महिलाएं परिवर्तन की वाहक हो सकती हैं लेकिन क्या क्रोध इस दिशा में पहला कदम है?
टीम वाईएसहिंदी
लेखिकाः तनवी दुबे
अनुवादकः निशांत गोयल
वर्तमान समय का भारत एक तरफ तो ‘माँ काली’ की पूजा करता है और वहीं दूसरी तरफ महिलाओं और उनकी समस्याओं का जिक्र आते ही उदासीन और मूक-बघिर हो जाता है। काली एक हिंदु देवी हैं जिन्हें बुरी ताकतों की संहारकर्ता के रूप में जाना जाता है और जिन्हें सशक्तीकरण और शक्ति के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है।
यह वही काली हैं जो भारतीय महिलाओं को अपने चारों तरफ फैली बुरी ताकतों से लड़ने की शक्ति देती हैं और जिनसे प्रेरित होकर महिलाएं दुनिया बदलने के सक्षम बनने के अलावा उन ताकतों का सर्वनाश करने लायक बनती हैं जो उन्हें पीछे धकेलती हैं।
और कुछ ऐसा ही कर रही हैं निर्देशक पान नलिन की फिल्म ‘एंग्री इंडियन गाॅडेसेस’ की सात नायिकाए। ये सातों महिलाएं फिल्म में सवाल पूछने से लेकर अपनी और दूसरी महिलाओं की जिंदगी का जायजा लेने और उसे बदलने का काम बखूबी कर रही हैं।
यह फिल्म दोस्तों पर आधारित है। ये सात ऐसे मित्रों के एक समूह की कहानी है एक साथ मिलकर खुद को एक बार फिर तलाशने का प्रयास करने के अलावा जीवन का जश्न मना रही हैं और एक दूसरे के साथ का आनंद प्राप्त कर रही हैं। यह इस बात की द्योतक है कि जब महिलाएं एक हो जाती हैं तो कैसे उनके पास इतनी शक्ति आ जाती है कि वे न सिर्फ खुद ही बदल सकती हैं बल्कि चाहें तो अपने आसपास भी बदलाव की वाहक बन सकती हैं।
‘एंग्री इंडियन गाॅडेसेस’ की सात देवियां माता, पत्नी, बहन, मित्र, पे्रमिका इत्यादि की भूमिका में हैं और हमनें इनमें से पांच से उनके जीवन, भूमिका, एक महिला होने और उन बातों पर जो इन देवियों को नाराज करती हैं विस्तार से बातचीत की। प्रस्तुत हैं उसी वार्ता के कुछ अंशः
संध्या मृदुल - ‘सु’ सुरंजना
संध्या अभिनय के क्षेत्र का एक जाना माना नाम होने के अलावा बाॅलीवुड की एक स्थापित कलाकार है। इस फिल्म में वे ‘सु’ उर्फ सुरंजना का किरदार निभा रही हैं जो एक कामकाजी महिला होने के अलावा एक 6 वर्षीय बच्चे की माँ भी है और एक परेशानहाल दांपत्य जीवन से गुजर रही है। संध्या कहती हैं कि उनका किरदार महिलाओं के सामने काम और जीवन के बीच आने वाली दिक्कतों और चुनौतियों को सामने लाता है। ‘‘मैं अपने किरदार के माध्यम से कार्य और जीवन के संतुलन से जुड़ी निराशा को साझा करती हूं। मेरी जानकारी में कई ऐसा महिलाएं हैं जिन्हें इस बात का मलाल है कि उन्होंने एक माँ की भूमिका के निर्वहन के लिये अपने करियर को क्यों नहीं छोड़ा और मैं ऐसी भी महिलाओं से भलिभांति परिचित हूं जो सिर्फ इसलिये परेशान हैं कि उन्होंने अपने बच्चें के चलते अपने करियर के तिलांजलि दी। ऐसे में संतुलन को साधना सबसे बड़ी चुनौती है।’’
