Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Yourstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

किताबों, कापियों और यूनिफार्म का ई-कामर्स प्लेटफार्म 'माई स्कूल डिपोट'

अपने भतीजे के लिए किताबें ख़रीदने के लिए दुकान पर गये विवेक गोयल को अपना सारा दिन खराब करना पड़ा और ऑफिस की छुट्टी हुई सो अलग। इसके बावजूद उन्हें ज़रूरत का सारा सामन वहाँ उपलब्ध नहीं हो पाया। अपनी उसी दिन की परेशानी के बाद वे बच्चों और अभिभावकों की समस्या को हल करने के बारे में सोचने लगे और उसी विचारमंथन के परिणाम स्वरूप उनकी कंपनी पेनपेंसिल टेक्नलोजीस प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हुआ। आज वे इसी के वेंचर माइ स्कूल डिपोट.कॉम के सीईओ हैं। पेन पेंसिल से लेकर किताबों और यूनिफार्म तक सभी प्रकार की चीज़ें घर बैठे पहुँचाने के लक्ष्य के साथ इस कंपनी ने इसी वर्ष काम शुरू किया है और अपनी पहुँच उत्तराखंड से दिल्ली तक बनायी है। उनके इस ई-कॉमर्स वेबसाइट पर 2000 से अधिक प्रोडक्ट्स हैं। 50 से अधिक स्कूलों से वे जुड़ चुके हैं। अब उनकी नज़र उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाना, मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों पर है।

किताबों, कापियों और यूनिफार्म का ई-कामर्स प्लेटफार्म 'माई स्कूल डिपोट'

Sunday August 21, 2016 , 8 min Read

विवेक गोयल युवा उद्यमी हैं और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काम करने का अनुभव रखते हैं। प्रोजेक्ट प्रबंधन एवं बिग डाटा एडवांस एनालिटिक्स के तौर पर उन्होंने विशेषज्ञता प्राप्त की है। वे केमिकल इंजिनीयर हैं, एमबीए की उपाधि रखते हैं और चार्टेड एकाउँड एनालिस्ट के लेवल 3 के उम्मीदवार रह चुके हैं। उत्तराखंड के हलद्वानी में जन्में विवेक गोयल ने दिल्ली से इंजीनियरिंग की शिक्षा पूरी करने के बाद अपना कैरियर बैकटेल कार्पोरेशन में रिफाइनरी परियोजना से शुरू किया। हिंदुस्तान पेट्रोलियम में यूरो 3 और 4 रिफाइनरी अपग्रेडेशन में भी अपनी भूमिका निभाई। फिर वो नौकरी छोड़कर एमबीए करने के लिए अमेरिका चले गये। एमबीए के दौरान ही उन्होंने सीएफए की परीक्षाएँ लिखीं और कार्पोरेट डेवलपमेंट इंटर्न रहे। वे 1 मिलियन यूनिवर्सिटी एंडोमेंट फंड के लिए फंड मैनेजर के रूप में चुने गये। फिर वो एटना इंक में डाटा एनालिस्टिक के रूप में जॉइन हुए। और इसी के भारतीय व्यापार विस्तार की ज़िम्मेदारी के साथ स्वदेश लौटे। कुछ दिन बाद उन्होंने अपना कारोबार शुरू करने का मन बनाया और आज वे तन मन धन से माइ स्कूल डिपोट.कॉम को देश भर में फैलाने के काम में लगे हैं।

माइ स्कूल डिपोट.कॉम की शुरूआत के पीछे की दिलचस्प कहानी के बारे में विवेक बताते हैं कि एक बार वे अपने भतीजे के लिए स्कूल का सामान खरीदने किताबों की दुकान गये। इसके लिए लाइन में खड़े होकर पूरा दिन ख़राब किया और जब उनका नंबर आया तो कहा गया कि पूरा सामान उपलब्ध नहीं है। वे बताते हैं,

'कई लोगों के साथ ऐसा होता है। जब लोग अपने बच्चों के लिए किताबें, कापियाँ और स्टेशनरी का सामान ख़रीदने जाते हैं तो उन्हें समय ख़राब करने के बावजूद अगर चीज़ें मिल भी जाती हैं तो पूरी नहीं मिल पातीं। वर्कबुक्स के लिए अलग से इंतेज़ार करो। यूनिफार्म के लिए अलग से किसी के पास जाओ। इन सब परेशानियों को ध्यान में रखते हुए मुझे ख्याल आया कि क्यों न ऐसा प्लेटफार्म शुरू किया जाय, जहाँ लोगों के लिए एक ही जगह पर पूरा सामान मिले और उन्हें अपना समय भी ख़राब न करना पड़े।' 

