावा भी आप फ्री में वर्डप्रेस या ब्लॉगर पर वेबसाइट बना सकते हैं, गूगल प्ले स्टोर और आईट्यून से फ्री में मोबाइल एप डाउनलोड कर सकते हैं, यूट्यूब पर फ्री में वीडियो देख सकते हैं, क्विकर और क्रेग्सलिस्ट जैसी साइट पर फ्री में क्लासीफाइड ऐड पोस्ट कर सकते हैं।ऐडवर्टाइजिंग पैसा बनाने के सबसे पुराने स्रोतों में से एक हैं और लगातार विकास कर रहा है। इंटरनेट यूजर्स के पास ऐड-ब्लॉकिंग टूल तक पहुंच होती है, फिर भी ये इंडस्ट्री कॉम्पेक्स और क्रिएटिव मेथड्स के जरिये प्रासंगिक बनी हुई है।
हालांकि इनमें से कुछ सेवाएं फ्री में मिलती है, मगर ये भी किसी से छिपा नहीं है कि इनमें से ज्यादातर बहुत ज्यादा प्रॉफिट कमा रही हैं। मगर ये पैसा आता कहां से हैं? जब आप रेवेन्यू मॉडल के बारे में सोचते हैं तो तुरंत ऐडवर्टाइजिंग दिमाग में आता है। हां, ऐडवर्टाइजिंग इनमें में तमाम साइट्स के रेवेन्यू का एक बड़ा स्रोत है। मगर इसके अलावा कई दूसरे मॉडल्स भी हैं। यहां हम सिर्फ आपके लिए रेवेन्यू मॉडल्स की विस्तृत सूची लेकर आए हैं।
1. ऐडवर्टाइजिंग
• डिस्प्ले ऐड्स- जैसे याहू
• सर्च ऐड्स- जैसे गूगल
• टेक्स्ट ऐड्स- जैसे गूगल, फेसबुक
• वीडियो ऐड्स- जैसे यू-ट्यूब
• ऑडियो ऐड्स- जैसे सावन
• प्रमोटेड कन्टेंट- जैसे ट्विटर, फेसबुक
• पेड कंटेंट प्रमोशन
• रिक्रुटमेंट ऐड्स- जैसे लिंकेडइन
• क्लासिफाइड- जैसे जस्टडायल, क्विकर
• फीचर्ड लिस्टिंग- जैसे जोमैटो, कॉमनफ्लोर
• ईमेल ऐड्स- जैसे याहू, गूगल
• लोकेशन बेस्ड ऑफर्स- जैसे फोरस्क्वॉयर
2. फ्रीमियम मॉडल
ये संभवतः वेब सर्विस वालों की ओर से यूज किये जाने वाला सबसे कॉमन मॉडल है। इसके पीछे आइडिया ये है कि आप बहुत सारे कस्टमर्स को बेसिक फ्री प्रोडक्ट बेचें मगर प्रीमियम फीचर्स को सिर्फ पे करने वाले कस्टमर्स के लिए सुरक्षित रखें। बड़ी तादाद में SaaS प्रोडक्ट इस मॉडल का इस्तेमाल करते हैं। उदाहरण के तौर पर, ड्रॉपबॉक्स 2 जीबी तक का फ्री क्लाउड डेटा स्टोरेज देता है। लेकिन अगर कोई ज्यादा स्पेस चाहता है तो उसे इसके लिए पे करना पड़ेगा।
इसके अलावा एडोब फ्लैश, इवरमोट, गूगल डॉक्स/ड्राइव, लिंकेडइन, प्रेज़ी, स्लाइडशेयर, स्काइप, वर्डप्रेस और फार्मविले, एंग्री बर्ड्स जैसे तमाम मोबाइल गेम्स भी इस मॉडल का इस्तेमाल करते हैं।
3. ई-कॉमर्स
मॉल्स और हाई स्ट्रीट स्टोर वाले परंपरागत रिटेल की दुनिया 90 के दशक में अमेजॉन जैसी कंपनियों के उदय के साथ ही हमेशा के लिए बदल गई। क्योंकि वे महंगे रियल एस्टेट खर्च को बचा लेते हैं जिससे वो इन स्टोर्स के मुकाबले कम कीमत ऑफर करते हैं।
