चश्मे में स्पाई कैमरा लगाकर 100 से भी ज्यादा मॉलेस्टर्स को गिरफ्तार करा चुके हैं दीपेश
रेल-सुरक्षा कार्यकर्ता दीपेश टैंक ने एक महंगा स्पाई कैमरा खरीदकर महिलाओं के साथ ट्रेनों और भीड़भाड़ वाली जगहों पर होने वाले मॉलेस्टेशन को शूट करते हैं। दीपेश ये कैमरा अपने सनग्लासेज में लगाकर घूमते हैं।
दीपेश के मुताबिक, अब मैं ट्रेन पर यात्रा करते समय महिलाओं को इन दुर्व्यवहारों से हो रही परेशानियों को रिकॉर्ड करता हूं। मैं वीडियो को अधिकारियों के साथ साझा करता हूं ताकि वे समस्या की वास्तविक सीमा को जान सकें।
अपने दैनिक प्रवास के अलावा वह पश्चिमी, मेन और हार्बर लाइन्स पर भीड़ में छुपे बैठे मॉलेस्टर्स की फुटेज बनाने के लिए हर दिन सुबह और शाम एक घंटा खर्च करते हैं। उनके इस प्रयास से रेलवे पुलिस ने सैकड़ों बदमाशों को गिरफ्त में लिया है।
रेल-सुरक्षा कार्यकर्ता दीपेश टैंक ने एक महंगा स्पाई कैमरा खरीदकर महिलाओं के साथ ट्रेनों और भीड़भाड़ वाली जगहों पर होने वाले मॉलेस्टेशन को शूट करते हैं। दीपेश ये कैमरा अपने सनग्लासेज में लगाकर घूमते हैं। दीपेश के मुताबिक, अब मैं ट्रेन पर यात्रा करते समय महिलाओं को इन दुर्व्यवहारों से हो रही परेशानियों को रिकॉर्ड करता हूं। मैं वीडियो को अधिकारियों के साथ साझा करता हूं ताकि वे समस्या की वास्तविक सीमा को जान सकें। अपने दैनिक प्रवास के अलावा वह पश्चिमी, मेन और हार्बर लाइन्स पर भीड़ में छुपे बैठे मॉलेस्टर्स की फुटेज बनाने के लिए हर दिन सुबह और शाम एक घंटा खर्च करते हैं। उनके इस प्रयास से रेलवे पुलिस ने सैकड़ों बदमाशों को गिरफ्त में लिया है।
2013 में दीपेश टैंक ने महाराष्ट्र के मलाड रेलवे स्टेशन पर कुछ लफंगों को औरतों के साथ बहुत ही अभद्र व्यवहार करते देखा, वो बड़ी बेशर्मी से औरतों को छेड़ रहे थे। ये सब अपने सामने होता देख दीपेश का खून खौल उठा। लेकिन वो लोग बहुत ज्यादा थे और दीपेश अकेले थे। उस वक्त प्रतिरोध तो नहीं कर सके। वो नजदीकी पुलिस स्टेशन पर गए। वहां सब कुछ बताया। लेकिन किसी ने भी उनकी बातों और मामले की गंभीरता को नहीं समझा। रेलवे पुलिस की लाल फीताशाही और उदासीनता के कारण यौन उत्पीड़न के खिलाफ कोई गंभीर एक्शन नहीं लिया गया। "मामला हमारे अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है", "हम केवल महिला की शिकायत दर्ज कर सकते हैं", "चलो अच्छा हम शिकायत दर्ज कर भी लें, लेकिन हम गुंडों को कैसे ढूंढेंगे?", इन्हीं सब बहानों, कुतर्कों के बीच दीपेश जो मुद्दा उठाना चाह रहे तो वो दब गया।
दीपेश ने मुम्बई और बाकी के स्टेशनों पर जाकर देखा तो हर जगह महिलाओं के साथ बदसलूकी नजर आ रही थी। ये सब देखकर दीपेश बहुत विचलित हुए। रेलवे सुरक्षा एजेंसियों जीआरपी और आरपीएफ पर गुस्सा करने के बजाय, टैंक ने 'वॉर अगेन्स्ट रेलवे राउडीज' (डब्ल्यूएआरआर) बनाकर इन गुंडों को पकड़वाने और महिलाओं की मदद करने का फैसला किया। दिसंबर 2013 में, वार स्वयंसेवकों ने भीड़ का फायदा उठाकर महिलाओं को मॉलेस्ट करने वालों का वीडियो टेप बनाकर उनको पकड़वाने में अधिकारियों की मदद की। महिलाओं की सुरक्षा की खातिर उपनगरीय नेटवर्क पर यह पहला ऐसा समन्वयित प्रयास था।
वॉर के ये टीम कैसे काम कर रही थी, इस बारे में टैंक बताते हैं, वार के स्वयंसेवकों और सादे कपड़े में रेलवे पुलिस ने सुबह की भागमभाग के दौरान गोरेगांव और मालाड स्टेशनों पर लगातार निगरानी रखी। एक टीम ने छिपे हुए कैमरे के फुटेज पर नजर रखी, गाड़ियों पर गुंडों के विवरणों का उल्लेख किया और जल्दी से जानकारी दूसरी टीम को प्रतीक्षा कर रही थी, अगले स्टेशन पर संदिग्धों को पकड़ा जा रहा था। वॉर के समर्थन के साथ, रेलवे पुलिस ने पिछले कुछ सालों में 110 लफंगों को वहीं स्टेशन पर गिरफ्तार किया है। अधिकारियों ने महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दे पर भी लोगों जागृत किया है और वीडियो निगरानी के तहत अधिक से अधिक स्टेशनों को शामिल किया है। यहां तक कि कुछ महिलाओं के डिब्बों में अब कैमरे लग गए हैं।
पिछले एक साल में हालात निश्चित तौर पर बदल गए हैं। सुरक्षा उपायों पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है और स्टेशनों पर सुरक्षाकर्मियों की गश्त लगती रहती है। लेकिन कम अभियोजन पक्ष अभी भी बड़ी चिंता का मामला है। पकड़े गए अधिकांश पुरुषों को रिहा कर दिया गया है।
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