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अंतर्जालीय तरंगों पर थिरकता भारत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डिजिटल इंडिया कैंपेन की शुरूआत 21 जुलाई 2015 को की थी। आज दुनिया मुट्ठी में करने का स्वप्न साकार होता दिख रहा है। आश्चर्य है कि जो कभी कल्पना में भी शामिल नहीं हो सकते थे, वे फेसबुक, ट्विटर एवं इंस्टाग्राम पर मिल चुके होते हैं। ये हमारी नई दुनिया के नये पड़ोसी हैं। यदि फेसबुक कोई देश होता, तो ये तीसरा सबसे अधिक आबादी वाला और सबसे अधिक कनेक्टेड मुल्क होता। सूचना क्रांति के दौर में सब कुछ अंतर्जालीय तरंगों पर थिरक रहा है।

ये जादू नहीं हकीकत है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डिजिटल इंडिया ऐलान के चंद महीनों बाद ही देश में बड़े परिवर्तन दिखाई पड़ने लगे। 180 मिलियन नये बैंक खाते खुल गये। बेटियों पर ध्यान देने के लिए 'सेल्फी विद डॉटर' के लिए हरियाणा में पिता द्वारा की गई पहल अंतर्राष्ट्रीय आंदोलन बन गई और आज जिस गति से जनमानस डिजिटल प्रौद्योगिकी को अपना रहा है वो आयु, शिक्षा, भाषा एवं आज की हमारी रूढ़िवादी सोच को ललकार रहा है। डिजिटल गवर्नेस को भारत में नवीन लोक प्रबंधन के प्रभावशाली उपकरण के रूप में संचालित किया जा रहा है और डिजिटल इंडिया इसकी एक बड़ी खुराक बन रहा है।

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साल 2014, जब भारत में नरेंद्र मोदी युग की शुरूआत हुई, तो वो देश के इतिहास में डिडिटलनुमा समेकित परिवर्तन की पहली आहट थी। परिवर्तन की पहली करवट को लिखने वाला वह क्रातिंकारी वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डिजिटल इंडिया के इंकलाबी तसव्वुर के अमली शक्ल में नुमाया हुआ। 

डिजिटल इंडिया ने सशक्तिकरण एवं समावेशन का एक नया युग शुरू करते हुये, आशा एवं अवसर के बीच की दूरी को खत्म करने के लिये नेटवर्क एवं मोबाइल फोन की ताकत का उपयोग किया। संगठन से लेकर संचार तक, मनोरंजन से लेकर शिक्षा तक, दस्तावेजों के मुद्रण से लेकर उत्पादों के मुद्रण, और आज इंटरनेट तक, यह कम समय में की गई बहुत लंबी यात्रा है। डिजिटल इंडिया अभियान में ई-गवर्नेंस, इलेक्ट्रानिक निर्माण, साइबर सुरक्षा और वित्तीय समावेशन, बेहतर दूरसंचार सुविधाओं और तीव्रगामी इंटरनेट पर ध्यान केन्द्रित किया गया। अभियान का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था, 'मैं ऐसे डिजिटल भारत का सपना देखता हूं जहां हाई स्पीड डिजिटल हाइवे देश को एक करता है। इससे जुड़े 1.2 अरब लोग आविष्कारों को बढ़ावा दें, तकनीक इसकी गारंटी करेगा कि नागरिक और सरकार का संबंध भ्रष्ट नहीं होगा।'

दरअसल डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के बहुउद्देशीय कार्यक्रमों के अंतर्गत विभिन्न सरकारी विभागों को जनता से डिजिटली जोड़ने की कोशिश की जा रही है अर्थात बिना कागजी कार्यवाही किये इलेक्ट्रानिकली ये विभाग सीधे तौर पर आम जनता की समस्याओं पर काम करेंगे। हालांकि अभी बहुत काम करना बाकी है, लेकिन सकारात्मक परिणाम तेज़ी से दिखाई पड़ने लगे हैं।

गौरतलब है, कि जनवितरण प्रणाली की खामियों को दूर करने के मकसद से देश के करीब 97 फीसदी राशन कार्डों के डिजिटलीकरण का काम पूरा हो चुका है। इस प्रक्रिया के तहत अब तक करीब पौने चार करोड़ फर्जी राशन कार्ड खारिज किये गये हैं। मनरेगा में भी डिजिटाइजेशन से फर्जी पंजीकरण कम किये गये हैं। स्पष्ट है कि भ्रष्टाचार और सरकारी धन की बर्बादी पर नियंत्रण और पारदर्शिता के साथ लाभार्थियों तक योजनाओं का लाभ पहुंचाने में डिजिटलीकरण की प्रक्रिया सफल हो रही है। अब तो अदालतों ने स्वयं को डिजिटलाइज़्ड करने की आवश्यकता को व्यक्त किया है और सरकार ने भी अदालतों के डिजिटलाइजेशन के लिए 2,765 करोड़ रुपये को मंजूरी दी है।

