Brands
YSTV
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Yourstory
search

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

Videos

ys-analytics
ADVERTISEMENT
Advertise with us

जीपीएस, फास्टैग और फ्यूल कार्ड्स... ऐसे अपना कारोबार डिजिटल बना रहे ट्रक ट्रांसपोर्टर्स

आज से 10 साल पहले देश की अधिकतर सेवाएं डिजिटली लैस नहीं थीं. हालांकि, देश में अधिकतर सेवाओं के डिजिटलीकरण के बाद भी ट्रक ट्रांसपोर्ट सेक्टर इससे अछूता रहा. उसका अधिकतर काम ऑफलाइन रहा, चाहे वह माल लोडिंग के लिए कारोबारियों से संपर्क करना हो, चाहे टोल टैक्स देना हो.

जीपीएस, फास्टैग और फ्यूल कार्ड्स... ऐसे अपना कारोबार डिजिटल बना रहे ट्रक ट्रांसपोर्टर्स

Wednesday November 16, 2022 , 7 min Read

दिल्ली के रहने वाले शैलेंद्र सिंह 192 ट्रकों के मालिक हैं और उनके पास 200 के करीब ट्रक ड्राइवर हैं. वह दिल्ली-एनसीआर में ट्रक से माल पहुंचाने का काम करते हैं. आज शैलेंद्र ऑनलाइन अपने सभी ट्रकों की लोकेशन पता कर सकते हैं. उन्हें अपने ड्राइवरों को टोल के लिए कैश देने की झंझट से छुटकारा मिल चुका है. यही नहीं, वह एक ऐप के माध्यम से अपने सभी ट्रकों में देश के किसी भी पेट्रोल पंप से डीजल भरवा सकते हैं.

YourStory से बात करते हुए शैलेंद्र कहते हैं, 'पहले की तुलना में काम में अब काफी बदलाव आया है. 2010 के आसपास जीपीएस वगैरह नहीं थे, लेकिन अब जीपीएस की सुविधा हो गई है. फास्टैग (Fastag) आ गया है. तेल भरवाने के लिए भी कैश की जरूरत नहीं रह गई है. यह सारी सुविधाएं उन्हें एक साथ ब्लैकबक BlackBuck ऐप पर मिल रही हैं.'

दरअसल, आज से 10 साल पहले देश की अधिकतर सेवाएं डिजिटली लैस नहीं थीं. हालांकि, देश में अधिकतर सेवाओं के डिजिटलीकरण के बाद भी ट्रक ट्रांसपोर्ट सेक्टर इससे अछूता रहा. उसका अधिकतर काम ऑफलाइन रहा, चाहे वह माल लोडिंग के लिए व्यापारियों से संपर्क करना हो, चाहे टोल टैक्स देना हो.

साल 2014 में टोल टैक्स देने के लिए फास्टैग की शुरुआत हुई, जिसने टोल नाकों पर न सिर्फ कैश देने की झंझट से मुक्ति दिलाई बल्कि इससे वहां लगने वाले जाम से भी काफी हद तक राहत मिली. हालांकि, इसके बाद भी ट्रक ड्राइवरों और मालिकों को माल लोडिंग से लेकर तेल भरवाने तक के लिए ऑफलाइन संघर्ष करना पड़ता था. व्यापारियों और ट्रक ड्राइवरों को ढूंढने में काफी मशक्कत करनी पड़ती थी.

इसी को देखते हुए साल 2015 में सप्लाई चेन इंडस्ट्री में कई साल बिताने वाले राजेश याबजी, रामसुब्रमण्यन बी. और चाणक्य हृदय ने ब्लैकबक ऐप की शुरुआत की जो कि ट्रक ट्रांसपोर्ट सेक्टर को डिजिटली लैस करने को लेकर काम कर रहा है.

शैलेंद्र ट्रक ट्रांसपोर्ट के अपने फैमिली बिजनेस में हैं. उनके पिता करीब 20 साल पहले इस कारोबार में उतरे थे. अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद शैलेंद्र ने 2010 में कारोबार संभाल लिया. उस समय शैलेंद्र के पास 5-6 ट्रक थे और उनसे 20-25 हजार रुपये की मासिक कमाई होती थी.

