पिता से अलग राह बनाई 'मेघना घई' ने, जुट गईं फिल्म निर्माता निर्देशक बनाने में...
“'द हॉलीवुड रिपोर्टर' मैगज़ीन ने 'Whistling Woods International’ को दुनिया में शीर्ष 10 फिल्मी स्कूलों में नामित किया है.”
उनके पिता को 'हिंदी सिनेमा के शोमैन' के रूप में जाना जाता है, और खलनायक, कर्ज, हीरो और राम लखन जैसी फिल्मों के साथ उन्होंने कई दशको तक हमारा मनोरंजन किया है. मगर जब मेघना घई ने अपने कैरियर की शुरुआत की तो अभिनय उन्हें रास नहीं आया. मेघना एक प्रशिक्षित संचार, विज्ञापन और विपणन पेशेवर है और उन्होंने अपने पिता सुभाष घई की कई फिल्मे जैसे परदेस, ताल और यादें के विपणन में सहायता की है.
हालांकि अभिनय में उनकी रूचि नहीं थी, लेकिन बॉलीवुड तो उनके खून में है, इसीलिए जब श्री घई ने जब अपने एक सपने के रूप में फिल्म स्कूल की परियोजना शुरू करने का निर्णय लिया तो उन्होंने मेघना को इसकी ज़िम्मेदारी दी और मेघना को इसका कार्यभार सम्हालने के लिए ब्रिटेन से बुला लिया, और आज उनका इस क्षेत्र में बड़ा नाम है.
उनके अब तक के सफर के बारे में हर स्टोरी के साथ उनकी मुलाकात में उनसे बातचीत के प्रमुख अंश:
शुरुआत:
मेघना बताती हैं कि उनको पहले से ही एहसास था कि वो एक रचनात्मक व्यक्ति नहीं हैं, इसलिए उन्होंने रचनात्मक गतिविधियों से स्वयं को दूर रखा. और उन्होंने अभिनय को अपना पेशा नहीं चुना. और तभी एक दिन अचानक उनके पिता ने उनसे एक फिल्म स्कूल की शुरुआत करने की बात साझा की और उन्हें उसका प्रभार संभालने को कहा तो उत्साहित मेघना को यह एक अच्छा अवसर लगा. मेघना कहती हैं, "मुझे संस्थापक बनाने का फैसला श्री घई का खुद का एक सोचा समझा निर्णय था. मेरे पिता ने कहा कि अगर तुम्हे कुछ भी समझ में नहीं आता है, तो भी कोई बात नहीं, लेकिन मुझे लगता है कि तुम्हे ही वहाँ पहले व्यक्ति होना चाहिए. क्योंकि मुझे विश्वास है कि तुम इसका अपने बच्चे जैसा ध्यान रखोगी."
यह साल 2000 की बात है, और इसके एक साल बाद जैसा उन्होंने वादा किया था, वो भारत लौट आई और 2001 में जब इसका शिलान्यास किया गया, तब से आज तक मेघना, 'Whistling Woods International (WWI)’ का हिस्सा है. उसके बाद, अगले पांच साल में, मेघना ने 'Whistling Woods International’ की कोर टीम के साथ अनुसंधान के लिए बहुत कुछ किया है. उन्होंने दुनिया भर के कई विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और फिल्म स्कूलों का दौरा किया. उन्होंने पाठ्यक्रम विकास के साथ-साथ कॉलेज प्रशासन कैसे काम करता है; समझने के लिए विभिन्न फिल्म स्कूलों के सम्मेलनों में भाग लिया.
