85 साल में पहली बार FIFA ने भारतीय फुटबॉल फेडरेशन पर क्यों लगाया प्रतिबंध?
इस विवाद की शुरुआत एआईएफएफ के पूर्व अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल के उस फैसले से होती है, जिसमें वह सुप्रीम कोर्ट के एक पेंडिंग ऑर्डर का उल्लेख करते हुए दिसंबर, 2020 में अपना तीसरा कार्यकाल खत्म होने के बाद भी अपने पद से नहीं हटते हैं.
विश्व फुटबॉल की सर्वोच्च संचालन संस्था फीफा (FIFA) ने तीसरे पक्ष द्वारा गैर जरूरी दखल का हवाला देकर अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (AIFF)) को मंगलवार को निलंबित कर दिया. यह पिछले 85 साल के इतिहास में पहला अवसर है जबकि फीफा ने एआईएफएफ पर प्रतिबंध लगाया. फीफा ने कहा है कि निलंबन तुरंत प्रभाव से लागू होगा.
इसके साथ ही फीफा ने उससे अक्टूबर में होने वाले अंडर-17 महिला विश्व कप के मेजबानी अधिकार छीन लिए. भारत को 11 से 30 अक्टूबर के बीच फीफा टूर्नामेंट की मेजबानी करनी है.
फीफा ने एक बयान में कहा ,‘‘फीफा परिषद के ब्यूरो ने सर्वसम्मति से अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) को तीसरे पक्ष के अनुचित प्रभाव के कारण तत्काल प्रभाव से निलंबित करने का फैसला किया है. तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप फीफा के नियमों का गंभीर उल्लंघन है.’’
बयान में आगे कहा गया है, ‘‘निलंबन तभी हटेगा जब एआईएफएफ कार्यकारी समिति की जगह प्रशासकों की समिति के गठन का फैसला वापिस लिया जायेगा और एआईएफएफ प्रशासन को महासंघ के रोजमर्रा के काम का पूरा नियंत्रण दिया जायेगा.’’
फीफा के सख्त रवैये की वजह क्या है?
इस विवाद की शुरुआत एआईएफएफ के पूर्व अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल के उस फैसले से होती है, जिसमें वह सुप्रीम कोर्ट के एक पेंडिंग ऑर्डर का उल्लेख करते हुए दिसंबर, 2020 में अपना तीसरा कार्यकाल खत्म होने के बाद भी अपने पद से नहीं हटते हैं. साल 2017 से पेंडिंग पड़े इस मामले के तहत उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा नए संविधान के मुद्दे का निपटारा होने तक चुनाव कराने से इनकार करते हुए अपना कार्यकाल बढ़ाया था.
नियमों के अनुसार, स्पोर्ट्स कोड के तहत किसी नेशनल स्पोर्ट्स फेडरेशन चीफ का अधिकतम कार्यकाल 12 साल हो सकता है. राज्य संघों के कई पदाधिकारी, मोहन बगान के गोलकीपर और मौजूदा भाजपा नेता कल्याण चौबे ने कोर्ट में जाकर हस्तक्षेप करने की मांग की.
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2020 से चुनाव नहीं करवाने के कारण 18 मई को प्रफुल्ल पटेल को एआईएफएफ के अध्यक्ष पद से हटा दिया था और यह पद अभी खाली पड़ा है. वहीं, एआईएफएफ के संचालन के लिए सुप्रीम कोर्ट के फॉर्मर जज एआर दवे की अध्यक्षता में तीन सदस्य प्रशासकों की समिति (सीओए) का गठन किया था.
सीओए को राष्ट्रीय खेल संहिता और दिशा निर्देशों के अनुसार एआईएफएफ के संविधान को तैयार करने की जिम्मेदारी भी सौंपी गई थी.
हालांकि, फीफा कानून के अनुसार, सदस्य संघों को अपने-अपने देशों में कानूनी और राजनीतिक हस्तक्षेप के अधीन नहीं होना चाहिए.
इसको देखते हुए फीफा और एशियन फुटबाल कॉन्फडरेशन ने जून में तीन दिन का भारत का दौरा किया और उसने जल्द से जल्द एआईएफएफ का प्रशासन बहाल करने की सिफारिश की.