ई-कॉमर्स के जरिये सेलिंग में इन्हें शामिल किया जा सकता है:
• रिटेलिंग- जैसे माइंत्रा
• मार्केटप्लेस- जैसे स्नैपडील
• शेयरिंग इकोनॉमृ जैसे AirBnB
• एग्रिगेटर्स- जैसे टैक्सी फॉर स्योर
• ग्रुप बाइंग- जैसे ग्रुपऑन
• डिजिटल गुड्स/डाउनलोड्स- जैसे आईट्यून
• वर्चुअल गुड्स- जैसे ज़िंगा
• पे व्हाट यू वांट- जैसे इंस्टामोजो (ऑप्शनल)
• ऑक्शन कॉमर्स- जैसे ईबे
• क्राउडसोर्स्ड सर्विसेज- जैसे ईलांस, ओडेस्क
4. एफ्लिएट मार्केटिंग
इस मॉडल का इस्तेमाल ज्यादातर हाई-ट्रैफिक ब्लॉग करते हैं। ये एक ऐसा मॉडल है जहां पब्लिशर ऐसे एफ्लिएट प्रोग्राम के लिए साइन-अप करते हैं जो सर्विस/कंटेंट से जुड़ा हुआ हो और यूजर्स को एफ्लिएट्स/ऐडवर्टाइजर के कस्टमर में बदलने में सहायक होता है।
ज्यादातर मामलों में पब्लिशर तब कमीशन कमाता है जब उनके ब्लॉग पर कोई यूजर किसी लिंग को फॉले करते हुए किसी दूसरे साइट पर जाता है।
एक हालिया उदाहरण ये है कि कई जाने-माने ब्लॉगर्स ने मोटो जी के रिव्यू को कमीशन के लिए फ्लिपकार्ट से लिंक किया जो इसे बेचने वाली इकलौती साइट थी।
5. सब्सक्रिप्शन मॉडल
न्यूजपेपर्स, जिम, मैगजीन्स- ये सभी सब्सक्रिप्शन मॉडल का इस्तेमाल करती हैं। इसलिए ये काफी समय से अस्तित्व में हैं।
डिजिटल क्षेत्र में सॉफ्टवेयर जो कभी लाइसेंसिंग मॉडल पर चलते थे, धीरे-धीरे सब्सक्रिप्शन मॉडल की ओर बढ़ते गए. आम तौर पर अनलिमिटेड यूजेज का ऑफर दिया जाता है मगर कुछ में एक निश्चित मात्रा के बाद ऊंचे रेट पर चार्ज किया जाता है।
कुछ अलग-अलग तरह के सब्सक्रिप्शन सब-मॉडल्स:
• सॉफ्टवेयर ऐज अ सर्विस (SaaS)- जैसे फ्रेशडेस्क
• सर्विस ऐज अ सर्विस- जैसे पेयू
• कंटेंट ऐज अ सर्विस
• इंफ्रास्ट्रक्टर/प्लेटफॉर्म ऐज अ सर्विस- जैसे एडब्लूएस, एज्यूर
• मेंबरशिप सर्विस- जैसे अमेजॉन प्राइम
• सपोर्ट एंड मैंटिनेंस- जैसे रेड हैट
• पेवॉल- जैसे एफटी डॉट कॉम, एनवाई टाइम्स
6. लाइसेंसिंग
सॉफ्यवेयर कंपनियों के बीच रेवेन्यू का ये बेहद कॉमन मॉडल सॉफ्टवेयर ऐज अ सर्विस जैसे सब्सक्रिप्शन मॉडल्स की लोकप्रियता की वजह से अब अपनी चमक खोता जा रहा है।
लाइसेंसिंग मॉडल का इस्तेमाल इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी यानी पेटेंट्स, कॉपीराइटस, ट्रेडमार्क वगैरह में होता है। इस तरह के लाइसेंस आमतौर पर समय, टेरीटरी, प्रोडक्ट के प्रकार, मात्रा आदि में सीमित होता है। इसका दूसरा प्रकार सर्टिफिकेशन (प्रणाणन) है जैसे McAfee SECURE ट्रस्टमार्क का इस्तेमाल इंटरनेट वेबसाइट्स के लिए होता है। लाइसेंसिंग मॉडल के कुछ उदाहरण नीचे दिए गए हैं-
