मिशन 2019: अभी से लोकसभा चुनाव के तीर-तुक्के
जब ताजा हालात के साये में हम एक नजर देश की भावी चुनावी राजनीति पर डालते हैं तो आगामी लोकसभा चुनावों को लेकर कई तरह के अंदेशे उभरते हैं। लोकसभा चुनाव समय पर ही होंगे, इसकी कोई भी पूरी गारंटी देने की स्थिति में नहीं है, न ही यह दावा किया जा सकता है कि समय से पहले चुनाव कराकर भाजपा फायदे में ही रहेगी...
गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कड़ी टक्कर देने और राजस्थान में दो लोकसभा तथा एक विधानसभा उपचुनाव बड़े मार्जिन से जीतने के बाद कांग्रेस के हौसले बुलंद हैं।
सियासत में कौन सी बात असली, कौन सी धोखे, कौन सी सच हो जाए, कौन सी शोशा बन कर रह जाए, कुछ कहना बड़ा मुश्किल होता है।। अगले साल 2019 के आने में अभी लगभग साढ़े दस महीने बाकी हैं लेकिन सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या लोकसभा चुनाव इसी साल होने जा रहे हैं? अटकलों ने राजनीतिक तपमान इतना सुलगा दिया है कि केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली को यह कहते हुए सिरे से नकारना पड़ा है कि आम चुनाव समय (2019) पर ही होंगे। यद्यपि वह ये भी कहने से नहीं चूकते हैं कि अगर जल्द चुनाव कराए जाने की कोई परिस्थिति बनती है तो उनकी पार्टी इस चुनौती का सामना करने के लिए भी तैयार है।
समय से पहले चुनाव होने की अटकलें फैलाने वाले कह रहे हैं कि 'अगर मोदी सरकार अगले लोकसभा चुनाव में 75-100 से अधिक सीटें नहीं गंवाना चाहती, तो उसे सालभर पहले यानी इस साल मई में चुनाव करवाना चाहिए। इसकी तीन वजहें हैं। चुनाव पहले कराने से विपक्ष हैरान रह जाएगा और वह एकजुट नहीं हो पाएगा। अगर मोदी चुनाव कराने में अधिक समय लगाते हैं, तो विपक्ष को साथ आने का मौका मिल सकता है। राजीव गांधी के साथ 1988 और 1989 में ऐसा ही हुआ था। उन्होंने 1989 के बजाय अक्टूबर 1988 में चुनाव कराने पर गंभीरता से विचार किया था, लेकिन राजीव को चुनाव पहले नहीं कराने के लिए मना लिया गया था।
इससे वीपी सिंह को उनकी सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार विरोधी अभियान और विपक्षी दलों को एकजुट करने में मदद मिली थी। वीपी सिंह के पास इतना समय था कि उन्होंने बीजेपी और लेफ्ट पार्टियों को मिलकर काम करने के लिए मना लिया था। खराब मॉनसून या सूखे के बाद केंद्र की कोई भी सरकार लगातार दूसरी बार नहीं चुनी गई है। .....नहीं पता कि इस साल मॉनसून कैसा रहेगा। किसान वैसे भी नाराज चल रहे हैं। ऐसे में अगर बारिश कम होती है या सूखा पड़ता है, तो उनकी नाराजगी और बढ़ सकती है। इसलिए भी चुनाव सालभर पहले कराना ठीक होगा। अगर चुनाव तय समय पर होते हैं, तो बीजेपी को करीब 100 सीटों का नुकसान हो सकता है। इसलिए पहले इलेक्शन करवाकर उसे इस नुकसान को कम करने की कोशिश करनी चाहिए।
लोकसभा चुनावों में भले ही अभी लगभग डेढ़ साल हों, लेकिन बीजेपी भी अभी से मिशन 2019 के लिए जुट गई है। पिछले दिनो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने इसी क्रम में पार्टी के पदाधिकारियों और चुनाव प्रभारियों से मुलाकात कर आगाह किया कि आने वाले चुनावों में पार्टी की दशा और दिशा पर और साथ ही सरकार के कामों को कैसे आम आदमी तक पहुंचाया जाए, इसे कामयाब करने में जुट जाएं। सरकारी योजनाओं के बारे में जनता तक सही सूचना पहुंचाएं। कमियां दूर करने के सुझाव दें। राज्य सरकारों की सहायता करें। संघ को लेकर अतिरिक्त सतर्कता बरतें। भ्रामक प्रचार न फैलने दें।
