'वन ट्री डेली टिल डेथ', पेशे से इंजीनियर पर चिंता हमारी कई पीढ़ियों को बचाने की
रुचिन मेहरा अपने ‘‘वन ट्री डेली टिल डेथ’’ अभियान के माध्यम से प्रतिदिन कम से कम एक पौधा उगा रहे हैं...बीते आठ महीनों में शहर के विभिन्न हिस्सों में 300 पौधों को सफलतापूर्वक उगा चुके हैं...पौधों की देखभाल के लिये पुरानी बोतलों के प्रयोग से ‘ड्रिप इरीगेशन तकनीक’ का करते है इस्तेमाल...आने वाली पीढ़ियों को सांस लेने के लिये साफ हवा उपलब्ध करवाने और विभिन्न जीव-जंतुओं को बचाने का है प्रयास...
कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता,
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों।।
‘‘कोई भी मनुष्य अपने जन्म के समय से लेकर मृत्यु तक पेड़ों से प्राप्त होने वाली आॅक्सीजन के सहारे जीवित रहता है लेकिन इस जीवनदायिनी की उत्पत्ति करने वाले पेड़ों को उगाने के लिये तैयार नहीं है। हमारा सारा जीवन पेड़ों के इर्द-गिर्द घूमता है और पेड़-पौधों के बिना हम मनुष्य के जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते, लेकिन फिर भी हममें से अधिकतर इनके संरक्षण के प्रति बिल्कुल उदासीन रहते हैं।’’ यह कहना है गाजियाबाद के रहने वाले रुचिन मेहरा का।
इलेक्ट्राॅनिक्स एंड कम्युनिकेशन के क्षेत्र में इंजीनियर रुचिन प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा के लिये अपने तरफ से अकेले ही प्रयास कर रहे हैं। इन्होंने अपनी तरफ से पर्यावरण की रक्षा के लिये फरवरी 2015 से एक अभियान ‘‘वन ट्री डेली टिल डेथ’’ का आगाज़ किया है जिसमें इन्होंने ताउम्र रोजाना कम से एक पौधा उगाने का प्रण लिया है। अबतक अपने इस अभियान के तहत रुचिन 300 पौधों को सफलतापूर्वक उगा चुके हैं और सभी पौधों की पूरी देखभाल भी कर रहे हैं। हालांकि अभियान के प्रारंभ में वे बिल्कुल अकेले थे लेकिन पर्यावरण संरक्षण के प्रति उनका जुनून देखकर अब कई स्थानीय लोग भी इनका साथ देने के लिये आगे आए हैं और उनके इस अभियान में सहभागी बन रहे हैं।
अपने इस अभियान के बारे में बताते हुए रुचिन कहते हैं, ‘‘सबसे पहले तो मैं दिल्ली-एनसीआर के इलाके में लगातार बढ़ते हुए प्रदूषण के स्तर को लेकर काफी चिंतित था। मेरा मानना है कि अगर हमारे चारों तरफ की आबोहवा की आज यह हालत है तो आने वाली पीढ़ीयों को सांस लेने के लिये साफ हवा भी मयस्सर नहीं होगी। सांस लेने के लिये साफ हवा यानी कि आॅक्सीजन सबसे बड़ी आवश्यकता है और इसके लिये पेड़ लगाने के अलावा हमारे सामने और कोई रास्ता नहीं है।’’ वे आगे कहते हैं, ‘‘इसके अलावा हम पैदा होने से लेकर मरने तक किसी न किसी रूप में पेड़ों से प्राप्त होने वाली लकड़ी का प्रयोग करते हैं। चाहे हमारे घर में रोजाना इस्ेमाल होने वाला फर्नीचर हो फिर अन्य वस्तुएं। सबमें पेड़ों से प्राप्त होने वाली लकड़ी का ही इस्तेमाल होता है। इसके अलावा हमारे हिंदु धर्म में तो व्यक्ति को मरने के बाद भी अंतिम संस्कार के लिये लकड़ी की ही आवश्यकता होती है। हम अपनी आवश्यकताओं की पूर्ती के लिये पेड़ काटे तो जा रहे हैं लेकिन हममें से कोई भी पौघे लगाने की तरफ ध्यान ही नहीं दे रहा है।’’
इसके साथ-साथ रुचिन को पक्षियों और जानवरों से भी बहुत प्रेम है और वे कहते हैं कि बीते कई वर्षों से इस इलाके में सुनाई देने वाली पक्षियों की चहचहाटक की ध्वनि सुनाई देनी बंद हो गई है। रुचिन कहते हैं, ‘‘पक्षियों को अपना जीवन बनाए रखने के लिये पेड़ों की बहुत आवश्यकता है क्योंकि अगर पेड़ ही नहीं रहेंगे तो वे अपने घोंसले कहां बनाएंगे। और अगर उनके पास रहने के लिये कोई जगह ही नहीं होगी तो वे रहेंगे कहां। इसके अलावा बंदर, गिलहरी इत्यादि जैसे छोटे-छोटे जानवर तो इस क्षेत्र से लुप्त ही हो गए हैं।’’ अपनी इन्हीं चिंताओं का जवाब तलाशने के दौरान रुचिन ने पौघारोपण करना प्रारंभ किया।
