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विद्यार्थी-जीवन से ही युवाओं को सामजिक कार्यकर्त्ता और उद्यमी बनाते हुए कामयाबी की नयी और शानदार कहानी लिख रही हैं अनुषा रवि

दुनिया बदल रही है। देश भी बदल रहा। बदलाव तेज़ी से हो रहा है। इस बदलाव का एक बड़ा नतीजा ये भी है कि कई क्षेत्रों में महिलाओं ने पहली बार प्रवेश किया है और अपनी ख़ास और मज़बूत जगह बनाई। महिलाएँ अब कई क्षेत्रों में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं। पुरुषों के दबदबे वाले कार्य- क्षेत्रों में भी महिलाएँ अब अपना वर्चस्व स्थापित कर रही हैं ।हालात बदल चुके हैं, माहौल पहले जैसा नहीं रहा। महिलाएँ अब समाज द्वारा निर्धारित की गयी नौकरी या फिर तय किये गए व्यवसाय तक ही सीमित नहीं रह गयी हैं। महिलाओं ने अपने धैर्य, साहस और कौशल के बल पर कई क्षेत्रों में पुरुषों के समान बराबरी का दर्जा हासिल कर लिया है। गलाकाट प्रतिस्पर्धा से भरा; कारोबार का बाज़ार हो या फिर स्टार्टअप की अनूठी दुनिया, महिलाएँ अब पुरुषों के साथ क़दम से क़दम मिलाकर चल रही हैं। बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ हों या बड़ी-बड़ी वित्तीय संस्थाएँ, सरकारी दफ्तर हों या फिर गैर-सरकारी संस्थाएँ महिलाएँ सिर्फ नौकरियाँ ही नहीं कर रही हैं, बल्कि कई जगह सारे कामकाज और ज़िम्मेदारियों की अगुवाई भी कर रही हैं।अगर दुनिया-भर की महिलाओं की बात हो तब भी भारतीय महिलाएँ अब किसी से पीछे नहीं हैं। भारतीय महिलाओं ने लड़ाकू विमान उड़ाकर ये साबित किया है वे आसमान की ऊंचाइयों को छूने का माद्दा रखती हैं। माउंट एवरेस्ट पर फ़तह पाकर भारतीय महिलाओं ने साबित किया है कि आंधी और तूफ़ान कितने ही भयावह क्यों न हो वे अपने बुलंद हौसलों से कामयाबी की बुलंदी पर पहुँच ही जाती हैं।राजनीति का मैदान हो या फिर विज्ञान-प्रौद्योगिकी की प्रयोगशाला, भारतीय महिलाओं ने कामयाबी की बेमिसाल कहानियाँ लिखी हैं। भारतीय महिलाओं ने हर क्षेत्र में हर स्तर पर कामयाबी के नए परचम लहराए हैं। विज्ञान-प्रौद्योगिकी, शिक्षा, कारोबार, स्टार्टअप, अंतरिक्ष, खेल-कूद, राजनीति, रक्षा-सुरक्षा, चिकित्सा-स्वास्थ्य, मनोरंजन – सभी क्षेत्रों में भारतीय महिलाएँ अपना लोहा मनवा रही हैं ।बड़ी बात ये भी है कि भारतीय महिलाओं के लिए कामयाबी की राह आसान नहीं रही है। उन्हें समाज की रूढ़िवादी परंपराओं के खिलाफ लड़ाई लड़नी पड़ी है, पुरुषों के वर्चस्व वाले क्षेत्रों में अपनी काबिलियत साबित कर खुद की जगह बनाने के लिए संघर्ष करना पड़ा है, घर-परिवार की ज़िम्मेदारियों को निभाते हुए भी अपने सपनों को साकार करने की कोशिशें बरकरार रखनी पड़ी है। विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भारतीय महिलाओं ने अपने अदम्य साहस और बुलंद हौसलों से ये साबित किया है कि वे वे हवाओं का रुख भी बदल सकती हैं।अनुषा रवि उन्हीं भारतीय महिलाओं में से एक हैं जिन्होंने पुरुषों के वर्चस्व वाले शिक्षा के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई और कामयाबी की एक नयी और ख़ूबसूरत कहानी लिखी। उनकी गिनती देश की शक्तिशाली महिला उद्यमियों में होती है। अनुषा रवि न सिर्फ एक कामयाब उद्यमी हैं, बल्कि एक बड़ी समाज-सेवी और समर्पित पर्यावरणविद भी हैं। उनकी शख्सियत का एक बड़ा पहलु ये भी है कि वे उद्यमी बनने के लिए महिलाओं को प्रेरित और प्रोत्साहित करती रहती हैं। भारतीय संस्कृति और जीवन-मूल्यों को बचाए रखने के लिए भी वे समर्पित-भाव से काम करती हैं।

विद्यार्थी-जीवन से ही युवाओं को सामजिक कार्यकर्त्ता और उद्यमी बनाते हुए कामयाबी की नयी और शानदार कहानी लिख रही हैं अनुषा रवि