देशभर में नव मतदाता पंजीकरण का अभियान युवा मोर्चा चलाए। कॉलेज कनेक्ट के माध्यम से प्रत्येक कॉलेज में युवाओं को सरकार के कार्यक्रमों से जोड़ा जाए। बूथ कनेक्ट कार्यक्रम से हर बूथ पर सोशल मीडिया के माध्यम से युवाओं के ग्रुप बनाए जाएं। बाबा साहेब अंबेडकर के जन्मदिन 14 अप्रैल के एक दिन पहले देश के हर जिले में समरसता भोज आयोजित किए जाएं। बैठक में संगठन से जुड़े मुद्दों पर बातचीत के अलावा महासचिवों को 'नमो ऐप' का इस्तेमाल और ज्यादा करने के लिए कहा गया। रोजगार को लेकर सरकार की जो छवि पेश की जा रही है, उसको लेकर जनता को कैसे बताया जाए, ये बातें भी बैठक में हुईं। उधर, नीति आयोग रोजगार के आंकड़ों पर बाकायदा रिपोर्ट बनाने में जुटा है।
लोकसभा चुनावों को लेकर अभी से शुरू हो चुकी खुसर-पुसर, दावेदारियों, चुनौतियों के बीच करीब दो दशक से एनडीए में शामिल शिवसेना ऐलान कर रही है कि वह 2019 लोकसभा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव भाजपा से अलग होकर लड़ेगी। शिवसेना की इस घोषणा पर पलटवार करते हुए भाजपा ने कहा है कि वह भी 2019 में अकेले चुनाव लड़ने के लिए तैयार है। अकेले चुनाव लड़ने में नुकसान शिवसेना का ही होगा। उधर, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) प्रमुख शरद पवार ने एक बार फिर समान विचारधारा वाली पार्टियों द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपानीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन( राजग) को चुनौती पेश करने के विचार को आगे बढ़ा दिया है।
उन्होंने कहा है कि देश का ताजा माहौल खासकर किसानों, मध्यमवर्गीय परिवारों और यहां तक की नौकरी मुहैया कराने में विफल रहने पर युवा भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'विरुद्ध' हैं। आज के समय में, मोदी संसद में सुखद अवस्था में हैं। उनकी पार्टी कई राज्यों में सत्ता में है लेकिन जो माहौल पनप रहा है, वह किसानों, मध्यमवर्ग, अल्पसंख्यकों और यहां तक कि युवाओं की मनोदशा में बड़े बदलाव का है। मोदी सरकार रोजगार के बारे में बात करती है, लेकिन चिदंबरम ने संसद में दिखाया कि कैसे केंद्र और राज्य में लाखों पद खाली पड़े हुए हैं। स्वभाविक रूप से, देश के युवा इस सरकार से नाखुश हैं। वे लोग विकल्प तलाश रहे हैं और अगर हम इस धड़े के लोगों में विश्वास पैदा करने में सफल रहे तो हमारे पास अच्छा अवसर होगा।
इसी बीच राजस्थान के उपचुनाव में भाजपा को पटखनी देने के बाद कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने राहुल गांधी को पीएम मोदी से टक्कर लेने वाला नेता करार देने के साथ ही कहा है कि मोदी सरकार की विफलताओं पर राहुल गांधी के हमलों से विपक्ष में नई जान आ गई है। गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कड़ी टक्कर देने और राजस्थान में दो लोकसभा तथा एक विधानसभा उपचुनाव बड़े मार्जिन से जीतने के बाद कांग्रेस के हौसले बुलंद हैं। हमारी पार्टी ने 2019 लोकसभा चुनाव के लिए अपनी रणनीति को अंतिम रूप देना शुरू कर दिया है। उधर, उत्तर प्रदेश विधानसभा में विपक्ष के नेता समाजवादी पार्टी (सपा) के रामगोविंद चौधरी ने लोकसभा चुनाव में भाजपा को परास्त करने और लोकतंत्र की 'पुनर्बहाली' के लिए बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का आह्वान कर दिया है। चौधरी ने कहा है कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव भी विपक्षी दलों की एकजुटता के पक्ष में हैं।