• पर डिवाइस/ सर्वर लाइसेंस- जैसे माइक्रोसॉफ्ट के प्रोडक्ट्स
• पर अप्लिकेशन इंस्टांस- जैसे एडोब फोटोशॉप
• पर साइट लाइसेंस- जैसे इंटरनल इंफ्रास्ट्रक्टर पर प्राइवेट क्लाउड
• पेटेंट लाइसेंसिंग- जैसे क्वैलकॉम
7. डेटा की बिक्री
क्या आपने कभी ये फ्रेज सुना है –“अगर आप किसी प्रोडक्ट के लिए पे नहीं कर रही हैं तो आप कस्टमर नहीं हैं। आप खुद एक प्रोडक्ट हैं जिन्हें बेचा जा रहा है।”
डिजिटल एज में उच्च स्तर का एक्सक्लुसिव डेटा बहुत मूल्यवान होता है। कई कंपनियां पोटेंशियल कस्टमर्स के लुभाती हैं और उन्हें किसी थर्ड पार्टी को बेच देती हैं।
आपको गूगल, ट्विटर और फेसबुक जैसी सर्विस के लिए पे नहीं करना पड़ता। मगर वो बड़ी मात्रा में आपसे और आप जैसे करोड़ों लोगों का डेटा इकट्ठा करती हैं और इस डेटा के आधार पर आपको विज्ञापन दिखाती हैं। इसीलिए ‘आप कस्टमर नहीं हैं बल्कि खुद बेचे जाने वाला एक प्रोडक्ट हैं।’डेटा बिक्री मॉडल के कुछ उदाहरण---
• यूजर डेटा- जैसे लिंकेडइन
• सर्ट डेटा- जैसे गूगल
• बेंचमार्किंग सेवाएं- जैसे कॉमस्कोर
• मार्केट रिसर्च- जैसे मार्केट्स एंड मार्केंट्स
8. स्पॉन्सरशिप/डोनेशन
बहुत सारी सेवाएं सरकारी संगठनों की तरफ से स्पॉन्सर्ड होती हैं और ये बड़ी मात्रा में फंड देती हैं। वैसे ही कुछ गैरसरकारी संगठनों की तरफ से भी कुछ सेवाएं प्रायोजित होती हैं। उदाहरण के तौर पर, खान एकेडमी को गेट्स फाउंडेशन और गूगल की तरफ से फंड मिलता है।
फिर विकिपीडिया मॉडल हैं जहां यूजर्स से ही इच्छानुसार कम या बड़ी अमाउंट डोनेट करने को कहा जाता है। कई सारे ब्राउजर एक्सटेंशन और वल्डप्रेस प्लगइन्स आदि भी ये रास्ता अपनाते हैं।
9. बिल्ड टू सेल (गूगल, फेसबुक और दूसरों के लिए)
ये रेवेन्यू का कोई बेहतर मॉडल नहीं है। लेकिन कई कंपनियां ये मॉडल अपनाती हैं और आखिर में किसी बड़ी कंपनी के हाथों बिक जाती हैं। बड़ी कंपनियां इनका अधिग्रहण कर लेती हैं।
10. मोबाइल एंड गेमिंग रेवेन्यू मॉडल्स
• पेड एप डाउनलोड्स- जैसे व्हाटएप
• इन-एप परचेज- जैसे कैंडी क्रश सागा, टेंपल रन
• इन-एप सब्सक्रिप्शन- जैसे एनवाई टाइम एप
• एडवर्टाइजिंग- जैसे फ्लरी
• ट्रांजैक्शन- जैसे एयरटेल मनी
• फ्रीमियम- जैसे जिंगा
• सब्सक्रिप्शन- जैसे वर्ल्ड ऑफ वारक्राफ्ट
• प्रीमियम- जैसे एक्सबॉक्स गेम्स
• डाउनलोड होने वाले कंटेंट- जैसे कॉल ऑफ ड्यूटी
• ऐड सपोर्टेड