Tuesday July 26, 2016 , 21 min Read

अनुषा रवि की शख्सियत के कई सारे दिलचस्प पहलु हैं। वे विदेश में भी पढ़ीं, नामचीन सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनीं। एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में बड़े ओहदे पर नौकरी भी की। सॉफ्टवेयर की दुनिया में अपना एक स्टार्टअप भी शुरू किया, लेकिन, अपने माता-पिता की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए अनुषा रवि ने विदेश में काफी तगड़ी रकम वाली नौकरी छोड़ दी और स्वदेश लौट आयीं। अनुषा रवि ने न सिर्फ अपने माता-पिता की विरासत को संभाला बल्कि उसका विस्तार किया और अलग-अलग बड़े आयाम प्रदान कर शिक्षा के क्षेत्र में आदर्श माप-दंड स्थापित किये। मुख्य कार्यकारी अधिकारी यानी सीईओ के तौर पर अनुषा रवि ने अपने माता-पिता द्वारा शुरू किये गए पार्क शिक्षण संस्थाओं को शिक्षा-जगत में बेहद ख़ास पहचान दिलवाई।

कोयम्बतूर में पार्क शैक्षणिक संस्थाओं के मुख्यालय में हुई एक ख़ास मुलाकात में अनुषा रवि ने अपने जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं और दिलचस्प अनजाने पहलुओं के बारे में बताया। अनुषा के माता-पिता पी.वी.रवि और प्रेमा- दोनों शिक्षक थे। दोनों ने खुद को ग़रीब बच्चों को पढ़ा-लिखा कर शिक्षा के ज़रिए उनके घर-परिवार की गरीबी दूर करने का संकल्प लिया हुआ था। अपने इस संकल्प को पूरा करने की कोशिश में पी.वी.रवि और प्रेमा दिन-रात एक करते थे। घर में स्कूल भी चलता था। पी.वी.रवि और प्रेमा हमेशा बच्चों से ही घिरे रहते । अनुषा ने बताया, “मेरा बचपन खुशहाली में बीता। माता-पिता दोनों टीचर थे। घर में ही स्कूल चलता था। हालत ये थी कि मैं अपने बेडरूम से निकलते ही किसी क्लासरूम में आ जाती थी। मेरे आसपास हमेशा बहुत सारे बच्चे होते। मेरा परिवार बहुत बड़ा था और सभी ने मुझे बहुत प्यार दिया और बहुत अच्छी तरह से मेरा ख्याल रखा।”

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एक सवाल के जवाब में अनुषा ने बताया, “बचपन से ही मैं माता-पिता से बहुत प्रभावित रही हूँ। मैंने उन्हें मेहनत करते हुए देखा है। जिस लगाव से वे बच्चों को पढ़ाते थे उसने मेरे दिमाग पर गहरी छाप छोड़ी।” 

अनुषा की स्कूली शिक्षा तिरूप्पुर और चेन्नई में हुई। एक तरफ अनुषा की पढ़ाई-लिखाई चल रही थी और दूसरी तरह उनके माता-पिता अपनी शैक्षणिक संस्थाओं का विस्तार करते जा रहे थे। कुछ ही वर्षों में अनुषा के माता-पिता की ख्याति पूरे तमिलनाडु राज्य में फ़ैल गयी थी। पी.वी.रवि और प्रेमा शिक्षाविद के रूप में काफी मशहूर हो गए थे। अनुषा के माता-पिता पी.वी.रवि और प्रेमा ने 1973 में तिरूप्पुर में पहला इंग्लिश मीडियम स्कूल शुरू किया था। उन्होंने 1982 में तिरुपुर में पहला प्राइवेट पॉलिटेक्निक स्कूल और 1984 में पहला प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज भी शुरू किया। अनुषा कहती हैं, “जब मैं स्कूली शिक्षा पूरी कर कॉलेज में गयी, तब हमारे ही खुद के कॉलेज शुरू हो गए थे। कॉलेज के दिनों में मुझे कंप्यूटर से बहुत प्यार हो गया था। मैं कंप्यूटर को इतना पसंद करने लगी थी कि मैंने उस पर कई कविताएँ भी लिखीं।”

कंप्यूटर से लगाव की वजह से ही उन्होंने कोयम्बतूर के पीएसजी कॉलेज ऑफ़ टेक्नोलॉजी से कंप्यूटर साइंस में बीटेक की पढ़ाई की। ये पढ़ाई पूरी होते ही वे बीटेक की डिग्री के साथ अमेरिका चली गयीं, जहाँ उन्होंने मशहूर ओल्ड डोमिनियन यूनिवर्सिटी से एमएस की पढ़ाई की। एमएस की पढ़ाई पूरी करते ही अनुषा को एविएशन सेक्टर की मशहूर बहुराष्ट्रीय कंपनी एयरबस की सहायक कंपनी ऑनएयर कम्युनिकेशन में नौकरी मिल गयी। ऑनएयर कम्युनिकेशन में अनुषा को बड़ी-बड़ी परियोजनाओं के लिए काम करने का मौका मिला। उन्होंने उस परियोजना में भी बड़ी भूमिका अदा की जिसके तहत विमानों में इंटरनेट सेवा मुहैया कराने का काम शुरू हुआ था। इस परियोजना को कार्य-रूप देने वाली टीम में अनुषा अकेली महिला इंजीनियर थी। इस प्रतिष्ठित परियोजना में वे अकेली भारतीय भी थीं। अनुषा ने सिंगापुर एयरलाइंस, एमिरेट्स, कैथे पैसिफ़िक जैसी वायु-सेवा कंपनियों के लिए भी काम किया।

