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Essentialism: कौन सा काम वाकई जरूरी है ये पहचानने की अहमियत और तरीका बताती है ये किताब

ग्रेग मैकिओन ने अपनी किताब Essentialism में इसी कॉन्सेप्ट और इसकी अहमियत को समझाने की कोशिश की है. 2014 में छपी इस किताब का नाम मिलियन कॉपी बेस्टसेलर में शुमार है. ये किताब बताती है कि काम या चीजों की फेहरिस्त में सिर्फ गिनी चुनी चीजें ही हैं जो असल में मायने रखती हैं.

Essentialism: कौन सा काम वाकई जरूरी है ये पहचानने की अहमियत और तरीका बताती है ये किताब

Saturday December 24, 2022 , 3 min Read

आपने अक्सर सुना होगा कि हमें ना कहना आना चाहिए. ये भी अपने आप में एक कला है. खुद स्टीव जॉब्स भी इस स्किल को काफी प्रमोट करते आए हैं. लेकिन हमें ये भी तो मालूम होना चाहिए कि असल में किस काम को ना कहना है और किसे नहीं.

ये तब मुमकिन हो सकेगा जब हम ये फैसला कर पाएंगे कि कौन सा काम या चीज हमारे लिए जरूरी है और कौन सी नहीं. अंग्रेजी भाषा में इस कॉन्सेप्ट को Essentialism का नाम दिया गया है.

ग्रेग मैकिओन ने अपनी किताब Essentialism में इसी कॉन्सेप्ट और इसकी अहमियत को समझाने की कोशिश की है. 2014 में छपी इस किताब का नाम मिलियन कॉपी बेस्टसेलर में शुमार है. ये किताब बताती है कि काम या चीजों की फेहरिस्त में सिर्फ गिनी चुनी चीजें ही हैं जो असल में मायने रखती हैं.

मैकिओन कहते हैं कि essentialism छोटी मोटी तुच्छ चीजों में से जरूरी चीजों को चुनने की कला है.उनके मुताबिक  “Essentialism is वो नहीं है कि आप किसी काम को कैसे पूरा करके डिलीवर कर देते हैं, बल्किदस काम में से कौन सी चीज वाकई जरूरी है उसे पहचानना है और उसे पूरा करना  Essentialism है. इसका मतलब ये नहीं है कि आप कम काम करें. बल्कि आपको पहचानना होगा कि कौन सा काम मेरा समय सबसे अधिक डिजर्व करता है इस तरह आप जरूरी चीजों को प्राथमिकता दे पाएंगे.

मैकिओन अपने किताब में हसल कल्चर के भ्रम को तोड़ने का काम करते हैं, जिसे इस इंटरनेट युग में काफी बढ़ावा दिया जा रहा है.

वो किताब में एक जगह लिखते हैं, ‘हम गैरजरूरी चीजें जैसे- अच्छी कार, अच्छे घर, या फिर ट्विटर पर अपने फॉलोअर्स के नंबर के पीछे पड़े रहते हैं. कुछ लोग तो फेसबुक पर अपनी तस्वीर देख देख कर खुश होते रहते हैं. इन चीजों की वजह से हम उन एक्टिविटीज को अनदेखा कर देते हैं जो वाकई हमारे लिए जरूरी हैं. जैसे कि- अपनों के साथ वक्त बिताना, अपना ख्याल रखना.

किताब तीन जरूरी चीजों पर बात करती है:

  1. कुछ नहीं करना और सब कुछ करना दोनों ही आदतें हम खुद सीखते हैं.
  2. आप  90% रूल अपना कर अपने लाइफ के एडिटर खुद बन सकते हैं.
  3. हमेशा अपने आप को 50% का बफर दें.

इसके अलावा किताब कई बड़े नामी एग्जिक्यूटिव्स और वाइस प्रेजिडेंट्स की निजी जिंदगी के अनुभवों से सराबोर है. खुद ग्रेग ने भी अपने रूटीन से जुड़े एक्सपीरियंस के बारे में लिखा है. किताब में कोई चैप्टर नहीं है.पढ़ने में यह एक टेक्स्टबुक की तरह लग सकती है; इंस्ट्रक्शन और इन्फॉर्मेशन से भरी हुई.

किताब बेसिकली ये कहना चाहती है कि ‘जितना कम उतना अच्छा’, जो चीज जरूरी न हो उसे तुरंत अपनी जिंदगी से हटा देना चाहिए.

किताब में ढेरों कहानियां, कोट और पुराने किस्से हैं, लेकिन यही इसका खामी भी बन जाती है. किताब में कई जगह विजुअल्स का भी इस्तेमाल किया है जो कहानी की सीख को और स्पष्ट कर देते हैं. किताब चैप्टर्स में बंटी हुई है. किताब को पढ़ते हुए ऐसा लग सकता है कि सभी चैप्टर्स एक ही जैसे हैं.

अगर आप लाइफ को सही ढंग से प्लान करना चाहते हैं तो आपको ये किताब जरूर पढ़नी चाहिए. ये किताब आपको उन चीजों को ना बोलना सिखाएगी जो आपके लिए जरूरी नहीं है, वो भी खुदा को बिना कोई दोष दिए.

अगर आप खुद को बार-बार ऐसी स्थिति में जहां आपको लगता है आप काम तो कर रहे हैं लेकिन प्रोडक्टिव नहीं हैं, क्या ऐसा लगता है कि ओवरवर्क कर रहे हैं लेकिन अंडरयूटिलाइज्ड हैं…अगर इन सवालों के जवाब हां है तो ये किताब यकीनन आपके काम आ सकती है.


Edited by Upasana