'जल साथी': दूर से पानी भरकर लाने वालों के बड़े ही काम का है ये डिवाइस, एक स्टूडेंट ने किया है डिजाइन
भारत में 50 फीसदी से भी कम जनसंख्या के पास सुविधाजनक रूप से पहुंचने वाला पीने का पानी उपलब्ध है. देश के 718 जिलों में से दो-तिहाई पानी की अत्यधिक कमी से प्रभावित हैं. इसके अलावा पानी को दूर से भरकर लाने में और उसे एक से दूसरे बर्तन में पलटने में होने वाली मशक्कत भी एक समस्या है.
आजादी के 75 सालों के बाद भी हमारे देश में पीने के पानी के संकट का समाधान नहीं हो पाया है. आज भी कितने ही गांवों, कस्बों और झुग्गी-झोपड़ियों में महिलाओं के साथ बच्चे, बूढ़े और पुरुष सभी सिर पर पानी ढोकर लाते देखे जाते हैं.
यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 50 फीसदी से भी कम जनसंख्या के पास सुविधाजनक रूप से पहुंचने वाला पीने का पानी उपलब्ध है. देश के 718 जिलों में से दो-तिहाई पानी की अत्यधिक कमी से प्रभावित हैं. इसके अलावा पानी को दूर से भरकर लाने में और उसे एक से दूसरे बर्तन में पलटने में होने वाली मशक्कत भी एक समस्या है.
इन समस्याओं को देखते हुए विभिन्न क्षेत्रों में डिजाइनिंग का कोर्स कराने वाली Pearl Academy की एक स्टूडेंट ने एक ऐसा डिवाइस डिजाइन किया है, जो कि पानी को लाने-ले जाने, स्टोर करने और पानी को एक बर्तन से दूसरे बर्तन में निकालने की समस्या का समाधान करने का दावा करता है.
इस डिवाइस का नाम 'जल साथी' (Jal Saathi) है और इसे पर्ल एकेडमी की स्टूडेंट हरलीन कौर ने तैयार किया है. उन्होंने प्रोडक्ट डिजाइनिंग में बीए ऑनर्स किया है. उन्होंने इस डिवाइस की डिजाइनिंग अपने ग्रेजुएशन प्रोजक्ट के तहत की है.
डिवाइस में क्या है खास?
प्रोजेक्ट 'जल साथी', झुग्गी-झोपड़ियों और अन्य इलाकों में पानी के ट्रांसपोर्टेशन, एक्सेसेबिलिटी और स्टोरेज जैसे तीन एस्पेक्ट्स को कवर कर रहा है. हरलीन ने अपनी डिवाइस में ऐसे इंडस्ट्रियल व्हील्स का इस्तेमाल किया है, जिससे कच्चे और टूटे-फूटे रास्तों के साथ-साथ जर्जर सड़कों और पतले रास्तों से भी पानी ले जाने में ज्यादा परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा.
इसके साथ ही डिवाइस को उठाने के लिए हैंडल भी लगाया गया है क्योंकि लोगों को पानी भरने के लिए दूर जाना पड़ता है और ढेर सारा भार ढोना पड़ता है. स्टोरेज की बात करें तो लोग पानी को प्लास्टिक के बर्तनों या बोतलों में रखते हैं फिर उन्हें खुला छोड़ देते हैं. इसके लिए उन्होंने अपनी डिवाइस को बहुत पतला बनाया है ताकि उसे घर के किसी भी कोने में खड़ाकर या लिटाकर रखा जा सके.
YourStory से बात करते हुए हरलीन ने कहा कि मैं चाहती हूं कि लोग इस डिवाइस में ही पानी को स्टोर करके रख भी पाएं और इसके लिए हमने 15 लीटर का छोटा और 25 लीटर का बड़ा साइज बनाया है.
उन्होंने आगे कहा कि जहां तक बात एक्सेसेबिलिटी की है तो हमने अपने प्रोजेक्ट में दो हैंडल बनाए हैं जो कि ऊपर और नीचे दोनों तरफ हैं. इससे पानी को दूसरे बर्तन में निकालने में आसानी होगी. इसके साथ प्रोजेक्ट में पानी भरने वाले पाइप को उसी में मोड़कर रखा जा सकता है. इस तरह मैंने सभी चीजों को कवर करने की कोशिश की है.
कैसे आया आइडिया?
पिछले दो साल से
में यूजर एक्सपीरियंस डिजाइनर के तौर पर काम कर रहीं 25 वर्षीय हरलीन बताती हैं कि Covid-19 महामारी की शुरुआत से ठीक पहले उन्होंने साल 2020 में पर्ल एकेडमी से ग्रेजुएशन किया था. उस समय उनका ग्रेजुएशन का प्रोजेक्ट खत्म हो रहा था. महामारी से पहले ही उन्होंने अपने प्रोजेक्ट के लगभग सभी जरूरी काम कर लिए थे, जिसमें डिवाइस के लिए रिसर्च करना और झुग्गी-झोपड़ियों में जाने जैसे काम शामिल थे.उन्होंने कहा कि मुझे शुरू से पता था कि मुझे सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी से जुड़े प्रोजेक्ट पर काम करना है. मेरी रिसर्च में पता चला कि देश में पानी की बहुत अधिक समस्या है. हालांकि, तब भी मुझे नहीं पता था कि पानी से जुड़ी इतनी सारी समस्याओं में से कौन सी समस्या पर काम करना सबसे अधिक जरूरी है.
