अब सिर्फ दिमागी सिग्नल्स से कर सकेंगे टाइपिंग
चीन ने विकसित की एक अनोखी तकनीक...
यह अगली पीढ़ी के अविष्कारों के लिए एक वरदान है। इस मशीन को जितने भी लोगों पर टेस्ट किया गया उनमें से 61 प्रतिशत लोगों ने अनुभव किया कि यह नेचुरल चैटिंग करने में सक्षम है।
इससे भावनाओं पर काम करने वाले रोबोट को विकसित करने में तो मदद मिलेगी ही साथ ही जो व्यक्ति हाथ से टाइपिंग करने में अक्षम होते हैं उनके लिए यह वरदान साबित होगा।
चीन की समाचार एजेंसी पीपल्स डेली ने अपने फेसबुक पेज पर एक वीडियो शेयर करके इस महत्वपूर्ण खोज का खुलासा किया है।
आज तकनीक वहां तक पहुंच चुकी है जिसकी आम इंसान कल्पना भी नहीं कर सकता। चीन की एक यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी ही खोज की है जिसे कल्पना से परे ही कहा जाएगा। वैज्ञानिकों ने 'इमोशनल चैटिंग मशीन' (ECM) की खोज की है जिसके माध्यम से बिना हाथों के इस्तेमाल के टाइपिंग की जा सकेगी। इससे भावनाओं पर काम करने वाले रोबोट को विकसित करने में तो मदद मिलेगी ही साथ ही जो व्यक्ति हाथ से टाइपिंग करने में अक्षम होते हैं उनके लिए यह वरदान साबित होगा।
ECM वास्तविक इमोशंस जैसे उदासी, घृणा या खुशी को व्यक्त करने में सक्षम है। इंपीरियल कॉलेज लंदन के एक कंप्यूटर वैज्ञानिक प्रोफेसर ब्योर्न शैलर ने इस कदम को पर्सनल असिस्टेंट की दुनिया में एक क्रांतिकारी कदम बताया है। क्योंकि यह सहानुभूतियों और भावनाओं को पढ़ सकता है। चीन की समाचार एजेंसी पीपल्स डेली ने अपने फेसबुक पेज से पर एक वीडियो शेयर करके इस महत्वपूर्ण खोज का खुलासा किया है।
इस वीडियो में बताया गया है कि सिर पर एक टोपी के आकार की डिवाइस पहनकर आप बस सोचकर ही टाइप कर सकेंगे। इस टोपीनुमा डिवाइस का नाम स्टेडी-स्टेट विजुअल इवोक्ड पोटेन्शियल (SSEVP) सिस्टम है। इस डिवाइस के कनेक्ट करके जब व्यक्ति वर्चुअल कीबोर्ड पर फोकस करेगा तो यह सिस्टम मस्तिष्क से निकलने वाली तरंगों को शब्दों में ट्रांसलेट कर देगा। और इस तरह कीबोर्ड को हाथ लगाए बगैर आप वह सब लिख पाएंगे जो आप सोच रहे हैं। इस तकनीक का उपयोग मेडिकल रिहैब, गेमिंग और नेविगेशन आदि क्षेत्रों में किया जा सकता है।
प्रोफेसर शैलर ने बताया कि यह अगली पीढ़ी के अविष्कारों के लिए एक वरदान है। इस मशीन को जितने भी लोगों पर टेस्ट किया गया उनमें से 61 प्रतिशत लोगों ने अनुभव किया कि यह नेचुरल चैटिंग करने में सक्षम है। सिंघुआ यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक मिनिल हॉन्ग ने कहा, 'यह सिर्फ पहला प्रयास है अभी हम ऐसी मशीन से काफी दूर हैं जो इंसानी दिमाग को पूरी तरह से पढ़ सके।' हॉन्ग और उनके सहयोगियों ने एक ऐसा अल्गोरिथम बनाया है जो इस काम में उनकी मदद कर रहा है।
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