'मैंने स्कूल ओनर्स, प्रिंसपल, स्टूडेंट और पैरेंट्स सभी से बातचीत की। मैंने पाया कि इस समस्या का अभी तक कोई सोल्युशन नहीं है। अगर है भी तो सब कुछ आंशिक है। हालाँकि जब हम डॉक्टर की लिखी कोई दवाई खरीदने जाते हैं तो वह दवाई न होने पर उसी फार्मुले की दूसरी कंपनी की दवाई ले सकते हैं, लेकिन स्कूल की प्रीफर की हुई किताब का कोई विकल्प नहीं। एक एक चीज़ ढूंढनी पड़ेगी। मैंने सोचा कि इस समस्या को कैसे हल किया हल किय सकता है और इस नतीजे पर पहुँचा कि खुद को ही कुछ करना पड़ेगा।'

विवेक ने अभिभावकों, स्कूल संचालकों तथा किताबें बेचने वालों के साथ काम करना शुरू किया। इस काम को वे नियंत्रित पद्धति से करना चाहते थे। ऐसा कुछ करना चाहते थे कि कोई कंफ्यूज़ न हो। सबसे पहले तो उन्होंने बच्चों की स्कूली ज़रूरतों पर ध्यान देना शुरू किया और देखा कि कौनसे स्कूल में कौनसे ग्रेड में किस पब्लिशर की किताबें हैं। पाया कि कई जगह पर अलग-अलग सामान की ज़रूरत है। फिर उन्होंने स्कूल का सेट बनाकर उपलब्ध कराने के लिए स्टेशनरी, किताबें कापियाँ सब कुछ अभिभावकों को उनके घर पर डिलेवरी करा देने के समाधान पर काम करना शुरू किया और इसमें वे कामयाब भी रहे।

होम डिलेवरी के बारे में विवेक बताते हैं कि अकसर बच्चों के साथ सामान लेने उनकी माँ आती हैं। पूरा बैग उठाकर ले जाना संभव नहीं हो पाता। अगर दो बच्चे हैं तो और भी मुश्किल होती है। इसलिए होम डिलेवरी के पक्ष पर अधिक काम किया गया। उन्होंने पिछले मार्च में अपना प्राजेक्ट उत्तराखंड में लाँच किया और गाड़ी चल निकली।

विवेक गोयल अपना काम दिल्ली और बैंगलोर में भी शुरू कर सकते थे, लेकिन वे चाहते थे कि एक छोटी जगह से शुरू करें, ताकि कुछ खामियाँ हो तो आसानी से उसे दूर किया जा सके। वे देखना चाहते थे कि लोग लाइक करेंगे कि नहीं। अच्छा रेस्पांस मिला। माइ स्कूल डिपोट अब तक 1400 बच्चों को एकल खिडकी पद्धति से उनकी ज़रूरत की सारी चीज़ें उनके घर पहुँचा चुका है। अभिभावक काफी खुश हैं। पहली ही बार अनोखे तरीके से 60 लाख रुपये का सामान बेचना आसान काम नहीं था। वे बताते हैं कि 2-4 आर्डर में गड़बड़ हुई, लेकिन उससे काफी कुछ सीखने को मिला। हालाँकि इस काम में अधिक पूँजी नहीं लगी, लेकिन उन्हें जिस शहर में किताबों और कापियों सहित ज़रूरत का सेट पहुँचाना था, वहीं के वेंडर्स को तलाश करना पड़ा। पैरेंट्स के लिए यह बिल्कुल नया था। उनको विश्वास नहीं था, जब राहत मिली तो विश्वास भी हुआ। कुछ जगहों पर घर में अगर चार बच्चे हैं तो लोगों ने दो या एक बच्चे के लिए इस सेवा को प्राथमिकता दी और अगली बार के लिए इस नयी सेवाओं को लेने का मन बना लिया है।

बच्चों की स्कूल की किताबों का व्यापार आम तौर पर लगता है कि सीज़नल बिज़नेस हैं, लेकिन स्टेशनरी की दुकानें तो साल के बारह महीने खचाखच भरी रहती हैं। विवेक ने जब इस व्यापार में कदम रखा तो उनके अध्ययन में कुछ और चीज़ें भी आयीं। अलग-अलग प्रांतों में स्कूल अलग-अलग समय में खुलते हैं। इंटरनेशनल बोर्ड के स्कूल आगस्त में खुलते हैं। सीबीएसई बोर्ड मार्च एप्रेल में अपने स्कूल शुरू करता है। जम्मू और कश्मीर में कुछ देरी से स्कूल शुरू होते हैं। दक्षिण भारत में हालाँकि एक ही समय पर स्कूल का टाइम टेबल है, लेकिन उत्तर भारत में अलग-अलग समय पर स्कूलों की शुरूआत होती है, बल्कि कुछ स्थानों पर तो समर और विंटर यूनिवार्म भी अलग-अलग है। चार पाँच महीने के बीच सप्लिमेंटरी ज़रूरतें भी बढ़ जाती हैं।