लोकसभा चुनाव जब होंगे, तब होंगे, इधर तो अभी से मुंहजुबानी तीर-कमान सधने लगे हैं। इसी क्रम में कर्नाटक में भाजपा और कांग्रेस के बीच मची घमासान के माहौल में अपना जनाधार बचाने और बढ़ाने की कोशिश में जुटी देवगौड़ा की पार्टी जनता दल सेक्युलर को बहुजन समाजवादी पार्टी के साथ हुए गठबन्धन से काफी उम्मीदें होने लगी हैं क्योंकि कर्नाटक में 24 फीसदी दलित हैं यानी आबादी का एक चौथाई हिस्सा। बसपा और जद(से) ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव साथ मिल कर लड़ने के लिए एक गठबंधन की घोषणा भी कर दी है। बहुजन समाज पार्टी के सतीश चंद्र मिश्रा और जनता दल (सेक्युलर) के दानिश अली ने कहा है कि यह गठबंधन 2019 के लोकसभा चुनाव में भी जारी रहेगा।
बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के अध्यक्ष नीतीश कुमार ने भविष्यवाणी की है कि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में जीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की ही होगी। विपक्षी दलों के विरोध के पीछे एक वजह हाल ही में आए कुछ चुनावी सर्वे भी हो सकते हैं। उनमें मोदी की लोकप्रियता में कोई खास कमी नहीं आंकी गई है। विपक्षी दलों को लगता था कि हो सकता है, भाजपा मोदी को आगे कर जिन राज्यों में उसकी सरकारें हैं, वहां पर सत्ता विरोधी लहर को कम कर ले जाने में कामयाब हो जाए। इन राज्यों में राजस्थान, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, और छत्तीसगढ़ हैं।
इन राज्यों में भाजपा को पिछले लोकसभा चुनाव में बेहतर कामयाबियां मिली थीं। हरियाणा और असम में तो लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा चुनाव में भी भाजपा को बहुमत मिले थे। इस समय दिल्ली राज्य में लोकसभा की सभी सीटें भाजपा के पास हैं। हरियाणा की 10 लोकसभा सीटों में से सात भाजपा के पास हैं। गुजरात में भाजपा को लोकसभा 26 सीटें मिली थीं। हाल के विधानसभा चुनाव में भी उसकी सरकार बनी है। राजस्थान में पिछले लोकसभा चुनाव में उसने सभी 25 सीटें जीत ली थीं लेकिन पिछले दिनो लोकसभा की दो सीटों और विधानसभा की एक सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को करारा धक्का दिया है।
पिछले चुनाव में उत्तर प्रदेश में भाजपा ने 80 में से 73 लोकसभा सीटें जीत ली थीं। हाल के विधानसभा चुनाव में भी उसको भारी बहुमत मिला है। बिहार के रंग कुछ अलग से हैं। यहां तरह तरह राजनीतिक समीकरण बन-बिगड़ रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में गठबंधन के बूते उसे 40 में से 31 सीटें मिल गई थीं। अब के हालात कुछ और हैं। मध्य प्रदेश में भाजपा ने 29 में से 27 सीटें जीती थीं। महाराष्ट्र में 48 में से 42 सीटें मिली थीं। तब की शिवसेना अब साथ छोड़ने के ऐलान कर रही है।
छत्तीसगढ़ में 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 11 में से 10 सीटें मिली थीं लेकिन इन दिनो प्रदेश सरकार की साख मुश्किल में है। इन हालातों के साये में जब हम एक नजर देश की भावी चुनावी राजनीति पर डालते हैं तो अंदेशा और गहरा जाता है कि लोकसभा चुनाव समय पर ही होंगे, इसकी कोई भी पूरी गारंटी देने की स्थिति में नहीं है। न ही यह दावा किया जा सकता है कि समय से पहले चुनाव कराकर भाजपा फायदे में ही रहेगी।
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