टीचिंग की नौकरी छोड़कर इस महिला ने शुरू किया आइसक्रीम का बिजनेस, टर्नओवर पहुंचा 12 लाख
बेहतर अवसर की तलाश में ममता ने नौकरी की तलाश शुरू की। लेकिन पांच सालों की कोशिश के बाद भी उनके हाथ नाकामी ही लगी। वे कहती हैं, 'वह शायद मेरे जीवन का सबसे कठिन समय था। लेकिन मेरे पति ने उस समय भी मेरा समर्थन किया और मेरे साथ खड़े रहे।'
35 वर्षीय ममता हेगड़े ने कम वेतन वाली नौकरी के चलते अपने टीचिंग के पेशे को अलविदा कहने का फैसला किया। कर्नाटक की रहने वाली ममता बताती हैं कि उन्होंने एक एनजीओ में करीब ढाई वर्ष तक बच्चों को पढ़ाने का काम किया। वे कहती हैं, 'मुझे इस काम के लिये प्रतिमाह सिर्फ 6,000 रुपये ही मिलते थे। मुझे कम पैसा मिल रहा था और मैं यह बखूबी जानती थी कि मैं इससे कहीं अधिक बेहतर कर सकती हूं।'
कम वेतन के अलावा उनके सामने अधिक तनख्वाह की नौकरी पाने के रास्ते में एक और सबसे बड़ी रुकावट यह थी कि वे सिर्फ कन्नड़ भाषा की ही कुशल जानकार थीं। वे कहती हैं, 'मुझे केवल कन्नड़ भाषा ही आती है और मैं इसके अलावा और किसी भाषा में अध्यापन नहीं कर सकती। शिक्षण के स्थानीय माध्यम में अच्छा वेतन और बेहतर अवसर के सीमित मौके होते हैं।'
बेहतर अवसर की तलाश में ममता ने नौकरी की तलाश शुरू की। लेकिन पांच सालों की कोशिश के बाद भी उनके हाथ नाकामी ही लगी। वे कहती हैं, 'वह शायद मेरे जीवन का सबसे कठिन समय था। लेकिन मेरे पति ने उस समय भी मेरा समर्थन किया और मेरे साथ खड़े रहे।'
एक तरफ जहां ममता ने हिम्मत न हारते हुए नौकरी की तलाश जारी रखी। इसी बीच पेशे से वकील उनके पति ने उन्हें एमएसएमई मंत्रालय के प्रशिक्षण कार्यक्रम में पंजीकरण करवाने और दाखिला लेने की सलाह दी, जहां से वे कोई नया व्यवसाय शुरू करने के बारे में जान सकती थीं। ममता बताती हैं कि वे एक प्रशिक्षण कार्यक्रम का हिस्सा बनीं। उन्होंने अपने पति से कुछ आर्थिक मदद लेने के अलावा मुद्रा योजना से दो लाख रुपये का ऋण लेकर कुल 10 लाख रुपये की लागत से वर्ष 2016 में बेंगलुरु में 'श्री नंनद क्रम ग्लेस' के नाम से एक आइसक्रीम पार्लर शुरू किया।
उनका यह आइसक्रीम पार्लर कई तरह के स्वाद वाले उत्पाद बनाता है। फ्रूट आइसक्रीम, इतालवी जिलेटो, संडेस और विभिन्न प्रकार के शेक इस पार्लर की प्रमुख विशेषताएं और सबसे अधिक बिकने वाले उत्पाद हैं। ममता कहती हैं, 'कुछ भी नया शुरू करने के लिये कभी देर नहीं होती है। आपकी किस्मत आपके अपने हाथों में होती है।'
ममता कहती हैं कि बिजनेस शुरू करने के बाद पहले ही साल में उन्होंने कुछ अन्य आइसक्रीम ब्रांडों की भी बिक्री करने के अलावा फ्लेवर्ड मिल्क भी बेचा। इसके अगले ही साल उन्होंने अपनी आइसक्रीम बनाकर बेचनी शुरू की। वे बड़े गर्व से बताती हैं कि अब वे कई किस्मों के संडेस भी बेचती हैं। ममता बताती हैं कि वे अपनी किफायती कीमतों के चलते प्रतिदिन करीब 200 उपभोक्ताओं की सेवा करती हैं। वे कहती हैं कि फिलहाल उनके साथ तीन और लोग काम कर रहे हैं और उनकी कंपनी का सालना टर्नओवर करीब 10-12 लाख रुपये का है।
वे कहती हैं, 'अपने उपभोक्ताओं के साथ सौहार्दपूर्ण व्यवहार के चलते हमारी बिक्री में आशातीत वृद्धि देखने को मिली है। वे बार-बार हमारे पास वापस आते हैं और मैं यह सुनिश्चित करती हूं कि उन्हें निराश न करूं।' वे कहती हैं कि उपभोक्ताओं को उचित दाम पर सर्वोत्तम स्वाद प्रदान करना और एक सुखद और सुहावना माहौल ग्राहकों के दिलों के जीतने का सबसे महत्वपूर्ण तरीका है।
बढ़ती हुई बिक्री के बीच उन्हें अपने व्यापार के संचालन के दौरान कई अन्य चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा। वे कहती हैं, 'बेंगलुरु में मजदूरी काफी महंगी है। कोई भी कर्मचारी जुड़ने के बाद औसतन तीन महीनों के भीतर ही नौकरी छोड़ देता है क्योंकि कोई और उसे अधिक वेतन का लाजच देकर अपनी ओर आकर्षित कर लेता है।' वे आगे कहती हैं कि दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में ऐसे व्यवसायों का संचालन बनिस्बत आसान काम है क्योंकि यहां प्रवासी कामगारों की तादाद अच्छी खासी रहती है।
अपने इस व्यापार में सफलता को देखते हुए ममता का कहना है कि अब वे बेंगलुरु में दो से तीन और आउटलेट खोलना चाहती हैं और इसके अलावा अपना खुद का भी एक ब्रांड स्थापित करना चाहती हैं और नेचुरल्स और हार्बर जैसे बड़े ब्रांडों की बराबरी पर आना चाहती हैं। इसके अलावा उनका सपना अपने आइसक्रीम पार्लर को बच्चों के लिये एक आदर्श गंतव्य के रूप में भी विकसित करने का है। ममता का कहना है कि अपने सपनों को पूरा करने के लिये वे सरकार से वित्तीय सहायता मिलने की उम्मीद करती हैं।
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