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मात्र ₹10,000 से शुरू किया लेदर का बिजनेस, आज टर्नओवर 25 लाख रुपये

मात्र ₹10,000 से शुरू किया लेदर का बिजनेस, आज टर्नओवर 25 लाख रुपये

Monday April 01, 2019 , 6 min Read

आंचल मित्तल (तस्वीर साभार- ZIBA)

आंचल मित्तल का जन्म पुरानी दिल्ली में एक मारवाड़ी परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता प्रगतिशील विचारों के थे। उन्होंने अपनी बेटी पर उस रुढ़िवादी समाज को हावी नहीं होने दिया, जिसमें वे जी रहे थे। उन्होंने हमेशा अपनी बेटी आंचल और उनकी बहन स्वाति को आत्मनिर्भर होने के लिए प्रोत्साहित किया। 


दिल्ली एनआईएफटी के अलमुनाई 27 साल की आंचल बताती हैं, 'हमारे माता-पिता ने हमसे पहले कह दिया था कि तुम्हारी शादी तभी होगी, जब तुम कमाने लगोगी।' उन्होंने अपने माता-पिता को निराश नहीं किया। हालांकि, आंचल ने नौकरी के बजाय हैंडक्रॉफ्ट लेदर गुड्स का ब्रांड 'ब्रांडलेस' की बुनियाद रखी। उन्होंने 2015 में महज 10,000 रुपये के साथ कारोबार शुरू किया था। उस में वह फ्रीलांस असाइनमेंट लेती थीं। आज उनकी कंपनी 25 लाख रुपये के टर्नओवर के साथ मुनाफा कमाने लगी है। इस युवा और सिंगल लड़की को किसी भी वेंचर कैपिटिलिस्ट से फंडिंग नहीं मिली है। इसने पुरुषों के दबदबे वाले कारोबार में अपनी पहचान खुद बनाई है।


 ब्रांडलेस बुकमार्क्स, हैंड बैग, वॉलेट, पासपोर्ट पाउच, की-चेन और सूटकेस जैसे प्रॉडक्ट्स बनाती है। आंचल की कंपनी कलर पर खास देती है और टील ब्लू, टैन, फॉरेस्ट ग्रीन और ब्लैक ब्राउन जैसे ट्रेंडी कलर ऑफर करती है। आपको ब्रांडलेस में 200 रुपये (लेदर की-चेन) से लेकर 18,000 रुपये (लेदर सूटकेस) के प्रोडक्ट्स मिल जाएंगे। हैंडबैग के लिए करीब 5,000 रुपये चुकाने पड़ेंगे। आंचल ने दिल्ली के ऑर्थोडॉक्स कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ाई की है। वह बताती हैं, 'स्कूली दिनों में खेल मेरी सांसों में बसता था। मैंने टेबल टेनिस स्टेट लेवल तक खेला है। उसके बाद मैंने हंसराज कॉलेज के मीडिया और एडवर्टाइजिंग कोर्स में दाखिला ले लिया। हालांकि, ये कोर्स मुझे रास नहीं आई और मैंने इसे एक साल बाद ही इसे छोड़ दिया।' 


उन्होंने 2010 में लेदर डिजाइन का कोर्स करने के लिए एनआईएफटी दिल्ली में दाखिला लिया। आंचल कहती हैं, 'जब फैशन की बात होती है तो इसकी गिनती भारत के प्रतिष्ठित संस्थानों में होती है। इस संस्थान की हवाओं में मुझे ताजगी महसूस हुई। मुझे यहां अपनी काबिलियत को निखारने का भरपूर मौका मिला और मैंने कोर्स के दौरान जाने-माने डिजाइनर्स के साथ काम करना शुरू कर दिया था।' आंचल अपने शुरुआती दिनों को याद करके बताती हैं, 'मैंने 2010 फैशन वीक के दौरान पहली बार एक डिजाइनर के साथ बतौर असिस्टेंट काम किया और उसके लिए मुझे 1,500 रुपये मिले थे। मैंने फ्री में काम किया था और उससे मिला अनुभव मेरे बहुत काम आया।' 


उन्होंने जालंधर के एक टेनरी में तीन हफ्तों की ट्रेनिंग के दौरान लेदर इंडस्ट्री के साथ अपना पहला ब्रश रखा। आंचल बताती हैं, 'यहीं से मुझे लेदर की बारीकियां समझ आई। मैं इस्तेमाल करने लायक और नॉन-यूजेबल लेदर में अंतर समझने के लिए लेदर बनने का पूरा प्रोसीजर समझा।' उन्होंने अपने फाइनल ईयर प्रॉजेक्ट में टॉप डिजाइनर सामंत चौहान के साथ काम किया और उनके दिशानिर्देश में चमड़े के बैग और जैकेट से जुड़ा काम किया।


वह अनुभव आंचल के लिए काफी मददगार साबित हुआ और उन्होंने उससे लेदर डिजाइन में अपने हुनर को काफी संवारा। उनके फाइनल ईयर प्रॉजेक्ट को क्लास में सबसे बेहतर प्रॉजेक्ट का सम्मान मिला। आंचल बताती हैं, 'कॉलेज का फाइनल ईयर खत्म होने के तक मैं फुलटाइम कोर्स और अलग-अलग प्रॉजेक्ट्स के बीच झूलती रहती थी। इसलिए मैं 9 से 5 बजे वाली नौकरी नहीं करना चाहती थी। मैंने एक बड़े डिजाइनर के साथ करने का ऑफर भी ठुकरा दिया और फ्रीलांस असाइनमेंट्स पर फोकस करने लगी।'


