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कैसे डिप्रेशन ने दी पूनम सोलंकी को दूसरों के लिए बेहतर करने की सीख, ज़रूर पढ़ें

कैसे डिप्रेशन ने दी पूनम सोलंकी को दूसरों के लिए बेहतर करने की सीख, ज़रूर पढ़ें

Tuesday April 05, 2016 , 8 min Read

जिंदगी बर्फ के मानिंद है, जो वक्त के साथ रफ़्ता-रफ़्ता पिघल कर खत्म होती जाती है। लेकिन किसी के जीने का अंदाज इसे कभी आम तो कभी खास बना देती है। कुछ लोग इसे नेक कामों में खर्च करते हैं तो कुछ, यू ही इस बेशकीमती जिंदगी को ज़ाया कर देते हैं। व्यक्तिगत मुश्किलें, परेशानियां, और अधूरे ख्वाबों के बीच अच्छे दिनों की उम्मीदों का बोझ अकसर लोगों को दबा देता है। इंसान जिंदगी में करना तो बहुत कुछ चाहता है पर, वह कर नहीं पाता। लेकिन कुछ लोग अपनी तमाम परेशानियों और मसरूफियत के बावजूद दूसरों के लिए भी वक्त निकाल लेते हैं। वह कुछ ऐसा करते हैं, जो उनकी अंतरात्मा चाहती है। इससे उन्हें न सिर्फ सुकून और संतोष मिलता है, बल्कि समाज भी इससे लाभान्वित होता है और ऐसे लोग शेष समाज के लिए प्रेरणा बनते हैं। हम आपको मिलवा रहे उस 35 वर्षीय पूनम सोलंकी से जो एक आम महिला से खास बन गई हैं। कभी गंभीर डिप्रेशन से गुजरने वाली पूनम अब दूसरों की जिंदगी की मुश्किलें आसान करती हैं। आम से खास बनने का पूनम सोलंकी की जिंदगी का ये सफर उन तमाम लोगों के लिए एक मिसाल है, जो अपने सामान्य जिंदगी में भी औरों से कुछ अलग करना चाहते हैं। मृदुभाषी, सौम्य स्वभाव, व्यवहार कुशल और आकर्षक शख्सियत की धनी पूनम एक साथ राजनीति, समाज सेवा और सांस्कृतिक क्षेत्रों में बराबर का दखल रखती हैं। इसके बावजूद अपनी कामयाबियों को जताने के बजाए उसे छुपाना उन्हें ज्यादा पसंद है।


पूनम सोलंकी

पूनम सोलंकी


कुष्ट रोगियों और बेनाम औलादों के हक की आवाज़

छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में रहने वाली पूनम सोलंकी बड़ी ही खामोशी के साथ ऐसे मुददों पर काम करती हैं, जिसपर आमतौर पर लोग बातें भी करना पसंद नहीं करते और काम भी विरले ही लोग करते हैं। पूनम पिछले कई सालों से इलाके में रहने वाले कुष्ट रोगियों की मदद करती हैं। उनकी पहचान कर उनका इलाज और पुनर्वास कराना उनका काम है। ऐसे रोगियों को वह मुफ्त में मिलने वाले सरकारी इलाज और दवाओं के बारे में जानकारी उपलब्ध कराती हैं। उन्हें इलाज के लिए प्रेरित करती है। कुष्ट निवारण योजनाओं में लगे सरकारी और गैर सरकारी एजेंसियों को वह ऐसे रोगियों के पुनर्वास योजनाओं में सहायता करती हैं। आम लोगों में कुष्ट और कुष्ट रोगियों के प्रति फैली दुभार्वना और पूर्वाग्रह को दूर कर लोगों को जागरुक करती हैं। इसके अलावा पूनम वैसे बच्चों के हक की बात भी उठाती है, जिनका जन्म किसी अवैध संबंधों के चलते हुआ है। पूनम वैसे बच्चों को किसी अनाथालय या किसी को गोद देने के बजाए उसे उसके वास्तविक पिता का नाम दिलाने में ज्यादा यकीन रखती हैं। उनका मानना है कि इससे जहां इस तरह की बुराई पर अंकुश लगेगा, वहीं ऐसे बच्चों को उनका अधिकार मिल सकेगा। हालांकि इस सामाजिक बुराई के खिलाफ आवाज उठाना कोई आसान काम नहीं है, क्योंकि इसमें अधिकतर समाज का ताकतवर और दबंग तबका ही गुनहगार होता है। उसकी मुखालफत करना दुश्मनी मोल लेने से कम नहीं है। फिर भी पूनम इस मुद्दे पर काम करती हैं।


