वेस्ट से बनाए बैस्ट प्रॉडक्ट, लोगों को खूब आकर्षित कर रहे हैं ''ब्लू मेड ग्रीन'' के प्रॉडक्ट्स
- पर्यावरण से करीबी, और रचनात्मक सोच ने सुझाया ब्लू मेड ग्रीन का आइडिया।- डेनिम को रीयूज़ करके बना रही हैं नए-नए उत्पाद।- ज्यादा से ज्यादा वेस्ट उत्पादों का बैस्ट यूज़ करना है प्रभा का लक्ष्य।- घर से ही कर रही हैं यह काम। और फेसबुक और माउथ पब्लिसिटी के माध्यम से मिल रहा है खूब काम।
कितना अच्छा हो यदि हमारा कोई भी सामान वेस्ट ही न हो। हर पुराना सामान नए सामान की बुनियाद बन जाए। हमें कुछ भी फेंकने की जरूरत ही न पड़े। सुनने में बेशक यह बातें तुरंत स्वीकार्य न लग रही हों लेकिन यह सच हो सकता है। बैंगलुरू की रत्ना प्रभा राजकुमार ऐसा ही काम कर रही हैं। प्रभा ने 'ब्लू मेड ग्रीन' की शुरुआत अपने घर से ही की। प्रभा शुरु से ही पर्यावरण के प्रति काफी संवेदनशील रही हैं। प्रभा ने रीसाइकलिंग के बारे में काफी रिसर्च भी की। इस दौरान उन्होंने दुनिया के कई लोगों को पढ़ा जो इस दिशा में काम कर रहे हैं। आज प्रभा अपने बुटीक के माध्यम से वेस्ट से बैस्ट बनाने में जुटी हैं। वे पुरानी हो चुकी डेनिम जींस से कई बेहतरीन वस्तुएं बना रही हैं। आइए डालते हैं एक नज़र प्रभा के इस सफर पर।
सन 2005 के दौरान प्रभा अपने पति और बेटी के साथ चीन में रह रही थीं। इस दौरान उनकी बेटी के स्कूल में एक सांस्कृतिक कार्यक्रम था। प्रभा चाहती थीं कि उनकी बेटी कथककली नृत्य की कॉस्ट्यूम पहनें लेकिन चीन में यह कॉस्ट्यूम मिलना नामुमकिन था। तब प्रभा ने तय किया कि वे पूरी ड्रेस खुद तैयार करेंगी। इस काम में उन्हें एक सप्ताह का समय लगा। प्रभा बताती हैं कि यह उनका पहला रीसाइकलिंग प्रयास था। जिसके लिए उन्हें काफी सराहा गया और किसी को यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह ड्रेस रीसाइकिल करके मैंने खुद तैयार की है। मुकुट, चूडिय़ां, दाढ़ी, कान की बालियां आदि सब कुछ मैंने कार्टन, न्यूज़ पेपर और मिनरल वाटर बोतल से बनाया था।
उस समय तो खुद प्रभा को भी अंदाजा नहीं था कि आगे चलकर वे कुछ ऐसा ही काम करेंगी। प्रभा हमेशा से ही पुरानी चीज़ों से कुछ बेहतर बनाती रहती थीं। चाहे चॉकलेट बॉक्स से टी ट्रे बनाना हो। स्कूल बुक्स और कार्टन से फोटो फ्रेम बनाना हो या फिर कुछ ऐसा ही छोटा मोटा काम। प्रभा हमेशा से ही रचनात्मक रहीं हैं। वे बताती हैं कि यह सब करना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं होता लेकिन जब यह चीज़ें बनकर तैयार हो जाती हैं तो बहुत संतुष्टि मिलती है।
प्रभा की मां केरल में अपना बुटीक चलाती हैं। प्रभा को उनकी एक रिश्तेदार श्रीमती दक्षायनी से प्रेरणा मिली जिन्होंने 72 साल की उम्र में केरल की मूरल पेंटिंग सीखी। और मूरल्स को साड़ी और कुर्ती में पेन्ट किया। प्रभा बचपन से ही उनके काम को बहुत बारीकी से देखा करती थीं और प्रभा ने उनसे मात्र 11 साल की उम्र में ही क्रोशिया करना सीख लिया था। प्रभा बताती हैं कि इसके अलावा उनकी बेटी और पति भी उन्हें बहुत प्रेरित करते हैं। जहां वे उन्हें प्रेरित करते हैं वहीं वे दोनों उनके बहुत बड़े क्रिटिक भी हैं।