इस संस्थान का कैंपस तैयार होने में तीन साल लगे. "हमारा कैंपस बहुत बड़ा है, जैसा की मुझे याद है अमेरिका के एक सर्वश्रेष्ठ फिल्म स्कूल के डीन ने बताया कि फिल्म स्कूल के लिए हमे हमेशा ज्यादा जगह चाहिए होगी क्यूंकि हम हर साल कोई नया पाठ्यक्रम शुरू करेंगे और तब सबसे ज्यादा दिक्कत जगह की ही होगी, इसीलिए हम इसे शुरू से बड़ा बनाने चाहते थे"
पाठ्यक्रम विकसित करने के लिए, हमने भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों की सलाह ली और इसमें विभिन्न क्षेत्रों के लोग शामिल थे. पाठ्यक्रम विकसित करने में कुछ अन्य लोग जैसे शेखर कपूर, मनमोहन शेट्टी, आनंद महिंद्रा और श्याम बेनेगल जैसे विशेषज्ञों की भी सलाह ली गई. सीबीएसई बोर्ड 11 और 12 के छात्रों के लिए मीडिया अध्ययन शुरू करना चाहता था, इस विषय के लिए पाठ्यक्रम सामग्री विकसित करने के लिए उन्होंने हमसे संपर्क किया है. मेघना कहती है, "हमने इस तरह का पाठ्यक्रम विकसित किया है जिसमे रचनात्मक कला, रंगमंच और नाटक सभी मीडिया अध्ययन में शामिल किए गए हैं. हम हर छात्र से एक फिल्मकार बनने की उम्मीद नहीं करते है, लेकिन वे सही अर्थों में फिल्मों की सराहना कर सके, इस ज्ञान को हम बच्चो में इस पाठ्यक्रम के माध्यम से विकसित करना चाहते है"
उपलब्धियाँ और चुनौतियाँ:
यह स्कूल 70 छात्रों के एक बैच के साथ शुरू किया गया, आज इसके परिसर में लगभग 400 छात्र हैं और अभी तक एक हजार से अधिक छात्रों ने स्नातक की उपाधि प्राप्त की है और इस उद्योग में काम कर रहे हैं. स्कूल का आर्थिक पक्ष पहले से ही सकारात्मक रहा है और 2013 में स्कूल ने में 18.86 लाख रुपये का कारोबार किया था. साथ ही 'द हॉलीवुड रिपोर्टर' मैगज़ीन ने अपने अगस्त 2013 के संस्करण में इसे दुनिया में शीर्ष 10 फिल्मी स्कूलों में नामित किया है.
मेघना कहती है कि उनके स्कूल के छात्रों ने उद्योग में रोजगार प्राप्त करने के साथ कई फिल्मों कंपनियो में जैसे धर्मा प्रोडक्शंस, डिज्नी, यशराज फिल्म्स और फैंटम में नौकरी पाने में भी अच्छी सफलता प्राप्त की है. उनके छात्र मोहित छाबड़ा द्वारा एक लघु फिल्म 'रबर बैंड बॉल' ने 'कान कारपोरेट मीडिया और टीवी पुरस्कार 2013' में कई प्रतिष्ठित पुरस्कार जीते है जैसे सिल्वर डॉलफिन', स्वर्ण विजेता 'ड्यूविल ग्रीन पुरस्कार 2013', फ्रांस और सिटी स्टोरीज प्रोजेक्ट 2012, लंदन.
इसके अतिरिक्त प्रकाश झा की फिल्म 'सत्याग्रह' के निर्माण में भी 'Whistling Woods International’ के छात्रों का योगदान रहा है. और हाल ही में हांगकांग पर्यटन बोर्ड, हांगकांग ने पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए बनायीं गयी उनकी लघु फिल्म के लिए 'Whistling Woods International’के छात्रों को सम्मानित किया है.
वैसे तो आज उनका स्कूल काफी प्रतिष्ठित माना जाता है मगर शुरआत में उन्हें काफी दिक्क्तें झेलनी पड़ी थी. एक अच्छा संकाय ढूंढ़ना एक बड़ी चुनौती थी. वो कहती है, "इस तरह के प्रशिक्षण लिए आपको ऐसे पेशेवरों की जरूरत होती है जो इस उद्योग में काम कर रहे हो अन्यथा छात्रों के मन में आप के लिए कोई सम्मान नहीं रहेगा. तो हमे ऐसे पेशेवरों की ज़रूरत थी जिनमे इतना संतुलन हो की वो यहाँ आये और वो पढ़ाये ये बात अलग हैं कि चाहे उन्होंने कभी भी नहीं पढ़ाया हो.
सर्वश्रेष्ठ प्रौद्योगिकी बुनियादी सुविधा उपलब्ध करना भी एक और चुनौती थी. इसके लिए उन्होंने सोनी के साथ अनुबंध किया और सोनी ने परिसर में एक सोनी मीडिया सेंटर स्थापित करने में निवेश किया. पूरे विश्व में लंदन, लॉस एंजेल्स के बाद अब मुंबई में इस प्रकार का सोनी का तीसरा केंद्र है.
छात्र और उनके अभिभावक इस पाठ्यक्रम को लेकर काफी उलझन में थे, उनको समझा पाना बहुत बड़ी चुनौती थी. मेघना कहती है, "एक पूरी पीढ़ी की धारणा को बदलना बहुत मुश्किल है, अभिभावकों के लिए बहुत मुश्किल होता था अपने बच्चो को फिल्म स्कूल भेजना. उन्हें राज़ी करने के लिए हम हमारे पाठ्यक्रम के साथ छात्रों को बीएससी और एमबीए की डिग्री भी देते है. लेकिन अब, माता-पिता अपने बच्चो के प्रति आश्वस्त हैं. 'Whistling Woods International’ ने इन डिग्रियों के लिए मणिपाल विश्वविद्यालय और भारतीदासन यूनिवर्सिटी, तमिलनाडु के साथ करार किया है.