विवेक गोयल एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में सालाना (भारत में काम करते हुए) 35 लाख से अधिक कमा रहे थे। ऐसे में नौकरी छोड़कर अपना काम शुरू करना काफी जोखिम भरा था, लेकिन उनके परिवार ने उनका साथ दिया। वे बताते हैं कि नया काम करना जोखिम भरा है, लेकिन मार्केट बहुत बड़ा है। ठीक से काम कर लिया जाए तो 4-5 साल में इस व्यापार को बहुत फैलाया जा सकता है। वे कहते हैं, 

 'नये कारोबार का निर्णय लेने में परिवार का सपोर्ट और मेरा विश्वास दोनों काम आये और मुझे लगता है कि पूरे पैशन के साथ मैं तीन चार साल बिना अधिक कमाई के काम कर सकता हूँ।'

विवेक बताते हैं कि 1.4 मिलियन स्कूल हैं। जिनमें 35- 40 प्रतिशत निजी स्कूलों में अलग-अलग तरह के पाठ्यक्रम हैं। एक बच्चे की किताबें और अन्य सामग्री 4000 रुपये से कम की नहीं होती। इस तरह यह 10 हज़ार करोड़ रुपये का कारोबार है। चूँकि आर्गनाइज़ड मार्केट नहीं है और कोई भी बड़ा प्लेयर नहीं है, इसलिए लोगों को स्टैंडर्ड सेवा का अनुभव नहीं है। जब लोग इसके बारे में जान जाएँगे तो फिर इससे अच्छा विकल्प उन्हें नहीं दिखेगा।

वर्तमान में कई स्कूल ऐसे हैं, जहाँ प्रबंधन द्वारा ही बच्चों को किताबें और कापियाँ उपलब्ध करायी जाती हैं। इससे उनकी आय भी जुड़ी होतो है। विवेक गोयल भी यह जानते हैं। वे कहते हैं, 

'मैं जानता हूँ कि कोई भी स्कूल अपनी इनकम मुझे देने के लिए राज़ी नहीं होगा, लेकिन लोग यह मानते हैं कि स्कूल के अंदर बुक शॉप होना सही नहीं है। सरकार इसके खिलाफ है। स्कूल के अभिभावक इसको बुरा मानते हैं। स्कूल में भी इसके लिए काफी जगह खप जाती है। किताबों को गोदाम और उसके लिए पूर्णकालिक कर्मचारी का खर्च अलग होता है। इस लिए स्कूल को ऑन लाइन लाने से स्कूल की ही इमेज सुधरेगी। दूसरी ओर स्कूल के पास वाली दुकान के मालिक भी 65 से 70 प्रतिशत ही सेवा दे पाते हैं।'

माइ स्कूल डिपोट ने उत्तराखंड के बाद दिल्ली और एनसीआर में काम शुरू किया है। अब विंटर सीज़न यूनिफार्म का लक्ष्य उनके सामने है। उत्तर भारत के कुछ और शहरों में पहुँचने का लक्ष्य उन्होंने रखा है। जयपुर और लखनऊ से भी कुछ आर्डर मिले हैं।

विवेक गोयल के साथ उनके मित्र आशिश गुप्ता टेक्नोलोजी में उनका सहयोग कर रहे हैं। उन्होंने टेक्नोलोजी में इंजीनयरिंग की है। अमेरिका से एम एस किया है। 8 साल तक अमेरिका में काम करने का अनुभव रखते हैं। आशिश को टेक्नोलोजी में काम करने का जुनून है। हालांकि वे हार्वर्ड एक्सटेंशन स्कूल में मनोविज्ञान का अध्ययन भी कर चुक हैं। अमेरिका की विलिंगटन मैनेजमेंट एलएलपी कंपनी के साथ टेक्नोलोजी कंसलटेंट के रूप में भी काम कर रहे हैं। वे कई वैश्विक कंपनियों को अपनी सेवाएँ प्रदान कर रहे हैं।

एक और साथी भारत गोयल भी इंजीनियर हैं। उन्होंने लखनऊ से एमबीए किया है। शिक्षा क्षेत्र में उन्हें अच्छा अनुभव है। वे माइ स्कूल डिपोट के साथ व्यापार विकास का काम देख रहे हैं। स्कूलों से बातचीत कर रहे हैं। एक तरह से वे मार्केटिंग का विभाग संभाले हुए हैं। विवेक का ख्याल है कि जब व्यापार बढ़ेगा तो अलग अलग प्रांतों में इसे देखने की जिम्मेदारी होगी तीनों अलग अलग क्षेत्रों की जिम्मेदारी संभाल सकेंगे।

तीनों युवा उद्यमी इस नये कार्य को ब्रांड बनाने की कोशिश कर रहे हैं। अपनी अब तक की कमायी उन्होंने कारोबार में लगायी है। एक्सटर्नल फंडिंग से वैल्यु एडेड की संभावनाओं को तलाश रहे हैं। विवेक मानते हैं कि 12 से 18 महीने में उनकी कंपनी लाभ हासिल करने लगेगी और फिर देश भर में फैलने की संभावनाओं को तलाशते हुए व्यापक फलक पर विस्तार दिया जाएगा।