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लोक और ओडिसी नृत्य का प्रशिक्षण

पूनम सोलंकी एक सफल लोक और ओडिसी नर्तकी हैं। ओडिसी के साथ छत्तीसगढ़ी, राजस्थानी और गुजराती लोक नृत्य गरबा में वह पारंगत हैं। नृत्य उनकी जिंदगी का एक अटूट हिस्सा है। साधना और पूजा है। हर फनकार की तरह वह भी अपने कला को जीती हैं। घुंघरूओं की झंकार और तबलों के थाप पर उनकी अप्रतिम भाव-भंगिमाएं और कदमों की जुम्बिश उनकी किसी भी नृत्य शैली को बेहद खास बना देती है। इस कला की बारीकियां जानने वाला दर्शक उनकी प्रस्तुति देख कर पहली बार में उनके नृत्य शैली का कायल हो जाता है। वह अबतक कई बड़े आयोजनों में अपना परफार्मेंस दे चुकी हैं। उन्हें कई पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। उनका अपना एक डांस ग्रुप भी है। वह खुद छत्तीसगढ़ में पैदा और पली बढ़ी हैं, लेकिन गुजरात के लोगों को उनका गरबा डांस सिखाती हैं। वह आर्थिक रूप से कमजोर बच्चियों को मुफ्त में नृत्य की विभिन्न शैलियों का प्रशिक्षण देती हैं। उनके अन्दर के कला को निखार कर उन्हें मांजती और संवारती हैं


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2004 में रह चुकी हैं पार्षद

पूनम सोलंकी कई कलाओं में माहिर हैं। कला, संस्कृति के साथ राजनीति में भी उन्हें बेहद दिलचस्पी है। वर्ष 2004 में वह अपने क्षेत्र की पार्षद रह चुकी हैं। लगभग 15 सालों से पार्षद रहे कांग्रेस के उम्मीदवार के खिलाफ लोगों ने उन्हें मैदान में उतारा था। उनकी लोकप्रियता की वजह से चुनाव में उन्हें रिकार्ड मतों से जीत हासिल हुई और अगले पांच सालों तक वह पार्षद रहीं। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने अपने क्षेत्र के विकास के लिए हर संभव कोशिश की। वार्ड में बुनियादी सुविधाओं के विकास के साथ-साथ महिला सशक्तिकरण और शिक्षा पर उन्होंने खास जोर दिया। महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने और उनकी सुरक्षा का उन्होंने खास ख्याल रखा। अगले चुनाव में आरक्षित सीट होने के कारण वह दोबारा चुनाव तो नहीं लड़ पायी लेकिन इलाके में समाजिक कार्यों का उनका सिलसिला बदस्तूर आज भी जारी है।


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समाज से मिटाना चाहती हैं ग़ैर बराबरी

पूनम सोलंकी समाज से जाति प्रथा और तमाम तरह की आर्थिक और सामाजिक विषमता को दूर करना चाहती है। उन्होंने योरस्टोरी से बात करते हुए कहा, 

"देश तभी तरक्की करेगा जब समाज से गैर बराबरी को समाप्त कर दिया जाएगा। जातिप्रथा सामाजिक एकता में सबसे बड़ी बाधा है। इसमें बंधे होने के कारण लोगों की सोच संकुचित हो जाती है। लोग पूरी मानवता, समाज और देश का भला करने और होने की जगह अपनी जाति तक ही सिमट कर रह जाते हैं। जाति व्यवस्था से देश में चुनाव प्रक्रिया भी निष्पक्ष तौर पर नहीं हो पाती है। एक योग्य और अच्छे उम्मीदवार को वोट देने के बजाए लोग अपनी जाति के अयोग्य और यहां तक कि दागदार छवि के उम्मीदवारों को भी चुनाव में विजय दिला देते हैं।" 

जाति प्रथा पर पूनम की सेाच और वक्तव्य सिर्फ किसी नेता का बयान नहीं है, बल्कि उन्होंने इसे अपने खुद के जीवन में भी लागू किया है।


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लड़कियों की आजादी की हैं पक्षधर