प्रभा बताती हैं कि जब भी वे वार्डरोब को देखा करती थीं तो उन्हें बहुत बुरा लगता था क्योंकि उसमें से काफी ऐसे कपड़े होते थे जो केवल जगह घेरते थे और वे उन्हें कभी यूज़ नहीं करती थीं। अक्सर हम ऐसे कपड़े गरीबों को या फिर अपने यहां काम करने वालियों को दे देते हैं लेकिन सच तो यह है कि कई बार यह कपड़े उनके भी काम के नहीं होते। तब प्रभा ने तय किया कि वे अपनी पुरानी जींस को अपसाइकिल करके इसको बेहतर प्रयोग में लाएगी। जींस का फैब्रिक बहुत अच्छा और ड्यूरेबल होता है। धीरे-धीरे उन्होंने इसका सही इस्तेमाल करना शुरु किया। वे बताती हैं कि इस काम ने उनकी सोच को बहुत बदला। प्रदर्शनी व कार्यक्रमों के दौरान प्रभा कई लोगों से मिलती रहीं हैं जो पर्यावरण के लिए बहुत संवेदनशील व जागरूक हैं। प्रभा उनसे जरूरी सलाह भी लेती हैं और उनकी सलाह पर काम भी करती हैं। इसके अलावा वे खुद अपने उत्पादों का डेमो भी करके दिखाती हैं और लोगों को बताती हैं कि कैसे वे पुराने गारमेंट्स का इस्तेमाल करके फैब्रिक्स बैज्स बना रही हैं। प्रभा बताती हैं कि ब्लू मेड ग्रीन से हमारा उद्देश्य वेस्ट मटीरियल को ज्यादा से ज्यादा रीयूज़ करना है।
प्रभा ब्लू मेड ग्रीन के बैनर तले कई तरह के बैज्स बनाती हैं। इसके अलावा और भी कई प्रॉडक्ट्स जैसे - बैक पैक्स, लैपटॉप बैग, डेनिम स्कर्ट्स, जैकेट्स, फ्रैक्स, एपरॅन, कुशन कवर, बैडशीट आदि भी बना रही हैं। प्रभा के इन उत्पादों को काफी पसंद किया जा रहा है।
प्रभा इसके अलावा भी पर्यावरण रक्षा के लिए लोगों को प्रेरित करती हैं। वे खुद अपने साथ गाड़ी में हमेशा पुराने न्यूजपेपर रखती हैं ताकि यदि कुछ सामान खरीदना पड़े तो वे दुकानदार से पॉलिथीन बैग न लें और खरीदे गए सामान को न्यूज़पेपर में रैप करके घर लाएं। वे लोगों को भी ऐसा ही करने की सलाह देती हैं।
प्रभा बताती हैं, बेशक यह काम आसान है लेकिन बहुत चुनौतिपूर्ण भी है। क्योंकि प्रॉडक्ट को बनाते वक्त बहुत सी बातों को ध्यान रखना होता है जैसे प्रॉडक्ट की फिनिंशिंग पर ध्यान देना बहुत जरूरी होता है। लेकिन वह अपने काम को बहुत मजे से आनंद के साथ करती हैं इसलिए यह काम उन्हें मुश्किल नहीं लगता। प्रभा बताती हैं कि ब्लू मेड ग्रीन के सभी उत्पाद बहुत हटकर हैं। यहां पर कुछ प्रॉडक्ट कस्मटर की जरूरत को देखते हुए उनकी मांग के अनुसार बनाए जाते हैं। प्रभा को जो भी ऑडर मिलते हैं वह फेसबुक और व्यक्तिगत संपर्क से मिलते हैं। इसके अलावा वे प्रदर्शनी और वर्कशॉप भी लगाती हैं। आने वाले समय में वे अपने उत्पादों को विभिन्न ई-कॉमर्स साइट्स के माध्यम से लोगों के सामने लाना चाहती हैं।
कहानी- सौमित्रा के चैटर्जी
अनुवादक- आशुतोष खंतवाल