देसी एटीट्यूड: खादी को प्रमोट करने के लिए इंजिनियर ने शुरू किया स्टार्टअप
तमिलनाडु एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से 2012 मं इन्वायरमेंट इंजिनियरिंग की पढ़ाई के बाद वे अन्ना के लोकपाल अभियान से जुड़ गए थे. वे किरण बेदी के साथ जुड़कर काम कर रहे थे।
इंजिनियरिंग खत्म करने के बाद सिद्धार्थ ने सिविल सर्विस के लिए भी तैयारी की, लेकिन तीन अटेंप्ट के बाद भी वे सफल नहीं हुए। उन्होंने लॉ की पढ़ाई में दाखिला ले लिया।
हालांकि उनका कोई उद्यमी बनने का सपना नहीं था, लेकिन फेसबुक पर फोटो डालने के बाद दोस्तों द्वारा आए रिस्पॉन्स से वे काफी प्रेरित हुए और बिजनेस स्टार्ट करने का फैसला लिया।
पेशे से एनवायरमेंटल इंजिनियर सिद्धार्थ मोहन ने स्वदेशी कपड़ों का ब्रैंड 'देसीट्यूड' शुरू किया है। वे खादी को नए कलेवर और अपीलिंग अवतार में पेश कर रहे हैं। स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में खादी की भी अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है। एक समय खादी के कपड़े पहनना शान माना जाता था, लेकिन अब खादी के कपड़े बहुत ज्यादा प्रचलन में नहीं हैं। सिर्फ कुछ खास मौकों पर ही खादी के कपड़े पहने जाते हैं। लेकिन खादी के कपड़ों को हर इंसान के लिए सामान्य बनाने का काम कर रहे हैं केरल के पलक्कड़ के रहने वाले सिद्धार्थ मोहन। वह बदलते वक्त के साथ खादी के मायने भी बदल रहे हैं।
26 साल के सिद्धार्थ ने इनवायरमेंटल साइंस में इंजिनियरिंग की है और अभी फिलहाल लॉ की पढ़ाई कर रहे हैं। वे काफी दिनों से खादी पहनते थे, लेकिन उन्हें ये नहीं पता था कि खादी डेनिम जैसी भी कोई चीज होती है। अप्रैल में उन्होंने अपनी मां से 30,000 रुपये उधार लेकर उन्होंने खादी डेनिम का ब्रैंड 'देसीट्यूड' स्टार्ट किया। सिद्धार्थ बताते हैं कि यह 2011 की बात थी। दिल्ली में अन्ना हजारे भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन चला रहे थे। उसी दौरान सिद्धार्थ दिल्ली गए हुए थे। उन्हें अन्ना आंदोलन में गांधी और खादी की बातें सुनने को मिलीं जिससे वे काफी प्रभावित हुए।
इसके बाद वे मुंबई गए और वहां उन्होंने एक खादी भंडार में खादी डेनिम की प्रदर्शनी देखी। इसके बाद उस प्रदर्शनी वाले संगठन के जरिए सिद्धार्थ ने इस डेनिम के बारे में काफी सारी जानकारी इकट्ठा की। वहां से वे खादी डेनिम के कपड़े लेकर आए और किसी लोकल टेलर से सिलवाकर अपने दोस्तों को दिखाया। उनके दोस्तों को सिद्धार्थ का आईडिया काफी पसंद आया और उनकी तारीफ भी हुई। वह बताते हैं कि अभी कई सारे लोग खादी-डेनिम के बारे में जानते ही नहीं हैं। इसलिए वे डेनिम खादी को देखकर चौंक जाते हैं।
तमिलनाडु एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से 2012 मं इन्वायरमेंट इंजिनियरिंग की पढ़ाई के बाद वे अन्ना के लोकपाल अभियान से जुड़ गए थे. वे किरण बेदी के साथ जुड़कर काम कर रहे थे। इसी दौरान दिल्ली में वे रोज राजघाट जाते थे। इसी दौरान वे गांधीवाद के काफी करीब आए। इंजिनियरिंग खत्म करने के बाद सिद्धार्थ ने सिविल सर्विस के लिए भी तैयारी की, लेकिन तीन अटेंप्ट के बाद भी वे सफल नहीं हुए। उन्होंने लॉ की पढ़ाई में दाखिला ले लिया। क्योंकि उन्हें लगता था कि वकालत करने के साथ ही वह समाज के जरूरतमंदों की मदद कर पाएंगे और लोगों से मिल भी पाएंगे। उन्होंने इस दरम्यान एक वेबसाइट के लिए फ्रीलांस के तौर पर लिखा भी। हालांकि ये सब करते हुए सिद्धार्थ के मन में खादी के बारे में प्लानिंग चलती ही रहती थी।
पंरपरागत खादी को पहनने में दो तरह की समस्याएं आती हैं। एक तो उन्हें मनेटेन करना मुश्किल होता है और दूसरा उसकी डिजाइन ओल्ड फैशन होती है। खादी डेनिम में दोनों समस्याओं का समाधान हो जाता है। ये डेनिम हाथ से कताई किए गए धागों से बनी होती है। इसमें मानवीय श्रम की झलक मिलती है और खास बात यह है कि इससे अधिक से अधिक लोगों को रोजगार भी मिलता है। यह डेनिम पूरी तरह से इको फ्रेंडली होता है। स्टार्ट अप की शुरुआत करने से पहले सिद्धार्थ ने अपने लिए कुछ डेनिम जींस बनवाई थीं। हालांकि उनका कोई उद्यमी बनने का सपना नहीं था, लेकिन फेसबुक पर फोटो डालने के बाद दोस्तों द्वारा आए रिस्पॉन्स से वे काफी प्रेरित हुए और बिजनेस स्टार्ट करने का फैसला लिया।
घरवालों से पैसे लेने के बाद वे मुंबई आ गए और यहां उन्होंने बिजनेस की शुरुआत की। वह कहते हैं कि बिजनेस को शुरू करने के लिए मुंबई एक सही जगह है। वह अपनी वेबसाइट के माध्यम से ऑनलाइन कपड़े बेचते हैं। वह अपने वेंचर से कपड़ा कातने वाले बुनकरों का खास ख्याल रखते हैं और अपनी सेल का 10 प्रतिशत हिस्सा अनाथालय की बच्चियों के लिए सैनिटरी नैपकिन पर खर्च कर देते हैं। वह बताते हैं कि अच्छी संख्या में लोग उनके कपड़े खरीद रहे हैं। इसके साथ ही अपने ब्रैंड के विज्ञापन के लिए उन्होंने परंपरागत मॉडल की बजाय काम करने वाले लोगों के साथ फोटोशूट किया। जिसकी काफी सराहना भी हुई। सिद्धार्थ पूरी लगन से 'खादी फॉर नेशन, खादी फॉर फैशन' सूत्र पर काम कर रहे हैं।
यह भी पढ़ें: दिव्यांग लोगों के लिए पहला डेटिंग एप 'इन्क्लोव'