भविष्य की योजनाएँ:
आज ‘Whistling Woods International’ में फिल्म निर्माण के अलावा, छात्र मीडिया, पत्रकारिता, फैशन और एनीमेशन सीख सकते हैं. वे ‘Whistling Woods International’ के विस्तार के लिए अन्य शहरों और देशों के साथ साझेदारी करने जा रहे है. भारत में, वे पुणे में एक शाखा स्थापित करने के लिए डी वाई पाटिल कॉलेज के साथ सहयोग कर है. ब्रिटेन में, उन्होंने अपना एक परिसर स्थापित करने के लिए ब्रैडफोर्ड कॉलेज के साथ भागीदारी की है, और नाइजीरिया में उन्होंने अफ्रीकी फिल्म और टीवी अकादमी स्थापित करने के लिए ट्रेंड मीडिया सिटी के साथ हाथ मिलाया है. ट्रेंड मीडिया वहाँ एक पूरी फिल्म सिटी स्थापित कर रही है. नाइजीरिया में एक बड़ा फिल्म उद्योग है, लेकिन उनकी फिल्म सिनेमाघरों में रिलीज नहीं होती है, यह सीधे वीडियो के लिए है. वहाँ प्रतिभाये बहुत है, लेकिन कोई प्रशिक्षण संस्थान नहीं है, इसलिए हम वहाँ ‘Whistling Woods International’ की एक शाखा की स्थापना कर रहे हैं. हमारा दर्शन कला, व्यापार और प्रौद्योगिकी और भागीदारी के बीच एक संतुलन कायम करना है. आज ‘Whistling Woods International’ के मुंबई परिसर में अन्य देशों से आने वाले छात्रों की एक अच्छी संख्या है, और वे यहाँ अन्य फिल्म स्कूलों के साथ हमारे छात्र विनिमय कार्यक्रमों के माध्यम से आ रहे है.
मेघना मानती है की ‘Whistling Woods International’ की सफलता सुनिश्चित करने में उनके पिता ने अहम भूमिका निभाई है. मेघना कहती है, "मैं कहीं से आकर इस उद्योग में ऐसा करने की कोशिश करती तो शायद मैं सफल नहीं हो पाती. मेरे पिता की फिल्म उद्योग में लोकप्रियता और विश्वास ने प्रारंभिक शुरुआत करने में मदद की. लेकिन स्कूल से एक बड़ा नाम जुडा होने से एक नुकसान यह है कि कभी कभी लोगों सोचते है कि यहाँ सुभाष घई की तरह का सिनेमा बनाना सिखाया जाता होगा.
अपनी संवेदनशीलता और शैली के साथ, मेघना ‘Whistling Woods International’ को एक प्रतियोगी संस्थान बनाने के साथ साथ एक संतोषजनक कार्यस्थल बनाने में भी कामयाब रही है. कर्मचारियों के साथ एक खुली नीति होने और सप्ताहांत पर छुट्टियां देने से, मेघना हिंदी फिल्म उद्योग को नियंत्रित करने वाले परंपरागत नियमों को बहुत हद तक तोड़ने में कामयाब रही है. हमारे पूछने पर कि क्या वो एक नियमित नौकरी में वापस जाने की योजना बना रही है, तो मेघना ने जोर से हंसते हुए कहा कि वह अपनी भूमिका से खुश है. वह कहती है,"मुझे यकीन नहीं है की मुझे कोई नौकरी देगा.हमने जब शुरूआत की थी, तब यहाँ मेरे एक बॉस थे, और में अपने पिताजी को रिपोर्ट करती थी, अभी कई सालो से यहाँ कोई बॉस नहीं है. अगर मैं कहीं नौकरी करूँ भी तो मेरे बॉस को मुझसे जरूर दिक्कत होगी"
मेघना सोचती है महिलाओं के लिए भारत एक बहुत अच्छी जगह है क्योंकि यहां महिलाओं के काम करने के लिए व्यापक समर्थन प्रणाली मौजूद है. महिलाएँ काम नहीं करती है या व्यस्त रहती है क्यूंकि उन्होंने खुद के लिए एक दायरा बना लिया है और वहां से वो बाहर नहीं आना चाहती. वो कहती है," हम एक ब्रेक लेना चाहते हैं, हम माँ बन कर उस अवधि का आनंद लेना चाहते हैं, तो एक ब्रेक लेना चाहिए. लेकिन उन लोगों के लिए जो स्वयं को काम में लगा हुआ रखना चाहते हैं उनके पास ऐसा करने के लिए पर्याप्त अवसर है. काम किसी भी रूप में हो अच्छा ही होता है चाहे वह केक बनाना ही क्यों न हो, कार्य वास्तव में एक महिला को सशक्त बनाता है और महिला के साथ साथ उनके परिवार के लिए भी एक सकारात्मक आत्म सम्मान का भाव विकसित करता है.