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दुधिया से चोट खाकर तीन अनपढ़ महिलाओं ने बनाई करोड़ो की कंपनी, आज 18 गांव की 8000 महिलाएं हैं शेयरधारक

दुधिया से चोट खाकर तीन अनपढ़ महिलाओं ने बनाई करोड़ो की कंपनी, आज 18 गांव की 8000 महिलाएं हैं शेयरधारक

Monday March 07, 2016 , 6 min Read

कड़ी मेहनत के साथ दिल में कुछ कर गुजरने का जज़्बा हो तो बड़ी से बड़ी मुश्किलें भी आसान हो जाती हैं. इस बात को सही साबित किया है राजस्थान के धौलपुर की तीन अनपढ़ महिलाओं ने. साहूकार के सूद चुकाने के लिए परेशान रहनेवाली इन महिलओं ने दूध बेचकर आज करोड़ो के टर्नओवर करनेवाली कंपनी खड़ी कर ली है. इनकी सफलता की कहानियों से सीखने के लिए मैनेजमेंट स्कूल के छात्र गांव आ रहे हैं.

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इस दिलचस्प कहानी की शुरुआत 11 साल पहले हुई थी जब धौलपुर के करीमपुर गांव में शादी करके तीन औरतें अनीता, हरिप्यारी और विजय शर्मा आई थीं. तीनों के पति कुछ नही करते थे और घर की आर्थिक स्थिति ठीक नही थी. हालात ने तीनों को सहेली बना दिया. इन्होंने परिवार चलाने के लिए खुद हीं कुछ करने को ठानी और साहूकार से ब्याज पर 6-6 हजार रुपए लेकर भैंस खरीदा. इन्हें गांव में किसी ने बताया था कि तुम तो भैंस पाल लो फिर दुधिया(गांव में दूध खऱीदनेवाला व्यापारी) घर आकर दूध खरीदकर ले जाएगा. लेकिन हुआ उल्टा. ये कर्ज के दलदल में फंसने लगी. दुधिया रोज-रोज किसी ने किसी बहाने दूध लेने से मना करता और फिर ब्लैकमेल कर औने-पौने दामों पर खरीदता था. कभी कहता कि दूध में फैट कम है तो कभी कहता कि दूध में पानी है, डेयरी वाले पैसे नही दिए. हालात बिगड़े तो मजबूरन तीनों सहेली ने भैंसों के दूध लेकर खुद ही डेयरी जाने लगीं. वहां जाकर पता चला कि दुधिया तो इन्हें आधा ही पैसा देता था.


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बस उसी दिन से ये तीनों खुद हीं डेयरी में दूध लेकर जाने लगी और धीरे-धीरे एक जीप किराया पर लेकर आस-पास के गावों में भी दूध इकट्ठा कर डेयरी सेंटर पर लेकर जाने लगी. इनकी आमदनी बढ़ने लगी. अनीता बताती है कि "तब हमने दिन रात काम करना शुरु किया. सुबह के तीन बजे से दूध बटोरना शुरु करते थे और 1000 लीटर दूध बटोर लेते थे. महिलाओं को दुधियों के बजाए हम अच्छा दाम देने लगे तो सभी हमीं को अपना दूध बेचने लगे." उसी दिन से ये तीनों खुद हीं डेयरी में दूध लेकर जाने लगी और धीरे-धीरे एक जीप किराया पर लेकर आस-पास के गावों में भी दूध इकट्ठा कर डेयरी सेंटर पर लेकर जाने लगी. इनकी आमदनी बढ़ने लगी. अनीता ने योरस्टोरी को बताया, 

"तब हमने दिन रात काम करना शुरु किया. सुबह के तीन बजे से दूध बटोरना शुरु करते थे और 1000 लीटर दूध बटोर लेते थे. महिलाओं को दुधियों के बजाए हम अच्छा दाम देने लगे तो सभी हमीं को अपना दूध बेचने लगे."