3 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने एआईएफएफ और कार्यकारी परिषद के निर्वाचक मंडल में 50 प्रतिशत (36) प्रख्यात खिलाड़ियों के प्रतिनिधित्व की सीओए की सिफारिश को मंजूरी दे दी. इसके साथ ही एआईएफएफ की कार्यकारी समिति के चुनाव जल्द से जल्द कराने और 29 अगस्त तक रिजल्ट जारी करने का आदेश दिया.
फीफा ने हालांकि इससे पहले एआईएफएफ को भेजे गये एक पत्र में कहा था कि निर्वाचक मंडल में राज्य संघों के प्रतिनिधियों और पूर्व खिलाड़ियों की बराबर संख्या ‘समझदारी नहीं’ है, हालांकि उसने संविधान मसौदे के 50 प्रतिशत के बजाय कार्यकारी समिति में 25 प्रतिशत खिलाड़ियों के प्रतिनिधित्व पर सहमति दी थी.
अब आगे क्या होगा?
केंद्र सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में एआईएफएफ के मामले में तत्काल सुनवाई की मांग की. कल मामले की सुनवाई होगी.
वहीं, फीफा के प्रतिबंध लगाए जाने के कुछ घंटे बाद ही प्रशासकों की समिति (सीओए) विश्व फुटबॉल की सर्वोच्च संस्था की शर्तों के अनुसार अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) के चुनाव कराने पर सहमत हो गई है.
सूत्रों ने बताया कि प्रतिबंध थोड़े समय के लिए ही हो सकता है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट से नियुक्त प्रशासकों की समिति चुनावों और नए संविधान को लेकर फीफा की लगभग सभी शर्तों को मानने के लिए तैयार है. इसलिए अंडर-17 महिला विश्वकप का आयोजन अभी भारत में हो सकता है.
एक शीर्ष सूत्र ने कहा, ‘‘अधिकारियों को लग रहा है कि प्रतिबंध थोड़े समय के लिए ही रहेगा और चुनाव 28 अगस्त को नहीं लेकिन 15 सितंबर (फीफा की समय सीमा) से पहले कराए जाएंगे. सीओए फीफा की शर्तों के अनुसार चुनाव कराने पर सहमत है.’’ सूत्रों ने बताया कि सीओए, फीफा और खेल मंत्रालय राज्य संघों के प्रतिनिधियों से बने निर्वाचक मंडल के साथ एआईएफएफ के चुनाव कराने पर सहमत हैं. अब इन चुनावों के निर्वाचक मंडल में 36 प्रख्यात खिलाड़ियों को शामिल नहीं किया जाएगा.
इससे पहले निर्वाचन अधिकारी ने जिन 36 खिलाड़ियों की सूची जारी की थी उनमें शब्बीर अली, मनोरंजन भट्टाचार्य, प्रशांत बनर्जी, आईएम विजयन और बाईचुंग भूटिया भी शामिल हैं. पांच प्रतिष्ठित खिलाड़ी (तीन पुरुष और दो महिला) हालांकि प्रस्तावित 22 सदस्यीय कार्यकारी समिति के सदस्य बन सकते हैं और उन्हें मतदान का अधिकार होगा.
निलंबन का क्या असर होगा?
फीफा निलंबन से भारतीय फुटबाल पर बड़ा असर पड़ सकता है. अंडर-17 महिला विश्व कप की मेजबानी का अधिकार गंवाने के अलावा राष्ट्रीय टीमें अंतरराष्ट्रीय मैचों में नहीं खेल पाएंगी. यहां तक कि भारतीय क्लबों को भी महाद्वीपीय टूर्नामेंट में भाग लेने की अनुमति नहीं होगी.
पुरुष टीम अगले महीने सिंगापुर और वियतनाम से खेलने वाले थे. सीनियर महिला टीम अगले महीने SAFF महिला चैंपियनशिप में हिस्सा नहीं ले सकती है, जबकि गोकुलम केरला एफसी अगले हफ्ते एएफसी महिला क्लब चैंपियनशिप में हिस्सा नहीं ले पाएगी.