संध्या के अनुसार जोखिम और शक्ति एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। संध्या कहती हैं, ‘‘जो महिलाएं मजबूत होती हैं उनके भीतर अपनी शक्ति दिखाने की क्षमता मौजूद होती है।’’ संध्या महिलाओं के होने वाले शोषण, विशेषकर मानसिक शोषण का मुद्दा उठाती हैं। उनके अनुसार अक्सर इसके बारे में पता लगाना और इसे पहचानना काफी मुश्किल होता है और वे समाज में इसे लेकर जागरुकता का निर्माण करना चाहती हैं।
वे जोर देकर कहती हैं कि ‘एंग्री इंडियन गाॅडेसेस’ पुरुषों पर कोई प्रहार नहीं करती है बल्कि यह महिलाओं और उनके मुद्दों से संबंधित है। महिलाओं को उनका संदेश सिर्फ अपनी आवाज को सुनवाना है। ‘‘अपने आप को व्यक्त करने में या फिर तुम कौन हो यह जाहिर करने में कभी भी शर्माओ मत। दूसरों को खुश करना बंद करो। जो चाहे वो खाओ, अपनी पसंद का ओढ़ो-पहनो। अपना जीवन अपनी मर्जी से और अपनी शर्तों पर जियो।’’
देवी के नाराज होने का कारण बताते हुए वे कहती हैं, ‘‘उनके नाराज होने के कई कारण यहां पर मौजूद हैं। देवी एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी के साथ आती हैं। वे कई ऐसी चीजों को सामने लेकर आएंगी जिनके बारे में आवाज ही नहीं उठाई गई है।’’
अनुष्का मनचंदा - ‘मैड’ मधुरीता
अनुष्का जानवरों के कल्याण के लिये प्रयासरत कई एनजीओ का समर्थन करने वाली एक पशुप्रेमी व्यक्ति हैं। हम उन्हें सिर्फ महिला सदस्यों से सुसज्जित बैंड वीवा की एक सदस्य के रूप में जानने के अलावा चैनल वी की एक मशहूर वीजे और कई लोकप्रिय बाॅलीवुड गानों को अपनी आवाज से सजाने वाली के रूप में जानते हैं। वे कहती हैं, ‘‘मैं बहुत खुशकिस्मत हूं कि मेरा जन्म और लालन-पालन एक ऐसे परिवार में हुआ जहां मुझे अभिव्यक्ति की आजादी मिली और यही आजादी मुझे एक महिला के रूप में परिभाषित करने की क्षमता प्रदान करती है।’’
उनका मानना है कि महिला सशक्तीकरण के लिये शिक्षा सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। अगर महिलाएं शिक्षित हैं तो वे इसकी मदद से बहुत लंबा सफर तय कर सकती हैं। अपनी फिल्म एंग्री इंडियन गाॅडेसेस का एक संवाद बोलते हुए वे कहती हैं, ‘‘ यह बहुत ही अधिक दुर्भाग्यपूर्ण है कि महिलाएं एक-दूसरे के लिये खड़ी नहीं होती हैं। यह एक ऐसी सच्चाई है जिसे बदलने की सबसे ज्यादा जरूरत है।’’
हकीकत में अनुष्का बिल्कुल सकारात्मक, व्यवहारकुशल और टकराव से परे रहने वाले व्यक्तित्व की स्वामी हैं। यह फिल्म में उनके चरित्र से बिल्कुल ही उलट है जहां वे टकराव और लड़ाई के लिये तत्पर रहने वाला किरदार निभा रही हैं, एक बिल्कुल आक्रामक भूमिका। चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट लाते हुए अनुष्का कहती हैं, ‘‘चूंकि ‘मैड’ मधुरीता मुझसे बिल्कुल उलट है इसलिये ऐसे में मेरे लिये उसके जैसा बनना बहुत मुश्किल था। हालांकि मैड अक्सर अंधेरे पक्षों में घिरी रहती है लेकिन वास्तविक जीवन में मैं बहुत अधिक सकारात्मक रहती हूं।’’
देवियों के नाराज होने की वजह के बारे में उनका कहना है, ‘‘इसके अलावा और कोई रास्ता है भी नहीं। हमारे देश में महिलाओं के साथ क्या हो रहा है और हम उसके प्रति कितने निष्ठुर होते जा रहे हैं यह देखने लायक है। बदलाव लाने के लिये हमें निष्क्रिय या उदासीन हुए बिना सबसे पहले उसे खुद महसूस करना होगा। यही वह वजह है जिसके चलते देवी नाराज हैं।’’
