अमेरिका में लाखों की नौकरी छोड़कर चेन्नई में करोड़ों का स्टार्टअप खोलने वाली अश्विनी अशोकन
अश्विनी अशोकन मैडस्ट्रीट डेन की सह-संस्थापक है। चेन्नई की यह कंपनी कम्यूटर इंटेलीजेंस को लेकर काम करती है। इस नए स्टार्टअप ने हाल ही में 1.5 मिलियन डॉलर जुटाए हैं। अश्विनी की सफलता की कहानी बड़ी प्रेरक है जो उनके इंटेल से लेकर इस कंपनी तक उतार-चढ़ाव भरी यात्रा को दर्शाती है।
उन्होंने अपने पति के साथ काम किया, जो एक न्यूरोसाइंटिस्ट थे। वो स्टैनफोर्ड में चिप बनाते थे। वो इंसानों के लिए काम आने वाली आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को विज्ञान की प्रयोगशालाओं से बाहर निकालना चाहते थे और अश्विनी उसे दुनिया के जरूरतमंद लोगों को देना चाहती थी। इस तरह उन्होंने मैड स्ट्रीट डेन बनाया। जो अब उनका आर्ट्फिशियल इंटेलिजेंस स्टार्ट अप बन गया है। यह चेन्नई में स्थित है।
अश्विनी के मुताबिक, मैं केवल एक या दो ही महिलाओं से मिल पाई, जिन्होंने ऐसा स्टार्ट अप शुरू किया। ज्यादातर तो इस रोमांच से दूर ही हैं। यहां बहुत सारा पैसा है। बहुत सारी संभावनाएं हैं, उपभोक्ताओं की बहुत सारी जरूरतें हैं और आपका अनुभन उन्हें पूरा कर सकता है।
अश्विनी अशोकन मैडस्ट्रीट डेन की सह-संस्थापक हैं। चेन्नई की यह कंपनी कम्यूटर इंटेलीजेंस को लेकर काम करती है। इस नए स्टार्टअप ने हाल ही में 1.5 मिलियन डॉलर जुटाए हैं। अश्विनी की सफलता की कहानी बड़ी प्रेरक है जो उनके इंटेल से लेकर इस कंपनी तक उतार-चढ़ाव भरे यात्रा को दर्शाती है। अश्विनी के मुताबिक, मुझे याद है कि मैं सैन फ्रांसिस्को एयरपोर्ट पर अपने पति के साथ बैठी अपने स्वेटर बुन रही थी और अपने बारे में सोच रही थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं ठीक थी या मैंने कुछ गड़बड़ कर दिया था। मैं और मेरे पति दोनों बातें कर रहे थे। हमने 15 साल यूएस में गुजारे थे। और अब 20 दिनों में ही यूएस छोड़ने का फैसला कर लिया था। सब कुछ किसी सपने की तरह लग रहा था।
अश्विनी ने अपने ज्यादातर युवावस्था का समय अमेरिका में ही बिताया। वो एक ब्राह्मण मद्रासी हूं, जिन्होंने चेन्नई के एमओपी वैष्णव कॉलेज से फर्स्ट बैच में ग्रेजुएट किया। जहां उन्हें आईआईटी मद्रास के एक लड़के से प्यार हो गया। वो दोनों यूएस में कारनेगी मेलन के एक स्कूल से स्नातक करने चले आये। अश्विनी ने सोचा था कि वो एक शास्त्रीय संगीतज्ञ और डांसर के रूप में जानी जाएंगी। लेकिन यूएस जाने के फैसले ने उनके जीवन का उदेश्य बदल दिया। और कुछ ऐसा हुआ जिसके बारे में उन्होंने सोचा भी नहीं था। डिजाइन से डिग्री लेना उनके लिए फेसबुक, गूगल, ट्वीटर और आइडियो, हर जगह काम आया। लेकिन उन्होंने इंटेल के लिए सबको मना कर दिया। उन्हें पूरी दुनिया में सभी यूजर इंटरफेस के लिए तकनीक को जानने में ज्यादा दिलचस्पी थी।
जब छोड़ी इंटेल जैसे संस्थान की नौकरी-
इंटेल में 10 साल गुजारने के बाद अश्विनी एक दिन एयरपोर्ट पर बैठी थीं। वो बताती हैं कि उस वक्त शायद वो यह कदम नहीं उठाना चाहती थीं, और ना ही ये उनके करियर ग्रोथ को लेकर था। लेकिन वो लोगों को समझने के लिए दुनिया घूमना चाहती थीं। उन्होंने पर्सनल कंम्प्यूटर, स्मार्ट टीवी से लेकर कार और मोबाइल जैसे अलग अलग बिजनेस तकनीक पर रिसर्च और उनके इस्तेमाल में काफी वक्त बिताया था। जब अश्विनी ने इंटेल छोड़ा था तब वो मोबाइल को एक अभिनव प्रयोगशाला के तौर पर चलाने के लिए इमेज प्रोसेसिंग और