पहले डॉक्टर फिर बनीं IPS, अपने NGO के जरिये स्तन कैंसर को लेकर फैला रही हैं जागरूकता
डॉक्टरी को देश के सबसे प्रतिष्ठित पेशे में से एक माना जाता है और यही कारण है कि देश में हर साल लाखों युवा मेडिकल की पढ़ाई कर डॉक्टर बनने का ख्वाब देखते हैं, इसी के साथ बड़ी संख्या में ऐसे भी डॉक्टर होते हैं जो अपने इस पेशे से आगे बढ़ते हुए सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करते हैं और आईएएस बन प्रशासन व अन्य स्तर पर लोगों की सेवा करते हैं।
एक ऐसी ही शख्सियत हैं डॉ. दर्पण अहलूवालिया जो पेशे से चिकित्सक होने के साथ ही बतौर आईपीएस अपनी सेवाएँ भी दे रही हैं। पंजाब मूल निवासी दर्पण भारतीय पुलिस सेवा के 73वें बैच की टॉपर भी रह चुकी हैं। डॉ. दर्पण ने अपने दूसरे प्रयास में आईपीएस में अपनी जगह पक्की की थी।
ब्रेस्ट कैंसर के खिलाफ मुहिम
डॉ. दर्पण अहलूवालिया पुलिस सेवा के साथ ही देश भर की महिलाओं की विशेष सेवा भी कर रही हैं। डॉ. दर्पण महिलाओं के बीच स्तन कैंसर को लेकर जागरूकता फैलाने का काम कर रही हैं और इसके लिए उन्होने एक एनजीओ की भी स्थापना की है।
27 साल की डॉ. दर्पण अहलूवालिया ने साल 2017 में अपनी एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की थी और इसी के ठीक बाद उन्होने अपने इस एनजीओ की स्थापना की थी। द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार पटियाला के सरकारी मेडिकल कॉलेज से अपनी पढ़ाई के दौरान भी डॉ. दर्पण अहलूवालिया स्तन कैंसर को लेकर स्क्रीनिंग कैंप का आयोजन भी किया करती थीं।
दादा से मिली प्रेरणा
मीडिया से बात करते हुए डॉ. दर्पण ने बताया कि उनके लिए यह किसी रास्ते में बदलाव नहीं है बल्कि वो पहले जो भी करती थीं अब उस काम का अधिक विस्तार हो गया है। अपनी नई भूमिका के बारे में बात करते हुए डॉ. दर्पण कहती हैं कि इसके जरिये अब उन्हें अधिक से अधिक लोगों, खाकर महिलाओं तक पहुँचने का मौका मिलेगा क्योंकि मुश्किल के समय में लोग पुलिस पर अधिक भरोसा करते हैं।
डॉ. दर्पण अहलूवालिया को पुलिस सेवा में आने को लेकर उनके लिए उनके दादा जी प्रेरणाश्रोत रहे हैं। डॉ. दर्पण के दादा नरिंदर सिंह भी पंजाब पुलिस में अपनी सेवाएँ दे चुके हैं और पुलिस सेवा से जुड़े कर्तव्यों के बारे में डॉ. दर्पण को वहीं से पता चला। डॉ. दर्पण के दादा बतौर जिला एटॉर्नी और चीफ लॉ इंस्ट्रक्टर रिटायर हुए थे।
पुलिस सेवा का महत्व
अपनी ट्रेनिंग के दौरान डॉ. दर्पण अहलूवालिया मानव तस्करी से बचाए गए लोगों से बातचीत की थी और इस अनुभव ने उन्हें बड़े स्तर पर प्रभावित करने का काम किया था। मीडिया से बात करते हुए डॉ. दर्पण अहलूवालिया ने बताया है कि उन पीड़ित लोगों से बातचीत कर उनकी लड़ाई और उस दलदल बचने की कहानी से उन्हें पुलिस सेवा के महत्व को भी समझने में काफी मदद मिली।
आज पुलिस अधिकारी के साथ ही बतौर चिकित्सक समाज की सेवा में जुटीं दर्पण अहलूवालिया को आंतरिक सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था के लिए शहीद केएस व्यास ट्रॉफी से भी सम्मानित किया जा चुका है।
Edited by Ranjana Tripathi