 इस तरह के असाइनमेंट से उन्हें 10,000 रुपये मिले। आंचल ने उस रकम को अपने लेदर बिजनेस में लगाने का फैसला किया। वह लेदर इंडस्ट्री से पहले से ही वाकिफ थीं और वेंडर्स के साथ यह भी जानती थीं कि कच्चा माल कहां मिलेगा। वह अपने उद्यमी बनने के सफर के बारे में बताते हुए कहती हैं, 'मैंने अपने परिवार में किसी को बताए बगैर 9 महीने के रिसर्च एंड डेवलपमेंट का कोर्स किया। सप्लायर्स एडंवास में टोकन मनी मिलने के बाद मुझे कच्चा माल देने लगें।' आंचल बताती हैं, 'एक एक्सपोर्ट हाउस में मेरी मास्टरजी (दर्जी) से पुरानी जान-पहचान थी। वह लेदर प्रॉडक्ट्स की सिलाई करते थे, वही मेरे पहले कर्मचारी बने। उनका घर मेरा ऑफिस बन गया, जहां हमने पहला सैम्पल्स बनाया।'


 आंचल ने अपने कंपनी नाम एन स्कवेयर एक्सेसरीज रखा, जो उनके माता-पिता निशा और नवीन के नाम का पहला अक्षर है। युवा उद्यमी ब्रांड का नाम ब्रांडलेस रखने की कहानी भी बताती हैं। वह कहती हैं, 'ब्रांडलेस नाम लोगों के सटायरिकल जोक है, जो ब्रांड के नाम पर वैल्यू की परवाह किए बगैर प्रोडक्ट्स खरीद लेते हैं।' आंचल कहती हैं कि उनके प्रॉडक्ट्स में स्टाइलिश के साथ-साथ उपयोगी भी होते हैं। आंचल ने पहले साल करीब 50,000 रुपये का कारोबार किया। उनके प्रॉडक्ट्स की बिक्री साल-दर-साल बढ़ती गई और फिलहाल कंपनी का टर्नओवर 25 लाख रुपये तक पहुंच गया है।


आंचल दावा करती हैं, 'हमारी कंपनी मुनाफे में है।' उनके प्रॉडक्ट्स देश के अलग-अलग हिस्सों के चुनिंदा स्टोर में बिकते हैं। वह अपने बिजनेस मॉडल के बारे में बताते हुए कहती हैं, 'मैं 'एक शहर, एक सेलर' मॉडल पर भरोसा करती हूं। हम ऑनलाइन मार्केटप्लेस पर अपना प्रॉडक्ट्स नहीं बेचना चाहते हैं क्योंकि उनकी प्राथमिकता कीमत कम रखने पर होती है। मैंने बेहद कम मुनाफे पर काम किया है और किसी भी कीमत पर गुणवत्ता से समझौता नहीं कर सकती हूं। यही वजह है कि हम अपने प्रॉडक्ट्स को ऑनलाइन प्लैटफॉर्म पर उपलब्ध नहीं कराते हैं।' हालांकि, आंचल ने कॉरपोरेट से समझौता किया है, जो फेस्टिव सीजन और दूसरे खास मौकों पर की-चेन या बैग को गिफ्ट में देने के लिए ऑर्डर देते हैं। आंचल के साथ करीब 10 लोगों की टीम है। उन्होंने किराए पर एक स्टूडियो और फैक्टरी ली है, जहां प्रॉडक्शन संबंधित सारा काम होता है।


आंचल को भरोसा है कि उनके कारोबार का भविष्य का अच्छा है। वह इसका कारण बताती हैं, 'इस समय नकली चाइनीज प्रॉडक्ट्स का मार्केट में बोलबाला है, लेकिन असली लेदर के कद्रदान भी मौजूद हैं। जो जागरूक हैं और गुणवत्ता से समझौता नहीं करना चाहते हैं, वे आज भी असली लेदर को ही खरीदते हैं। लेदर महंगा जरूर होता है, लेकिन यह काफी लंबे समय तक साथ देता है।' वह कहती हैं, 'अगर इसका सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए तो यह एनवायरमेंट फ्रेंडली (पर्यावरण के अनुकूल) होता है। यह बिल्कुल उसी तरह है, जैसे हम स्किन को रिसाइकल कर रहे हैं। अगर इसे फेंका जाता है तो यह प्राकृतिक तरीके से नष्ट हो जाता है।


आंचल का दिन 7 बजे सुबह शुरू होता है, जब वह क्लासिकल डांस ट्रेनिंग के लिए निकलती हैं। इससे उन्हें खुशी मिलती है और यह उन्हें तनाव से बचाता भी है। वह दिल्ली के पर्ल एकेडमी ऑफ फैशन गेस्ट फैकल्टी भी हैं। आंचल अपनी सफलता का राज बताते हुए बात खत्म करती हैं। वह कहती हैं, 'सफलता कोई शॉर्टकट नहीं होता है; इसे सच्ची लगन और कड़ी मेहनत से ही हासिल किया जा सकता है।' वह इसका उदाहरण बताते हुए कहती हैं कि जब वह पैसों की कमी से जूझ रही थीं तो उन्होंने अपनी वेबसाइट के लिए खुद ही कोडिंग की थी। वे निरंतर सीखते रहने में विश्वास करती हैं और दूसरों को भी यही सलाह देती हैं।


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