जेल में रहकर पूरे देश में टॉप करने और गोल्ड मेडल पाने वाले 'अजीत' की अनोखी कहानी
गैरइरादतन हत्या के मामले में 10 वर्ष की सजा काट रहे कैदी ने डिप्लोमा इन टूरिज़्म स्टडीज में किया टाॅप...
वर्ष 2012 से वाराणसी की सेंट्रल जेल में सजा काट रहे अजीत कुमार सरोज ने प्राप्त किये 81 प्रतिशत अंक...
इसके अलावा एचआईवी और खाद्य एवं पोषण के विषयों में भी डिप्लोमा कर चुका है हासिल...
आपदा प्रबंधन, मानवाधिकार, एनजीओ मैनेजमेंट और खाद्य एवं पोषण में सर्टिफिकेट कोर्स भी सफलतापूर्वक कर चुका है पूरे ...
कमल जिस तरह कीचड़ में, उसी तरह भले इन्सां।
बुरी सोहबत से भी उठते हैं, लेकर के असर अच्छा।।
बीते दिनों वाराणसी के एक छात्र ने पत्राचार के माध्यम से पढ़ते हुए इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी (इग्नू) के टूरिज़्म मैनेजमेंट के डिप्लोमा कोर्स में पूरे देश के परीक्षार्थियों को पछाड़कर 81 प्रतिशत अंकों के साथ पूरे देश में अव्वल नंबर प्राप्त करने में सफलता पाई। अगस्त के महीने में वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय में आयोजित हुए इग्नू के 28वें दीक्षांत समारोह में इस छात्र को उसकी इस उपलब्धि के लिये गोल्ड मेडल देकर सम्मानित भी किया गया।
अब आपका परिचय करवाते हैं इस उपलब्धि को हासिल करने वाले छात्र से। इस 23 वर्षीय छात्र का नाम है अजीत कुमार सरोज और यह मूल रूप से उत्तर प्रदेश के जौनपुर के जलालपुर थानाक्षेत्र के चक्के गांव का रहने वाला है। अजीत के बारे में सबसे रोचक बात यह है कि उसने यह उपलब्धि वाराणसी सेंट्रल जेल में रहते हुए प्राप्त की है। गैर इरादतन हत्या के आरोप में 10 वर्षों की सजा भुगत रहे अजीत ने जेल की सलाखों के पीछे रहते हुए कड़ी मेहनत के बल पर इस मुकाम को पाया है।
वर्ष 2010 में अजीत कुमार के परिवार का जमीनी विवाद में अपने पड़ोसियों से झगड़ा हुआ था जिसमें एक व्यक्ति की जान चली गई थी। इसी मामले में वर्ष 2012 में अजीत को दस वर्ष के कारावास की सजा हुई थी। जिस समय उसे गिरफ्तार किया गया था वह बीएससी के प्रथम वर्ष का छात्र था। वाराणसी जेल में आने के बाद भी अजीत ने अपनी पढ़ाई जारी रखी और डिप्लोमा इन टूरिज़्म स्टडीज में दाखिला लेने से पहले वह एचआईवी और भोजन एवं पोषण के विषयों में भी डिप्लोमा हासिल कर चुका है। इसके अलावा अजीत आपदा प्रबंधन, मानवाधिकार, एनजीओ मैनेजमेंट और खाद्य एवं पोषण में सर्टिफिकेट कोर्स भी सफलतापूर्वक पूरे कर चुका है। गौरतलब बात यह है कि उसनें इन सभी विषयों में 65 प्रतिशत से अधिक अंक प्राप्त किये हैं। साथ ही अजीत इस समय बी.काॅम के अंतिम वर्ष की भी परीक्षा दे रहा है।
गोल्ड मेडल प्राप्त करते हुए आयोजित हुए समारोह में अजीत ने जो कुछ कहा वह वास्तव में दिल को छू लेने वाला था और साथ ही वह यह भी साबित करता था कि अगर आपके भीतर कुछ करने का जज्बा हो तो कोई भी कठिनाई आपका रास्ता नहीं रोक सकती। अजीत का कहना था,