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विमानन उद्योग में काम करते हुए अनुषा को दो साल के समय में बीस देश घूमने का मौका मिला था। वे कहती हैं, “मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मैं इतने कम समय में इतने सारे देश घूमूंगी, लेकिन अलग-अलग देश जाने का मुझे बहुत फ़ायदा भी हुआ। मैंने इन देशों के लोगों, उनकी संस्कृति को जाना और समझा। मैंने ये भी जानने कि कोशिश की कि इन देशों ने तरक्की कैसे की है। मैंने इन देशों की यात्रा कर बहुत सारे अनुभव जुटाए और इन अनुभवों से बहुत कुछ सीखा भी।”

अनुषा ने बियर बनाने वाली मशहूर कंपनी ऐनह्यूज़र-बुश में भी काम किया। 150 साल से भी ज्यादा पुरानी और दुनिया-भर में मशहूर ऐनह्यूज़र-बुश कंपनी में अनुषा ने कर्मचारियों की भर्ती-प्रक्रिया को ऑटोमेटेड करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। इस कंपनी में एक लाख से ज्यादा कर्मचारी हैं। इतनी बड़ी कंपनी की भर्ती-प्रक्रिया को अनुषा ने न सिर्फ सरल बल्कि कारगर बनाया और सारी खामियाँ दूर कीं। अनुषा ने अपने अमेरिका प्रवास के दौरान सूचना-प्रौद्योगिकी यानी आईटी के क्षेत्र में एक स्टार्टअप की भी शुरुआत की।

भले की अनुषा अमेरका में खूब धन-दौलत और शोहरत कमा रही थीं, लेकिन उनका मन भारत की ओर ही खिंचा जाता था। कई देशों की यात्रा की, लेकिन भारत को वे कभी भूल नहीं पायीं। स्वदेश की मिट्टी की खुशबु उन्हें हमेशा अपनी ओर खींचती ही रही। अनुषा कहती हैं, “मुझे ‘वन ईयर सिंड्रोम’ था। मैं सोचती कि अगले साल ज़रूर स्वदेश लौट जाऊंगी, लेकिन, फिर अगले साल यही होता, मैं लौटने का फैसला अगले साल को टाल देती। ऐसा करते-करते ही सात साल बीत गए। लेकिन, जब मेरे बेटे ने ज़िद करनी शुरू की तो मुझे भारत लौटना ही पड़ा। मेरा बेटा अपने नाना-नानी से बहुत प्यार करता था। विदेश में रहते हुए उसे अपने नाना-नानी की याद बहुत सताने लगी थी। उसकी ज़िद ने मुझे भी भारत लौटने पर मजबूर किया।”

साल 2007 में भारत लौट आने के बाद अनुषा ने पहले तो सूचना-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में काम करने की सोची, लेकिन, उन्होंने अपने माता-पिता की विरासत को आगे बढ़ाने का फैसला लिया। अनुषा को लगा कि माता-पिता द्वारा शुरू किये गये शैक्षणिक संस्थानों में नया करने को काफी कुछ है। इस अहसास के बाद उन्होंने इसमें अपने आपको रमा लिया। वे पार्क शैक्षणिक संस्था समूह की मुख्य कार्यकारी अधिकारी यानी सीईओ बनीं।

सीईओ बनने के बाद अनुषा ने शिक्षा के क्षेत्र में पार्क शैक्षणिक संस्थाओं की पकड़ मज़बूत करने और संस्था समूह का विस्तार करना शुरू किया। विदेश में काम करते हुए जो कुछ सीखा था, उसका लाभ उठते हुए पार्क शैक्षणिक संस्था समूह को नए मुकाम पर ले जाने की कोशिश शुरू की। लेकिन, ये काम आसान नहीं थे। अपनी योजनाओं और परियोजनाओं को अमली जामा पहनाने के दौरान अनुषा को कई तरह की चुनौतियों से लड़ना पड़ा। उन्हें कई कड़वे सच का भी सामना करना पड़ा।

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अनुषा बताती हैं, “जब मैंने अपने माता-पिता की विरासत को संभालना शरू किया तब मुझे लगता था कि मैं सब कुछ जानती हूँ। मुझे विश्वास था कि मैं विदेश की शिक्षा-व्यवस्था को भारत में अमल में लाऊंगी। विदेशी शिक्षा की ख़ूबियों, ख़ासतौर पर अमेरिका की शिक्षा-व्यवस्था के अच्छे अंशों को मैं भारत में अमल में लाना चाहती थी। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। भारत में काम शुरू करने के बाद मुझे अहसास होने लगा कि ये ज़रूरी नहीं हर वो चीज़ जो विदेश में चलती है, वो भारत में भी चल ही जाय। बहुत काम ऐसे थे जो विदेश के लिए ही सही थे और अगर वही काम भारत में किये जाएँ तो उनसे नुकसान होने का ख़तरा था। मुझे समझने में थोड़ा समय लगा, लेकिन मैं ये समझ गयी कि विदेश की शिक्षा नीति को हूबहू भारत में अमल में नहीं लाया जा सकता है। भारत की ज़रूरतें दूसरे देशों से अलग हैं।”

