"घरेलू महिलाएं जब रंगोली बना सकती हैं तो ग्राफिक्स डिजाइन भी कर सकती हैं”,'आओ साथ मां'
63 सौ से ज्यादा महिलाएं उठा चुकी हैं मुहिम का फायदा...
पढ़ाई से लेकर दी जाती है कम्प्यूटर ट्रेनिंग...
मां बनने के बाद सपनों को हकीकत में बदल सकती हैं महिलाएं...
भारतीय समाज में ज्यादातर महिलाएं शादी के बाद घरेलू काम धंधों में इतनी व्यस्त हो जाती हैं कि उससे वो बाहर ही नहीं निकल पाती। उनकी जिंदगी ठहर जाती है। जिस मुकाम तक वो पहुंच सकती थी उसके बारे में वो शादी के बाद सोच भी नहीं पाती। ऐसी महिलाओं को एक बार फिर अपने पैरों पर खड़ा करने, उनको साक्षर करने की मुहिम का नाम है “आओ साथ मां”। राजधानी दिल्ली में इस मुहिम को चला रही है “लक्ष्य जीवन जागृति” नाम की एक संस्था। जिसके संस्थापक हैं राहुल गोस्वामी और सुमैया आफरीन। पिछले पांच सालों से इनका संगठन खासतौर से घरेलू महिलाओं के सशक्तिकरण पर काम कर रहा है। यही कारण है कि इनकी इस मुहिम का फायदा अब तक 63 सौ से ज्यादा महिलाएं उठा चुकी हैं।
सुमैया ने बीसीए और इसके बाद मास्टर्स इन सोशल वर्क की पढ़ाई की है। पढ़ाई के दौरान इनकी मुलाकात “लक्ष्य जीवन जागृति” के सह-संस्थापक राहुल गोस्वामी से हुई। जो आईआईएम अहमदाबाद में सामाजिक कामों को लेकर कुछ रिसर्च का काम कर रहे थे। रिसर्च के दौरान इन्होने देखा कि कई ऐसी महिलाओं थी जो निरक्षर थी और वो कुछ काम भी नहीं जानती थी। इस कारण उनकी जिंदगी आगे नहीं बढ़ रही थी। तब इन दोनों ने सोचा कि समाज में ऐसी और भी महिलाएं हैं, जिन्होने पढ़ाई नहीं की है और उनको भी मुश्किल हालात का सामना करना पड़ता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए सुमैया और राहुल ने साल 2009 “लक्ष्य जीवन जागृति” नाम की एक संस्था बनाई। जिसके बाद इन लोगों ने महिलाओं के सशक्तिकरण पर काम करना शुरू किया।
अपने काम की शुरूआत इन लोगों ने दिल्ली के करोलबाग इलाके से की और यहां पर एक सर्वे किया। ये जानने के लिए की उनके आसपास कितनी ऐसी महिलाएं हैं जो आगे पढ़ना चाहती हैं या अपनी जिंदगी में घरेलू काम धंधों के अलावा कुछ करना चाहती हैं। सुमैया ने योर स्टोरी को बताया
“हम लोगों ने करीब 5 हजार महिलाओं से सर्वे के दौरान बात की तो पता चला कि काफी महिलाएं पढ़ना चाहती हैं और आगे कुछ काम भी करना चाहती हैं। ये सर्वे 21 साल की महिलाओं से लेकर 50 साल तक की महिलाओं के बीच किया। इस सर्वे में ये बात सामने निकल कर आई की सभी महिलाएं अपने सपनों को पूरा करने के लिए, जिंदगी को आगे बढ़ाने के लिए तैयार हैं।”
हालांकि घर के काम संभालने के कारण कई महिलाएं अपनी पढ़ाई को काफी हद तक भूल भी चूकी थी जिसे अब वो दोबारा पढ़ने को तैयार थी इसके अलावा कई दूसरी महिलाएं घर के काम काज के साथ कुछ काम धंधा भी करना चाहती थीं। सर्वे में पता चला कि कुछ महिलाएं इसलिए पढ़ना चाहती थी ताकि वो अपने बच्चों को पढ़ा सके तो काफी सारी महिलाएं ऐसी भी थी जो कंम्प्यूटर के क्षेत्र में काम करना चाहती थी।
