मिसाल बने बजुर्ग: किसी ने अस्पताल बनाया, किसी ने कुंआ खोदा
जिंदगी ढलान पर आती है, बुढ़ापा थकाने लगता है लेकिन कई बुजुर्ग ऐसे भी हैं, जिनकी हिम्मत पर नौजवानी भी शर्मा जाती है। एक रिटायर्ड डॉक्टर ने तो अपने जीवन की पूरी कमाई लोगों के मुफ्त इलाज पर लगा दी है। एक बुजुर्ग को सरकार से भी मदद नहीं मिली तो प्यास बुझाने के लिए खुद ही कुंआ खोद डाला है।
डॉ चाड़क के जीवन के पन्ने पलटते हुए यह भी पता चला है कि जब सर्जरी में पीजी (एमएस) करने के लिए वह लंदन गए, उन्हें वहीं पर ऊंचे वेतन पर नौकरी मिल रही थी, लेकिन उन्होंने पैसा कमाने के बजाए अपने देश को प्राथमिकता दी।
जनगणना आंकड़ों के मुताबिक हमारे देश में वर्ष 2025 तक 60 से अधिक उम्र के लोगों की तादाद बढ़कर 17.3 करोड़ होने का अनुमान है। उनमें करीब 1.5 करोड़ बुजुर्ग व्यक्ति अकेले जीवन यापन कर रहे हैं। भारत में आबादी का समीकरण तेजी से बदल रहा है। ऐसे में बुढ़ापे की लाठी आईवीएचसीनियरकेयर, सिल्वर टॉकीज और समर्थ जैसी कंपनियां बन रही हैं। ये कंपनियां बुजुर्गों के लिए क्लब चलाने लगी हैं। व अकेले रहने वाले बुजुर्गों के शारीरिक, भावनात्मक, मानसिक और सामाजिक बेहतरी का खयाल रखती हैं। अकेलेपन से ज्यादातर अवसाद और अन्य मानसिक विकृतियां पैदा होती हैं, जिससे स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित होता है लेकिन इसी वक्त में तमाम उम्रदराज लोग ऐसे भी हैं, जो पूरे समाज के लिए मिसाल बन रहे हैं।
कहा तो जाता है कि बुढ़ापे में आदमी थकने लगता है लेकिन मध्यप्रदेश के गांव हदुआ निवासी सत्तर वर्षीय सीताराम राजपूत ने वह कर दिखाया है, जिसे देख जवानी भी शर्मा जाए। इस गांव में लंबे समय से पानी की गंभीर समस्या रही है। सरकार ने एक न सुनी तो सीताराम ने गांव में खुद अकेले दम पर कुआं खोद डाला। ढाई साल में 33 फीट कुंआ खुदा तो अंदर से पानी निकलते देखकर पूरा गांव खुशी से झूम उठा। जब सीताराम ने कुंआ खोदना शुरू किया था तो उनके परिवार ने भी उनका साथ नहीं दिया। गांव वाले भी मजाक बनाते रहे लेकिन अब उनकी मेहनत से गांव की प्यास बुझ रही है। अब तो उन पर उनका गांव ही नहीं, पूरे इलाके के लोग नाज करते हैं।
एक ऐसी ही मिसाल हैं इंडियन स्पाइनल इंस्टीट्यूट, दिल्ली में सर्जरी विभाग के अध्यक्ष डॉ. के एस चाड़क, जिन्होंने जम्मू की बिश्नाह तहसील स्थित अपने पैतृक गांव नौग्रां में अपनी जमीन पर बड़ा सा चैरिटी अस्पताल खोल दिया है, जहां वह खुद और देश-विदेश के विशेषज्ञ डॉक्टर गरीबों का मुफ्त इलाज कर रहे हैं। जबकि डॉ. चाड़क खुद दिल्ली में एक किराए के मकान में रहते हैं। उन्होंने अपनी नौकरी की कमाई से अपना आलीशान घर बनवाकर आराम से बुढ़ापा बिताने की बजाए जनसेवा का रास्ता चुना है। आज उनका अपना कोई मकान नहीं है। जीवनभर की जमा पूंजी वह अपनी पुश्तैनी जमीन पर बनवाए चैरिटी हॉस्पिटल पर खर्च कर चुके हैं। अस्पताल पूरी तरह आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं से लैस है।
