डेढ़ सौ बार लगाए कोर्ट के चक्कर, कंपनी से लड़कर वापस ली नौकरी, अब कंपनी देगी 7 साल की बकाया सैलरी
लेबर कोर्ट ने माना कि थिरुमलाई सेल्वन को श्रम कानूनों की अनदेखी करते हुए गलत तरीके से नौकरी से निकाला गया था. अब कंपनी को उनकी नौकरी बहाल करनी होगी.
चेन्नई के रहने वाले आईटी (IT) प्रोफेशनल थिरुमलाई सेल्वन ने 7 साल लंबी कानूनी लड़ाई के बाद टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया. गलत तरीके से नौकरी से निकाले जाने के खिलाफ सेल्वन ने न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, 7 साल तक केस लड़ा, डेढ़ सौ बार लेबर कोर्ट के चक्कर लगाए और अंत में मुकदमे का फैसला उनके पक्ष में आया.
लेबर कोर्ट ने माना कि उन्हें श्रम कानूनों की अनदेखी करते हुए गलत तरीके से नौकरी से निकाला गया था. अब कंपनी को न सिर्फ उनकी नौकरी बहाल करनी होगी, बल्कि पिछले 7 सालों की तंख्वाह बाकायदा पूरे एरियर के साथ देनी होगी. यह श्रम कानूनों की और न्याय की जीत है.
क्या है थिरुमलाई सेल्वन की पूरी कहानी
थिरुमलाई टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज के आईटी डिपार्टमेंट के हेड थे. 2015 में कंपनी में बड़े पैमाने पर छंटनी हुई, जिसमें बहुत सारे लोगों को एक साथ नौकरी से निकाला गया. भारत के श्रम कानूनों के मुताबिक यदि किसी भी कंपनी में 100 से ज्यादा कर्मचारी कार्यरत हैं तो वह श्रम कानूनों के अंतर्गत आते हैं और उन्हें कंपनी नौकरी से निकाल नहीं सकती.
थिरुमलाई को नौकरी से निकालते हुए कंपनी ने यह सफाई दी कि चूंकि वह मैनेजेरियल पोस्ट पर थे, इसलिए श्रम कानून उन पर लागू नहीं होते क्योंकि वह “लेबर” की कैटेगरी में नहीं आते.
यह श्रम कानूनों की गलत व्याख्या थी कि मैनेजेरियल पोस्ट पर काम कर रहा व्यक्ति श्रमिक की
कैटेगरी में नहीं आएगा. कोर्ट ने अपने फैसले में इस बात को माना कि मैनेजेरियल पोस्ट होने के बावजूद थिरुमलाई की सेवाएं भारत सरकार के श्रम कानूनों के अंतर्गत आती हैं.
जब थिरुमलाई की नौकरी गई, उस वक्त वो 41 साल के थे. बतौर आईटी प्रोफेशनल उन्होंने अपने कॅरियर का एक लंबा वक्त टाटा कंसल्टेंसी के साथ गुजारा था. अब अचानक इस तरह बेरोजगार हो जाने से जीवन पर संकट आ खड़ा हुआ.
IT कंपनियां अकसर कम सैलरी पर कम उम्र के युवाओं को नौकरी पर रखना पसंद करती हैं. एक स्टडी के मुताबिक पूरी दुनिया में IT वर्ल्ड में काम कर रहे लोगों की औसत उम्र सबसे कम है. और किसी भी फील्ड में उम्र का यह फासला इतना लंबा नहीं है.
नौकरी जाने के बाद थिरुमलाई ने कई स्वतंत्र प्रोजेक्ट्स पर काम किया, लेकिन वह स्थाई नौकरी नहीं थी और ऐसे प्रोजेक्ट भी हमेशा हाथ में नहीं होते थे. बीच में उन्होंने रियल एस्टेट ब्रोकर का भी काम किया. आखिर घर चलाने के लिए कोई तो आय का जरिया होना चाहिए था. कई बार ऐसा भी हुआ कि उन्हें 10 हजार रुपए की मामूली सैलरी पर काम करने के लिए मजबूर होना पड़ा.
थिरुमलाई के कॅरियर की शुरुआत
थिरुमलाई ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. शुरू में चार साल उन्होंने बतौर मैकेनिकल इंजीनियर काम किया, लेकिन उसके बाद आईटी मार्केट में आ रहे बूम और बढ़ती मांग को देखकर उन्होंने अपना कार्यक्षेत्र बदलने की सोची. लेकिन इसके लिए उन्हें आईटी की डिग्री की जरूरत थी. थिरुमलाई नौकरी छोड़कर सॉफ्टवेअर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने चले गए. एक लाख रु. खर्च करके उन्होंने एक कोर्स किया, जिसके बाद उन्हें तुरंत TCS में असिस्टेंट सिस्टम इंजीनियर की नौकरी मिल गई. कुछ साल वहां काम करने के बाद वे टाटा कंसल्टेंसी में काम करने लगे और प्रमोट होकर आईटी डिपार्टमेंट के हेड तक बने.
न्याय की लड़ाई का व्यापक अर्थ
श्रम कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए बड़े पैमाने पर छंटनी के ऐसे उदाहरण इंडस्ट्रीज की दुनिया में कोई नई बात नहीं हैं. अकसर ही ऐसी खबरें आती रहती हैं कि अमुक कंपनी ने इतने कर्मचारियों की छंटनी की. श्रम कानूनों की बाध्यता से बचने के लिए अब कंपनियां ज्यादातर कर्मचारियों को कॉन्ट्रैक्ट पर रखती हैं और वो कॉन्ट्रैक्ट रिन्यू होता रहता है. लेकिन स्थाई कर्मचारी न होने के कारण कंपनी श्रम कानूनों की बाध्यता के बगैर उन्हें कभी भी नौकरी से निकाल सकती है.
गुजरे सालों में कई लोगों ने इस तरह नौकरियां खोई हैं, लेकिन बहुत कम उदहरण ऐसे हैं, जहां नौकरी से निकाले गए लोगों ने लेबर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया हो. थिरुमलाई सेल्वन कंपनी के खिलाफ कोर्ट गए और आखिरकार उन्हें जीत हासिल हुई. अब न सिर्फ उन्हें नौकरी वापस मिलेगी, बल्कि एरियर समेत गुजरे 7 सालों की तंख्वाह भी. कंपनियों और मालिकों के लिए यह प्रेरक कहानी नहीं है, लेकिन श्रमिकों के लिए तो है.
थिरुमलाई सेल्वन का रास्ता आसान नहीं था. कम पैसों में इधर-उधर तरह-तरह के काम करते हुए 7 साल तक डेढ़ सौ बार कोर्ट के चक्कर लगाने में वे कई बार टूटे होंगे, हारे होंगे. कंपनी ने कोर्ट में थिरुमलाई सेल्वन को नौकरी से निकाले जाने की वजह ये बताई कि उनका काम खराब था. इन सारे अनुभवों के साथ केस लड़ना आसान तो नहीं रहा होगा. लेकिन जो लोग आसान रास्ता नहीं चुनते, उन्हें भी अंत में जीत हासिल होती ही है.
Edited by Manisha Pandey