अपने काम की शुरूआत इन लोगों ने लिटरेसी क्लास से शुरू की लेकिन सबसे बड़ी चुनौती घरेलू महिलाओं को सेंटर तक लाना था, क्योंकि घर के काम से वक्त निकालना किसी भी महिला के लिए बड़ा मुश्किल काम था, इसलिए इन लोगों ने महिलाओं को इस बात की छूट दी कि वो जब भी चाहे वक्त निकाल कर इनके सेंटर में आ सकती हैं। इसके लिए संगठन में “आओ साथ मां” नाम से एक क्लब स्थापित किया। इस क्लब में समाज के हर तबके की घरेलू महिलाओं के लिए अलग अलग तरह की पढ़ाई की व्यवस्था है। जैसे कोई घरेलू महिला अनपढ़ है तो ये उसे हिन्दी, इंग्लिश और मैथ्स की बेसिक पढ़ाई कराते हैं। तो दूसरी ओर कोई साक्षर महिला इनसे जुड़ती है तो ये ना सिर्फ उसकी इंग्लिश में पकड़ मजबूत कराते हैं बल्कि कंम्प्यूटर से जुड़ी जानकारी भी देते हैं।
महिलाओं को यहां पर ग्राफिक डिजाइनिंग और वेबसाइट डिजाइनिंग का कोर्स कराया जाता है। सुमैया का कहना है कि
“जब महिलाएं रंगोली बना सकती हैं तो क्यों नहीं वो ग्राफिक डिजाइन कर सकती।”
ये सेंटर सुबह 8 बजे से शुरू होकर रात 8 बजे तक चलता है। यहां आने वाली महिला को हर दिन डेढ़ घंटे यहां पर ना सिर्फ पढ़ाया जाता है बल्कि उनको कंप्यूटर ट्रेनिंग और उनमें आत्मविश्वास पैदा करने के लिए काउंसलिंग भी की जाती है। आज इनके सेंटर की महिलाएं ना सिर्फ बैंक और अस्पताल में काम कर रही हैं बल्कि कई घरेलू महिलाओं ने कंम्प्यूटर से जुड़ा अपना रोजगार शुरू कर दिया है। तो कुछ महिलाएं दूसरों को पढ़ाने का काम कर रही हैं। “लक्ष्य जीवन जागृति” संगठन ना सिर्फ घरेलू महिलाओं में शिक्षा की भूख को मिटाने का काम नहीं कर रहा है बल्कि वो इनको इस काबिल बना रहा है कि वो अपने पैरों पर खड़े हो सके। इसके लिए ये संगठन उनको ना सिर्फ रोजगार ढूंढने में बल्कि खुद का रोजगार खड़ा करने भी महिलाओं की मदद करता है।
इनके इस सफल बिजनेस मॉडल के अधार पर साल 2013 में आईआईएम इंदौर में हुई एक प्रतियोगिता में इनको पहला स्थान मिला। इसके बाद टाटा सोशल इंटरप्राइजेज के चुनिंदा 20 संगठनों में इनका भी चयन हुआ था। अपने इस सामाजिक काम की बदौलत इनका चयन ग्लोबल गुड फंड, वॉशिंगटन के हुआ है। जहां पर दुनिया भर से 14 सौ संगठनों में से चुनिंदा 12 संगठनों में इनको भी जगह मिली है। अब तक इनके इस संगठन से 63सौ से ज्यादा महिलाएं फायदा उठा चुकी हैं। खास बात ये है कि इनके संगठन में आने वाली महिलाएं हर तबके से आती हैं। महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने और उनको शिक्षित करने के लिए फिलहाल डेढ़ सौ महिलाएं इनके यहां रोज आती है। इनकी टीम में 7 लोग हैं जो ये संगठन चलाते हैं। सुमैया की तमन्ना है कि महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने और उनको अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए वो स्कूल ऑफ मदर खोलना चाहती हैं।