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यौन उत्पीड़न का आरोप, राज्यसभा की सदस्यता... क्यों विवादों से घिरे रहे जस्टिस रंजन गोगोई?

जस्टिस रंजन गोगोई का न्यायाधीश और भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में कार्यकाल कई विवादों और व्यक्तिगत आरोपों से भरा था. हालांकि, उन्होंने देश के सीजेआई के पद पर रहते हुए कई महत्वपूर्ण फैसले भी दिए थे.

यौन उत्पीड़न का आरोप, राज्यसभा की सदस्यता... क्यों विवादों से घिरे रहे जस्टिस रंजन गोगोई?

Friday November 18, 2022 , 6 min Read

18 नवंबर को देश के सबसे विवादित जजों में एक देश के पूर्व चीफ जस्टिस का जन्मदिन है. वह पूर्वोत्तर भारत के ऐसे पहले व्यक्ति हैं जो सुप्रीम कोर्ट के शीर्ष पद पर काबिज हुए थे.

जस्टिस रंजन गोगोई का न्यायाधीश और भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में कार्यकाल कई विवादों और व्यक्तिगत आरोपों से भरा था. हालांकि, उन्होंने देश के सीजेआई के पद पर रहते हुए कई महत्वपूर्ण फैसले भी दिए थे. रिटायरमेंट के बाद राज्यसभा की सदस्यता स्वीकार कर उन्होंने अपने साथ जुड़े विवादों को और बढ़ा दिया था.

असम के मुख्यमंत्री रह चुके थे पिता

रंजन गोगोई का जन्म 18 नवम्बर, 1954 का असम के डिब्रगढ़ में में हुआ था. उनके पिता केशब चंद्र गोगोई 1982 में असम राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. उन्होंने 1978 में बार काउंसिल ज्वाइन की थी. जस्टिस गोगोई ने अपने करियर की शुरुआत गुवाहाटी हाईकोर्ट से की. 2001 में वहां जज बने थे.

वे पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश थे. उसके बाद 2012 से भारत के उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश रह चुके रजंन गोगोई ने 3 अक्टूबर 2018 को भारत के 46वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लिया था. वह 17 नबंवर 2019 को सीजेआई के पद रिटायर हुए थे. जस्टिस गोगोई 13 महीने से कुछ अधिक के कार्यकाल के बाद नवंबर, 2019 में सीजेआई पद से सेवानिवृत्त हुए थे.

जस्टिस गोगोई ऐतिहासिक प्रेस कॉन्फ्रेंस का हिस्सा थे

जस्टिस गोगोई देश के इतिहास में पहली बार पूर्व सीजेआई दीपक मिश्रा के कार्यकाल के दौरान 12 जनवरी, 2018 को सुप्रीम कोर्ट चार जजों द्वारा की गई प्रेस कॉन्फ्रेंस का हिस्सा थे. उन्होंने अपने तीन साथी जजों जस्टिस जे. चेलामेश्वर, जस्टिस एमबी लोकुर और जस्टिस कूरियर जोसेफ के साथ मिलकर यह प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी.

यह प्रेस कॉन्फ्रेंस सुप्रीम कोर्ट की न्यायिक वितरण प्रणाली में विफलता और केसों के आवंटन में गड़बड़ी को लेकर की गई थी. प्रेस बैठक के दौरान, चारों न्यायाधीशों ने पत्रकारों से कहा था कि विशेष सीबीआई न्यायाधीश बीएच लोया की मौत के मामले को जस्टिस अरुण मिश्रा को आवंटित करने से प्रेरित होकर उन्होंने प्रेस वार्ता की है.

लोया, एक विशेष सीबीआई न्यायाधीश थे, जिनका दिसंबर 2014 में निधन हो गया था. जस्टिस लोया 2004 के सोहराबुद्दीन शेख मामले की सुनवाई कर रहे थे, जिसमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का भी नाम सामने आया था. बाद में जस्टिस अरुण मिश्रा ने खुद को इस मामले से अलग कर लिया.

यौन उत्पीड़न के आरोपों का किया सामना

सुप्रीम कोर्ट की एक महिला कर्मचारी ने अप्रैल, 2019 में सुप्रीम कोर्ट के 22 जजों को पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि सीजेआई जस्टिस रंजन गोगोई ने अक्टूबर 2018 में उनका यौन उत्पीड़न किया था. 35 वर्षीय यह महिला अदालत में जूनियर कोर्ट असिस्टेंट के पद पर काम कर रही थीं.

आरोपों के प्रकाशित होने के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने मामले का स्वत: संज्ञान लिया और मामले को अदालत के नॉन वर्किंग डे शनिवार को एक खुली अदालत में सूचीबद्ध कर दिया. जस्टिस गोगोई के खुद उस खंडपीठ की अध्यक्षता करने पर काफी आलोचना हुई थी.

जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस इंदिरा बनर्जी सहित आतंरिक समिति ने महिला कर्मचारी की शिकायत पर जांच की थी, इन लोगों के अनुसार महिला के आरोपों में कोई तथ्य नहीं पाए गए थे और पूर्व सीजेआई को इन आरोपों से क्लीन चिट दे दी गई थी. हालांकि, इस पूरी प्रक्रिया को अपारदर्शी बताया गया और उसकी आलोचना हुई. बाद में महिला कर्मचारी की नौकरी बहाल कर दी गई.

राज्यसभा के लिए चुने जाने वाले दूसरे सीजेआई बने

जस्टिस गोगोई को 16 मार्च, 2020 राज्यसभा के लिए मनोनित किया गया था. सरकार द्वारा उन्हें राज्यसभा भेजे जाने पर भी काफी विवाद हुआ था. तमाम विपक्षी दलों ने इसको लेकर आपत्ति जताई थी. वह राज्यसभा के लिए मनोनीत होने वाले भारत के पहले पूर्व चीफ जस्टिस हैं. इससे पहले भी पूर्व चीफ जस्टिस रंगनाथ मिश्रा राज्यसभा के सदस्य चुने गए थे, लेकिन वे कांग्रेस पार्टी के टिकट पर चुने गए थे.

महत्वपूर्ण फैसले

जज और चीफ जस्टिस के तौर पर जस्टिस गोगोई का कार्यकाल कुछ विवादों और व्यक्तिगत आरोपों से अछूता नहीं रहा लेकिन यह कभी भी उनके न्यायिक कार्य में आड़े नहीं आया और इसकी झलक तब देखने को मिली जब उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने कुछ ऐतिहासिक फैसले दिए.

1. अयोध्या मामला

सीजेआई रंजन गोगोई ने अपने कार्यकाल का सबसे बड़ा और ऐतिहासिक फैसला अयोध्या मामले में 9 नवंबर 2019 को दिया था. उनकी अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने राम मंदिर और बाबरी मस्जिद की विवादित जमीन के उस मामले पर अंतिम फैसला सुनाया जो सैकड़ों सालों से चला आ रहा था. उन्होंने अपने फैसले में राम मंदिर निर्माण के लिए हिंदुओं को 2.77 एकड़ विवादित जमीन सौंपी गई और मुसलमानों को शहर में मस्जिद बनाने के लिये “महत्वपूर्ण स्थल” पर पांच एकड़ जमीन देने को कहा.

2. सबरीमाला फैसला

जस्टिस गोगोई ने उस पीठ की भी अध्यक्षता की थी जिसने 3:2 के बहुमत से उस याचिका को सात जजों वाली बड़ी पीठ के समक्ष भेज दिया, जिसमें केरल के सबरीमला मंदिर में सभी आयुवर्ग की लड़कियों और महिलाओं को प्रवेश के 2018 के आदेश पर पुनर्विचार का अनुरोध किया गया था.

3. चीफ जस्टिस का ऑफिस RTI के दायरे में

13 नवंबर 2019 जस्टिस गोगोई उस पीठ की भी अध्यक्षता कर रहे थे जिसने यह ऐतिहासिक फैसला दिया कि प्रधान न्यायाधीश का कार्यालय सूचना के अधिकार कानून के तहत लोक प्राधिकार है, लेकिन “लोकहित” में सूचनाओं का खुलासा करते वक्त “न्यायपालिका की स्वतंत्रता को ध्यान में रखा जाए”. यह मामला भी करीब नौ साल चल रहा है.

4. न्यायाधिकरण सदस्यों की नियुक्ति पर केंद्र के नियम रद्द किए

जस्टिस गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने विभिन्न न्यायाधिकरणों के सदस्यों के लिए नियुक्ति और सेवाशर्तों के लिये केंद्र द्वारा तय नियमों को पूरी तरह रद्द कर दिया और केंद्र द्वारा वित्त विधेयक 2017 को धन विधेयक के तौर पर पारित करने की वैधता का मामला बृहद पीठ के पास भेज दिया.

5. असम में NRC की निगरानी की

वह उस पीठ का भी हिस्सा थे जिसने यह निगरानी कर सुनिश्चित किया कि असम (उनके गृह प्रदेश) में राष्ट्रीय नागरिक पंजी की कवायद तय समय-सीमा में पूरी हो.

6. राफेल मामला

जस्टिस गोगोई का नाम राफेल विमान मामले में मोदी सरकार को दो बार क्लीन चिट देने वाली पीठ की अध्यक्षता करने के लिये भी याद रखा जाएगा. 14 दिसंबर 2018 को सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट तीन जजों की पीठ ने भारतीय वायुसेना के लिए भारत और फ्रांस के बीच हुए लड़ाकू विमान राफेल के सौदे पर जांच की मांग वाली याचिका खारिज कर दी थी.

इसके बाद 14 नवंबर, 2019 को जस्टिस गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने उस याचिका को भी खारिज कर दिया था, जिसमें राफेल लड़ाकू विमान सौदे में अदालत के 14 दिसंबर 2018 के फैसले पर पुनर्विचार का अनुरोध किया गया था.