अनुषा ने ये भी कहा, ‘शुरू में जब मैं अमेरिका से वापिस आयी, यहाँ का माहौल वहाँ से बिल्कुल अलग था। मैं उम्मीद भी नहीं करती थी कि भारत में सब कुछ वहाँ की तरह ही होगा। ऐसी उम्मीद करना भी ग़लत होता, लेकिन कई दूसरी अच्छी बातें भी यहाँ थीं। भारतीय होने के नाते भावनात्मक जुड़ाव ज़रूर था, लेकिन समय का महत्व परियोजनाओँ के प्रति गंभीरता, उस पर किस गंभीरता से अमलावरी की जाए, इन बातों का अभाव था, जबकि वेस्ट्रन सिस्टम में यह तत्व काफी अच्छे से मौजूद हैं।”

अनुषा मानती हैं कि अपने आपको हमेशा नयेपन के साथ ढालना काफी चुनौतीपूर्ण होता है। अनुषा चाहती तो आराम से अपनी ज़िंदगी गुज़र-बसर कर सकती थीं। संस्थाएं जैसा चल रही थीं वैसे ही उन्हें चलते रहने दे सकती थीं। मुनाफा वैसे भी हो रहा था और आगे भी होता, लेकिन अनुषा का स्वभाव कुछ अलग था। मेहनत और समाज-सेवा दोनों उन्हें अपने माता-पिता से विरासत में मिले थे। हमेशा कुछ नया करते रहने से ही तरक्की होती है और दुनिया में अपनी अलग पहचान बनती है, ये मंत्र अनुषा विदेश में जान चुकी थीं। उन्होंने ये भी जान लिया था कि विकसित देश बनने के लिए किस तरह की शिक्षा-व्यवस्था की ज़रूरत होती है।

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चूँकि उद्यमशीलता खून में थी अनुषा ने अपने माता-पिता की विरासत को संभालते ही अपने नए विचारों को अमलीजामा पहनाना शुरू कर दिया। कई प्रयोग किये। व्यवस्था बदली। शिक्षा के तौर-तरीके बदले। शिक्षा में नए आयाम जोड़े।

उन्होंने कहा, “भारत में मेरे लिए केवल खाना- पीना जागना-सोना नहीं था, इससे आगे बढ़ना था, युवाओं को प्रेरित करना था, उनमें कुछ नया करने की भावाना को जगाना था, उनमें सामाजिक जिम्मेदारी का भाव पैदा करना था, यह सब बातें चुनौतीपूर्ण थीं। जब चुनौतियों का सामना करते हुए आगे बढ़े, तो युवावों में बदलाव भी आया। कई सामाजिक परियोजनाओं पर काम किया जा सका। मानवता के भाव को जगाने के लिए परियोजनाएँ काफी काम आयीं। नया और अनोखा रास्ता बनाया जा सका।”

अनुषा को विदेश की तरह ही भारत में भी बड़ी-बड़ी कंपनियों में बड़े ओहदे पर बहुत बड़ी रकम वाली नौकरी मिल सकती थी। विदेश में अपने कामकाजी अनुभव के आधार पर वे अपनी खुद की नयी कंपनी भी शुरू कर सकती थीं। उनके पास कई आइडिया थे, जिनके आधार पर वे भारत में भी अपना स्टार्टअप शुरू करने का माद्दा रखती थीं, लेकिन उन्होंने फैसला अपने माता-पिता की विरासत को आगे बढ़ाने की ज़िम्मेदारी उठाने का लिया।

अनुषा बताती हैं, “कॉलेज के दिनों से ही मैं चाहती थी कि अपने माता-पिता का सहयोग करूँ। मुझे यह नहीं पता था कि मैं क्या करूँगी, लेकिन मैं जानती थी कि मैं उस व्यवस्था का हिस्सा हूँ। जब मैं भारत लौटी तब कुछ ही दिनों में मुझे अहसास हो गया कि अपने माता-पिता की विरासत को आगे बढ़ाना ही मेरे लिए सबसे अच्छा काम होगा।”