अपने इस ‘‘वन ट्री डेली टिल डेथ’’ कैंपेन के बारे में बताते हुए रुचिन कहते हैं, ‘‘आने वाली पीढ़ीयों को इन्हीं सब चुनौतियों से बचाने के लिये मैंने अकेले पौधे लगाने प्रारंभ किये लेकिन लोगों के बीच जागरुकता की कमी के चलते मेरे द्वारा लगाए गए पौधे बहुत ही कम समय में सूख जाते। ऐसे में मैंने फैसला किया कि मैं प्रतिदिन एक पौधा लगाऊंगा और जहां भी पौधा लगाउंगा वहां के स्थानीय निवासियों को इनकी देखरेख के लिये अपने साथ जोड़ूंगा। धीरे-धीरे लोगों को मेरा यह विचार पसंद आने लगा और अब लोग खुद ही मेरे साथ जुड़ते हैं।’’
रुचिन आगे बताते हैं कि रोजाना एक पौधा लगाने के बाद उसे प्रतिदिन पानी देना अपने आप में काफी चुनौतीपूर्ण काम है। उन्होंने इस समस्या का समाधान तलाशने के क्रम में किताबों और इंटरनेट का सहारा लिया और ‘ड्रिप इरीगेशन तकनीक’ को अपनाया। इस तकनीक के बारे में बताते हुए रुचिन कहते हैं, ‘‘इस तकनीक में हम लोगों द्वारा प्रयोग करके फेंक दी गई कोल्ड ड्रिंक की दो लीटर की बोतलों का प्रयोग करते हैं। हम बोतल को पीछे से काट देते हैं और फिर उसे बंद करके उसके ढक्कन में एक छेद करके उसे पौधे के साथ उल्टा गाड़ देते हैं। इस प्रकार बोतल से बूंद-बूंद पानी रिसता है जो करीब एक सप्ताह तक पौधे के लिये पानी की आपूर्ति कर देता है। इस तकनीक का सबसे बड़ा फायदा यह है कि हमें सप्ताह में सिर्फ एक बार ही पौधों को पानी देना पड़ता है।’’
रुचिन का यह अभियान धीरे-धीरे लोगों के बीच खासा लोकप्रिय होता जा रहा है और अब वे पौधे लगाने के लिये उन्हें अपन क्षेत्र में आमंत्रित करने लगे हैं। अपने इस अभियान के लिये रुचिन को पौधे गाजियाबाद स्थित वन विभाग की स्थानीय पौधशाला से उपलब्ध हो जाते हैं। रुचिन बताते हैं कि वे स्कूलों, पार्कों, सड़कों के मध्य बने डिवाइडरों इत्यादि पर पौधे लगाते हैं। इसके अलावा वे ऐसे स्थलों को तलाशते रहते हैं जहां आसानी से पौधारोपण किया जा सके। रुचिन बताते हैं, ‘‘हम अबतक बरगद, नीम, शीशम, पिलखन, आंवला, अर्जुन, सेमल, आम, जामुन इत्यादि के 300 पौधों को रोप चुके हैं और मुझे उम्मीद है कि मैं जबतक जीवित हूँ मैं रोजाना कम से कम एक पेड़ लगाने के अपने इस अभियान में सफल रहूंगा। हमारा प्रयास रहता है कि हम अपने इस अभियान में उगाने के लिये ऐसे पौधों को चुनें जो आने वाली कई सदियों तक जीवित रहें और मानव जाति के काम आएं।’’ रुचिन कई बार तो एक ही दिन में कुछ स्थानों पर तो स्थानीय निवासियों के सहयोग से एक से अधिक पौधे भी लगाते हैं।
अपने इस अभियान के अलावा रुचिन बीते करीब आठ वर्षों से जानवरों के लिये काम करने वाली संस्था ‘पीपल फाॅर एनीमल’ के भी सक्रिय सदस्य हैं। अबतक कई अभियानों के तहत वे वन्य जीवों के तस्करों के चंगुल से एक हजार से भी अधिक जानवरों को मुक्त करवा चुके हैं। इलेक्ट्राॅनिक्स एंड कम्युनिकेशन के क्षेत्र में इंजीनियरिंग कर चुके रुचिन पहले एचसीएल इंफोसिस्टम और भारत इलेक्ट्राॅनिक्स जैसी नामचीन कंपनियों में नौकरी कर चुके हैं लेकिन प्रकृति के प्रति जुनून के चलते वे अधिक समय तक इन संस्थानों के साथ काम नहीं कर पाए और नौकरी को अलविदा करके पेड़-पौधों और जानवरों की सेवा में लग गए। रुचिन अब अपनी आजीविका चलाने के लिये नौवीं से लेकर बारहवीं तक के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते हैं और बाकी बचे समय में अपने इस जुनून को पूरा करते हैं।
अंत में रुचिन कहते हैं, ‘‘इस अभियान के जरिये मेरा प्रयास है कि मैं आमजन के बीच प्रकृति और पर्यावरण को लेकर चेतना जगा सकूं। इसके अलावा मेरा प्रयास है कि अधिक से अधिक लोग सामने आएं और आने वाली पीढ़ीयों का ख्याल रखते हुए अधिक से अधिक पौधों को उगाएं।’’
रुचिन से उनके फेसबुक पेज पर संपर्क करें।