समय से उपचार कराने से सोरायसिस मरीज़ों के जीवन को बनाया जा सकता है बेहतर
सोरायसिस में, शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता स्वस्थ कोशिकाओं पर हमला करना शुरू कर देती है, जिससे अंग प्रणालियों, जोड़ों को नुकसान पहुंचाने वाली अन्य गंभीर स्थितियां पैदा हो सकती हैं, और यहां तक कि अवसाद भी हो सकता है. कई मामलों में इस वजह से लोगों को अवसाद जैसी समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है.
सोरायसिस ऐसी ऑटोइम्यून स्थिति है जिसे लेकर कहीं अधिक जागरूकता और ध्यान देने की ज़रूरत है. इस स्थिति में लाल रंग के चकत्ते या सफेद धब्बे दिखाई देते हैं. यह रोग पीड़ित व्यक्ति के जीवन गुणवत्ता पर असर डालता है.
सोरायसिस में, शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता स्वस्थ कोशिकाओं पर हमला करना शुरू कर देती है, जिससे अंग प्रणालियों, जोड़ों को नुकसान पहुंचाने वाली अन्य गंभीर स्थितियां पैदा हो सकती हैं, और यहां तक कि अवसाद भी हो सकता है. कई मामलों में इस वजह से लोगों को अवसाद जैसी समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है.
उपचार से क्या उम्मीद रखें
जब सोरायसिस के मरीज त्वचा विशेषज्ञ के पास जाते हैं, तो वे अक्सर अपनी स्थिति का इलाज चाहते हैं. हालांकि पूरी तरह से ठीक होना मुश्किल हो सकता है, लेकिन सही इलाज के साथ, मरीजों में 90 फीसदी तक सुधार देखा जा सकता है और उनके सोरायटिक चकत्तों में काफी हद तक कमी आ सकती है.
सोरायसिस के लिए उपचार के विकल्प
सोरायसिस के उपचार के लिए कई विकल्प उपलब्ध हैं. सीधे त्वचा पर लगाए जाने वाले महलम से लेकर दवाओं और इंजेक्शन जैसे विभिन्न प्रकार के उपचार उपलब्ध हैं. डॉक्टर रोग की गंभीरता और स्वास्थ्य संबंधी अन्य मानकों का ध्यान रखते हुए उपचार के उपयुक्त विकल्प की सलाह देते हैं.
सोरायसिस के इलाज में शरीर के अंदरूनी हिस्सों को प्रभावित करने वाली दवाएं (सिस्टेमिक मेडिसीन) काफी मदद करती हैं. ये दवाएं किसी खास जगह हो छोड पूरे शरीर को लक्षित करती है. इन दवाओं से आम तौर पर सोरायसिस के धब्बों में 60-70% तक की कमी आ जाती है. हालांकि, चेहरे जैसे खुले क्षेत्रों या संवेदनशील अंगों पर इन धब्बों को पूरी तरह (100%) खत्म करना मुश्किल होता है. इससे मरीजों के जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होती है.
ऐसे मामलों में बायोलॉजिक्स जैसी दवाएं काम आती हैं, जिनसे बेहतर परिणाम मिलते हैं और अन्य उपचारों के मुकाबले इस बीमारी से जल्दी निजात मिलती है. बायोलॉजिक्स, सोरायटिक ऑर्थराइटिस को फैलने से रोकने में भी कारगर है जो जोड़ों की दर्दनाक बीमारी है जिससे लगभग 30 फीसदी सोरायसिस मरीज़ प्रभावित होते हैं.
दवाओं के साथ-साथ सेहतमंद जीवनशैली अपनाना भी ज़रूरी होता है. सोरायसिस के मरीज़ों को धूम्रपान और शराब पीने से बचना चाहिए, नियमित तौर पर व्यायाम करना चाहिए और कम तेल-मसाले वाला खाना ही खान चाहिए. उन्हें हर रात अच्छी नींद लेनी चाहिए और सेहत पर पड़ने वाले दवाओं के असर के बारे में जानना चाहिए.
उपचार और कवरेज में मौजूद अंतराल
हालांकि, भारत में इस बीमारी से जुड़े मामलों की संख्या के बारे में जानकारी देने वाला कोई सटीक अध्ययन नहीं हुआ है. लेकिन एक अनुमान यह है कि 2 से 3 फीसदी आबादी सोरायसिस से पीड़ित है. दुर्भाग्यवश, उपचार की मौजूदा प्रणाली में कई तरह की कमियां हैं. आम तौर पर मरीज़ उपचार कराने से कतराते हैं और वे हर्बल दवाओं जैसी कुछ वैकल्पिक उपचार प्रणाली अपनाते हैं जो कई बार किसी काम की नहीं होती है. इस हिचकिचाहट की वजह से उपचार में जटिलता आ जाती है क्योंकि इस मामले में लक्षणों को बढ़ने से रोकने के लिए समय से प्रयास करने की ज़रूरत होती है.
सोरायसिस एक गंभीर स्थिति है और लगातार उपचार कराते रहना अक्सर ज़रूरी होता है. डॉक्टरों के लिए यह ज़रूरी है कि वे समय से उपचार के महत्व पर जोर दें और मरीज़ों का डर दूर करें. समय से और निरंतर उपचार कराने से लंबी अवधि की देखभाल की योजना बनाना, सोरायसिस से जुड़ी स्वास्थ्य संबंधी अन्य परेशानियों को बढ़ने से रोकना और बेहतर परिणाम हासिल करना आसान हो जाता है.
सोरायसिस मरीज़ों को अक्सर बीमा कवरेज के मामले में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. हालांकि, कुछ कंपनियों ने सोरायसिस को कवर करना शुरू कर दिया है, लेकिन कई मरीज़ों को अधिक प्रीमियम की वजह से बीमा नहीं मिल पाता है. कई मरीज़ इस रोग को लेकर शर्म महसूस करते हैं और बीमा कंपनियों को अपनी बीमारी के बारे में नहीं बताना चाहते हैं. मरीज़ों को अपनी बीमारी के बारे में जानकारी देने के लिए प्रोत्साहित करने और बीमा कंपनियों को सोरायसिस की कवरेज के महत्व के बारे में बताकर बड़ा बदलाव लाया जा सकता है और मरीज़ों को उचित उपचार उपलब्ध कराया जा सकता है.
सही दृष्टिकोण के साथ मरीज़ अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं
कुल मिलाकर गलत धारणाओं को खत्म करके, समय से प्रयास करके और सही दवाओं का इस्तेमाल करके सोरायसिस से छुटकारा पाने की दिशा में अहम कदम उठाया जा सकता है. जागरूकता, समय से उपचार और बायोलॉजिक्स जैसी नवाचार थेरेपी पर जोर देते हुए मरीज़ बेहतर जीवन हासिल कर सकते हैं और अपनी सेहत में सुधार ला सकते हैं.
(feature image: freepik)
(लेखक डॉ. कोटला साई कृष्णा, यशोदा हॉस्पिटल्स, सिकंदराबाद में कंसल्टेंट डर्मेटोलॉजिस्ट हैं. आलेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं. YourStory का उनसे सहमत होना अनिवार्य नहीं है.)
Edited by रविकांत पारीक