बस यहीं से इन्होंने सफलता का पहला स्वाद चखा. दूध सही लेते और देते थे और पेमेंट टाईम पर करते थे. धीरे-धीरे इनके पास खुद दूध खरीदने का डिमांड आने लगा. तब इन्होंने अपना कलेक्शन सेंटर खोल लिया. अब हर जगह महिलाएं इनके सेंटर पर दूध लाकर बेचने लगी. हरिप्यारी कहती है, 

"जब दूध ज्यादा होने लगा तब हमने सरकार और एनजीओ से संपर्क किया कि कैसे अपने धंधे को बढ़ाए. फिर हमने सरकारी मदद से एक स्वंय सहायता ग्रुप बनाया. हमारी मेहनत देखकर कई लोग मदद को आए"

रुपए की आवश्यकता की पूर्ति के लिए इन्होंने प्रदान संस्था की सहायता से महिलाओं का स्वयं सहायता समूह बनाया और लोन लिया. जिससे एक अक्टूबर 2013 को एक लाख की लागत से अपनी सहेली प्रोडयूसर नाम की उत्पादक कंपनी बना ली। मंजली फाउण्डेशन की तकनीकी सहायता से करीमपुर गांव में दूध का प्लांट लगाया इसके लि नाबार्ड से चार लाख रुपए का लोन लिया. अपनी कंपनी के शेयर ग्रामीण महिलाओं को बेचना शुरू किया. वर्तमान में कंपनी की 8000 ग्रामीण महिलाएं शेयरधारक हैं महज ढाई वर्ष में कंपनी डेढ़ करोड़ की हो गई है. शेयरधारक महिलाएं कंपनी को दूध भी देती हैं। कंपनी के बोर्ड में फिलहाल कुल 11 महिलाएं हैं.जिनकी 12 हजार रुपए प्रतिमाह आय है. कंपनी को राज्य सरकार ने 5 लाख रूपए प्रोत्साहन के रूप में दिए. जिन्हें लोन के रूप में अन्य महिलाओं को देकर दूधियों के चंगुल से मुक्त कर कंपनी को दूध देने के लिए प्रेरित करने के निर्देश दिए गए. विजय शर्मा ने बताया कि " पहले वो लोग घर से बाहर नहीं निकल पाते थे. अब जयपुर और दिल्ली तक जाते हैं खुली हवा में सांस ले रहे हैं खुद को तो रोजगार मिल गया औरों को भी दें रहें. आज किसी के आगे पैसे के लिए हाथ नहीं फैलाने पड़ते। आज हमारा परिवार आर्दश परिवार बन गया है."


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ऐसे मिलता है महिलाओं को लाभ

गांव में दूधियां 20-22 रूपए प्रति लीटर में महिलाओं से दूध खरीदते थे. जबकि कंपनी 30-32 रूपए लीटर में खरीदती है. जिससे दूध देने वाली हर महिला को करीब 1500 रूपए प्रतिमाह की आय हो जाती है. इसके अलावा शेयर के अनुपात में कंपनी के शुद्ध लाभ में से भी हिस्सा मिलता है. कंपनी को दूध बेचनेवाली कुसुम देवी कहती हैं, 

"कंपनी से जुड़कर उनका दूध का व्यापार चार गुना तक बढ़ गया है. कंपनी से एडवांस भी मिल जाता है और वो अब अपनी बेटी का एडमिशन बारहवीं में करवाया है. उसे वो जयपुर भेजकर पढ़ाना चाहती है. और ये सब हो पाया है इसी कंपनी से जुड़कर. "

ऐसे काम करती है महिलाएं

करीब 18 गांव में कंपनी की शेयरधारक महिलाएं हैं .प्रत्येक गांव में महिला के घर पर दूध का कलेक्शन सेन्टर बना रखा है। जहां महिलाएं खुद दूध दे जाती हैं. गांवों को 3 क्षेत्रों में विभाजित कर अलग अलग गाडियां लगी रहती हैं, जो कि दूध को करीमपुर में लगे प्लांट तक पहुंचाती हैं. प्लांट पर 20 हजार रूपए प्रतिमाह के वेतन पर उच्च शिक्षित ब्रजराज सिंह को मुख्य कार्यकारी अधिकारी नियुक्त कर रखा है. महिलाओं की कंपनी में काम करनेवाले ब्रजराज सिंह कहते हैं, 

"इन तीनों महिलआओं की वजह से पुरुषों की मानसिकता भी बदली है. पहले ऊंची जाति के पुरुष अपनी महिलाओं को घर से बाहर नहीं निकलने देते थे लेकिन अब वो भी खुद उन्हें लेकर यहां आते हैं."

कहते हैं शुरुआत कहीं न कहीं से तो होती ही है। तीन सहेलियों की परेशानी ने ऐसा रूप लिया कि आज उसी एक घटना ने इन्हें नई ज़िंदगी दे दी। न सिर्फ इन्हें बल्कि आस-पास के अठारह गांवों की महिलाओं को। यह तय है कि जब घर में महिलाएं खुश हैं, आत्मनिर्भर हैं तो फिर पूरा परिवार सुखी और खुशहाल है।