अनुषा ने माता-पिता की विरासत को संभालने के बाद कुछ ही महीनों में 3 नये स्कूल शुरू किये। पार्क ग्लोबल स्कूल ऑफ बिज़नेस एक्सलेंस चेन्नई और कोयम्बतूर में हैं तो एक और पार्क ग्लोबल स्कूल का संचालन कोयम्बतूर में किया जा रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में माता-पिता ने स्कूल और कॉलेज का जो बाग़ बनाया था, वह अनुषा के आने के बाद वो और भी तेज़ी से बढ़ने, फलने-फूलने, सजने-संवरने लगा। ऐसा भी नहीं था कि नए शिक्षा संस्थानों को शुरू करने और पुरानी संस्थाओं का विस्तार करने का काम आसान था। पहले दिन से ही अनुषा के सामने चुनौतियाँ और समस्याओं की लंबी सूची थी, जिनको वह अपनी सूझ-बूझ से हल करती गयीं। अनुषा जल्द ही ये भी जान गयीं कि भारत में नए-नए शिक्षा संस्थान खुल रहे हैं। बहुविषयक कालेजों की संख्या भी लगतार बढ़ रही है। विद्यार्थियों के सामने भी कई सारे विकल्प मौजूद हैं। उन्हें अपनी सुविधा के मुताबिक कॉलेज चुनने का अधिकार है।

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ऐसी स्थिति में अगर विद्यार्थियों के लिए कुछ नया, फायदेमंद और बेहद कारगर काम नहीं किया गया तो पार्क शिक्षा संस्थान दूसरे संस्थानों से पीछे रह जाएंगे। अनुषा ने कहा,“मैंने देखा कि हम भी वही कर रहे थे जो दूसरे शिक्षा संस्थान कर रहे थे। हम बिलकुल वही कर रहे थे जो शिक्षा संस्थाओं को करना होता है। कुछ अलग और कुछ नया नहीं हो रहा था। मैंने ठान ली कि हमारे स्कूल और कॉलेज के बच्चों को किताबी ज्ञान के अलावा भी बहुत कुछ नया और जीवन में उपयोगी साबित होने वाली बातें सिखाई जायेंगी। मैंने फैसला लिया था कि मैं विद्यार्थियों को समाज के प्रति ज़िम्मेदार नागरिक भी बनाऊँगी। मैंने बच्चों को समाज-सेवा में भी लगा दिया।”

अनुषा ने देखा कि शिक्षा में बहुत सारी समस्याओं के हल छुपे हैं, चाहे वह ग़रीबी हो या फिर भ्रष्टाचार, बेहतर शिक्षा से समाज के यह नासूर दूर किये जा सकते हैं, लेकिन उन्होंने महसूस किया कि समाज में गहरे पैठ करने वाली इन बीमारियों को दूर करने के लिए केवल शिक्षा ही काफी नहीं है, शिक्षा का मानवीय चेहरा भी ज़रूरी है। वे कहती हैं, “पढ़े लिखे लोगों के बड़े-बड़े घोटाले हर दिन सामने आते रहते हैं, तो इसका कारण शिक्षा का मानवीय चेहरा लुप्त होना ही है।”

इसी मानवीय चेहरे को उभारने के उद्देश्य से अनुषा ने अपनी शैक्षणिक संस्थाओं को विभिन्न प्रकार की नयी-नयी गतिविधियों का केंद्र बनाया। आज उनकी शिक्षा संस्थाओं के विद्यार्थी न केवल अनथायालयों का दौरा करते हैं, बल्कि क्षेत्र के दूसरे स्कूलों और वृद्धाश्रमों को भी जाते हैं। यह सब इसलिए भी कि समाज के विभिन्न स्तरों पर जी रहे लोगों की समस्याओं से अवगत हुआ जा सके। उनसे बातचीत की जाए, ताकि युवा पीढ़ी में सामाजिक जिम्मेदारी का एहसास जागे। अनुषा ने विभिन्न विकलांगताओं का सामना करने वाले लोगों की ओर भी ध्यान दिया। उन्होंने अपने शैक्षणिक संस्थाओं में उन्हें एक अलग तरह से जगह दी। दृष्टिहीनता की चुनौती का सामना करने वाले विद्यार्थी उनके मंचों से सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं। विद्यार्थियों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति भी जागरूक किया जाने लगा। अनुषा की सबसे बड़ी कामयाबी यही है वे शिक्षा को इंसानियत और समाज-सेवा से जोड़ने में कामयाब रहीं। और यही वजह भी थी कि अनेकों शिक्षा संस्थानों में पार्क ग्रुप की अपनी अलग और ख़ास पहचान बनी। 

जब अनुषा ने पार्क ग्रुप की ज़िम्मेदारी संभाली थी तब उनके सामने एक बड़ी चुनौती शिक्षा संस्थाओं के ब्रांडिंग की भी थी। शिक्षा को समाज-सेवा से जोड़कर उन्होंने ब्रांडिंग भी आसानी से कर डाली थी। उत्तम शिक्षा देने के साथ-साथ विद्यार्थियों को समाज के प्रति ज़िम्मेदार नागरिक बनाने वाली संस्थाओं के समूह के रूप में पार्क ग्रुप की पहचान होने लगी। अनुषा यहीं पर नहीं रुकीं। वे अपने शिक्षा संस्थानों को मैसाचुसेट्स प्रौद्योगिकी संस्थान की मीडिया लैब से जोड़ने में भी कामयाब रहीं। इस कामयाबी की वजह से उनके विद्यार्थियों को विदेश में हो रहे शोध और अनुसंधान से जुड़ने और आधुनिक तकनीकों के बारे में जानने का मौका मिला। 