हालांकि, आज शैलेंद्र के पास कुल 192 ट्रक हैं और करीब 200 ट्रक ड्राइवर उनके साथ काम करते हैं. आज उनकी कुल कमाई लगभग 12 करोड़ रुपये की है. पूरा खर्चा निकालने के बाद 40-50 लाख का सालाना मुनाफा हो जाता है.

शैलेंद्र बताते हैं कि हमारे पास 140 से अधिक सीएनजी ट्रक हैं. इसका सबसे बड़ा कारण तो यही है कि डीजल महंगा है और सीएनजी सस्ता है. वहीं, डीजल की गाड़ियों पर दिल्ली-एनसीआर में लगभग 1500 रुपये का टैक्स लग जाता है, जबकि सीएनजी पर नहीं लगता है. हम अधिकतर दिल्ली एनसीआर में मोबाइल की लोडिंग का काम करते हैं.

शैलेंद्र के 90 ट्रकों में GPS डिवाइसेज लगे हुए हैं और जीपीएस से यह सुविधा हो गई है कि वह ऑफिस में बैठकर ही उनकी लोकेशन देख सकते हैं. वह कहते हैं, 'आज हमारी सभी गाड़ियों में जीपीएस की सुविधा है. हम गाड़ियों की लोकेशन देखकर उन्हें नजदीकी माल लोड के लिए कह सकते हैं. ड्राइवर गलत रास्ते गाड़ी ले जा रहा है तो उसे रास्ता बता सकते हैं. अब एक अकेला आदमी 150-200 गाड़ियों को मैनेज कर सकता है.'

वह आगे कहते हैं, 'फास्टैग के आने से भी काफी सुविधा हो गई है. पहले टोल टैक्स के लिए ड्राइवर को कैश देने पड़ते थे, जिससे उनms पैसे छिने जाने या पैसे खोने का खतरा रहता था. अब हम फास्टैग में पैसे डाल देते हैं और वह टोल पर आसानी से निकल जाता है. फास्टैग के आने से अब टोल पर भी लंबी लाइनें नहीं लगती हैं.'

इस तरह अगर देखें तो जीपीएस से लोकेशन पता चल जाती है, फास्टैग से टोल टैक्स दे देते हैं और ब्लैकबक ऐप के माध्यम से ट्रकों में तेल भी भरा देते हैं.

वहीं, 30 वर्षीय रंजीत जाट राजस्थान के भिलवाड़ा के रहने वाले हैं. उनके पास अपनी एक ट्रक है जिसे वह खुद चलाते हैं. वह पिछले 5-6 साल से ट्रक चला रहे हैं. बाद में उन्होंने लोन लेकर एक ट्रक खरीदा और अपनी सुविधा के लिए वह साल 2018 से ब्लैकबक ऐप का इस्तेमाल कर रहे हैं. घर की आर्थिक स्थित अच्छी नहीं होने के कारण उन्होंने 10वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी. उनके पिता जी खेती करते हैं. संयुक्त परिवार में 12 लोग हैं, जिसमें 3-4 लोग कमाते हैं. उनके परिवार में पत्नी और एक बच्चा है.

वह कहते हैं कि पहले उन्हें कैश साथ में लेकर चलते थे लेकिन अब सारा काम ऑनलाइन हो जाता है. अब फास्टैग में पैसे डाल लेते हैं. इसके साथ ही ऐप के माध्यम से ही गाड़ी में डीजल भरवा लेते हैं. वहीं, अब उन्हें ऑनलाइन ही माल लोडिंग की जानकारी मिल जाती है और वह वहां जाकर माल लोड कर लेते हैं. हर महीने ने उन्हें 1-1.5 लाख रुपये की कमाई हो जाती है. वह अपने साथ एक हेल्पर भी रखते हैं और उसे 10 हजार देते हैं.

ब्लैकबक क्या है और यह काम कैसे करता है?

ब्लैकबक के को-फाउंडर्स राजेश और चाणक्य आईआईटी खड़गपुर से पास आउट हैं. राजेश के पास सप्लाई चेन का 5 साल का अनुभव है जबकि रामसुब्रमण्यन के पास 20 साल का सप्लाई चेन का अनुभव है. वहीं, चाणक्य साल 2017 में फोर्ब्स की 30 अंडर 30 लिस्ट में शामिल थे.

