पिता ने कपड़े इस्त्री कर पढाया, नौकरी की पहली सैलरी के बाद कटा पैर, मैराथन दौड़ कर बनी पहली महिला ब्लेड रनर
December 26, 2019, Updated on : Thu Dec 26 2019 08:31:31 GMT+0000

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किरन की जिंदगी में पहले गरीबी और दुख थे फिर जब सुख आया तो जैसे उसे किसी की नजर लग गई हो। और उन पर फिर से दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। लेकिन सलाम है किरन के हौसले और जज्बे को जिसने हिम्मत नहीं हारी और असंभव को संभव कर दिखाया। जानते हैं भारत की पहली महिला ब्लेड रनर की ये प्रेरणादायक कहानी।

किरन कन्नौजिया
फोटो क्रेडिट: Navbharat Times
"पिघला दे जंजीरें
बना उनकी शमशीरें
कर हर मैदान फ़तेह ओ बंदेया
कर हर मैदान फ़तेह"
फिल्म अभिनेता संजय दत्त की जीवनी पर आधारित, रणबीर कपूर अभिनीत फिल्म संजू में गीतकार शेखर अस्तित्व का लिखा ये गीत आप सब ने सुना होगा... और बार-बार सुना होगा... इस गीत की ये पंक्तियां भारत की पहली महिला ब्लेड रनर किरन कन्नौजिया पर बिल्कुल मुनासिब बैठती हैं। किरन की जिंदगी में पहले गरीबी और दुख थे फिर जब सुख आया तो जैसे उसे किसी की नजर लग गई हो। और उन पर फिर से दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। लेकिन सलाम है किरन के हौसले और जज्बे को जिसने हिम्मत नहीं हारी और असंभव को संभव कर दिखाया।
बेहद गरीबी भरा रहा बचपन
किरन कन्नौजिया का जन्म हरियाणा के फरीदाबाद में एक बेहद गरीब परिवार में हुआ। किरन के पिता लोगों के कपड़े इस्त्री करके अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे। आमदनी के नाम पर महीने में मात्र दो हजार रुपये होते थे।
किरन बताती हैं,
“हमारे पिता लोगों के कपड़ों पर इस्त्री करके आजीविका चलाते थे। आमदनी के नाम पर महीने में मात्र दो हजार रुपये। हम तीन भाई-बहन हैं। हम तीनों भाई-बहन सड़क किनारे स्ट्रीट लाईट के नीचे बैठकर पढ़ाई करते थे।”
वे आगे बताती हैं,
“उस समय मैंने बहुत मेहनत से पढ़ाई की थी। मैंने सोचा था पढ-लिखकर मैं अच्छी नौकरी करूंगी और अपने परिवार की आर्थिक रूप से मदद करूंगी। मैंने इंटरमीडियट में टॉप किया था। जिसके बाद मुझे स्कॉलरशिप मिल गई और उसके बाद एक बड़ी कंपनी में नौकरी भी मिल गई।”
सुख-दुख: एक सिक्के के दो पहलू
जब उन्हें नौकरी मिल गई तब उनकी जिंदगी में सुख आया। उनकी जिंदगी में अच्छे दिन आए, मगर महज चंद दिन के लिए। जब साल 2011 में वह अपना जन्मदिन मनाने के लिए हैदराबाद से फ़रीदाबाद जाने के लिए ट्रेन में सफ़र कर रही थी तब पलवल स्टेशन के पास कुछ उच्चकों ने उनका बैग छिनने की कोशिश की।
किरन बताती हैं,
“मेरे बैग में मेरी पहली सैलेरी थी। जब उन्होंने मेरा बैग छिनने की कोशिश की तब छीना-झपटी में मैं ट्रेन से नीचे गिर गईं और मेरा एक पैर पटरियों में फंस गया। जिसके बाद हॉस्पिटल में इलाज के दौरान डॉक्टर्स को मेरी एक टांग काटनी पड़ी। तब मुझे लगा कि मुझे फिर से नया जन्म मिला है।”
मैराथन में लगाई दौड़, बनी पहली महिला ब्लेड रनर
ये समय किरन कन्नौजिया के लिए बहुत मुश्किलों वाला था। इस दौरान उन्हें आर्थिक तंगी और कई प्रकार की तकलीफों से गुजरना पड़ा। बावजूद इसके उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। किरन ने अपना इलाज करवाया और उन्होंने मैराथन दौड़ने का निश्चय किया। वह जानती थी कि उनका ये सफर इतना आसान नहीं है। उन्होंने अदम्य साहस का परिचय देते हुए असंभव को भी संभव कर दिखाया।
किरन ने कृत्रिम टांग के सहारे मैराथन में दौड़ लगाई और देश की पहली महिला ब्लेड रनर का खिताब अपने नाम किया। उनके हौसले के आगे सुख-दुख, गरीबी आदि ने घुटने टेक दिए। किरन ने लोगों को कठिनाइयों से लड़कर आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया।

फोटो साभार: सोशल मीडिया
इसके बाद दक्षिण रिहेबलिटेशन सेंटर के सभी लोगों ने अपना एक ग्रुप बनाया और जब एक साथ मैराथन दौड़ने लगे तो इन्हें देखकर लोगों ने भी इनकी हौसला-अफजाई की।
लक्ष्य जीतते गए, मुश्किलें हारती गई
किरन ने पहले 5 किलोमीटर की दौड़ लगाई और फिर कुछ समय बाद लक्ष्य बढ़ाते हुए 10 किलोमीटर की दौड़ लगाने लगीं। इतने पर भी वे रूकी नहीं। जोश और जुनून से भरपूर किरन ने अब अपना लक्ष्य 21 किलोमीटर की दौड़ लगाने का रखा।
अपना एक पैर गंवा देने के बाद भी उनके जोश और जुनून में कोई कमी नहीं है। एक पैर गवां देने की घटना ने उन्हें चट्टान से भी मजबूत इंसान बना दिया। आज किरन कन्नौजिया कई मेडल अपने नाम कर चुकी हैं।
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