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तकनीकी स्तर पर सजगता और सहयोग का इस बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि उनके कॉलेजों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों ने 500 ऐप तैयार किये हैं। ये अनुषा की मेहनत और नयी सोच का ही नतीजा था कि पार्क ग्रुप के दो विद्यार्थियों को सालाना एक करोड़ रुपये की नौकरी ‘कैंपस प्लेसमेंट’ के दौरान ही मिल गयीं। एक विद्यार्थी को माइक्रोसाफ्ट इन्नोवेशन अवार्ड भी मिला। अनुषा कहती हैं, “ कॉलेज से निकलते ही एक करोड़ रुपये की नौकरी मिलना हमारे लिए खुशी की बात हैं, लेकिन मुझे उस समय सबसे ज्यादा खुशी होती हैं जब लोग ये कहते हैं कि हम समाज को सकारात्मक तौर पर बदलने वाले आसाधारण और प्रतिभाशाली युवा दे रहे हैं। मेरी कोशिश यही रही है कि हमारी शिक्षा संस्थाओं से विद्यार्थियों को ऐसी शिक्षा मिले, जिससे वे दूसरों के जीवन में भी खुशहाली ला सकें।”

एक सवाल के जवाब में अनुषा ने कहा, “मेरे लिए चुनौतियां कभी ख़त्म ही नहीं होतीं। शिक्षा संस्थाओं को चलाने में हर दिन कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता हैं। हज़ारों बच्चों की ज़िम्मेदारी आप पर होती है। शिक्षकों और दूसरे कर्मचारियों की भी ज़रूरतों का ख्याल रखना पड़ता है। हर दिन कोई न कोई समस्या आती ही रहती है । इन सब रोज़मर्रा की समस्याओं के बीच काम करते हुए भी आपको विद्यार्थियों को हर मामले में आगे रखने की चुनौती सबसे बड़ी चुनौती होती है।

अनुषा ने विदेश में अपने अनुभव का फायदा उठाते हुए अपने शिक्षा संस्थानों में सारे शिक्षकों और कर्मचारियों के लिए व्यापक नीति बनाई है। इसी नीति के तहत नए शिक्षकों और कर्मचारियों की भर्ती के अलावा पुराने कर्मचारियों की पदोन्नति और वेतन बढ़ोतरी होती है। विद्यार्थियों के दाखिले से लेकर कर्मचारियों की सालाना वेतन बढ़ोतरी तक सभी काम तय नियमों और कायदों के मुताबिक होते हैं। शिक्षा संस्थाओं की सारी प्रक्रिया और व्यवस्था को सरल, पारदर्शी और कारगर बनाने का श्रेय भी अनुषा को ही जाता है। 

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अनुषा ये कहने से भी नहीं हिचकिचाती है कि शुरूआती दौर में उन्हें कुछ अक्षम लोगों के साथ काम करना पड़ा। अनुषा के मुताबिक, जब उन्होंने अपने माता-पिता की शिक्षा संस्थाओं की ज़िम्मेदारी संभाली थी तब कई लोग ऐसे थे जिन्हें, काम करना ही नहीं आता था। कई लोग ऐसे थे जो सिर्फ बताये काम ही करते थे, कुछ नया और अच्छा करने का ज़ज़्बा भी उनमें नहीं था। अच्छे, अनुभवी और नयी सोच वाले लोगों को शिक्षा संस्थानों में लाना पड़ा। नाकाबिल और बेकार लोगों को बाहर करना पड़ा। ऐसा करने पर ही धीरे-धीरे माहौल बदलता गया।

शिक्षा के क्षेत्र में अपने इन्हीं नए और कारगर योजनाओं और परियोजनाओं के लिए जानी-पहचानी जाने वालीं अनुषा अपना काफी समय समाज-सेवा में भी लगाती हैं। अनुषा रोटरी क्लब की सक्रीय सदस्य हैं। वे वह अरवनैप्पु संस्था की ट्रस्टी हैं, जो अनाथ बच्चों की सहायता करता है। उनकी कॉलेज की फीस देता है। अनुषा ने फैसला लिया है कि वे इस संस्था के ज़रिये अगले 10 सालों में 25 हज़ार बच्चों की मदद करेंगी। समाज-सेवा से जुड़ा कोई भी कार्य हो अनुषा उसमें अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने से पीछे नहीं हटती हैं। अनाथ बच्चों की पढ़ाई-लिखाई हो या निसहाय बुज़ुर्ग लोगों की मदद, विकलांगों को रोज़गार के अवसर प्रदान करने हों या फिर नाइंसाफी का शिकार लोगों को इंसाफ दिलाना हो अनुषा इन कामों में अपनी पूरी ताकत लगा देती हैं। अनुषा महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए भी काम कर रही हैं। वे महिलाओं को उद्यमी बनने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ती हैं। 