पवलीन गुजराल - पैम उर्फ पामेला जायसवाल
पवलीन एक एंकर, माॅडल, अभिनेत्री और स्टाइलिस्ट हैं और वे खुद को ‘‘आज की महिला कहती हैं। मैं अपने जीवन में अपनी मर्जी का करती हूं।’’ हालांकि वे कहती हैं, ‘‘महिलाएं जो हैं और उनके द्वारा चुने जा रहे विकल्पों के चलते वे सम्मान की पात्र हैं।’’
कंप्यूटर इंजीनियरिंग और वकालत करने के बाद उन्होंने सपनों में भी अभिनय के क्षेत्र में उतरने के बारे में सोचा भी नहीं था। इस फिल्म में वे दिल्ली की एक पारंपरिक लड़की का किरादार निभा रही हैं जिसका नाम पामेला जायसवाल है।
पवलीन कहती हैं, ‘‘यह जीवन के उत्सव के बारे में है और यह दिखाती है कि जब महिलाएं एक साथ होती हैं तो वे भी लड़कों की तरह मौज उड़ा सकती हैं। कैसे जब महिलाएं मिलती हैं तो उनके पास अपनी एक अलग दुनिया बसाने की ताकत होती है और वे अपने दिल की सुनना बंद कर सकती हैं।’’
देवी के नाराज होने का कारण बताते हुए वे कहती हैं, ‘‘जब महिलाएं बहुत कुछ भुगत चुकी होती हैं तो उसका चरमोत्कर्ष गुस्सा ही होता है।’’
राजश्री देशपांडे - लक्ष्मी
राजश्री विज्ञापन, फिल्म और टीवी की दुनिया से जुड़ी रही हैं और कहती हैं, ‘‘मैं एक बहुत ही मजबूत व्यक्तित्व वाली महिला हूं। मैं योद्धा होने के साथ निडर हूं लेकिन साथ ही भावुक भी हूं।’’
फिल्म के बारे में बात करते हुए वे कहती हैं, ‘‘इस फिल्म के सभी किरदार बिल्कुल असली हैं। इन्हें देखने पर आपको वे अपने आसपास के किरदारों से मिलती हुई दिखेंगी। हम इस फिल्म के माध्यम से समाज में परिवर्तन लाना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि महिलाएं अपनी ताकत को पहचानें और उसे आवाज दें।’’
महिलाओं के लिये पवलीन का सिर्फ एक ही संदेश है, ‘‘अपने आप को पहचानो।’’
सारा - जेन डायस - फ्रीडा
सारा पूर्व में चैनल वी के साथ एक वीजे रहनेे के अलावा वर्ष 2007 में मिस इंडिया भी रही हैं। वे कहती हैं, ‘‘फ्रीडा और मैं बिल्कुल एकसमान होते हुए भी बिल्कुल जुदा हैं। मेरे लिये इन्हीं समानताओं और भिन्नताओं को तलाशना ही सबसे अधिक दिलचस्प था।’’
इस मामले में फिल्मी जिंदगी और वास्तविक जीवन के बीच की समानता के बारे में बात करते हुए सारा कहती हैं, ‘‘जब तक उकसाया न जाएं हम बिल्कुल शांत हैं, हम दोनों ही तमाम चीजों और लोगों के प्रति प्रेमभाव रखते हैं और हम दोनों ही बहुत अधिक भावनात्मक हैं।’’
एक चीज जो सारा सभी महिलाओं के लिये करना वाहती हैं वह है उनके लिये आत्मरक्षा और शारीरिक रक्षा अनिवार्य बनाना और यह सुनिश्चित करना कि महिलाएं शारीरिक रूप से मजबूत बनें।
एंग्री इंडियन गाॅडेसेस महिलाओं तक पहुंचने और उन्हें बोलने के लिये अधिकार संपन्न बनाने क दिशा में एक सकारात्मक कदम भर है।
यह समय है खुद को साबित करने का और अपनी आवाज को सुनाने का। क्या कहना है महिलाओं? आओ हम मिलकर अपने भीतर की काली को बाहर निकालें।