YourStory से बात करते हुए चाणक्य कहते हैं, 'हमने 7.5 साल पहले अप्रैल 2015 में ब्लैकबक की शुरुआत की थी. ब्लैकबक का मुख्य उद्देश्य भारत के ट्रक ड्राइवर्स को डिजिटाइज करना है. देश का अधिकतर सामान ये ट्रक ड्राइवर्स एक से दूसरी जगह तक पहुंचाते हैं. इनका पूरा बिजनेस फोन कॉल, मैसेज या कुछ हद व्हाट्सऐप पर चलता है. हालांकि, इनका अधिकतर काम ऑफलाइन चलता है.

उन्होंने बताया कि देशभर में 35-40 लाख ट्रक ऑपरेटर्स हैं जिनके पास 1 करोड़ ट्रक हैं. 80 फीसदी से ज्यादा ट्रक मालिकों के पास मुश्किल से 2 या 3 ट्रक हैं. इस ऐप के माध्यम से हम पूरे ट्रक मालिकों को तेल भराने और टोल से जुड़ी सुविधाएं मुहैया कराते हैं. फास्टैग के माध्यम से टोलिंग को लेकर मिलने वाली पूरी सुविधा हमने अपने ऐप पर मुहैया कराई हुई है.'

चाणक्य कहते हैं कि आज के दिन देश में हर तीसरा ट्रक मालिक ब्लैकबक ऐप का इस्तेमाल करता है. करीब 12 लाख ट्रक मालिक हमारे प्लेटफॉर्म से जुड़े हुए हैं. वहीं, देश में 2.5 लाख से 3 लाख ट्रांसपोर्टर्स या शिपर्स हैं जो डेली मूवमेंट करते हैं. आज हमारे प्लेटफॉर्म से 50 हजार से अधिक शिपर्स जुड़े हुए हैं और हमारे प्लेटफॉर्म पर हर महीने ट्रांजैक्शन करते हैं.

चाणक्य ने कहा कि फास्टैग के साथ ही हमने एक फ्यूल कार्ड्स के नाम से एक डिजिटल फ्यूलिंग सिस्टम बनाया है. इसके माध्यम से ब्लैकबक यूजर देश के किसी भी पेट्रोल पंप पर जा सकते हैं और बिना कोई कैश दिए हुए डिजिटली तेल भरवा सकते हैं.

उन्होंने कहा कि इसके अलावा हमारा जीपीएस की सुविधा वाला एक टेलीमैटिक सिस्टम है. इसके तहत हम ट्रक के मैपिंग का हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर दोनों सिस्टम मुहैया कराते हैं. इससे ट्रक मालिक घर या दफ्तर में बैठे हुए यह देख सकते हैं कि उनके ट्रक के साथ क्या हो रहा है या वह कहां पर है. चोरी या किसी अनहोनी के हालात में ट्रक ड्राइवर के पास ऐसी सुविधा होती है जिससे वे ऐप के माध्यम से अपने ट्रक को लॉक कर सकते हैं और ऐप से अनलॉक किए बिना ट्रक मूवमेंट नहीं कर पाएगी.

उन्होंने बताया कि ट्रक मालिकों या ड्राइवरों को माल लोडिंग की जानकारी भी चाहिए होती है. इसके लिए हमने एक मार्केटप्लेस प्लेटफॉर्म बनाया हुआ है. यहां हम ट्रक मालिकों और कारोबारियों को मिलाते हैं, जिससे कि माल लोडिंग की समस्या का समाधान हो सके. इसके माध्यम से ट्रक मालिक, कारोबारी से और कारोबारी, ट्रक मालिक से माल लोडिंग के लिए संपर्क कर सकता है.

चाणक्य ने कहा कि हमारी 7 हजार लोगों की टीम है. इसमें ग्राउंड पर जाकर ट्रक मालिकों और शिपर्स को जोड़ने वाली सेल्स टीम है. इसके अलावा हमारी टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और फाइनेंस टीम है. ब्लैकबक के फंडर्स में फ्लिपकार्ट, गोल्डमैन सैश, सिकोइया व अन्य हैं. इसने अब तक 300 मिलियन डॉलर की फंडिंग जुटाई है.