‘‘जेल जाने के कारण मेरी पढ़ाई बीच में रुक गई लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी और जेल प्रशासन के सहयोग से इग्नू के माध्यम से अपनी पढ़ाई दोबारा प्रारंभ की। यह उन्हीं के सहयोग का नतीजा है कि मैं डिप्लोमा इन टूरिज़्म स्टडीज में गोल्ड मेडल हासिल करने में कामयाब रहा और मुझे सम्मानित किया जा रहा है।’’
अजीत को फैजाबाद के डा. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर जीसी जायसवाल ने उनका डिप्लोमा प्रदान किया।
वाराणसी की इग्नू शाखा के अंतर्गत 20 जिले आते हैं जिनके 6 हजार से भी अधिक छात्र अध्ययनरत हैं। इन छात्रों में अजीत वह पहले छात्र हैं जिन्होंने गोल्ड मेडल हासिल करने में सफलता पाई है। वाराणसी जेल के अधिकारियों का कहना है कि इससे पहले भी प्रदेश की जेलों में बंद कई कैदी इग्नू के विभिन्न पाठ्यक्रमों में दाखिला लेकर अच्छे नंबरों से पास होते आए हैं लेकिन ऐसा पहली बार हुआ कि किसी कैदी ने टाॅपर बनने में सफलता पाई हो और उसे गोल्ड मेडल मिला हो।
इस कोर्स को पूरा करने के बाद अजीत का कहना था कि
"वे अपने माथे पर लगे हत्या के कलंक को तो मिटा नहीं सकते लेकिन वे कुछ ऐसा करना चाहते थे जो औरों से कुछ अलग हो। मैं टूरिज़्म को लेकर एक पूरा मास्टर प्लान तैयार करना चाहता हूँ। इसके अलावा कोर्ट और सरकार देश की जेलों में बंद कैदियों की सहायता किस प्रकार कर सकती है मैं इस विषय पर भी एक किताब लिखना चाहता हूँ।’’
अजीत जेल में प्रतिदिन 6 घंटे अध्ययन करता है। इसके अलावा अजीत का कहना है कि जेलों में बंद प्रत्येक कैदी को पढ़ाई से जोड़ा जाना चाहिये ताकि वह अपराध के रास्ते को छोड़कर एक बेहतर इंसान बनने की ओर अग्रसर हो सके।
अजीत के पिता रामबचन सरोज अपने बेटे की इस उपलब्धि को लेकर काफी प्रसन्न दिखाई दिये लेकिन गर्व के साथ उन्हें अपने बेटे के जेल में बंद होने का गम भी है। योर स्टोरी से फोन पर हुई वार्ता में रामबचन कहते हैं,
‘‘मुझे अपने बेटे के गोल्ड मेडल प्राप्त करने पर काफी खुशी है लेकिन कानून के आगे सब मजबूर हैं। जेल जाते समय अजीत ने मुझे भरोसा दिलाया था कि वह ऐसा कुछ करेगा जिससे परिवार के माथे पर लगा यह दाग मिट सकेगा और अब उसने ऐसा करके दिखा दिया है।’’
अजीत ने अपनी सजा के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर रखी है और अगर उसे इस मामले में जमानत मिलती है तो वह बाहर आकर एमबीए करना चाहता है।
जेल में रहकर सजा काटने के साथ-साथ पढ़ाई करते हुए इस उपलब्धि को हासिल कर अजीत ने यह साबित कर दिया है जेल में आने के बाद भी अगर कोई एक बार ठान ले कि उसे कुछ अच्छा करके दिखाना है तो कोई भी चुनौती उसका रास्ता नहीं रोक सकती और वह एक अच्छा नागरिक बनकर दिखा सकता है।