हरलीन दिल्ली की 12-13 झुग्गी-झोपड़ियों में गईं और वहां जाकर लोगों की समस्याओं को देखा. उन्होंने वहां देखा कि पानी भरने के लिए लोगों को घंटों खड़े रहना पड़ता है और इसके लिए उनमें लड़ाई तक हो जाती है. वहीं, पानी भरने के बाद भी उन्हें बचा-बचाकर इस्तेमाल करना पड़ता है.
हरलीन बताती हैं कि मुझे यह बहुत ही शॉकिंग लगा कि एक परिवार में एक या दो सदस्य जो कि सामान्यत: महिलाएं होती हैं, अपना आधे से अधिक समय पानी भरने में लगा देती हैं. इस दौरान हरलीन ने लोगों के साथ खड़े होकर पानी भरा.
उन्होंने कहा कि मुझे तुरंत समझ आ गया कि मुझे किस मुद्दे पर काम करना है क्योंकि यह एक बहुत बड़ी समस्या है. हमारे घरों में रोज पानी आता है तो हम उसे हल्के में लेते हैं.अपनी रिसर्च के दौरान दुनिया में पानी संकट वाली जगहों पर भी उन्होंने ऐसा डिजाइन नहीं पाया और इसे उन्होंने अपने मेंटर पुंकरन सिंह के साथ मिलकर तैयार किया है.
कोविड-19 के कारण मैन्यूफैक्चरिंग में हो रही देरी
हरलीन ने बताया कि कोविड-19 के कारण इसका टेस्ट नहीं हो पाया है. इस प्रोजेक्ट को सिंगल पीस बनाना मुमकिन नहीं है. इसे बल्क में बनाने पर ही इसकी कॉस्ट निकल पाएगी. कोविड-19 महामारी के कारण उन्होंने प्रोडक्ट बनाने के बजाय उसे 3D में ऑनलाइन बनाकर दिखाया था. इसके बाद उन्होंने दोबारा मैन्यूफैक्चरिंग शुरू करने की कोशिश की लेकिन तभी कोविड की दूसरी लहर आ गई. मैन्यूफैक्चरिंग थोड़ा कॉम्प्लेक्स प्रॉसेस है और इसके लिए वह अभी भी लोगों से बात कर रही हैं.
500 रुपये से भी कम होगी लागत
हरलीन का 'जल साथी' प्रोजेक्ट दो साइज में उपलब्ध होगा. बड़ा साइज 25 लीटर और छोटा साइज 15 लीटर का डिजाइन किया गया है. बल्क मैन्यूफैक्चरिंग में जाने पर 25 लीटर का बड़ा डिवाइस 450 रुपये तक का मिल सकता है.
हरलीन कहती हैं कि मैं इसे एक सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी के रूप में पेश कर रही हूं और अगर सरकार इसमें मदद करे तो इसकी कॉस्ट और भी नीचे आ सकती है. यह एक वन टाइम बाई होगा. एक परिवार के लिए दो डिवाइस काफी होंगे.
प्रोजेक्ट को मिला अवार्ड
हरलीन ने जल साथी प्रोजेक्ट को ‘Pearl Portfolio-2022’ में प्रजेंट किया था. उसमें अलग-अलग कोर्सेज के डिजाइन पेश किए जाते हैं. उसमें इंडस्ट्री एक्सपर्ट आकर अपना फीडबैक देते हैं.
हरलीन के जल साथी प्रोजेक्ट को पर्ल एकेडमी का स्पेशल ज्यूरी अवार्ड (Pearl Academy Special Jury Award) मिल चुका है. इसके साथ ही वह इसे दुबई डिजाइन वीक-2020 (Dubai Design Week-2020) और ग्लोबल ग्रैड शो (Global Grad show) में प्रजेंट कर चुकी हैं.
ओमान में पैदा हुईं, अब भारत के लिए कुछ कर दिखाने का सपना
भारत में पीने के पानी की पहुंच से दूर इलाकों की समस्या का समाधान ढूंढने वालीं हरलीन का जन्म भारत में नहीं बल्कि मध्य पूर्व एशियाई देश ओमान में हुआ था. उन्होंने अपनी पढ़ाई-लिखाई भी वहीं से की है. उनके पिता दविंदर सिंह गिल एक रिटायर्ड सिविल इंजीनियर हैं और शुरुआती सालों में ही ओमान चले गए थे. रिटायर होने के बाद पिछले साल उनके पिता वापस भारत आ गए और यहीं रह रहे हैं.
हरलीन बताती हैं कि उनके पैरेंट्स हमेशा से चाहते थे कि वह और उनकी सिस्टर इंडिया आकर स्टडीज करें. वह बताती हैं कि उनके भारत आने का कारण यह भी है कि ओमान में डिजाइनिंग के इन कोर्सेज को लेकर उतने अवसर नहीं हैं.