बिजली वितरण कंपनियों की खराब वित्तीय सेहत सुधारने के लिए निजीकरण पर जोर देगी सरकार
केंद्र सरकार खराब वित्तीय सेहत वाली सरकारी बिजली वितरण कंपनियों को निजीकरण या दूसरे संस्थागत सुधारों की ओर बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करेगी, ताकि घाटे में चल रहे इनके बिजनेस को मुनाफे में लाया जा सके और ग्राहकों को विश्वसनीय आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके। ये जानकारी केंद्रीय उर्जा मंत्रालय के दो सीनियर अधिकारियों ने दी है।
अंग्रेजी अखबार इकनॉमिक टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में उर्जा सचिव संजीव नंदन सहाय ने बताया कि पुराने नेटवर्क, बिजली चोरी और बिलिंग व कलेक्शन में ढिलाई के चलते जिन राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों के रेवेन्यू में 15 पर्सेंट से अधिक की कमी आई है, उन्हें अपने वितरण नेटवर्क में प्राइवेट कंपनियों को शामिल करने के लिए कहा जाएगा। उन्होंने बताया कि ऐसा पावर सेक्टर में जारी सुधारों के दूसरे चरण के तहत किया जाएगा।
बिजली वितरण कंपनियों को डिस्कॉम के नाम से भी जाना जाता है। केंद्र सरकार ने 2015 में घाटे में चल रही डिस्कॉम को मुनाफे में लाने की कोशिश की थी, जो सफल नहीं रही थी। उसके बाद से ही केंद्र सरकार खराब वित्तीय सेहत वाली कंपनियों के निजीकरण की वकालत कर रही है। इन डिस्कॉम को लागत से कम कीमत पर बिजली बेचने के चलते घाटा उठाना पड़ता है, इसके चलते ये पावर प्लांट्स को अधिकतर देरी से भुगतान करती है और ग्राहकों को विश्वसनीय और किफायती बिजली की सप्लाई से वंचित होना पड़ता है।
सहाय के मुताबिक डिस्कॉम की सफलता सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकारों को भी अपनी जिम्मेदारी निभाने की जरूरत है।
सहाय ने कहा,
'बिजली वितरण में निवेश के लिए काफी निजी पूंजी तैयार है। हालांकि इसके लिए राज्य सरकारों को बिजनेस में मौजूद खतरों को दूर करना होगा। राज्यों को समय पर सब्सिडी देने, उनके विभागों को समय पर बिजली बिल का भुगतान करने की जरूरत है। साथ ही इनके कामकाज से राजनीतिक हस्तक्षेप को हटाने की भी आवश्यकता है।'
उन्होंने कहा कि राज्य सरकारें मुंबई, नई दिल्ली और कोलकाता या दूसरे छोटे शहरों का उदाहरण ले सकती हैं, जहां प्राइवेट कंपनियों को वितरण नेटवर्क में शामिल करने के बाद से आमदनी में सुधार हुआ है और कामकाज अधिक सुचारु तरीके से चल रहा है। इस तरह के एक हालिया कदम में टाटा पावर ने पिछले साल ओडिशा की एक बिजली वितरण कंपनी का अधिग्रहण किया था।
ओडिशा के उर्जा विभाग के प्रिंसिपल सचिव विष्णुपाड़ा सेठी ने बताया, 'डिस्कॉम के मैनेजमेंट को प्राइवेट हाथों में सौंपने से हमें सब्सिडी के बोझ में अहम कमी आने की उम्मीद है। नया मैनेजमेंट घाटे को कम करेगा और डिस्कॉम को मुनाफे में लाएगा। इससे लोगों को मिलने वाली बिजली सप्लाई में सुधार आएगा, जो राज्य सरकार का लक्ष्य है।'
2015 में पावर सेक्टर के लिए शुरु किए गए सुधारों के तहत, मार्च 2019 तक आमदनी में औसत घाटे को 15 पर्सेंट तक लाने का लक्ष्य रखा गया है। इसके बाद से घाटे में कमी आई है, हालांकि मार्च 2019 तक यह अभी भी 18 पर्सेंट पर था, जिसमें कई राज्यों का घाटा इससे भी कहीं ज्यादा था। उर्जा मंत्रालय के मुताबिक जिन बिजली वितरण कंपनियों ने योजना पर हस्ताक्षर किया था, उनकी 2019 में कुल नेट इनकम लॉस एक साल पहले की तुलना में 85 पर्सेंट बढ़कर 280.4 अरब रुपये रही थी। जबकि इसके पहले के दो सालों में इसमें गिरावट देखी गई थी।