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अब भूख लगी हो, या एसी कैब की जरूरत हो, क्लिक भर में सेवा आपके द्वार पर हाजिर है। इसी क्रम में आधार प्रमाणिकता द्वारा आनलाइन ही दस्तावेजों पर ई-हस्ताक्षर करना, डिजिटल इंडिया का महत्वपूर्ण कदम है।

90 के दशक में जब गांव की एक मात्र टीवी, जिस मेज पर रखी गई थी लोग उसके पीछे जा कर देख रहे थे कि क्या इसमें कोई आदमी बंद है। एक वो भी दौर था, एक आज का दौर है। देखिये आज हम कहां खड़े हैं। यह कल्पनातीत यात्रा अचंम्भित अवश्य करती है किंतु मानव के श्रम और पुरूषार्थ के पग को वक्त की छाती पर कभी न मिटने वाली छाप के रूप में दर्ज करती है।

आज दुनिया मुट्ठी में करने का स्वप्न साकार होता दिख रहा है। आश्चर्य है कि जो कभी कल्पना में भी शामिल नहीं हो सकते थे, वे फेसबुक, ट्विटर एवं इंस्टाग्राम पर मिल चुके होते हैं। ये हमारी नई दुनिया के नये पड़ोसी हैं। यदि फेसबुक कोई देश होता, तो ये तीसरा सबसे अधिक आबादी वाला और सबसे अधिक कनेक्टेड मुल्क होता। सूचना क्रांति के दौर में सब कुछ अंतर्जालीय तरंगों पर थिरक रहा है। आज गूगल ने शिक्षकों को कम रोब गांठने वाला तथा दादा-दादी / नाना-नानी को अधिक आलसी बना दिया है। ट्विटर ने हर किसी को रिपोर्टर बना दिया है। तब्दीली देखिये कि आज आप जाग रहे हैं या सो रहे हैं से कहीं अधिक ये मायने रखता है, कि आप ऑनलाइन हैं या अॉफ लाइन हैं।

प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए सेवाओं का डिजिटलीकरण पारदर्शिता, जिम्मेदारी और त्वरित बदलाव लाने में अहम है। सरकार ने पहले ही 'भारतीय नागरिक पहचान कार्ड' (आईसीआईसी) परियोजना के रूप में एक सही कदम उठाया है। इस केंद्रीय डेटाबेस में सभी नागरिकों से संबंधित सभी जानकारियां, जैसे जन्म तिथि प्रमाण-पत्र, शैक्षिक प्रमाण-पत्र, वोटर पहचान-पत्र, राशन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, पैन, पासपोर्ट, गैस, बिजली, टेलीफोन उपभोक्ता आईडी, बैंक खाता संख्या, बॉयोमीट्रिक्स, बीमा, वाहन पंजीकरण इत्यादि होनी चाहिए। सभी नागरिकों को एकल डिजिटल आईसीआईसी या एक नंबर दिया जाना चाहिए।

लोगों को यह नंबर याद रखना चाहिए। उस कार्ड या नंबर को सभी तरह की आवश्यकताओं, चाहे बच्चों का स्कूल में दाखिला हो, अस्पताल में भर्ती करने के समय, यातायात चौकियों, बीमा लेने के समय, रेल-हवाई टिकट, रंगीन टीवी खरीदने, के लिए अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए। आज वक्त आभासी (वर्चुअल वर्ल्ड ) और वास्तविक (रियल वर्ल्ड) विश्व के अंतर को समाप्त करने की रूपरेखा बुन रहा है शायद यह लौकिक और पारलौकिक जगत के एकाकाकर होने का रिहर्सल है, जो डिजिटल इंडिया के मंच पर नरेंद्र मोदी के निर्देशन में हमारे सामने हो रहा है। आशा है शो सफल होगा।

...लेकिन, ये राह नहीं आसान

जिस तरक्की से तकनीक ने जीवन में दखल देना शुरू किया है, उसी तेजी से जीवन के सफेद और स्याह रंग भी तकनीकी दुनिया में दाखिल हो रहे हैं। आदर्शों, मूल्यों और ज्ञान-विज्ञान की अथाह पूंजी के साथ-साथ मानवीय कुंठाएं और आपराधिक व्यवहार भी यहां गति पकड़ रहे हैं और जाहिर तौर पर इसका सबसे ज्यादा शिकार हो रही है आधी आबादी, बच्चे और वृद्ध। एक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था के शोध के अनुसार भारत में पिछले 10 वर्षों में (2005-15) साइबर अपराध के मामलों में 19 गुना बढ़ोतरी हुई है।