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छोटे-छोटे शहरों के लोग भी दुनिया भर में हो रहे नए-नए सामजिक परिवर्तनों, प्रयोगों, क्रांतिकारी विचारों के बारे में जाने इस मसकद से अनुषा ने ‘टेडएक्स’ को कोयम्बतूर और तिरूप्पुर से भी जोड़ा। ‘टेडएक्स’ के ज़रिये अनुषा ने अपने शहर में कामयाब शख्सियतों को बुलवाकर लोगों को उनसे रूबरू करवाया। अनुषा बताती हैं, ‘जब कॉलेजों में नयी-नयी गतिविधियों की शुरूआत हुई तो ‘टेडएक्स’ को कोयंबतुर लाने का विचार भी यहीं से आया। उससे पहले मैं ‘टेडएक्स’ के कई सम्मेलनों में भाग ले चुकी थी। इसके अंतर्गत कई प्रकार के इन्नोवेशन सामने आये। दुनिया में क्या नया है, क्या नया किया जा सकता है, इस बारे में मेरे शहर के लोग भी सोचें और समझें इसी मकसद से मैंने ‘टेडएक्स’ को यहाँ लाने की पहल की थी।”

बड़ी बात ये भी है कि जब अनुषा ने शिक्षा के क्षेत्र में, ख़ास तौर पर व्यापार-प्रबंधन और विज्ञान-प्रद्योगिकी की शिक्षा के क्षेत्र में क़दम रखा था तब बहुत कम महिलाएँ इस क्षेत्र में थीं। इंजीनियरिंग और बिज़नेस-मैनेजमेंट के कॉलेज चलाना पुरुषों का ही कार्य- क्षेत्र माना जाता था।और तो और, महिलाओं को बड़े-बड़े शिक्षा संस्थान के मुखिया के तौर पर चलाने के लायक ही नहीं माना जाता था, लेकिन अनुषा ने साबित किया कि महिलाएँ बड़े-बड़े शिक्षा संस्थान तो चला ही सकती हैं, साथ ही वे अपने नए और उन्नत विचारों से शिक्षा-व्यवस्था को समाज की भलाई और विकास के लिए नए आयाम भी दे सकती हैं।

एक बड़ी बात ये भी है कि जिस समय अनुषा ने शिक्षा के क्षेत्र में काम करना शुरू किया था, उन दिनों इस तरह काम करने वालों विशेषकर खुलकर काम करने वालों की तारीफ का माहौल भी नहीं था, लेकिन बतौर शिक्षाविद, समाज-सेवी और उद्यमी अनुषा की कामयाबियाँ और उपलब्धियाँ इतनी बड़ी थीं कि उन्हें नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता था। अनुषा को उनके शानदार काम के लिए लगातार पुरस्कार मिलते गए। कई बड़ी-बड़ी संस्थाओं ने उन्हें सम्मानित किया। इन पुरस्कारों ने उन्हें बेहतर काम करने की प्रेरणा दी।

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अनुषा कहती हैं, “हर नया सम्मान मुझे और भी विनम्र और मेहनती बना देता है। हर सम्मान से मेरा हौसला तो बढ़ता ही है, लेकिन ज़िम्मेदारी भी बढ़ जाती है। मुझे लगता है कि हर पुरस्कार मुझसे ये कहता है कि पहले से ज्यादा अब दुगुना और तिगुना मेहनत करनी है।” शिक्षा के क्षेत्र में बहुत कुछ हासिल करने के बाद भी उन्हें एक बात का दुःख है कि भारत में शिक्षा व्यवस्था अब भी पुराने ढर्रे पर ही चल रही है। आज़ादी के ज़माने में जो परीक्षा-व्यवस्था थी वही आज भी है। अनुषा कहती हैं, “ दुनिया तेज़ी से बदल रही है। नए-नए आविष्कार हो रहे हैं। लेकिन भारत में शिक्षा-व्यवस्था में बदलाव नहीं आ रहा है। ये ज़माना इंटरनेट, वाई-फाई, ब्लूटूथ का है। बच्चे लैपटॉप, आई-पैड और मोबाइल से खेलते हुए कई नयी बातें सीख रहे हैं, लेकिन हम आज भी

स्कूल और कालेजों में बच्चों से परीक्षा पन्नों पर भी लिखवाते हैं। मूल्यांकन का वही पुराना तरीका है। मेरी बेटी आई-पैड पर फिल्में बना रही है, लेकिन परीक्षा में उसका मूल्यांकन वही पारंपरिक है। शिक्षा और वास्तविक जीवन में काफी अंतर है। इसी गैप को दूर करने की ज़रूरत है।” इस तरह के नये, व्यापक और सकारात्मक बदलाव की सोच और नज़रिए ने अनुषा को एक कामयाब उद्यमी भी बनाया है। एक कामयाब उद्यमी के तौर पर देश-भर में अब उनकी अलग पहचान बन चुकी है। अनुषा पिछले कुछ सालों से महिलाओं को उद्यमी बनाने के मकसद से कई कार्यक्रम भी आयोजित करवा रही हैं। वे चाहती हैं कि ज्यादा से ज्यादा महिलाएँ उद्यमी बने और सामाजिक और आर्थिक तौर पर मजबूत बनें। अनुषा महिलाओं को सुझाव देती हैं कि व्यापार करना है तो महिलाओं को ये भूल जाना चाहिए कि वे महिला हैं। वे कहती हैं, “ कारोबार में मर्द और औरत के लिए अलग बैलेंस-शीट नहीं होती। अगर हम सामान्य महिला का उदाहरण भी लें, तो जहाँ वह चारदीवारी में क़ैद थी, आज वह इडली-डोसा बेचकर महीने 10 हज़ार रुपये कमा रही है। वह दूसरी महिलाओं की तरह कह सकती है- मैं घर में बैठुंगी, लेकिन वह काम कर रही है। कई महिलाएँ फूल बेचकर भी जीवन बिता रही हैं। मैं चाहती हूँ कि महिलाएँ रूढ़िवादी सोच से बाहर निकालें, चारदीवारी के बाहर की दुनिया को भी देखें और समझें और खुद भी उद्यमी बनें। कलाम ने कहा था छोटे सपने देखना अपराध है। जब आप बड़े काम करना जानते हैं और घर में हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं तो यह अपराध है। महिलाओं को भी बड़े सपने देखने चाहिए और उन्हें साकार करने के लिए बाहर आना चाहिए।” 

