क्या पुरानी पेंशन स्कीम सरकारी खजाने पर बोझ है? जानिए यह क्या और इस पर विवाद क्यों है
कांग्रेस ने राजस्थान और छत्तीसगढ़ में इस योजना को लागू करने के बाद अब गुजरात और हिमाचल प्रदेश में भी इसे लागू करने का वादा किया है. वहीं, आम आदमी पार्टी ने पंजाब और झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने भी इसे लागू करने की घोषणा कर दी है.
गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों ने पिछले कई सालों से सरकारी कर्मचारियों द्वारा मांग की जा रही पुरानी पेंशन योजना (OPS) पर एक बार फिर से बहस छेड़ दी है. हिमाचल प्रदेश में बीते 12 नवंबर को मतदान हुए हैं, जबकि गुजरात में 1 और 5 दिसंबर को मतदान होना है.
कांग्रेस ने राजस्थान और छत्तीसगढ़ में इस योजना को लागू करने के बाद अब गुजरात और हिमाचल प्रदेश में भी इसे लागू करने का वादा किया है. वहीं, आम आदमी पार्टी ने पंजाब और झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने भी इसे लागू करने की घोषणा कर दी है.
हालांकि, साल 2004 में इस योजना को समाप्त करने वाली एनडीए सरकार इसके खिलाफ है. वहीं, देश की कई वित्तीय संस्थाएं और देश के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) इसके आर्थिक बोझ को लेकर चिंताएं जाहिर कर रहे हैं.
दरअसल, पुरानी पेंशन योजना (OPS) पर जारी बहस के बीच भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) गिरीश चंद्र मुर्मू ने गुरुवार को राज्यों की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करने वाले रिस्क फैक्टर्स पर प्रकाश डाला है.
मुर्मू ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) और 15वें वित्त आयोग ने राज्यों के लिए राजकोषीय जोखिमों के संभावित स्रोत पर ध्यान दिया है, जिसमें कुछ राज्यों में पुरानी पेंशन योजना को फिर से शुरू करना शामिल है. मुर्मू ने कहा कि भारतीय राज्यों की राजकोषीय स्थिति एक प्रासंगिक मुद्दा है, जिसका सावधानीपूर्वक मूल्यांकन किया जाना चाहिए.
पुरानी पेंशन योजना (OPS) क्या है?
पुरानी पेंशन योजना के तहत केंद्र और राज्यों के सरकारी कर्मचारियों के लिए पेंशन उनके आखिरी मूल मासिक वेतन (बेसिक पे) का 50 फीसदी तय था. पुरानी पेंशन योजना या 'ओपीएस' इसलिए आकर्षक है क्योंकि यह किसी रिटायर कर्मचारी को एक सुनिश्चित या 'परिभाषित' लाभ देती है. इसलिए इसे 'परिभाषित लाभ योजना' कहा जाता था.
उदाहरण के लिए, यदि रिटायरमेंट के समय एक सरकारी कर्मचारी का मूल मासिक वेतन 10,000 रुपये था, तो उसे गारंटी के साथ 5,000 रुपये की पेंशन मिलती थी. साथ ही, सरकारी कर्मचारियों के वेतन की तरह, सरकार द्वारा सेवारत कर्मचारियों के लिए घोषित महंगाई भत्ते या डीए में बढ़ोतरी के साथ पेंशनभोगियों के मासिक भुगतान में भी वृद्धि होती है.
महंगाई भत्ता या डीए एक प्रकार का एडजस्टमेंट है जो सरकार अपने कर्मचारियों और पेंशनभोगियों को रहने की लागत (कॉस्ट ऑफ लिविंग) में लगातार वृद्धि के लिए देती है. डीए बढ़ोतरी की घोषणा साल में दो बार आम तौर पर जनवरी और जुलाई में की जाती है. 4 प्रतिशत डीए बढ़ोतरी का मतलब होगा कि 5,000 रुपये प्रति माह की पेंशन वाले एक सेवानिवृत्त व्यक्ति की मासिक आय बढ़कर 5,200 रुपये प्रति माह हो जाएगी.
आज तक, सरकार द्वारा भुगतान की जाने वाली न्यूनतम पेंशन 9,000 रुपये प्रति माह है और अधिकतम 62,500 रुपये है (केंद्र सरकार में उच्चतम वेतन का 50 प्रतिशत, जो कि 1,25,000 रुपये प्रति माह है).
OPS को लेकर समस्या क्या थी?
OPS के साथ सबसे बड़ी समस्या यह थी कि पेंशन के लिए विशेष तौर पर कोई फंड नहीं था. भारत सरकार हर साल पेंशन के लिए बजट देती है. हालांकि, भविष्य में साल दर साल पेमेंट का कोई रोडमैप नहीं था. इसके साथ ही हर पेंशन पाने वाले की पेंशन राशि भी हर साल मौजूदा कर्मचारियों की सैलरी की तरह बढ़ जाती है.
वहीं, हर साल बजट से पहले सरकार रिटायर कर्मचारियों के लिए पेमेंट का अनुमान लगाती है और मौजूदा टैक्सपेयर्स को अभी तक के सभी पेँशनरों के लिए टैक्स पे करना होता है. इस तरह मौजूदा पीढ़ी को लगातार बढ़ रहे पेंशन का बोझ उठाना पड़ रहा था.