जो मरीज सरकारी अस्पतालों से अन्यत्र रेफर कर दिए जाते हैं, उनका यहां मुफ्त इलाज हो जाता है। अब तो देश-विदेश के कई एक मित्र चिकित्सक भी डॉ चाड़क की इस मुहिम में जुड़ गए हैं। डॉ चाड़क के जीवन के पन्ने पलटते हुए यह भी पता चला है कि जब सर्जरी में पीजी (एमएस) करने के लिए वह लंदन गए, उन्हें वहीं पर ऊंचे वेतन पर नौकरी मिल रही थी, लेकिन उन्होंने पैसा कमाने के बजाए अपने देश को प्राथमिकता दी। वह दिल्ली के ईएसआइ अस्पताल से सर्जरी के एचओडी पद से सेवानिवृत्त हो चुके हैं। इस समय वह दिल्ली में इंडियन स्पाइनल इंस्टीट्यूट में सर्जरी विभाग के एचओडी हैं।
जिनकी हिम्मत पर कोई नौजवान भी झेप जाए, ऐसी ही एक मिसाल बन चुकी वृद्धा हैं मेक्सिको की 96 वर्षीय गुआडालुपे पैलासिओस। बुढ़ापे की वजह से उनके चेहरे पर झुर्रियां, सफेद बाल पसर चुके हैं लेकिन उनका इरादा बूढ़ा नहीं हुआ है। इस उम्र में भी वह स्कूल जाने का सपना पूरा कर रही हैं। पढ़ाई को लेकर उनके चेहरे पर उत्साह साफ दिखाई देता है। उम्र के इस पड़ाव में वह अपने 100वें जन्मदिन से पहले हाईस्कूल की पढ़ाई पूरा करना चाहती हैं। यही उनका सबसे बड़ा सपना है। कभी उन्होंने बाजार में मुर्गियां बेचने का काम किया, उनकी दो बार शादी हुई, छह बच्चे को जन्म दिया, पूरा जीवन उन्होंने अपने परिवार को दे दिया लेकिन कभी पढ़ना और लिखना नहीं सीखा।
अब, जबकि उन्हें मौका मिला है तो अपने से आठ दशक छोटे स्टूडेंट्स के साथ पढ़ाई करने का फैसला लिया है और रेगुलर पब्लिक स्कूल में किताबें पलट रही हैं। वैसे हमारे देश में बेसहारा बुजुर्गों के लिए पेंशन के अलावा और भी सेवाएं अब मिलने लगी हैं। ऐसे माहौल को मद्देनजर रखते हुए आईवीएचसीनियरकेयर, सिल्वर टॉकीज और समर्थ मदद मुहैया करा रही हैं। ऐसी कंपनियों में से कुछ रक्षा पृष्ठभूमि की भी हैं। ये कंपनियां वरिष्ठ नागरिकों को सामाजिक रूप से सक्रिय रखने के लिए समाज से जुड़ाव वाली सेवाएं मुहैया करा रही हैं। इनमें धार्मिक स्थलों का दौरा, फिल्म दिखाना और रोचक स्थानीय या बाहरी स्थानों का दौरा आदि शामिल हैं। ये कंपनियां उन्हें कुछ सामान्य सेवाएं भी मुहैया करा रही हैं, जैसे बुजुर्गों को उनके संबंधियों के घर ले जाना या उन्हें परिवार की शादी में शरीक होने में मदद करना आदि। समर्थ की तो मोबाइल ऐप और तिमाही पत्रिका है। यह साल भर बुजुर्गों के लिए कार्यक्रमों का आयोजन करती है।
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