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अनुषा कहती हैं कि घर से बाहर निकलकर काम करने के लिए भारत सबसे अच्छा देश हैं। महिलाओं हर जगह काम कर सकती हैं। अवसर अच्छे हैं और प्रोत्साहन भी है, इसी वजह से महिलाएँ देश में बड़े-बड़े पदों पर आसीन हुई हैं। देश में महिला प्रधानमंत्री भी बनी हैं और राष्ट्रपति भी। कुछ राज्यों में महिलाएँ ही मुख्यमंत्री हैं। अगर महिला में ताकत, काबिलियत और जीत का ज़ज्बा है तो वो लीडरशिप पोजीशन में आ सकती हैं।

एक सवाल के जवाब में अनुषा ने कहा, “मेरा काम ही मेरा उत्साह है, वही मेरी प्रेरणा है। प्रतियोगिता ने मुझे और आगे बढ़ने को प्रेरित किया है। आपने अच्छा काम किया और घर जाकर अच्छी नींद सो गये यही सब से बड़ी खुशी है। आपने कुछ समस्याओं को हल नहीं किया, उसे समझा नहीं तो आपको नींद नहीं आएगी। मेरे यहाँ 3000 कर्मचारी हैं उनके हित के लिए फैसले लेने पड़ते हैं। आपने अच्छा नहीं किया तो नींद कैसे आएगी। उनके लिए अच्छे काम करना ही सही कामयाबी और सही खुशी है। मैं जानती हूँ कि उनके लिए काफी अच्छा कर सकती हूँ। मैं अपनी तुलना खुद से करती हूँ। मेरी खुशी वही है कि जब मैंने दिल से अच्छा काम किया है।”

उद्यमी, समाज-सेवी, शिक्षाविद और पर्यावरणविद के तौर पर अपनी जिम्मेदारियाँ बखूबी निभाने के साथ-साथ अनुषा अपने घर-परिवार और गृहस्थी की जिम्मेदारियाँ भी बड़े अच्छे से निभाती हैं। अनुषा दो बच्चों की माँ हैं, लेकिन अपनी व्यस्तताओं के बावजूद गोल्फ़ खेलने और कविताएँ पढ़ने का अपना शौक भी पूरा कर लेती हैं। कारोबार से जुड़ी पुस्तकें पढ़ने का शौक भी उन्हें हैं। कई देशों की यात्राएँ कर चुकीं अनुषा को घूमना-फिरना और नयी-नयी जगह जाकर नयी-नयी बातें सीखना भी बहुत पसंद है। 

शिक्षा के क्षेत्र में कामयाबी की अपनी शानदार कहानी लिख चुकीं अनुषा का सूचना-प्रौद्योगिकी से प्यार अभी कम नहीं हुआ है। अब भी उनके मन-मस्तिष्क पर आईटी से जुड़े कई विचार हावी हैं। सूचना-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कुछ बड़ा और नायाब करने की तमन्ना अब भी बाकी है। अनुषा को बस सही समय और अवसर का इंतज़ार है और वे आईटी के क्षेत्र में भी अपना दमखम मनवाने को तैयार हैं। अपनी कामयाबियों और उद्यमशीलता की वजह से अनुषा आज महिलाओं के लिए एक मिसाल हैं। वे भारतीय महिला की ताकत का एक बढ़िया और शानदार उदाहरण भी हैं। भारतीय महिलाओं को उनसे सीखने के लिए काफी कुछ है। 

बड़ी बात तो ये है कि वे खुद आगे आकर महिलाओं को कारोबार की बारीकियाँ सिखाने को तैयार हैं। कामयाब उद्यमी तो वे हैं ही दूसरी महिलाओं और अपने शिक्षा संस्थान के विद्यार्थियों को कामयाब उद्यमी बनाने की उनकी कोशिशें काबिले तारीफ़ हैं। विद्यार्थी चाहे इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा हो या फिर व्यापर-प्रबंधन सीख रहा हो, उसे एक सामाजिक कार्यकर्ता बनाने की अनुषा की पहल ने भी उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में अलग पहचान दिलवाई है।