पिछले तीन दशकों में, केंद्र और राज्यों के लिए पेंशन देनदारियां कई गुना बढ़ गई हैं. 1990-91 में, केंद्र का पेंशन बिल 3,272 करोड़ रुपये था और सभी राज्यों के लिए कुल व्यय 3,131 करोड़ रुपये था. 2020-21 तक, केंद्र का बिल 58 गुना बढ़कर 1,90,886 करोड़ रुपये हो गया था; राज्यों के लिए, यह 125 गुना बढ़कर 3,86,001 करोड़ रुपये हो गया था.
इस समस्या के समाधान के लिए क्या कदम उठाए गए?
1998 में, केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने वृद्धावस्था सामाजिक और आय सुरक्षा (OASIS) परियोजना के लिए एक रिपोर्ट मांगी. सेबी और यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष एसए दवे के तहत एक विशेषज्ञ समिति ने जनवरी 2000 में रिपोर्ट प्रस्तुत की.
OASIS परियोजना सरकारी पेंशन प्रणाली में सुधार के लिए नहीं थी. इसका प्राथमिक उद्देश्य असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को लेकर था, जिनके पास कोई वृद्धावस्था आय सुरक्षा नहीं थी.
1991 की जनगणना के आंकड़ों को लेते हुए, समिति ने पाया कि सिर्फ 3.4 करोड़ लोगों, या 31.4 करोड़ की अनुमानित कुल कामकाजी आबादी के 11 प्रतिशत से भी कम लोगों के पास सेवानिवृत्ति के बाद की कुछ आय सुरक्षा थी. उनके पास सरकारी पेंशन, कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) या कर्मचारी पेंशन योजना (ईपीएस) थी. बाकी की कामकाजी जनसंख्या के पास रिटायरमेंट के बाद की आर्थिक सुरक्षा का कोई साधन नहीं था.
OASIS रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि कर्मचारी तीन प्रकार के फंडों में निवेश कर सकते हैं. पहला सुरक्षित (इक्विटी में 10 प्रतिशत तक निवेश की अनुमति), संतुलित (इक्विटी में 30 प्रतिशत तक), और विकास (इक्विटी में 50 प्रतिशत तक). इसे छह फंड प्रबंधकों द्वारा जारी किया जाएगा. शेष राशि का निवेश कॉर्पोरेट बॉन्ड या सरकारी प्रतिभूतियों में किया जाएगा. व्यक्तियों के पास अलग से रिटायरमेंट खाते होंगे और उन्हें कम से कम 500 रुपये प्रति वर्ष निवेश करने की आवश्यकता होगी.
नई पेंशन स्कीम कैसे लागू हुई?
प्रोजेक्ट OASIS द्वारा प्रस्तावित नया पेंशन सिस्टम ही पेंशन सुधार का आधार बना. इस तरह असंगठित क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए प्रस्तावित योजना को सरकारी कर्मचारियों के लिए अपना लिया गया.
केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए नई पेंशन योजना (एनपीएस) को 22 दिसंबर, 2003 को अधिसूचित किया गया था. कुछ अन्य देशों के विपरीत, एनपीएस स्वैच्छिक कर्मचारियों के लिए था. इसे 1 जनवरी, 2004 से सरकारी सेवा में शामिल होने वाले सभी नए भर्ती के लिए अनिवार्य कर दिया गया था.
परिभाषित योगदान में कर्मचारी द्वारा मूल वेतन और महंगाई भत्ते का 10 प्रतिशत और सरकार द्वारा एक समान योगदान शामिल किया गया. जनवरी 2019 में सरकार ने अपना योगदान बढ़ाकर मूल वेतन और महंगाई भत्ते का 14 फीसदी कर दिया.
31 अक्टूबर, 2022 तक, केंद्र सरकार के पास 23,32,774 सब्सक्राइबर्स थे और राज्यों में 58,99,162 सब्सक्राइबर्स थे. कॉरपोरेट क्षेत्र में 15,92,134 सब्सक्राइबर्स और असंगठित क्षेत्र में 25,45,771 सब्सक्राइबर्स थे.
एनपीएस स्वावलंबन योजना के तहत 41,77,978 सब्सक्राइबर्स थे. 31 अक्टूबर, 2022 तक इन सभी सब्सक्राइबर्स के प्रबंधन के तहत कुल संपत्ति 7,94,870 करोड़ रुपये थी.
UPA सरकार ने NDA की नई पेंशन स्कीम को दी थी मंजूरी
अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने ही पेंशन सुधार का बीड़ा उठाया था. 1 जनवरी, 2004 से एनपीएस सरकार में नई भर्तियों के लिए प्रभावी हो गया और उस वर्ष सत्ता में आई कांग्रेस की अगुआई वाली नई सरकार ने पूरी तरह से सुधारों को स्वीकार कर लिया.
21 मार्च, 2005 को, यूपीए सरकार ने एनपीएस के नियामक पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण को वैधानिक समर्थन देने के लिए लोकसभा में एक विधेयक पेश किया. विधेयक को भाजपा के बीसी खंडूरी की अध्यक्षता वाली वित्त संबंधी स्थायी समिति के पास भेजा गया था.
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