संवेदन विशेषज्ञों के साथ काम कर रही थीं। वो ऐसे प्रोडक्ट्स को बनाने का काम रही थीं, जो इन तकनीकों के सहारे चलते थे। इस तरह उन्हें एक बहुआयामी टीम के साथ सीखने का मौका मिला। उनके सफर का सार्थक विस्तार तब हुआ जब उन्होंने अपने पति के साथ काम किया, जो एक न्यूरोसाइंटिस्ट थे। वो स्टैनफोर्ड में चिप बनाते थे। वो इंसानों के लिए काम आने वाली आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को विज्ञान की प्रयोगशालाओं से बाहर निकालना चाहते थे और अश्विनी उसे दुनिया के जरूरतमंद लोगों को देना चाहती थी। इस तरह उन्होंने मैड स्ट्रीट डेन बनाया। जो अब उनका आर्ट्फिशियल इंटेलिजेंस स्टार्ट अप बन गया है। यह चेन्नई में स्थित है।
आत्मविश्वास हो तो ऐसा-
अश्विनी के मुताबिक, मुझे पता है कि मुझे अपने पूरे जीवन में क्या करना है। मैं किसी की बकवास नहीं सुनती थी और मेरा विवेक मेरे मजबूत और मेरी कमजोरी दोनों बखूबी जानता था। इंटेल में जॉब मिलने के बाद मेरा कई इंजीनियर्स ने मजाक उड़ाया कि उनके बीच एक डिजाइनर खड़ी थी। मुझे ट्रोल किया गया जब 25 साल की उम्र में मुझे सोनी के एक्जुक्यूटिव मीडिंग के दौरान यूजर्स के अनुभवों पर चर्चा के लिए जापान भेजा गया था। 2010 में जब मैं मां बनी तब मुझे घर पर रहने को कहा गया। फिर भी मैं 6 सप्ताह के भीतर ही काम पर चली गयी। मेरे पति दो साल तक घर पर रहकर मेरा साथ देते रहे। जब मैंने भारत लौटने का फैसला किया तो मुझे बेवकूफ तक कहा गया। लेकिन मुझे इन रूढ़िवादियों से कोई फर्क नहीं पड़ा। अगर आप चाहते हैं कि इस दुनिया मेंनई पहचान बनाना तो आपको रिवाजों से हटकर अपना रास्ता बनाना होगा। आप संयोग को नजरअंदाज नहीं कर सकते, अगर आप इस रास्ते पर चलना चाहते हैं।
हर दो साल बाद मैं अपने बॉस को बताती थी कि मैं बोर हो गई हूं और कुछ अलग करना चाहती हूं। मैं शुक्रगुजार हूं कि मुझे संस्थान से इस तरह का सपोर्ट मिला। मेरे लिए चुनौतियों में काम करना हमेशा नए रास्ते खोलता गया। मैंने कभी हतोत्साहित करने वाले लोगों या संस्थाओं के लिए काम नहीं किया। अश्विनी कुछ नया करने के लिए उत्सुक लोगों से कहती हैं कि कम से संतोष मत करो। आप अपने करियर के मालिक खुद बनो। आपको यही लगता होगा कि ऐसा तो सभी सोचते हैं, पर ऐसा नहीं है। जब आफ कोई पार्ट टाइम काम, या घर बैठे सलाह देना या किसी छोटे से स्टार्ट अप को आगे बढ़ाने जैसा काम कर होते हैं तो समझ लीजिए कि आप अपनी पहचान अपनी वसीयत के तौर पर बना रहे होते हैं। आप तय करिये कि आप जो कुछ भी कर रहे हैं, उसके पीछे कोई न कोई अर्थ जरूर है।
अश्विनी की कहानी से हमें सीख मिलती है कि लोगों की भीड़ के बीच आप अपनी स्थायी पहचान बनाइए, खासकर भारत में। याद रखिये आपको आपको बहुत दूर तक जाना है और आपको दिखाना है कि आप दूसरों के जैसे नहीं, बल्कि उनसे खास हो। तकनीक में काम करने बेहद रोमांचक है। हर दिन नए नए स्टार्ट अप आ रहे हैं। कुछ बेकार और कुछ महा बेकार। अश्विनी के मुताबिक, मैं केवल एक या दो ही महिलाओं से मिल पाई, जिन्होंने ऐसा स्टार्ट अप शुरू किया। ज्यादातर तो इस रोमांच से दूर ही हैं। यहां बहुत सारा पैसा है। बहुत सारी संभावनाएं हैं, उपभोक्ताओं की बहुत सारी जरूरतें हैं और आपका अनुभन उन्हें पूरा कर सकता है। एक अच्छा उद्यमी होन का बेहतर समय कभी नहीं होता ना ही एक बेहतर महिला तकनीशियन का। इसलिए उठिये और साबित करिये की आप क्या हैं।
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