रेलवे के मुफ्त वाई-फाई से कुली ने पास किया सिविल सर्विस एग्जाम
सिविल सर्विस एग्जाम में कुछ इस तरह पास हुआ ये कुली...
आंधी-तूफान तो आते ही रहते हैं। दीया न बुझने देना ही जीवन की कामयाबी होती है। वह केरला के कुली श्रीनाथ हों या राजस्थान की पहली महिला कुली मंजू, जिन्होंने राष्ट्रपति भवन से देश की विशिष्ट महिलाओं को इसी साल सम्बोधित किया था। श्रीनाथ की मिसाल इसलिए भी लाजवाब है कि एर्नाकुलम जंक्शन (तिरुअनंतपुरम) के फ्री वाईफाई की मदद से पढ़ाई कर वह सिविल सर्विसेज एग्जाम पास हो गए हैं।
रेलवे स्टेशनों पर कुली का काम कितना श्रमसाध्य होता है, हर किसी को पता है। सिर्फ काम कठिन होता तो कोई सह भी लेता, ऊपर से इस वर्ग को यात्रियों से मुफ्त की झिड़कियां भी सुनती रहनी पड़ती हैं। ऐसे में कोई शख्स भला कैसे इतने चैलेंजिंग एग्जाम के लिए, वह भी वाईफाई के सहारे तैयारी कर सकता है।
जिस सिविल सर्विस एग्जाम में कामयाबी के लिए युवा कमाऊ-खाऊ कोचिंग सेंटरों में रट्टे लगाते रहते हैं, मोटी-मोटी किताबें उलटते-पुलटते आंखों रोशनी थमने लगती है, कइयों के तो बाल सफेद हो जाती हैं लेकिन मंजिल का कुछ नहीं होता, उसी सर्विस तक पहुंचने की राह में गुदरी के लाल जैसे एर्नाकुलम जंक्शन (तिरुअनंतपुरम) के एक कुली को रेलवे स्टेशन के फ्री वाईफाई की मदद से सफलता मिल गई। अपनी बेमिसाल कामयाबी से सबको हैरत में डाल देने वाले उस बेजोड़ शख्स का नाम है श्रीनाथ। जी हां, एर्नाकुलम जंक्शन पर बीते पांच वर्षों से कुलीगिरी कर रहे श्रीनाथ ने केरल पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा पास कर ली है।
इस रेलवे स्टेशन पर दो साल पहले मुफ्त वाई-फाई की सेवा शुरू की गई थी। रेलटेल कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड के खुदरा ब्रांडबैंड वितरण मॉडल रेलवायर के तहत यात्रियों को स्टेशन पर मुफ्त इंटरनेट उपलब्ध कराया जाता है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि उन्होंने अपनी पढ़ाई-लिखाई किताबों के भरोसे नहीं की। अध्ययन के संसाधन के नाम पर उनके पास बस एक अदद फोन सेट, ईयरफोन और स्टेशन के वाईफाई का सहारा। कहते हैं न कि जहां चाह, वहां राह। तो श्रीनाथ की चाह ने उनको मंजिल तक पहुंचा दिया है। अब वह केरल पब्लिक सर्विस कमिशन का रिटिन एग्जाम पास कर चुके हैं।
वह दिनभर तो सबसे श्रमसाध्य कुली का काम करते रहते लेकिन साथ में अपना स्मार्टफोन चालू रखते, ईयरफोन कानों में झूलता रहता, काम के साथ एग्जाम की तैयारी भी चलती रहती। सिर पर रेलवे के मुसाफिरों का बोझा लादे श्रीनाथ अपने स्मार्टफोन और ईयरफोन से लेक्चर भी सुनते रहा करते, पूरे टाइम उसे दोहराते रहते, फिर रात में उसे रिवाइज कर लेते थे। इस तरह एक-एक दिन कर उनकी मंजिल करीब आती चली गई। पर्सनल इंटरव्यू में पास हो जाने के बाद वह अब भूमि राजस्व विभाग में विलेज फील्ड अस्टिटेंट पद के लिए सिलेक्ट हो सकते हैं। वह तीसरी बार केरल सिविल सर्विस परीक्षा में बैठे। अब वह अन्य प्रशासनिक सेवाओं के एग्जाम देने के बारे में भी सोच रहे हैं। श्रीनाथ ने दिखा दिया है कि सरकार के डिजिटल इंडिया अभियान को किस तरह अपनी सफलता का संसाधन बनाया जा सकता है।
गौरतलब है कि कुछ साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में भारतीय रेलवे को आधुनिक बनाने के लिए कई स्टेशनों पर वाई-फाई की सुविधा शुरू की गई। इस सुविधा का किसी ने दुरुपयोग किया तो किसी ने इससे सिविल सर्विस की परीक्षा को पास कर लिया। साल 2016 के अक्टूबर में एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें बताया गया था कि बिहार की राजधानी के पटना स्टेशन पर वाई-फाई से लोग जमकर पॉर्न सर्च कर रहे हैं। रिपोर्ट सामने आने के बाद सरकार का जमकर मजाक उड़ाया गया था, लेकिन अब श्रीनाथ की कामयाबी ने ये साबित कर दिया है कि व्यवस्था वही एक होती है, उसी में से सही लोग सही राह ढूंढ निकालते हैं और गलत लोग खुद का बेड़ा गर्क करते रहते हैं।
