पिता ने किराने की दुकान में काम कर के पढ़ाया, आईएएस बनकर बेटी ने पूरा किया सपना
IAS बनने के लिए UPSC द्वारा आयोजित की जाने वाली सिविल सेवा परीक्षा देश की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक मानी जाती है। हर साल लाखों की संख्या में युवा इस परीक्षा में बैठते हैं, लेकिन उनमें से 100 से भी कम लोग आईएएस बनते हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह परीक्षा कितनी कठिन होती है। तभी तो इसे पास करने वाले किसी हीरो से कम नहीं होते। आज हम आपको एक ऐसे ही हीरो से मिलवाने जा रहे हैं जिसने विपरीत परिस्थितियों में आईएएस बनने का ख्वाब बुना और उसे पूरा भी किया। हम बात कर रहे हैं श्वेता अग्रवाल की।
2015 के यूपीएससी एग्जाम में 19वीं रैंक हासिल करने वाली श्वेता की सफलता की कहानी बेहद संघर्षों और चुनौतियों से होकर गुजरी है। श्वेता का जन्म पश्चिम बंगाल के हुगली जिले में एक मारवाड़ी परिवार में हुआ था। उनके परिवार में कुल 28 लोग थे और पिता एक किराने की दुकान में काम करते थे। श्वेता के पैदा होते ही उन्हें भेदभाव झेलना पड़ा क्योंकि उनके दादा-दादी को बेटे की आस थी। लेकिन अच्छी बात ये थी कि श्वेता के माता-पिता को इस बात से फर्क नहीं पड़ता था और वे अपनी बेटी की परवरिश को लेकर भरोसेमंद थे।
हालांकि श्वेता के माता-पिता की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि वे उन्हें किसी अच्छे स्कूल में पढ़ा सकें। लेकिन उनके पिता का सपना था कि अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दें। यही सोचकर उन्होंने श्वेता का दाखिला कोलकाता के सेंट जोसेफ स्कूल में करा दिया। यह स्कूल अच्छा तो था, लेकिन यहां की फीस काफी ज्यादा थी, जिसे भरने के लिए उन्हें कई तरह के काम करने पड़े। कहीं से पैसे इकट्ठे करके उन्होंने अपनी बेटी की पढ़ाई पूरी करवाई। श्वेता बताती हैं कि गरीबी का ये आलम था कि रिश्तेदारों द्वारा भेंट किए गए थोड़े पैसों को भी वे मां को दे देती थीं ताकि उनकी स्कूल की फीस पूरी हो सके।
श्वेता बताती हैं, 'स्कूल से निकलने के बाद जब कॉलेज में एडमिशन लेने की बारी आई तो लोगों ने तंज कसना शुरू कर दिया कि लड़की कितना भी पढ़ ले आखिर में तो उसे चौका बर्तन ही करना होता है। मेरे परिवार में किसी ने इसके पहले ग्रैजुएशन नहीं किया था। मैं पहली ऐसी इंसान थी जो आगे की पढ़ाई करने के लिए प्रतिबद्ध थी।' इसके बाद श्वेता ने कोलकाता के सेंट जेवियर्स कॉलेज में एडमिशन लिया और वहां से न केवल अच्छे नंबरों से पास हुईं बल्कि कॉलेज के टॉप स्टूडेंट्स में भी उनका नाम आया।
वे बताती हैं, 'मुझे पता चल गया था कि अगर मैं अपने माता-पिता के ऊपर से सारा बोझ हटा सकती हूं तो उसके लिए पढ़ाई बहुत जरूरी है।' कॉलेज से निकलने के बाद श्वेता को एक प्राइवेट कंपनी में अच्छी नौकरी मिल गई। लेकिन उनके मन में अफसर बनने का ख्वाब था। इस ख्वाब को पूरा करने के लिए उन्होंने नौकरी से त्यागपत्र दिया और यूपीएससी की तैयारी में लग गईं। लेकिन यहां भी उनके सामने मुश्किलें कम नहीं हुईं। उन पर परिवार की तरफ से शादी करने का दबाव बनाया जाने लगा।
श्वेता ने बताया, 'मेरे सारे चचेरे भाई बहनों की शादी हो गई थी जो कि उम्र में मुझसे काफी छोटे थे। इस वजह से मुझ पर भी दबाव बनाया जाता था, लेकिन मैं अपने करियर को लेकर एकदम क्लियर थी कि मुझे आईएएस बनना है।' श्वेता ने 2013 में यूपीएससी का एग्जाम दिया और अंतिम लिस्ट में जगह भी बनाई। लेकिन 497वीं रैंक होने की वजह से उन्हें इंडियन रेवेन्यू सर्विस मिली। जबकि वे आईएएस बनना चाहती थीं। इस ख्वाब को पूरा करने के लिए उन्होंने फिर से एग्जाम दिया लेकिन दुर्भाग्यवश वे प्रीलिम्स भी क्वॉलिफाई नहीं कर पाईं।
असफलता के बाद भी श्वेता ने हार नहीं मानी और तैयारी में लगी रहीं। उन्होंने 2015 में फिर से एग्जाम दिया और 141वीं रैंक हासिल की। लेकिन इस बार भी उन्हें आईएएस सर्विस नहीं मिली और उन्हें आईपीएस में जाना पड़ा। श्वेता ने 2016 में एक बार और एग्जाम दिया और इस बार 19वीं रैंक हासिल की। श्वेता की ये कहानी किसी फिल्म की कहानी जैसी लगती है, लेकिन मेहनत करने वालों की कहानी ऐसे ही होती है जिससे दुनिया प्रेरणा लेती है। श्वेता आज न जाने कितने युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बन गई हैं।
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