तकनीकी जिस तेजी से हमारी जिन्दगी के हर पहलू में दाखिल हुई है उसके बाद रियल और वर्चुअल वर्ल्ड एक-दूसरे के पूरक हो गए हैं। आज के तकनीकी युग में खासतौर पर युवा और बच्चे जितना रियल वर्ल्ड में नहीं रहते, उससे ज्यादा वर्चुअल या इमेजनरी (काल्पनिक) वर्ल्ड में वक्त गुजार रहे हैं और ये अवधि वक्त से साथ बढ़ती जा रही है। व्यवस्था ने भी तकनीकी को अपना लिया है। सब कुछ इंटरनेट की तरंगों की सड़क पर दौड़ रहा है। लेकिन हर किस्म के विकास, प्रगति या खुशी का आधार सुरक्षा है। इसलिए यदि सुरक्षा नहीं तो कुछ भी नहीं। इंटरनेट पर हमारी निर्भरता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है और उसी अनुपात में इंटरनेट से जुड़े अपराध भी। अपराध सभ्यता का अपरिहार्य हिस्सा है। जहां भी सभ्यता हस्ताक्षर करती है वहां अपराध अपनी काली स्याही जरूर गिरा देता है। दुनिया के बदलने से भी यह नियम नहीं टूटता। चाहे वो असल दुनिया यानी 'रियल वर्ल्ड' हो या आभासी दुनिया यानी 'वर्चुअल वर्ल्ड'। दरअसल इनसान के दखल के साथ ही उसकी फितरत का असर भी असल और आभासी दुनिया में देखा जा सकता है।

जिस तरक्की से तकनीक ने जीवन में दखल देना शुरू किया है, उसी तेजी से जीवन के सफेद और स्याह रंग भी तकनीकी दुनिया में दाखिल हो रहे हैं। आदर्शों, मूल्यों और ज्ञान-विज्ञान की अथाह पूंजी के साथ-साथ मानवीय कुंठाएं और आपराधिक व्यवहार भी यहां गति पकड़ रहे हैं और जाहिर तौर पर इसका सबसे ज्यादा शिकार हो रही है आधी आबादी, बच्चे और वृद्ध। लेकिन मजबूरी है कि आज यदि आपको जमाने के हिसाब से कदमताल करना है, तो आपको इंटरनेट की जरूरत पड़ेगी ही, वह चाहे एकाउंट खोलना हो या पैसे निकालने हों या किसी फिल्म के टिकट लेने जैसा मामूली काम करना हो। हर जगह हम ऑनलाइन सुविधा खोजते हैं। पर हर अवसर अपने साथ कुछ न कुछ चुनौती लाता है और कम-से-कम भारत में साइबर अपराध इंटरनेट के लिहाज से एक बड़ी चुनौती बन कर उभर रहा है। हेराफेरी, इंटरनेट बैंकिंग फ्रॉड, सूचना तकनीक से अश्लीलता फैलाने, ईमेल का दुरुपयोग कर ब्लैकमेल करने, फर्जी ईमेल और एसएमएस से प्रताड़ित करने के मामलों में भी साल दर साल बढ़ोतरी हो रही है।

एक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था के शोध के अनुसार भारत में पिछले 10 वर्षों में (2005-15) साइबर अपराध के मामलों में 19 गुना बढ़ोतरी हुई है।राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े के मुताबिक साइबर अपराधियों की गिरफ्तारी में नौ गुना बढ़ोतरी हुई है। वहीं, इस दौरान भारत में इंटरनेट प्रयोक्ताओं का आंकड़ा बढ़ कर लगभग 46.2 करोड़ तक पहुंच गया है। भारत में साइबर अपराधों में मुख्यत: अश्लीलता, धोखाधड़ी और यौन शोषण शामिल हैं। राज्यसभा में एक प्रश्न के जवाब में दी गई जानकारी के मुताबिक एटीएम, क्रेडिट/डेबिट कार्ड और नेट बैंकिंग सम्बन्धित धोखाधड़ी के 2014-15 में 13,083 मामले और 2015-16 (दिसम्बर तक) में 11,997 मामले दर्ज किए गए। दिल्ली उच्च न्यायालय की एक समिति की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2013 में कुल 24,630 करोड़ रुपये के साइबर अपराध दर्ज किए गए, जबकि विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में कुल 25,12,500 करोड़ रुपये के साइबर अपराध के मामले सामने आए।