महिला विमर्श पर भी पूनम की राय बेबाक और स्पष्ट है। वो कहती हैं, महिला सशक्तिकरण की राह में सबसे पहला कदम लड़कियों और महिलाओं की आजादी को मानती हूं। देश और दुनिया की आधी आबादी को हाशिए पर रखकर कोई भी देश या समाज तरक्की नहीं कर सकता है। महिलाओं को भी अपनी मर्जी के मुताबिक अपना करियर चुनने की आजादी होनी चाहिए, ताकि वह खुद को साबित कर सके। जिंदगी में अपनी एक अलग पहचान बना सके। अपना मुकाम हासिल कर सके। वह महिलाओं की देश और समाज निर्माण प्रक्रिया में पूरी भागीदारी चाहती हैं। पूनम कहती हैं, 

"एक महिला अगर अपने परिवार का अच्छे से ख्याल रख सकती है। अपने बाल-बच्चों की परवरिश कर सकती है, तो वह उसी जिम्मेदारी और निष्ठा के साथ अपने देश और पूरे समाज की भी जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा सकती है। बस उसे एक मौका चाहिए।" 

इसके लिए वह लड़कियों की शिक्षा को बेहद जरूरी मानती है। शिक्षा में ही उन्हें महिलाओं की मुक्ति का रास्ता नजर आता है। वह चाहती हैं कि बेटियां खूब पढ़े और जीवन में आगे बढ़े।


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लड़कियों की मर्जी से हो उनकी शादी

पूनम बाल विवाह और बेमल विवाह दोनों के सख्त खिलाफ हैं। वह कहती हैं 

"बाल विवाह से जहां लड़कियों का बचपन समाप्त हो जाता है और वह पढ़-लिख नहीं पाती हैं, वहीं बेमेल विवाह से उसका पूरा जीवन बर्बाद हो जाता है। शादी में लड़कियों की सहमति बेहद जरूरी है। माता-पिता को चाहिए की अपनी बेटी से उसके भावी जीवन साथी की राय जरूर लें। अपनी मर्जी उसपर थोपने के बजाए स्वेच्छा से उसे पूरा फैसला करने दें।" 

पूनम खुद छत्तीसगढ़ की हैं, लेकिन उन्होंने शादी गुजराती परिवार में दूसरी जाति के लड़के से की थी। अंतर्जातीय विवाह पर उनका रुख बिलुकल स्पष्ट है। वह कहती हैं इसे बढ़ावा मिलनी चाहिए। सरकार भी इसे प्रोमोट करने के लिए आज ऐसे युवाओं को 50 हजार से लेकर ढाई लाख तक की प्रोत्साहन राशि दे रही है।


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डिप्रेशन की वजह से मिली दूसरों के लिए कुछ करने की प्रेरणा

पूनम सोलंकी के सार्वजनिक जीवन की शुरूआत काफी दिलचस्प है। रायगढ़ के कॉलेज में बीएसएसी की पढ़ाई के दौरान अपने कॉलेज के एक सहपाठी दिवेश सोलंकी से वह प्रेम कर बैठी। घर वालों की मनाही के बावजूद उन्होंने दिवेश से शादी कर ली। हालांकि शादी के सालों बाद वह आज भी यही कहती हैं कि वह नहीं, बल्कि दिवेश उनके पीछे पड़े थे! खैर, मामला जो भी रहा हो, परिवार में पहली बार कोई प्रेम विवाह और वह भी अंतर्जातीय हर किसी को नागवार गुजरा। दोनों के परिवार वालों ने उनका बॉयकॉट कर दिया। इस पारिवारिक उपेक्षा और अलगाव का पूनम पर काफी बुरा असर हुआ। वह गहरे डिप्रेशन में चली गईं। डॉक्टरों से उनका इलाज कराया गया। इस बीच घरेलु रिश्तों में शादी को लेकर आई कड़वाहट में भी मिठास भरने लगी। पूनम के मायके और ससुराल दोनों पक्षों ने धीरे-धीरे उन्हें स्वीकारना शुरू कर दिया। लेकिन वह अवसाद से बाहर नहीं आ पा रही थीं। इसी दौरान अवसाद से मुक्ति के लिए उन्हें नृत्य की तरफ मुखातिब किया गया, जिसका शौक बचपन से उनके मन के किसी कोने में दबा पड़ा था। पूनम ने नृत्य की शुरूआत तो डिप्रेशन से निकलने के लिया किया था, लेकिन उन्हें पता ही नहीं चला की कब और कैसे उनके कदम राजनीति और समाज सेवा के रास्ते की जानिब बढ़ते चले गए। 


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पूनम कहती हैं, 

"जीवन की सुंदरता और सफलता इस बात पर निर्भर नहीं करती कि आप कितना खुश हैं बल्कि जीवन की सार्थकता इस बात में हैं कि दूसरे आपकी वजह से कितना खुश हैं।"