देश के रेलवे स्टेशनों पर इस सुविधा को फ्री रखा गया है। इसे स्टेशनों पर कोई भी इस्तेमाल कर सकता है। वर्ष 2018 के मई तक देशभर के 685 रेलवे स्टेशनों पर ये सुविधा उपलब्ध हो गई है, जबकि भारतीय रेलवे ने मार्च 2019 तक इसे 8500 पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। रेलवे स्टेशनों पर कुली का काम कितना श्रमसाध्य होता है, हर किसी को पता है। सिर्फ काम कठिन होता तो कोई सह भी लेता, ऊपर से इस वर्ग को यात्रियों से मुफ्त की झिड़कियां भी सुनती रहनी पड़ती हैं। ऐसे में कोई शख्स भला कैसे इतने चैलेंजिंग एग्जाम के लिए, वह भी वाईफाई के सहारे तैयारी कर सकता है।
इस कामयाबी से एक और सीख मिलती है कि त्रेता में समुद्र पर पुल बनाने वाले नल-नील हों, सड़क की रोशनी में पढ़ाई कर अमेरिका के राष्ट्रपति बने इब्राहिम लिंकन हों या पहाड़ काट कर रास्ता बनाने वाले दशरथ माझी, पत्थरों को तोड़ निर्झर बहाने वाले ही जमाने की नजीर बना करते हैं। श्रीनाथ बताते हैं कि यह उनका पहला मौका था, जब उन्होंने स्टेशन पर उपलब्ध वाईफाई सुविधा का इस्तेमाल किया, ऑनलाइन परीक्षा फार्म भरा और देश दुनिया की ताजा जानकारियों से खुद को अपडेट किया, साथ ही अपने विषयों की जम कर तैयारी की।
सिस्टम की हर वक्त बुराइयों का वाजिब-नावाजिब सिलसिला तो चलता ही रहता है, लेकिन हमारे देश में कई एक व्यवस्थाएं आज भी किसी परिश्रमी और काबिल व्यक्ति के लिए इतनी अनुकूल हैं कि वह कितनी ऊंचाइयां छलांग सकता है। अपने देश के पीएम को ही देख लीजिए, जो कभी चाय बेंचा करते थे। अमिताभ बच्चन मुंबई में किस्मत आजमाने के लिए मुद्दत तक चप्पलें घिसते रहे। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री सिर पर बस्ता लादे नदी पार कर पढ़ने जाया करते थे। कामयाब लोगों के ऐसे तमाम उदाहरण भरे पड़े हैं। श्रीनाथ की कामयाबी को देखते हुए याद करिए कि जब हम किसी रेलवे स्टेशन पर अपना सामान लादे-फादे पहुंचते हैं, सबसे पहले जिस शख्स पर निगाह जाती है, वो कुली ही होता है।
इसी कुली पर कभी अमिताभ बच्चन के मुंह से एक गाना खूब मशहूर हुआ था- सारी दुनिया का बोझ हम उठाते हैं। दक्षिण के मशहूर एक्टर रजनीकांत भी तो कभी कुली और कंडक्टर का काम कर चुके हैं। क्या कुली की तरह मशक्कत करने का कोई आसानी से साहस कर सकता है, कत्तई नहीं। अपने भीतर इतनी प्रतिभा होते हुए भी श्रीनाथ ने वह करने का साहस किया तो नजीर बन गए हैं। वह हमारे वक्त के युवाओं के लिए सबसे बेहतर मिसाल हो सकते हैं। एक ऐसी ही महिला कुली हैं राजस्थान की मंजू। वह अपने राज्य की पहली महिला कुली हैं। उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि आजीविका कमाने के लिए पुरुषों के वर्चस्व वाले पेशे में काम करने की उसकी विवशता उसे एक दिन ऐश्वर्या राय बच्चन और 90 अन्य महिलाओं के साथ राष्ट्रपति भवन पहुंचा देगी।
21 जनवरी, 2018 को जब जयपुर रेलवे स्टेशन पर 15 नंबर की कुली मंजू ने इस काम को करने की अपनी परिस्थितियां बताईं तो राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी भावुक हो गए थे। मंजू ने राष्ट्रपति भवन में अपने-अपने क्षेत्र में उपलब्धियां हासिल करने वाली महिलाओं को संबोधित करते हुए उस दिन बताया था कि मेरा वजन 30 किलोग्राम था और यात्रियों का बैग भी 30 किलोग्राम था लेकिन तीन बच्चों को पालने के बोझ के मुकाबले यह कहीं नहीं था। मेरे पति की मौत के बाद मुझे उन्हें पालना था। मेरे भाई ने मुझे जयपुर आने और कोई काम ढूंढने के लिए कहा। अधिकारियों ने उन्हे छह महीने तक प्रशिक्षण दिया और उसके बाद वह कुली बन गईं। मंजू और श्रीनाथ की आपबीती से एक और सबक मिलता है कि परिस्थितियां कुछ भी करने के लिए हर किसी को विवश करती हैं लेकिन आंधियों में दीया न बुझने देना ही जीवन की कामयाबी होती है। अंधड़-तूफान तो आते ही रहते हैं।
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